Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527515 times)

jagmohan singh jayara

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      "उत्तराखण्ड मा रेल"
 
(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
ऋषिकेश बिटि कर्णप्रयाग तक,
चललि बल रेल,
देखा दौं कथगा सुन्दर छ,
बल यू खेल.....
ह्वै सकदु प्रवासी उत्तराखंडी,
रेल मा बैठिक, अपणा उत्तराखण्ड,
परदेश बिटि बौ़ड़िक आला,
अपणा मुल्क की सुन्दरता मा,
चार चाँद लगाला, ख़ामोशी भगाला,
घरू का बन्द द्वार मोर ऊगाड़ला,
ऊदास कूड़ी पुंगड़ि आबाद होलि,
विकास की बयार बगलि,
सुन्दर सुपिनु अर खेल छ,
अगर! यनु होलु त समझा,
"उत्तराखण्ड मा रेल",
एक भलु खेल छ.......
पर यनु भी ह्वै सकदु,
प्रवासी उत्तराखंडी बौ़ड़िक नि आला,
भैर का लोग, उत्तराखण्ड की जमीन,
कौड़ी का भाव खरीदिक,
महल बणाला, अपणा पाँव जमाला,
हे! उत्तराखंडी भै बन्धो, हमारी ठट्टा लगाला,
यनु होलु खेल, ऊँका खातिर वरदान,
"उत्तराखण्ड मा रेल", जरा सोचा.......
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित १७.११.११ )
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www.jagmohansinghjayarajigyansu.blogpost.com

jagmohan singh jayara

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"उत्तराखंड की धरती मा"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" २४.११.११)
सुणा तुम बतौणु छौं,
उपज्युं एक बीज छौं,
मनखि छौं पहाड़ कू,
गांदू  वैका गीत छौं.....

बिना बोल्यां जख बुरांश,
डाळ्यौं मा घुघती हिल्वांस,
गान्दा गीत रूमि झूमि,
वीं उत्तराखंड की धरती मा,
उपज्युं एक बीज छौं,
मनखि छौं पहाड़ कू,
गांदू  वैका गीत छौं.....

अलकनन्दा भागीरथी का,
किनारा कथगा छन प्यारा,
घट्ट घुम्दा गाड मा,
वे प्यारा मुल्क हमारा,
वीं उत्तराखंड की धरती मा,
उपज्युं एक बीज छौं,
मनखि छौं पहाड़ कू,
गांदू  वैका गीत छौं.....
 
फ्यौंलि,पय्याँ, आरू, घिंगारू,
जख ऊँचि धार बिटि दिखेंदु
उत्तराखंड हिमालय प्यारू,
पुंगड़ा,  पाखा, बण बूट,
रीत रसाण, रौ रिवाज,
पौणा तैं  पिठैं लगौंदा, 
देवतौं कू मुल्क देवभूमि,
जख देवतौं का धाम छन,
वीं उत्तराखंड की धरती मा,
उपज्युं एक बीज छौं,
मनखि छौं पहाड़ कू,
गांदू  वैका गीत छौं.....
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
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http://jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com/

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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हिला पहाड़ मुझे एक बार अन्दर से, मेरी अनुभुति के लिए.
एक बार तो अवसर दे मुझे पहाड़, मेरी अभिव्यक्ति के लिए.
मै नही जानता तु कितना विशाल है.
मै नही जानता तु कितना कठोर है.
एक बार मुझे टकराने दे पहाड़,
तेरी विशालता,कठोरता जानने के लिए.
मै नही जानता तु कितना ऊचा है,
मै नही जानता तु कितना उतार है.
 
एक बार मुझे अवसर दे पहाड़,
चढने और उतरने के लिए.
 
मै नही जानता हु, कि तुझमे कितना विरहपन है खामोशी है.
एक बार मुझे फिर आने दे पहाड़, वादी मे बांसुरी वादन के लिए.

सुन्दर सिंह नेगी 11/08/2010.

lalit.pilakhwal

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जयानंन्द खुकशाल   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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   ह्यूंद पर गढवाळी मा कविता फड़कि -३
 
 
(Poetries on Autum , Winter, Snowfall in Garhwali Language)
                                       
                भीष्म कुकरेती
                   
 
           ह्यूंद पर एक लोक गीत
 
गढवाळ मा ह्यूंद एक महत्व पूर्ण मौसम /ऋतु च. हेमंत का बाद या बग्वाळ , गोधन, इगास का बाद
खेती को काम कम ही रै जांद अर पहाड़ कि जनानी हुय्न्द का बगत घास, लखड़ निडाणो बान घास लखड़
मा व्यस्त रौंदा छया . पूस का मैना माने मैत /मायका कू मैना अर ब्वारीयूँ तैं अपण मैत जा णो मौका
मिली जान्दो छौ . पूस मा मैत जाण पर लोक क्लाकारु न भौत सा लोक गीत गंठयाँ/रच्याँ छन
जब प्रवास आम ह्व़े गे त जनानी मंगसीर - पूस मा अपण कजे (पति) तैं मिलणो देश (प्रवास मा की जगा )
जाणे इच्छा करदी छे अर याँ पर भौत इ प्रसिद्ध लोक गीत इन च :
कब आलो ह्यूंद मंगसीर मैना , हे ज्योरू ! हे ज्योरू मीन दिल्ली जाण
हे ज्योरू होटल की रुट्टी उखी खाण , हे ज्योरू ! मीन दिल्ली जाण
कब आलो ह्यूंद मंगसीर मैना , हे ज्योरू मीन दिल्ली जाण
प्यायी सिगरेट फेंकी चिल्ला, प्यायी सिगरेट फेंकी चिल्ला
घुमणो कू जाण मीन लाल किल्ला , हे ज्योरू लाल किल्ला
कब आलो ह्यूंद मंगसीर मैना , हे ज्योरू मीन दिल्ली जाण
आलू गोभी को बणाये साग , आलू गोभी को बणाये साग
घुमणो को जाण मीन कारोल बाग़ , हे ज्योरू करोला बाग़
' हे ज्योरू ..' लोक गीत वै बगतो सामजिक परिस्थिति बयान करण मा
भौत ई सक्षम च . लोक गितांगो योही त कमल च बल समौ का गीत गंठयाँदन/रचदन

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आजौ /आधुनिक कवितौं मा ह्यूंद
 
अबी तलक जग्गू नौडियाल अर बीना बेंजवाळ की ह्यूंद पर लिखीं
कवितौं छाण निराळ कार अर पायी कि दूयूँ का कवितों मा विषय, अनुभूति, अनुभव ,
प्रतीक बिलकुल बिगल्यां छन . छन दुई कविता ह्यूं पर हरेक रूप मा द्वी
बिगळयाँ छन. अर कैन बि भाषा को योही इ सुभाग/सौभाग्य होंद बल
एकी विषय पर बिगळी कविता ह्वावन अर बिगळयूँ भाव पैदा कौरन . जग्गू अर बीना
क कविता हर मामला मा अलग छन
कवि गोकुला नन्द किमोठी न ह्यूंद पर निखालिस कविता त नि गंठयाई/रची पण
चै ऋतु कविता मा 'ह्यूं' का वर्णन बड़ो बढ़िया ढंग से कार अर या तीसरी ह्यूं पर कविता
जग्गू नौडियाल अर बीना बेंजवाल से बिगळी च . गढवा ळी को यो सुभाग च येकी विषय पर
तीन तरं की कविता :
 
          ह्यूंद

 कवि : गोकुला नन्द किमोठी
रचना काल : १९७९
 
ह्यूं भरीं डांडी काँठी ,
पोथलूं का ट्वल ऐग्याँ
हेमंत औण वाळ
घर घर रैबार देग्याँ.
ओबर्युं मा कछेड़ी लगीं
तापेंदी आग छ.
बांजै की खूंडकी जगीं ,
गौथुं को साग छ .
भट्ट बुकोंदा कथा
राजा राणी की लगीं
मंगसीर पूस कनी
दीदी मैत्वाड़ ऐगीं.
सर सर सस्राट लग्युं
झड़झड़ पातकु लैगे
ठंडो बथाऊं पाल़ो
शिशिर लेकी ऐगे .
भौं की संगरांद औंदी
फगुण होळी च , बसंत बाटु हेन्नी छ
किमोठी न ह्यूंद तैं प्राकृतिक बदलाऊ मानी
अर जन गाँव मा होंद उन्नी वर्णन कार . वर्णन मा क्वी
फोकटिया बात ना. जन होणु तन्नी बताई . इख तलक कि
अपण तर्फां क्वी सन्देश या विचार बि दे . या च किमोठी
की सरलता , सौम्यता .
Copyright @ Bhishm Kukreti

--
 


Regards
B. C. Kukreti

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घुघूती बासुती
जख देवतो को थान,
 माँ-बेंणीयों को सम्मान,
 मीठी बोली और बाणी छा!
 यो पवित्र भूमि में जन्म ली हामुल,
 बड़ो गर्व बड़ो अभिमान छा !
 हम उत्तराखंडी छा !
 हम उत्तराखंडी छा !
 सबै उत्तराखंडी भाई -भूली ,आमा- बुबू ..
 दीदी -बैणी( मातृ-शक्ति) न कुणी नई सालकी भौते बधे छू
 मातृ-शक्ति कुणि कोटि-कोटि प्रणाम जैल इतर घर समाली छू
 यो दिन यो मास भेटनै रया जी रया जागी रया

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ब्वे-बाबूँ की खैर
बवे बाबा कन खैरी छन खाणा - बाटु ह्यूं पोड़ी गै कनि कै की मिन घार जाणा
होयुं रगर्याट छज्जा मा बोई कु - बाबा जी फैडीयों को ह्यूं छन खल्याणा
भीतर भैर करणी च माजी सोचणी छानी मा अब कनिकै की जाण
फफराट पोडियों घौर-जंगलों मा गोरु बाखरू मिन अब क्या खिलाण
बाटु भी यख दिखुणु नीचा भैर भीतर कनि क्वे जाण
पुराणी गदेली भी फटी ग्यायी लाटा सीणा कु मिन क्या बिछाणा
कब तू ऐली घौर मीकु लेकै ऐजै इक डमी डमी सी बन्यान
इनी ही रालू यु पूषा कु मैना निकली जाली मेरी या ज्यान
भैसू भी रमाणु छानी मा घास की इक पूली नीचा
सूड़ मा घास कु टैलू उडी कै चली ग्यायी दुई रौल्युं बीचा
लोग हम कु भग्यान बोल्दन खैरी हमारी कैल नी जाणी
घुंडू घुंडू ह्यूं पोड्यों चौका मा कनि क्वे बोई ल्युन्लू पाणि
देशों परदेशों माँ बैठी कैकी तुमुथैं लगीं च ह्यूं की स्याणी
हमारी खैरी बिपदा चूचो तुम लोखोंन कभी नी जाणी
चिठ्ठी पतरी लेखी दे "राठी " ब्य्टा कब छै तू घौर आणि
गौं गल्या बटी कुड़ी पुंगड़ी-डांडी कांठी छन धाइ लगाणी
"जै जन्म भूमि" से सर्वाधिकार सुरक्षित @उदय ममगाईं "राठी"

__._,_.___

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Write a comment...Rakesh Mehra अब कैकू नि रोण हमुन
 उत्तराखण्ड बणौंण हमुन..
 
 लाट धैरि कांद मा
 बळ्दुं कु पुछड़ु उळै,
 बीज्वाड़ चै पैलि मि
 मोळ् सि पसरिग्यऊं..
 
 रगदा बगदा पाणि तैं
 सैंति समाळी जवानि तैं
 खर्री खोटी चवानि तैं
 बेकार बैठीं ज्वानि तैं
 सुदि मुदी नि गवौंण हमुन …
 
 उजाड़ कुड़ि पुंगड़्यों तैं
 उदास अळ्सी मुखड़्यों तैं
 फूल अरोंगि पंखड़्यों तैं
 पित्तुन पकीं ज्युकड़्यों तैं
 अब कै धै नि लगौण हमुन …
 
 पंच पर्याग बदरी केदार तैं
 गंगा जमुना कि धार तैं
 पंवड़ा जैंति जागर तैं
 थौळ् कौथिग त्योहार तैं
 द्यो द्यब्तौं जगौंण हमुन …
 
 माधो चंदर गबर तैं
 इन्द्रमणि बडोनी गांधी तैं
 सुमन सकलानी वीर तैं
 दादा दौलत भरदारी तैं
 तीलू रामी सी नारी तैं
 अफ्वु मा इना ख्वज्यौण हमुन…
 
 कागजुं मा भोर्यां विकास तैं
 झूठी सौं अर आस तैं
 अब कैकू नि रोण हमुन
 उत्तराखण्ड बणौंण हमुन..
 Rakesh Mehra

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Anoop Rawat हे बांद तेरा रूप देखिकी सची मैं त बौल्ये ग्यूं.
 झणी क्या जादू करी तिन, माया रोगी ह्वेग्यूं...
 
 पैली भी देखी मिन कै बांद पर त्वे जनि नि देखी
 मेरु चित मन अब मैमा नि राई लीगे तू चुरैकी..
 
 धन वै बिधाता कु हे बांद जैन त्वेई बनाई होलू.
 तेरु रंग रूप बणान मा हे कै बगत लगाई होल़ू..
 
 दिन कु चैन ख्वेगे मेरु रात्यूं की निंद उडि ग्याई.
 खित - 2 हैसणु मिठु बुलाणु मन मा बसी ग्याई..
 
 गला हँसुली नाक नथुली कानों कुंडल सज्या छां.
 ज्वान बैख बौल्या बन्या बुढ्यों ज्वानी आयीं चा..
 
 गैल्यान्यूं गैल सजी धजी की थौला मेलू आंदी.
 लाखों हजारों मा तू हे बांद अलग ही दिख्यांदी..
 
 साँची माया त्वैमा मेरी त्वेथे मै बिन्गाणु छौं.
 त्वे ही ब्योली बणान मिन ब्वे-बुबों मनाणु छौं.
 
 हे बांद तेरा रूप देखिकी सची मैं त बौल्ये ग्यूं.
 झणी क्या जादू करी तिन माया रोगी ह्वेग्यूं.
 
 सर्वाधिकार सुरक्षित © अनूप सिंह रावत
 " गढ़वाली इंडियन "  दिनांक -१८-०१-२०१२
 इंदिरापुरम, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
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म्यारू मुल्क - मेरु पराण rawatmusic.blogspot.com

 

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