Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527549 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यकलु बानर
दूर भिडू मा काटती घास
गढ मा देखी ग्यूं क बालि
मन मा वैकि जागि आस
पिगंली हैगे ग्यूं क बालि
''दगड दियाला म्यरों स्वामि
दूर देश बे झट लौटि आया
म्यर दगड दैई जाया''
म्यरों स्वामि
मि गढ मा ग्यूं काटूण
तुम चाहा लियाला
दगड मा बैठि चाहा पियूणा
मिठी फसक लगुणा
''दगड दियाला म्यरो स्वामि
दूर देश बे झट लौटि आया
म्यर दगड दैई जाया''
गढ मा मि
ग्यूं काटूणा आंठ बादूणा
द्दय घटव लगुणा
नान घटव तुम लिजाला
ठुल घटव मि लिजुणा
''दगड दियाला म्यरों स्वामि
दूर देश बे झट लोटि आया
म्यर दगड दैई जाया''
आंगण मा तुम
फेर-फेर करला
मि झौई-भात पकुण
मिलि जुलि फटाव लगुण
''दगड दियाली म्यरों स्वामि
दूर देश बे झट लोटि आया
म्यर दगड दैई जाया''
तुम क तीस लागलि
मि नौला क ठण्डों पाणि ल्यूणा
तुम ठण्डों पाण क घुटुक लगाला
झट म्यर दगड दैयाला
''दगड दियाला म्यरों स्वामि
दूर देश बे झट लोटि आया
म्यर दगड दैई जाया''
परिकल्पना एंव लेख:-
सुन्दर कबडोला

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यकलु बानर
दूर भिडू मा काटती घास
गढ मा देखी ग्यूं क बालि
मन मा वैकि जागि आस
पिगंली हैगे ग्यूं क बालि
''दगड दियाला म्यरों स्वामि
दूर देश बे झट लौटि आया
म्यर दगड दैई जाया''
म्यरों स्वामि
मि गढ मा ग्यूं काटूण
तुम चाहा लियाला
दगड मा बैठि चाहा पियूणा
मिठी फसक लगुणा
''दगड दियाला म्यरो स्वामि
दूर देश बे झट लौटि आया
म्यर दगड दैई जाया''
गढ मा मि
ग्यूं काटूणा आंठ बादूणा
द्दय घटव लगुणा
नान घटव तुम लिजाला
ठुल घटव मि लिजुणा
''दगड दियाला म्यरों स्वामि
दूर देश बे झट लोटि आया
म्यर दगड दैई जाया''
आंगण मा तुम
फेर-फेर करला
मि झौई-भात पकुण
मिलि जुलि फटाव लगुण
''दगड दियाली म्यरों स्वामि
दूर देश बे झट लोटि आया
म्यर दगड दैई जाया''
तुम क तीस लागलि
मि नौला क ठण्डों पाणि ल्यूणा
तुम ठण्डों पाण क घुटुक लगाला
झट म्यर दगड दैयाला
''दगड दियाला म्यरों स्वामि
दूर देश बे झट लोटि आया
म्यर दगड दैई जाया''
परिकल्पना एंव लेख:-
सुन्दर कबडोला

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
‎"पाड़ मा नेता"

देहरादून बिटि,
नेता जब गैरसैण जाला,
अपणि कछड़ी वख लगाला,
पाड़ भौत सुन्दर छ,
यनु भि बताला,
पहाड़ में क्योँ नहीं रहते हो?
तुमारु विकास आज ह्वैगी,
पलायन क्यों करते हो,
जहाँ हम रहते हैं...

खाली पहाड़ का,
क्या विकास करें,
तुम वापस पहाड़ आओ,
हमें वोट देते रहो,
पर ज्व बात हम पसंद निछ,
कतई मत बोलो...

गैरसैण क्या है,
न हम जानते हैं,
और बींगते भी नहीं,
यहाँ आये हैं,
राजनीतिक मजबूरी है,
देहरादून से यहाँ की,
भौत दूरी हैं.....

हम नेता देरादूण वाले हैं,
तुम जिंदगी भर भटकते रहो,
हम पांच साल बाद,
कुछ दिन के लिए भटकते हैं,
तड़फते हैं,
कहेंगे,
जब आला "पाड़ मा नेता"....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
हमारा पहाड़,
ब्याखुनी बग्त,
घाम ऐन्छेगे,
चला हे घौर,
भैर होयीं छ,
बाघ की डौर..
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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समझदार

            -बृजेन्द्र नेगी (सहारनपुर)
 
म्यारू आदिम
अपनी ब्वे से
लुका - छिपा के
मिखुंण जब कभी
खट्टी मिट्ठी ल्यान्द
तब सासु मेरी
भारी भारी सुणाद
पर भै दीदी
तू कन छे  भग्यान
न सासु न स्वसुर
निर्झक
खुदी छे प्रधान
हाँ भुलि
मयारू आदिम
भारी च समझदार
इस्कोल कु मास्टर
सब थै कर्द खबरदार
सर्य दिन बल
बच्चो थै भली शिक्षा देन्द
अर अफु रोज
इस्कोली बटी
दारू पेकि लटकेंद आन्द
मिखुंण ब्य्खुन्दा
ऊटपटांग बथा
अर
गिच्चा की बास  ल्यांद

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Optionsजगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु ‎"मेरा पहाड़"
 
 मन को आकर्षित करता है,
 मनोहारी पहाड़,
 मंदिर ही मंदिर हैं जहाँ,
 महादेव और  देवभूमि के देवताओं के,
 मुग्ध हो जाते हैं हम,
 मन मष्तिष्क उमंग भरने वाले,
 मनोहारी पहाड़ के दृश्यौं को देखकर,
 "मेरा पहाड़" जुगराजि रै तू,
 मेरा मुल्क पहाड़ मा,
 मन, ज्यू अर पराण,
 मेरु मिल्युं छ, बस्युं छ,
 मेरी जन्मभूमि पहाड़ सी......
 
 -जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
 १७.५.१२

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dinesh Dhyani
जग्वाळ

जब तक
आंख्यों म पाणि रै
नजर म धाणि रै
कंदूणों म स्याणि रै
कनौं रौं मि
तुमरू जग्वाळ।
पण अमणि
म्यर बुबाओ
म्यर हत्थ खुट~टा
आंखा, कंदूड
सब्बि जबाब
देणां गैंन
बस तुमरि
मुखड़ि द~यखणां कि
स्याणि मन हि त
रैं गेन।

विनोद सिंह गढ़िया

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जिंदगी अनमोल भाया

जिंदगी अनमोल
जिंदगी अनमोल भाया,
निकर ये कै खोटि
सौ सालकि उमर दाज्यू,
क्याखीं करंछा छोटि
बीड़िमें भरिबे क्याखिं
लगूंछा तुम सुट्टा
शराबकि पौव्वी पीबेर
कामीजनौन खुट्टा
नशेड़िकि म्यारा दाज्यू,
बुद्धि हैजैं मोटि
नश करनाले म्यारा भाया
आई जैं कंगाली
च्याला-चेली अनपढ़
घर में रूं तंगहाली
चाहे रौ भारत में दाज्यू
चाहे रौ तुम डोटि।

प्रकाश जोशी शूल
कुमाऊंनी कवि, पिथौरागढ़।

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arashar Gaur <parashargaur@yahoo.com>

     

    प्रभो आप अपणु नौ ( नारायण ) बदलि दया

    नारद हफंदा हफंदा बैकुंठ ग्या
    द्वी हाथ जोड़ी वो, प्रभु से बोली .....
    हे नारायण , एक काम कै दया
    बिनती च आप, अपणु नौ बदलि दया !

    प्रभु बोली , नारद ... कनी बात छा कना
    जरा खुलीक बोला , क्या बात च , क्या ह्व़ाया
    किलै बदुलू मी अपुणु, ? अरे .किलै बदुलू मी अपुणु,
    कखि तुम्हारी ख्वापड़ी खराबत नि हवे ग्या !

    प्रभु तुम्हारा नों से धरती माँ
    एक नारायण ईनू पैदा ह्वेग्या
    जैल, अपणुत अपणु राय ,वैल त
    तुम्हारा नों परभी कालिख पोती दया !

    पैली राज सताकु सुख भोगी , कनु सुख
    खूब उ डै, खूब बिछे, गाल -गाल त खै ग्या
    ज्वनी त ज्वनी रा , पर बूडीनदा माँ भी
    तांका झांकी से भी बाज नि आय !

    झणी कत्युका , अर कत्कोंका .....
    कनुकवे बोलू , मिकुत मुनु ह्वैग्या
    जैथई देखा जख्मै देखा स्ब्युकी एक ही र टना च
    अगर हम गलत छा त, वेकु खून लेकी ड़ी न ए करवा !

    अबत धरतिम लोग बाग़ .......
    आपो नौ कम वेकु नौ ज्याद लीणान
    गली ग्ल्युमा छुरी छ्वारा लेकी ह्थोमा पोस्टर
    नारायण हमारू बुबा च .ओ बुबा- बुबा बुना छन !

    याकी बान बुनू चौ प्रभु , बात मेरी सुणि मनन कै ल्या
    तुन भक्तुक नजरू माँ ब्लैक लिस्ट हूँण से बची जैल्या !

    पराशर गौर
    २९ मई २०१२ स्याम के ९.०० बजी !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढ़वाली कविता : डाम

त्वे भी डाम
मी भी डाम
कन्न कपाल लग्गीं यी डाम
सरया पहाड़  जौंल  डाम

कैक मुख आई  पाणि
कैकी लग्ग मवसी  घाम
छोट्ट छोट्टा व्हेय ग्यीं मन्खी
बड़ा बड़ा व्हेय ग्यीं यी डाम

कक्खी बुगाई सभ्यता युन्ल
कक्खी  बोग्दी गंगा थाम
तोडिऽक करगंड पहाड़
छाती मा खड़ा व्हेय गईं यी  डाम

उज्यला बाटा  दिखैक झूठा
कन्न अन्ध्यरौं पैटीं यी डाम
कुड़ी पुंगडी खैऽकी  हमरी
कन्न जल्मीं यी जुल्मीं  डाम ?

तैरीक अफ्फ गंगा रुप्यौं की
डूबै  ग्यीं हम थेय यी डाम
बुझे  की भूख तीस अप्डी
सुखै  ग्यीं हम्थेय यी डाम

मन्खी खान्द मंस्वाग द्याख
यक्ख सभ्यता खै ग्यीं यी डाम
साख्युं कु जम्युं  ह्युं संस्कृति
चस्स चुसिऽक गलै ग्यीं  यी डाम

त्वे भी डाम
मी भी डाम
सरया मुल्क डमै ग्यीं यी डाम !
सरया मुल्क डमै ग्यीं यी डाम !


रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित

 

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