Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 289718 times)

Bhishma Kukreti

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महेंद्र ध्यानी की दो कटु सत्य दर्शाती व्यंग्यात्मक गढ़वाली कविताएं ( Satirical, Realistic Poems by Mahendra Dhyani )

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सेठ कु छन (Garhwali Poem)
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आसन ;पाणि
अर
भलि बात बच्याणि
जैक घर म छन
इ तीन धाणि(चीज)
चाइ भितर नी छ
कौड़ि काणि
शान से द्यो ताणि
हम सबसे सेठ छां।
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दुन्या की असलियत
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एकी पीढिम
एकी घर मा
एकी नजर मा
कतना फर्क ह्वे जान्द
ब्वारि बिरणि
अर नाति खास ह्वे जान्द।
-
गढ़वाली व्यंग्य कविता

Garhwali Poem, Folk Songs  from  Garhwal, Uttarakhand, North India, South Asia ; Garhwali Poem from  Pauri Garhwal, Uttarakhand, North India, South Asia ; Garhwali Poem Folk Songs from Chamoli  Garhwal, Uttarakhand, North India, South Asia ; Garhwali Poem, Folk Songs  from Rudraprayag  Garhwal, Uttarakhand, North India, South Asia ; Garhwali Poem, Folk Songs  from  Tehri Garhwal, Uttarakhand, North India, South Asia ; Garhwali Poem, Folk Songs  from  Uttarkashi Garhwal, Uttarakhand, North India, South Asia ; Garhwali Poem, Folk Songs  from Dehardun  Garhwal, Uttarakhand, North India, South Asia ; Garhwali Poem, Folk Songs  from  Haridwar Garhwal, Uttarakhand, North India, South Asia


Presented by Bhishma  Kukreti

Bhishma Kukreti

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Interview with Garhwali Poet Dharmendra Negi by Bhishma Kukreti
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गढ़वाली कवि श्री धर्मेंद्र नेगी के अपने  बारे में  कुछ विचार (लिखाभेंट /इंटरव्यू द्वारा )
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(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part - 165)
( गढ़वाली कविता  क्रमगत इतिहास  भाग -  165 )

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नाम- धर्मेन्द्रसिंह नेगी
गाँव- चुराणी, रिखणीखाळ

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पट्टी- इड़ियाकोट मल्ला
जिला- पौड़ी गढ़वाल
वर्तमान पता- स.अ., रा.पू.मा.वि.- जगदेई, पत्रालय- गौलीखाळ, नैनीडांडा पौड़ी गढ़वाल
जन्मतिथि- 19-06-1975
जन्मस्थान -ग्राम चुराणी, Rithakhal Pauri Garhwal
[     साहित्यिक ब्योरा- मेरी अज्यूं तक एक बाल उपयोगी पुस्तक कथा- चित्र- गीत "सिकासेरी" प्रकाशित ह्वेयीं छ अर कथा -चित्र -गीत  "तीलू बाखरी " अर "वीर बाळातीलू रौतेळी " व छ्वट्टी छ्वट्टी बाल कविताओं की बाल पोथी प्रकाशनाधीन छन /
यांका अलावा कविता, कहानी, नाटक ,एकांकी आदि भी लिखीं छन / कुछ नाटकों को मंचन विद्यार्थियों द्वारा स्कूल का समारोह मा करेगे / कई पत्र पत्रिकाओं मा लेख अर कविता छपेणी रौन्दन /
सौभाग्य से उत्तराखण्ड का प्रतिष्ठित साहित्यकारों का दगड़ी मंचों मा कविता पाठ को सुअवसर भी मिलणूं रैन्द /                       
      : समीक्षकों की राय- मेरा लेख अर कविताओं तैं जौं भी पाठकौं न पैढ़ी अर सूणी सब्यूंन भली भली सलाह देनी अर पीठ भी थपथपैइ / जब भी क्वी वरिष्ठ साहित्यकार अपणी सौसलाह देन्दन ता भौत भलु लगद अर भौत कुछ सिखणा को भी मिलद / नै छ्वाळी का लिख्वारों का वास्ता अड़ंदरौं का रूप मा वरिष्ठ साहित्यकारों को होणू भौत जरूरी छ /                       
             : कविता क्षेत्र मा आणौ कारण -  स्कुल्या दिनौ मा ही पिताजी का दगड़ा गढ़वाली साहित्य पढ़णौ चस्का लगिगे छौ | आकाशवाणी नजीवाबाद अर लखनऊ बिटि प्रसारित होण वला गढ़वाली अर कुमाऊंनी कार्यक्रमों का हम नियमित श्रोता छया | स्कुल्या दिनों मा ही लिखणौ  शौक लगिगे छौ | कौप्यूं का पिछनै का पेज मा लेखिकी दगड़्यों तैं सुणाई वाहवाई लूटी अर फिर फाड़िकी फेंकी दे |  नौकरी पर आणा बाद ब्यो ह्वेगे अपणी नै -नै ब्योली तैं भी अपणी कविता सुणैनी |वीन बोली जब तुम लिखदा छयॉ ता यूंको संकलन किलै नि करदा | मिन बोली संकलन कौरि मिन क्या करण ? कौन से मिन क्वी किताब छपवाण | वीन स्वयं मेरी रचनाओं तैं संकलन करणौ जिम्मा ले | एक बार विभागीय प्रशिक्षणा दौरान डायट चड़ीगाँव मा भैजी गिरीश सुन्दरियाल जी अर हरीश जुयाल जी से भेंट ह्वे साहित्यिक चर्चा परिचर्चा  दौरान मिन भी अपणी रचना वूंतैं सुणैनी | वून रचनाओं की तारीफ कैरी अर लिखदा रैणा की अर रचनाओं तैं संकलित करणै सलाह दे | बस वी मेरो जीवनौ टर्निंग प्वाइन्ट छयो | आज अपणी रचनाओं तैं जब सोशियल मीडिया पर पोस्ट करदू ता पाठकों द्वारा भौत भला भला सुझाव ,  कमेन्ट्स अर लाइक मिलदन त औरि लिखणै हिकमत मिलदा |                       
                  रचनाओं पर कव्यूं को प्रभाव- मेरी रचनाओं पर कौं कव्यूं को प्रभाव छ यु त मि नि बतै सकदू हाँ मेरी रचनाओं का पाठक अर श्रोता जरूर यीं बात तैं बींगि सकदन अर  बतै सकदन |
  जख तक गढ़वाली साहित्यकारों का साहित्यै बात छ मितैं कन्हैयालाल डंडरियाल जी , निर्मोही जी, गोविन्द चातक जी , सायर साहब, अयाळ जी,ललित केसवान जी ,नरेन्द्रसिंह नेगी जी, देवेन्द्र जोशी जी, छिपड़ु दा ,नेत्रसिंह असवाल जी, भीष्म कुकरेती जी(सोशियल मीडिया पर), मदनमोहन डुकलाण जी, नरेन्द्र कठैत जी,वीरेन्द्र पंवार जी , गणी भैजी,  गिरीश सुन्दरियाल जी, हरीश जुयाल जी , जगमोहन बिष्ट जी को गढ़वाली मा लिख्यूं साहित्य भौत उत्कृष्ट अर  प्रेरक लगदा | कती बार पैढ़ी की भी ज्यू नि भुरेन्दो | यूंका साहित्य की जरा भी लसाक मैमा ऐजाव ता मी अपणो धनभाग  समझुलु  |                         भौतिक संसाधनों को महत्व - टेबल,  खुर्सी को त मैं ज्यादा महत्व नी समझदो | हाँ  पेन , नोटबुक अर इकुलांसौ  साहित्यकारा जीवन मा भौत महत्व छ |
परिस्थिति का अनुसार लिखणा का वास्ता पेन, पेन्सिल , मोबाइल या कम्प्यूटरौ इस्तेमाल करदो |
कागज कनी भी मिलजो लेखिदिन्दो | हाँ रफ कॉपी मा लिखणमा भौत आनन्द औन्द | लेखा अर पसन्द नी औ त कागज चीरीकी  फुन्ड धोलिद्यो  |
शिक्षक होणा कारण अब पेन अर पॉकेट डायरी जेब मा रखणै आदत सी ह्वेगे |

कैबेरी क्वी विचार मन मा ऐ जाव अर नोट करणा को ज्यू नी ब्वनों ता मोबाइल मा वूं पंगत्यों तैं रिकॉर्ड कैरी देन्दो अर घौर मा ऐकी फुरसत से फिर फेयर कैरी देन्दो /
हाँ कतगै दौं भौत ज्यादा अलगस ह्वे जान्द अर मन मा अयॉ विचारों तैं ना ता नोट करेन्दो अर ना रिकॉर्ड / मन बोद कनु नी रालु घौर पौंछद पौंछद तक  याद अर घौर मा ऐकी जब पंगती याद नी औन्दी ता अफु फरै भौत गुस्सा औन्द तब /                       
      : अपणी रचनाओं तैं रिवाइज करणै जखतक बात छ मैं तैं अपणी  कविता याद ता ह्वे जान्द पर व ज्यादा दिनों तक याद नी रौन्दी | यां मामला मा मिन गिरीश सुन्दरियाल भैजी से ज्यादा याद रखण वलो क्वी नी देखी वूंतैं अपणी त ह्वे ह्वे वांका अलावा सब्बि प्रसिद्ध गढ़वाली साहित्यकारों की रचना भी याद रैन्दन |                       
    कविता की वर्कशॉप - मेरो मनणो यो छ की कविता जिकुड़ा बिटि उपजद , पर हाँ जु भी हम लिखदा छां वु अगर एक फौरमेट मा हो ता औरि भी दमदार अर मजेदार ह्वे जान्द | इलैई नै छ्वाळी  लिख्वारों  वास्ता कविता ही ना साहित्यै  हर विधा की वर्कशॉप आयोजित करे जाण चैन्दी | जैमा वरिष्ठ साहित्यकारो तैं ऐक्सपर्ट अर मास्टर ट्रेनर का रूप मा आमन्त्रित करे जाण चैन्द |  अब तक लिख्यूं सब्बी उत्तराखण्डी भाषाओं साहित्य वख उपलब्ध होण चयेन्द |
 मैंतै भी अज्यूं तक यनि वर्कशॉप मा शामिल हूणौ सुअवसर नि मिली अगर भविष्य मा कभी  मिललो ता मी जरूर शामिल होणौ प्रयास करलो |
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Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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    Dharmendra Negi: One of the most Promising Garhwali poets 
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 (Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part - 165)
( गढ़वाली कविता  क्रमगत इतिहास  भाग -  165 )

  By: Bhishma Kukreti
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  Dharmendra Negi is one of the promising poets of Garhwali language. Dharmendra Negi was born in Churani village of Rikhanikhal block of Pauri Garhwal Uttarakhand in 1975. Dharmendra preferred joining education profession.
      Dharmendra Negi published about 20 poems in various publications. Dharmendra posted more than 80 new poems in online media at various sites. Readers, children and critics appreciated his children story with sketches ‘Sikasauri’.
   Dharmendra created poetries, Ghazels and free verses on various subjects as society, education, and political value deterioration, falseness in modern society, environment protection, routine Garhwal life and pain of migration. His ways of illustrating Garhwal geographical images is different and it is because of his uses of metaphoric methods.
Dharmendra Negi created poems of inspirational nature, serious, satirical and humorous.
           Senior poet and Editor Madan Duklan stated that Dharmendra Negi is capable of tackling big idea and successfully conveying his views to the readers.
    A renowned poetry critic Dr. Manju Dhoundiyal appreciated for his words choices for creating free poems, Ghazels or lyrics and appreciated his creating desired images by his proverbs, folk sayings and conventional as well as newer symbols.
    Famous Garhwali Humorist Harish Juyal says that Dharmendra creates perfect emotions and intellectual emotional reactions and that could be felt among audience when he reads his poems before audience.
 His uses of proverbs in his verses is appreciated by many critics as –
१ पकयां चखलों तैं हवा मा उड़ै दिन्दन उडाण वळा

२ ढंडि क माछौ तैं डाळों मा चढै़  दिन्दन चढ़ाण वळा

३ हैंसै- हैंसै की भि कतगै दौं त रुवै दिन्दन रुवाड़ वळा

४. रौतौं बळ्द मोरि दिदौ अपणि खुशिन

५ कर्यां- धर्यां मा मोळ -माटु छोळि दिन्दन छ्वळण वळा

६ मारि- बांधिऽ  मुसळमान भि बणै दिन्दन बणाण वळा

७ पड़म- पड़म कुबथा बोली भि जुते दिन्दन जुत्याण वळा
   In private conversation, famous Garhwali critic Virendra Panwar sees high promises from Dharmendra Negi in Garhwali poetry world.


हम सैणs का गोर भ्याल हकै सकदां


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हम सैणs का गोर भ्याल हकै सकदां
हम गौं कि द्वी सार्यूं गोर चरै सकदां
हम कैका भि पुंगड़ा को वाडु सरै सकदां
हम खास भयों मा भी लड़ै करै सकदां
किलैकि हम आजाद छां, किलैकि हम निरदुन्द छां
हम गौं का नवळौं मा मैणु छोलि सकदां
हम कैका भि डाळिकि नारंगी चोळि सकदां
हम कैका भी खल्यॉण मा दैं फोळि सकदां
हम कैखुणै,कखिम भी कुछ भी बोलि सकदां
किलैकि हम आजाद छां, किलैकि हम निरदुन्द छां
हम कैकि भि कूड़ि फरै बुजिना खे सकदां
हम अपणि बांठि खैकि हैंककि हते सकदां
हम कैकि भि कूड़ि अर छनुड़ि घंटे सकदां
हम कैका भि कान्धाउन्द झुंटे सकदां
किलैकि हम आजाद छां, किलैकि हम निरदुन्द छां
हम कल्यो खैकि कंडा भ्यालुन्द लमडै सकदां
हम बैलि भैंस्यों तैं लैन्दि बतैकि बेचि सकदां
हम कैकs भि मुंड कि लटुळ्यों तैं झमडै सकदां
हम खुटि अलगैकि बडु़ आदिम बणि सकदां
किलैकि हम आजाद छां किलैकि हम निरदुन्द छां
हम कैका बण्यॉ काम मा भांचि मारि सकदां
हम उकाल काटिकि सरपट भाजि भि सकदां
हम कैका भी तैकs मा अपणि भूड़ि तैलि सकदां
हम कैखुणैं भी कखिम भी बौंळि बिटै सकदां
किलैकि हम आजाद छां किलैकि हम निरदुन्द छां
हम जळड़ा घाम लगाण मा माहिर छां
हम हैंकका नौकि संगरांद बजाणका उस्ताद छां
हम हैंककि कुटीं घाण मा बणदा झट पर्वाण छां
हम भैरा खुणि बिर् वळि अर भितरा खुणि ढिराक छां
किलैकि हम आजाद छां किलैकि हम निरदुन्द छां
आप सब्यूं तैं आजादी कि भौत-भौत शुभकामना
=

" छोड़ि दे "
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रूणु गंगजाणु छोड़़ि दे
आँखा मळकाणु छोड़ि दे
उंठड़ि उफार ब्वलणु सीख
गिच्चु पळकाणु छोड़ि दे
स्यूं सांसु कैर हिकमत दिखौ
दगड़्या घबराणु छोड़ि दे
घ्वीड़-काखड़ सि मार उदाक
कौंपणु थथराणु छोड़ि दे
सर-सर कै हिट,अबेर नि कैर
घुमका लगाणु छोड़ि दे
बांठु अपणु हत्यो रै 'खुदेड़'
मंगणु , टपराणु छोड़ि दे

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सुनील दत्त मैन्दोला :गढ़वाली कवि परिचय
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गढ़वाल,उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता  क्रमगत इतिहास  भाग - 166 )   
(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part - 166)
   Presented by By: Bhishma Kukreti
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वर्तमान पता- लाजपतनगर, साहिबाबाद,गाजियाबाद

स्थाई- ग्राम  व पो०औ०-द्वारी,पट्टी-पैनो,वि०खण्ड-रिखणीखाल,पौडी गढवाल
जन्म -1977
शिक्षा-एम० ए०,बी०एड०,एम०एड०



प्रकाशित रचनाये-
   1-उद्गार (गढवाली कविता सँग्रह)
2-मेरे सपने(हिन्दी कविता सँग्रह)
3-पतझड (हिन्दी कहानी सँग्रह)

अप्रकाशित रचनाये-
  1-मेरी गाँणि(गढवाली कविता सँग्रह)
2-पँदेरी(गढवाली गीत सँग्रह)
3-यादो के झरोखे(हिन्दी कविताये)
4-श्री हरि(दैवीय रहस्य..हिन्दी मे)
5-चरचुर-बरबुर(गढवाली चुटकिले)
6-मधु(शेरो-शाँयरी हिन्दी मे)

प्रसारित गढवाली गीत-
1-गढवाली डिस्को भाँगडा(चित्रहार)

अप्रसारित गढवाली गीत-
 1-नै जमना क नै ठुमका(चित्रहार)

2-प्रधनी बौ(चित्रहार)

3-मेरी मैणा(चित्रहार)

4-कनि जि होलि(चित्रहार)

5-झण्डा चौक मा(चित्रहार)

6-बँदोरा बाँद(चित्रहार)

सम्मान एँव पुरस्कार- चन्द्र कुंवर बर्त्वाल साहित्य श्री सम्मान से अलँकृत(सन् 2016)

प्रसारण- मँदाकिनी की आवाज एफ०एम० रेडियो-90-8 से गढवाली कविताये प्रसारित एँव अन्य कई प्रतिष्ठित मँचो से कविगोष्ठियो मे काव्यपाठ

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मि थैं  उड़ण द्यो   (शहरी घुटन दर्शाती कविता )
 
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मि उड़ण चाणु छौं
झिंडी डांडी ठंडु बथौं म
ताकि म्यारा पंखुड़ा मिथे
आजादी अहसास दिलाला।
 
मि रळेण च्हाणो छौ
पहाड़ी त्वातों का बीच
जु कौणी , झंगोरू लय्या , क्वादु
आम -अमरुद , बन बनीका
बावन चीजी खन्दी
ताकि मिथैं अपणो का बीच
अपणु अहसास हो।
 
मि नि चांदु
शहरी तोता बणिs रौं
जु सदनि
ल्वाखरो पिंजड़ा पुटग
रुणाणु रैन्द ,फड़फड़ाणु रैंद
भैर उडणो को।
 मि उड़ण चाणु छौं
मि थैं  उड़ण द्यो
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चमोली गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; देहरादून गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; हरिद्वार गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ;

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Sunil Datt Maindola: A Multitalented Garhwali Poet
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गढ़वाल,उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता  क्रमगत इतिहास  भाग - 166 )   
(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part - 166)
  By: Bhishma Kukreti

       Sunil Datt Maindola is multitalented Garhwali creative.
            Sunil Datt Maindola was born in 1977 in Dwari village,  Rikhanikhal block of Pauri Garhwal.
   Sunil is post graduate and passed his master degree in education too.
    Sunil Maindola published Hindi poetry collection (mere Sapne) and Hindi Short Story collection (Patjhad).
  In Garhwali, Sunil Maindola has been pubslishing his poems in various periodicals and has published a poetry collection ‘Udgar’. His  poetry collection ‘Meri Gani’, lyric collection ‘ ‘Panderi’and jokes collection ‘Charchur-Barbur’ are under publication.
  Sunil Datt Maindola   also released a couple of video cassettes.
 Maindola also relayed 9 Garhwali pomes through FM Radio 90-8.
  Sunil used varied subjects as social cultural deterioration, nature images, love, and interpersonal relationship, political and administrative corruption in Garhwal, pain and suffering of migrated Garhwalis and suffocation in urban life.
  Sunil Datt prefers lyrical poems and there is always rhythm in his each poem. Maindola is expert of creating Garhwal images through his poems. Sunil uses simple Garhwali words (usually with Salani dialects) and does not hesitate using Hindi words.
   Poetry critic Dr. Manju Dhoundiyal appreciated his lyrical poems. A Garhwali lyric lover Indu Devrani also appreciated his uses of simple words that non Garhwali ( Indu is Kumauni) readers could easily understands his modern poems. Anand Singh Rawat (Paino , Salan)  a Garhwali poetry lover also appreciated his uses of common symbols from Garhwal.
      Sunil got a couple of awards for his creativity as  Chandrakunwar Barwal Sahitya Shri award.
         
मि थैं  उड़ण द्यो   (शहरी घुटन दर्शाती कविता )

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मि उड़ण चाणु छौं
झिंडी डांडी ठंडु बथौं म
ताकि म्यारा पंखुड़ा मिथे
आजादी अहसास दिलाला।

मि रळेण च्हाणो छौ
पहाड़ी त्वातों का बीच
जु कौणी , झंगोरू लय्या , क्वादु
आम -अमरुद , बन बनीका
बावन चीजी खन्दी
ताकि मिथैं अपणो का बीच
अपणु अहसास हो।

मि नि चांदु
शहरी तोता बणिs रौं
जु सदनि
ल्वाखरो पिंजड़ा पुटग
रुणाणु रैन्द ,फड़फड़ाणु रैंद
भैर उडणो को।
 मि उड़ण चाणु छौं
मि थैं  उड़ण द्यो
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हमरी आस -
-

त्वेकुु माया जोडियाल
अर पंखुडी-पुच्छडि बि
लगी गेनी त्वेफर
अब त फुरर उडी जैलु तू
म्यारू लाटा दूर परदेस तू
बणैलि एक नै घोल
बसैलि अपणी छ्वटी सि दुन्या
तु बिअास लेकि
फेर कु पुछद ब्वे- बुबा थै
कु द्यखद पुरण कूडि थै
जैका डिंडयल ,चौक फुण्ड
खितगुणू  हैंसणो रैन्द छै बचपन
यांकु दोष त्यारू बि नीच
इन त  जुग-जुग बिटै
चलणी रीति च
पर,
इतगा त याद रखी
हमरी साँखी छै तू
हमरी अाँखी छै तू
हौर
हमरी जिकुडी काख माया छै तू !
तन कि दूरी भले  जै
पर मन कि दूरी न हूण  दे  तू
याद रखी आज जन तू
अपुण भविष्य बणाणि छै
हमरू बि उनि भविष्य छै तू
बुरा दिनों  कि लाचारी म
हमरी एक आस छै तू
एक सांस छै तू
हमरू मन म हुंयूं च घंघतोल
त्वे कनक्वे बिंगौंला
अपणि मन कि बात
यो माया को पहिय्यां
कतगा तेज घुमणो यल्यूं च
ब्यटा रे ,
भोल जब तू चलि जैलु
अपणि नौकरी फर परदेस
तब हमन
घुघती सी खुदेणू रैण दिन-रात
टपराणी रैलि मयलि आँखी
तेरी सकल-सूरत द्यखण को !
ब्यटा,
जौंकि सच्ची सरधा रैद
अपणा ब्वे-बाबु खुणै
वूंकि अौलाद झुल्दा-फुल्दा हून्द
जा म्यारू लाटा
अपणि नौकरी फर
पर,
ज्वानि कि उमंग मा
भूली न जै हमुथै
अरे एक दिन त्वेन बि
हमुमैं त अाण !!

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Anoop Rawat: A promising Garhwali Poet and a Blogger
 (गढ़वाल, उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता  क्रमगत इतिहास  भाग -236 )
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 (Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part -)
  By: Bhishma Kukreti   (Literature Historian)
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     Anoop Rawat is one of the promising young Garhwali poets interested in taking Garhwali poetry on its zenith.
   Anoop knows that in modern time, internet is one the most promising medium for promoting small population spoken language as Garhwali. That is the reason he started his own blog (Meru Mulk Meru Pran iamrawatji.blogspot.in).
   Anoop Rawat was born in Gween Malla, Khatli, Beeronkhal of Pauri Garhwal in 1989.  Anoop Rawat is post graduate and interested in digital media.
   
 Humanity , Social reforms  and Garhwal are major concerns for young Garhwali poet Anoop. He discusses Chakbandi , foeticide,  development and many more subjects as love, philosophy, spirituality, patriotism.
 हे गितांग दिदा जरा चकबंदी कु गीत लगे दे poem shows his concern for social and agriculture reforms in Garhwal hills.
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 His one of the best social concern poems is bout foeticide -
 कन्या भ्रूण हत्या पर कुछ पंक्तियाँ (गढ़वाली कविता भाग )





आणि दे वीं ईं दुनिया मा, जीणी दे वीं ईं दुनिया मा..
क्या चा वींकु दोष ज्वा ह्व़े व बेटी जात.
कुछ त डेर वे बिधाता से राखी ले मनख्यात..

आज की दुनिया मा बेटी बेटा बराबर चा
ध्यान से देख फर्क नीचा कुछ भी द्वियु मा
टक्क लगे सुणी ले अनूप रावत कि या बात.
क्या चा वींकु दोष ज्वा ह्व़े व बेटी जात.
कुछ त डेर वे बिधाता से राखी ले मनख्यात..

तीलू, रामी, गौरा ह्वेनी बड़ी-२ नारी.
जौन करी काम यनु दुनिया दे तारी..
छाया सभ्या यु भी रे मनखी नारी जात...
क्या चा वींकु दोष ज्वा ह्व़े व बेटी जात.
कुछ त डेर वे बिधाता से राखी ले मनख्यात..


 Anoop also creates humor and satire in his Garhwali poetry as under –
 उन त मि
नौन्युं देखि
भारी सरमांदू  छौं
पर कबि फेसबुक मा
जरा सि चैट कै देंदु
  Anoop Rawat uses lyrics, poems and Ghzals for his illustration.
  It is clearly visible effects of Salani Garhwali dialects in poems by Anoop Rawat.
    Anoop uses old Garhwali phrases (खैरी खांदा खांदा ) and new phrases (फूल माला रिबन कटे उद्घाटन ह्वे गे)  too for illustrating his poems .
  There are mostly all types of images in the poems by Anoop. His uses of symbols make perfect images.
   Poetry critic Dr. Manjula Dhoundiyal claims that Anoop has tremendous potentiality for Garhwali poetry world. 


Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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jagmohan singh jayara

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गधा....

एक मासूम जानवर छ,
कतै नि बिंग्दु,
किलै ब्वोल्दन मनखि,
वेकु गधा,
जबकि मनखि की तुलना,
गधा सी करदन मनखि....

यख गधा वख गधा,
जख द्येखा गधा हि गधा,
गधा हैंसणा अर मनखि,
दिन रात रोणा,
कुजाणि किलै,
गधौं द्येखि ऊदास होणा...

गधौं का गौळा ऊद हार,
पौणा मनख्यौं कु प्यार,
घोड़ा नि पौणा घास,
गधा खाणा च्यवनप्राश,
गधौं की ये जमाना मा मौज,
राज कन्नि मनख्यौं फर,
आज ऊंकी फौज...

गधा यीं धर्ति मा,
अजीब पराणि,
वेकी माया कैन,
कतै नि जाणि,
गधा बणिक मनखि,
पौणा सब्बि धाणि,
गधौंन यना मनख्यौं की,
चाल नि पछाणि....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
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दिनांक 4/1/2018


jagmohan singh jayara

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पाड़ फर मेरी गढ़वाळि कविता।

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
4/1/2018

jagmohan singh jayara

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पाड़ फर मेरी गढ़वाळि कविता।

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
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मेजर वारेन हेडली वार्डल

अठ्ठारा सौ इक्याणनब्बि मा,
गढ़वाळ रैफल की,
पैलि बटालैन मा शामिल ह्वेन,
छै साल तक लैंसडौन मा रैन,
सन् उन्नीस सौ चौद्दा मा,
विश्व युद्ध मा शामिल होण कु,
बटालियन दगड़ि फ्रांस गैन,
लड़दु लड़दु लापता ह्वेन,
बौड़िक लैंसडौन नि ऐन....

लैंसडौन छावणी मा रात कु,
डयूटी फर तैनात सन्तर्यौंन,
उन्नीस सौ चौवन्न सी पैलि,
मेजर वार्डल कु भूत रात मा,
सफेद घोड़ा मा बैठिक घूम्दु,
साक्षात सामणि देखि,
जू तैनात सन्तर्यौं तैं,
ऊंकी गल्ती बतौन्दु थौ,
ब्वोला त निरीक्षण करदु थौ.....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
सर्वाधिकार सुरक्षित,
दिनांक 9/1/2018


 

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