बुद्ध
बुधौ अंगुलिमाल आज बि अंगुलिमाल छ,
बस इत्गा ही बद्लेनी की आन्ग्ल्यों की माला नि छ ,
आन्ग्ल्यों को फैसन नि अच्कालू , अब वो सड्डा मनखी को बुंगचु
बनोदु ,
अब नि रंदू लुकुयों बणु माँ,
अब नि खेल्दो वो धाद यकुला ब्य्कुला की
अब वो पचारी की औंद,
अर कर देंद चित हज़ार पन्द्र सौ द्याख्दा देखदी , वू बस्तियों माँ जख सब्बी तथागत होंन को दावा करदान ,
तथागत सिर्प नौ बदली सकदा छा, अंगुलिमाल तै नि ,
वो ता सदानी यन्नी रै, वें सदनी अपना जुग का तथागत लम्पसार करयेंन,
क्वी बी वैका सामनी टिकी ही नि ,
सुकरात, गांधी , लूथर किंग - क्वी बी नि ,
सच सदनी मर्ण का बाद चिल्लाणी , पकड़ा अंगुलिमाल तै , पर कने ?
वू त हर मनखी का भित्तर कई भावो माँ बँटी तै रंदु ,
लालंच, इर्षा , तिर्श्ना , वासना --- जणी क्त्गा रूपु माँ , धर्म को मुखोटू लगे की जाणे कथ्गा जुगु तक ,
जाणे कथा तथाग्तु की मवासी घाम लगाना छन और लगाना राला .