चन्द्रनगर,
कवि: नन्द राणा ‘नवल ‘
Chandranagar’
A Garhwali Poem by Nandan Rana ‘Naval’
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थाति कार्तिक स्वामी की सजदू चन्द्रनगर,
छैल चंदण्याँ भगवान कू हुन्दु चंद्रनगर।
मयळा मनख्यूँ की रौंत्यळि धरती मेरु मुल्क।
आसिरबाद माँ भगवती कु मिलदू चंद्रनगर।
बाँजै जड़्यूँ कु मिठ्ठू पाणी हमारा गौं,
तपदा ज्यौठ मा ससराँदू सुरसुर्या बथौं,
फ्यूँली-बुराँस करदा पुण्य भूमि कु श्रृंगार,
तुम भि कभी ऐ जा बाटु हैरदू चंद्रनगर।
ली जा शुद्ध हवा तू मेरा मुल्क की समौंण च,
घणा बणूँ सुणैंदी चखुलौं की कनि भौंण च।
मन्दाकिनी की आवाज गूँजदी क्यूँजा घाटी मा,
माँ-बैंण्यूँ कू मान बढ़ौंदू मेरु चंद्रनगर।
सिद्धवा-नगैला का जागर कातिग-चैत मा,
कछड़ी लगौंदी धियाँण दगड्यूँ दगड़ी मैत मा,
पण्डौं का पँवाडा छन बगड्वाळ कु नाच यखी।
होरी की हुड़दंग अर बग्वाळी का गीत गाँदू चंद्रनगर।
अल्लु,सट्टि कोदू झंगोरू नाजै कन रस्याँण च,
दूध,साग,भुज्जी हेल-मेल हमारि पच्छ्याँण च।
मीत-म्यळाग,मौ-मदद अभि भि हमारा गौं मा च,
अपड़ी संस्कृति से अभि भि जुड़्यूँ च चंद्रनगर।
केड़ा,किणझाणि,रावा,डुंगरी,कोन्था,तेबड़ी,मोली च,
काँदी,बाड़ब,कालईं,जाबरी,भणज,मचकंडी,अखोड़ी च।
सभी गौं कि जिकुड़ी धड़कदी रौंत्यळि काँठयूँ मा,
मेरू मुल्क सबसे अच्छू स्वर्ग से प्यारू चंद्रनगर।
©सर्वाधिकार सुरक्षित®-नन्दन राणा