Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527469 times)

हेम पन्त

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हेम पन्त

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तडतडी उकाल छै जेठ कु छौ मास
ना खखि डाली बौटी  कू छैल छो न खखि छौ घास
पसिनन तरमर बणयूं लगि छै में प्यास
दूर देखी पंदेरी ज्युकुड़ी मा जागी आस
हिट्द हिट्द गयो मि वीं पंदेरी का पास

बोली बोल मिन ये पंदेरी त्वेमा च जलास
सुणी की वीं पंदेरिन मेरी बाच
कैरी गगरी टोटकी वीन हुयो मि निरास
बोल्दी बोल वा ये बटोई मी भी कनु पाणी तलाश

सूणी की विंकि बात मिन मन ही मन मा सोची
ये मनखी अपड़ा भोग का वास्ता तिन यूँ पहाड़ू की आस्म्मिता किले नोची
अधिकार तेरु ही नीचा यूँ  डाई बौटयूँ पर बौण
पंछयुं कू भी चा यूँ मा वास
अपड़ा मतलब का खातिर किले कनि छै तू यूँ जंगलूं कू नाश





प्रदीप सिंह रावत        "खुदेड़"
"फ्योली की आँख्यूं मा आंसू"   पुस्तक बटि  सर्वाधिकर सुरक्षित
फोन नंबर ९९७११२४५७८

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नोने की कफ़न दगड़ी आयुचा नोनो कू आखरी रैबार
देश का खातिर शहीद व्हे ग्यों माँ मि छोडेल मिन यु संसार
 
बीर शहीद की माँ छै तु  मेरी लाश देखिकी गम नि कैरी
गर्व से रखि सर अपडु उन्चू अपडी आँखी नम नि कैरी


प्राण देकी तै वचन निभाई मिन गोली खाई छतिमा
बैरयूँ का खुठा पोण नि देन मिन अपड़ी धरतीमा नोने की कफ़न दगड़ी आयुचा नोनो कू आखरी रैबार
देश का खातिर शहीद व्हे ग्यों माँ मि छोडेल मिन यु संसार

अरे बोल्दन बल, बाबा का कंधा मा होंदु सबसे जादा गरु नोने की अर्थी कु बोझ
लेकिन मी बोल्दो अगर मेरा सौ लड़िक भी होंदा, मि ऊंतै देश पर कुर्वान करदू हर रोज
हमरि आंख्युं कु तारा आज सरा देश कु तारा बणि गयई
आकाश मा चमकूणुच वू आज हमरू नौ रोशन कर गयई नोने की कफ़न दगड़ी आयुचा नोनो कू आखरी रैबार
देश का खातिर शहीद व्हे ग्यों बाबा मि छोडेल मिन यु संसार

भै भी बन्दुदु बैण पर राखी काश होंदु इनु रिवाज
बैण भी बोडरमा जैकी भै की रक्षा करदी आज
मेरा भैजिन राखी का धागों कु फर्ज आज निभेयेल
अपणि मात्रभूमि तै दुश्मन की नापाक नजरू से बाचयेल
भैजी की कफ़न दगड़ी अयुन्चा भैजी कु आखरी रैबार
देश का खातिर शहीद व्हे ग्यों भुली मि,  छोडेल मिन यु संसार
 
फुन्जेगी मेरा मुंडो सिंदूर, फिर भी मेरु मन निचा दुखी
वुंकि एक कुर्वानी लाखू माँ बैणयूँ कू कुटुंब कैरगी सुखी
कट जाली ज़िन्दगी मेरी ये ही सहरा पर की मिलन होलू हमरू अग्ल्या जन्म मा
बीर शहीदे की बिधवा बोलला लोग जब मैकू तै, त अपार खुशी होलि मेरा मनमा
स्वामी का कफ़न दगड़ी स्वामी का कफ़न दगड़ी आयुचा स्वामी कू आखरी रैबार
देश का खातिर शहीद व्हे ग्यों प्रिये मि छोड़े मिन यू संसार


प्रदीप सिंह रावत     "खुदेड़"

"फ्योलीकी आँख्यूंमाआंसू"   पुस्तक बटि  सर्वाधिकार सुरक्षित
फोन नंबर     9971124578

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 पहाड़ दुर्दशा !
 
क्या दशा ह्व्य्गी यों पहाडू की, कैन करी यो काण्ड हो,
लोली निर्मुंडी डांडी इन लगणी छन, जन क्वि जौलीं हांण्ड हो !
हरिभरि डांडी सफा कटे गिन, पशु पक्षी एख का सभी मरेगिन,
बरखा पाणी होण कना मा,हवा होण कु डाली-बोटली निरे गिन !
बोलदा छा जै थ्ये पहाडू की राणी,रोय-रव्येक स्या ह्व्येगी काणी ,
धारा पंदेरा गाड-गदनियों कु कख हर्ची वू ठंडू पाणी !
गंगाल्कू पाणी इन लग्दु अब, जन भात कु मांड हो,
क्या दशा ह्व्य्गी यों पहाडू की, कैन करी यो काण्ड हो,
गरीब लोग यूँ पहाडू का, क्या खैरी ठेश खाणा छन
पेट का खातिर छोड़ी-छोड़ी की भैर देश सी जाणा छन
मुंड कपाल रेचि यूँ पहाडियों, पर जन छा तनी रैन
मुंडी-मुंडी क यूँ साणी, देशी-बणिया क्या फलीफूली गैन
दिनों दिन इन मोटा पड़णा, जन शिवजी का सांड हो
क्या दशा ह्व्य्गी यों पहाडू की, कैन करी यो काण्ड हो,

पतिरोल-फोरिस्टर जो छा रक्षक, सी बनि गिन बणु का भक्षक,
कुलाडी उठैकी, अफी चल जान्दन, डाली दिखेंदीन तों तैं जख-जख !
घूश खै-खै की यों वन-रक्ष्कू की, दिनोदिन सूझणी फांड हो
क्या दशा ह्व्य्गी यों पहाडू की, कैन करी यो काण्ड हो,
 
गोदियाल

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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'मिन त गीत पुराणु ही गाण'

सुणि त हवाली तुमुन व पुराणि औखाण,
'आदू कु स्वाद बल बांदर क्य जाण',
तुमि खप्यां या नया जमनै की
भौ-भौ अर् ढीकचिक-ढीकचिक,
भै!मिन त गीत पुराणु ही गाण !


अंग्रेजी बैण्ड पर नाचदा रम पम बोल,
अर् दाना-स्याणू कु यु उड़ान्दा मखौल,
छोडियाली युऊन अब ढोल दमाऊ
मुसिकबाजु अर शिणे त कैन बजाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !


आजकल का नौन्यालू कि इखारी रौड़,
बाबै की मोणी मा फैशन की दौड़,
यी क्य जाणा कन होन्दु मुण्ड मा टोपली
अर् कन्धा मुंद छातू लिजाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !


पढोंण का खातिर यूँ तै भेजि स्कूल,
अददा बट्टा बिटिकी ये ह्वाय्ग्या गुल,
घुम्या-फिरया यी कौथिक दिनभर
दगडा मा लिकी क्वि गैला-दगडीयाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !


मुसेडै की डॉरौकु और पैसे कि तैस,
चुल्लू उजड़ीगे और ऐगिनी गैस,
यूँन नि जाणि कन होंदी बांज कि लाखडि
अर् व्यान्सरी मु फूक्मारिक गोंसू जगाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !


काटण छोडिक लाखडु अर् घास,
खेलण लग्यां छन तम्बोला तास,
घर मु गौडी-भैंसी चैन्दि लैंदी सदानी,
अर बांजी गौडी-भैंसी कख फरकाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !




पेण कु चैन्दि यु तै अंग्रेजी रोज,
बै-बुबगी कमाई मा यी करना मौज,
जब कभी नि मिलू यु तै अग्रेजी त्
देशी ठर्रा न ही यूँन काम चलाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !


खाणौ मा बर्गर-पीजा और चौमिन-दोशा,
नि मिली कभी त बै-बुबौऊ तै कोशा,
हेरी नि सकदा यु कोदा झंगोरू तै,
कफली अर् फाणु त यून कख बीटी खाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !


बदन पर युंका लत्ती न कपडि और,
वासिंग मशीन भी यी लैग्या घौर,
इनी राला घुमणा नांगा पत्डागा त
आख़िर मा ठनडन पोट्गी भकाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !


फैशन मुंद युंका इनु पड़ी विजोक,
कमर युंका इन जन क्वि सुकीं जोंक,
डाईटिंग कु युंकू इन रालू मिजाज
त डाक्टर मु जल्दी यूं पड़लू लिजाण
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !


भिन्डी क्य बोलू आप दगडी यांमा मैं,
आप भी पढ़या-लिख्या और समझदार छै,
सुधर्ला त अच्छी बात, नि सुधर्ला त
बूडेन्द्दी दा तुमन ही आपरी खोपडी खुजाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण

-P.C.Godiyal

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पैटौन्दि दां वा पाहडि बांद
देखी खडी बाट्टा मा, मिन वा पाह्डी बांद
गौं बिटीकि छुट्टी खैकी, ड्युटि परै आन्द,
डांडयों मा छांई की छै, कुयेडी की धुन्द
सुहा छौ पैटण लग्युं वींकु, जाणकु तै उन्द
पिंग्ली साडी गात परै, हर्यु स्काफ़ मुण्ड
चांदि की कर्दोड कमर, टल्खि कन्धा फुन्ड,
चम-चम चमकुदु छौ ,गला कु गुलबन्द
लट्कदी बिस्वार तैंकि, लंबी नाक मुंद
गौणौन छै स्वाणि मुख्डी, वींकि लक्दक
अथेड्ण्कु आईं छै वा, आददा बाटा तक,
आण कु बोली वै तै फ्योर, अग्ल्या ह्युंद
ढोल्न लगी आंखी छै, बडा-बडा बुन्द
पैटौन्दी सुहा देखी छै, मिन वा पाह्डी बांद
गौं बिटीकि छुट्टी खैकी, ड्युटि परै आन्द,
डांडयों मा छांई की छै कुयेडी की धुन्द
सुहा छौ पैटण लग्युं, जाणकु तै उन्द
-गोदियाल


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थोडा मेरि भी सोचा
ये कलयुग मा ब्वै-बुबा ही ग्रेट छन त नौनौंगी त बात ही कुछ और च, जब बात हद सी अगनै बढ जान्दि त नौनु अप्ण बुबा तै क्य सलाह देन्दु ल्या सुणा;
पापी ज्यू पर लागि बबा, ज्वानि की खरोच
ब्योगा दिन औण लग्या, थोडा मेरि भी सोच
बानु तु बणौ न बबा, कि खुटटा पर च मोच
उठौ अपणु लाठु छतरु, थोडा मेरि भी सोच


ई भरीं ज्वानि मा भि मी, कब तकै लुकारि ताडु
देखि-देखि की लोगु सणि, कबरी तक टर्कणि गाडु
कैगु क्वी अणबिवायुं रैगि हो, गौंमा इनि क्वि मौ च
उठौ अपणु लाठु छतरु ,अर थोडा मेरि भी सोच


दोण दैजु लीक तै, ये घर मा भी ब्वारि आलि
जन मी पल्येणु छौ, तन स्या भी पल्येइ जालि
मी सी भी छोटा-छोटो कु, अग्ल्या मैना ब्यो च
उठौ अपणु लाठु छतरु अर, थोडा मेरि भी सोच


त्वै सी नि ह्वै सक्दु कुछ त, सुण ली मेरि बात
मैन आफि उठैकि लौण, ज्वी भि लग्लि हाथ
फिर न बोलि नाक कटेगि, दुश्मन सारु गौं च
उठौ अपणु लाठु छतरु अर, थोडा मेरि भी सोच
पापी ज्यु पर लागि बबा, ज्वानि की खरोच
ब्योगा दिन औण लग्या, थोडा मेरि भी सोच


-पी.सी.गोदियाल

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सूर्य अस्त पहाड़ पस्त
मेरा एक मित्र जो पहाड़ से अपरचित था
बस मेरे आँखों और अनुभओ,
को देख कर हो गया उसे
मेरे पहाड़ से प्यार
एक दिन उसने ,
मेरे यतीत के अनुभाओ का
जानना चाहा हाल
दस्तक देकर
पहुंचा वो मेरे पहाड़,
काफी दिन बीते
उतसुक्त्ता से
मुझे था इन्तजार
एक दिन अचानक
मित्र आ गया
मेरे द्वार,
उसको देख

मेरे आँखों से
आंसुओ का सैलाब
गालो से गुजरते हुए
मेरे सूखे होंठो कि
प्यास बुझाते हुए
मेरे दिल मैं समां गए
मेरी प्यास ,तड़फ
देखकर ,
दोस्त ने
बिना कुछ पूछे,
अपनी पहाड़ यात्रा का वृतांत
बड़े चाव से सुनाया ,
मर्दों कि मस्ती के बीच
औरतो कि सस्ती जिंदगी का
खूब मजाक उड़ाया,
तास के पत्तो
मैं लिपटे
बादशाहों को
शाम ढले
एक बूँद दारु के लिए
तरसते हुए
दर-दर ठोकर खाते हुए पाया ,
राजनीती के गणित मैं
बच्चे बूढ़े को
सरकार बनाते हुए
गिरते हुए पाया .
मैंने दोस्त को अपनी
अपने यतीत का
अपने आँखों से दिखया था इतिहास
पर न सुना था इतना परिहास
मेरा दोस्त तब से है पस्त
कयोंकि वो देख कर आया है
सूर्य अस्त पहाड़ पस्त

--
thanks with Regards
Vidya Sagar Dhasmana
Mobile no 9411179829

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 ब्यक्तित्व हो जैकू गंगा  जन छालू
आचरण हो जैकू घुघती जन मायालु
हिमालीय से भी ऊंचू हो जैकू मान
कुल देवतो की तरह जैकू हो सम्मान
जैका पैथर सरू उत्तराखंड व्हे जा खाडू
पहाड़ का जनमानस का बाना जु मनखी लडू
चला भै बन्धु इनु आणा और इन्द्रमणि  बडोनी हम भी खुज्योला
करी की क्रांति राजधानी गैरीसैण बणौला
 
जैका चोला मा बेमानी कु एक भी दाग न हो
मन मा जैका पितृ भूमि का प्रति प्रेम की आग हो
जैकी धादन गर्भ माको कु बच्चा भी बिजी जा
जैका शब्द का शंखनादं मरनासन माको मुर्दा भी उठी जा
चला भै बन्धु इनु आणा और इन्द्रमणि  बडोनी हम भी खुज्योला
करी की क्रांति राजधानी गैरीसैण बणौला
 
खरीद न साक जै भग्यानो कु क्वी आत्मसम्मान
पहाड़ का कण कण मा बसदी हो जैकी  जान
देश मा हो वु प्रदेश मा हो या चाए वु गढ़देश मा हो
मर्द हो या जनोनु हो चाए वु जोगी जोगेण का भेष मा हो
चला भै बन्धु इनु आणा और इन्द्रमणि  बडोनी हम भी खुज्योला
करी की क्रांति राजधानी गैरीसैण बणौला
 
 
प्रदीप सिंह रावत        "खुदेड़"
"फ्योली की आँख्यूं मा आंसू"   पुस्तक बटि  सर्वाधिकार सुरक्षित
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