Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527604 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ये कौन कलाकार है ?
 
 ये कौन कलाकार है ..?
 जो बेचता पहाड़ है ..
 रो रहा पहाड़ है ..
 ये पहाड़ ही शिकार है या
 शिकार ही पहाड़ है ..
 ये पहाड़ की पुकार है ..
 ये मेरा भी पहाड़ है
 ये तेरा भी पहाड़ है ..
 ये उसका भी पहाड़ है
 जिसने देखा नहीं पहाड़ है ..
 फिर भी पहाड़ बेजार है ..
 ये कौन कर रहा शिकार है ..?
 गाँव गाँव उजाड़ है ..
 ये माँ का पहाड़ है ..
 जिसका जीवन भी पहाड़ है ..
 ये पहाड़ ही पहाड़ है ..
 जो हो गया शिकार है .....
 ये मेरा ही पहाड़ है ..
 हाँ ये मेरा ही पहाड़ है ..
 कैसे बचेगा ये सवाल है ..?
 ये मेरा ही सवाल है ..
 ये पहाड़ का सवाल है .
 सबको अपना ही ख्याल है ..
 अब ये किसका कदम ताल है ..?
 जो लुट रहा पहाड़ है ..
 ये पहाड़ सा सवाल है ..?
 क्यों लुट रहा पहाड़ है ...?
 
 (आभार : मुजीब नैथानी)

Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड राज्य कि नाकामी  पर भंयकर निराशा की कविता
                         भीष्म कुकरेती
  निराशा  एक भयंकर  अर नकारात्मक भाव च जु असला मा विरोध पैदा करदू. निराशा गुसा, रोष, क्रोध से सम्बन्धित भाव च अर यू तब होंद जब कै ण कवी सुपिन देखी ह्वाओ या सोची ह्वाओ अर यि सुपिन या सुच ण सही साबित ह्व़े सकद छ्या पण जब कवी बदजात कार णो से यि सुपिन या सोच पूरा नि ह्वावान त रोष आन्द , निराशा आन्द.
   उत्ताराखं द्यूं ण उत्तराखंड कि मांग एक सजीव उत्तराखंड राजू क बान शुरू करी छौ अर त्याग करी छौ कि जब हम तै अपण राज मिलल त हम अपण हिसाब से विकास करला पण इन नि ह्वाई .
आज साख्यिकी  गवाह च कि उत्तराखंड बणणो परांत पलायन मा बढ़ोतरी ह्व़े. युवाओं तै रोजगार नि मील. मुख्यमंत्री कि कुर्सी पैल पैल एक गैर उत्तराखंडी तै दिए गे, एक मुख्यमंत्री त इन बौण जु उत्तराखंड राज्य कु विरोधी छौ . जु मुख्यमंत्री  कुछ करण चाणो छौ वै तै भगाणो बान   राजनैतिक पैंतराबाजी चौल अर आज कु मुख्यमंत्री नामौ उत्तराखंडी च. वैमा ना त उत्तराखंडी सांस्कृतिक धरोहर च ना वै तै पहाड़ कु  क्वी ज्ञान च
  फिर आज चीमा सरीखा लोग प्रश्न उठाणा छन कि उधम सिंह नगर मा पहाड़ियों से बबाल होणु च . मदन कौशिक कि धान्धलेबाजि सब्यून देखी कि कन गढ़वाली अर कुमाउनी भाषा तै पैथर धके ल़े ग्याई . आज इन लगणु च जन बुल्यां हम इ गैर उत्तराखंडी ह्व़े गेवां धौं !
 इन मा गढ़वाली भाषा कि अति सवेंदन शील कवित्री बीना बेंजवाल इन कविता ल्याखली त खौंळ्याणै बात नी च
कवित्री ण अलंकृत भाषा मा जनता मा निराशा किलै च की पूरी व्यख्या कम शब्दों मा कार .
राज मिलण पर
कवित्री- बीना बेंजवाल (१९६९)

अपणा राज मिलण पर
जंदर्यों का बांठा नाज
ह्वेगी मूसों  का हवाला
बाड़ी खैंडण ड्वीला 
मजा मा चटणा बिराळा
बिसरी ज्ञान चुल्ला मा धरीं
अपण परथों की बार I 
अजा ण हाथों मा पोड़ीगे
हमारू घर बार इ I
बौल्या भुर्त्या बण्या हम 
नवाद कुर्सी ह्वेगे गुसैण
मासांत  तैं पुछ्ड़ी रैगि हमारि मकरैण
बगत तैं बि नी च बगत
नेतौं कु चलणु कारोबार I
पढया लिख्यां  खाणा ठोकरी
नौकरी जख होली सुनिंद पवड़ी
रोजगारै   स्यां लम्बी रेल
सैणै  फुंड छन अबि दनकणि
निरस्येगे प्राण
कुज्यणि कैपर लगली असगार
अपणा राज मिलण पर
Copyright@ reserved with poet and commentator 3/9/2012
 

Bhishma Kukreti

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********गढ़वाळी कविता---********* ये पहाड़ मा मुश्किल जिंदगी पहाड़ जनि********

                               कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल

पहाड़
जनि सुणेण मा
तनि दिखेण मा
भोगणा मा 
दुन्य की गैळी
कर्दिन हैरी
यख बिटि
फुटीं 
छोया गदेरी
पण अफु
रैगैनी
निरपट सूखा
बीरान
यु पहाड़
ये पहाड़ मा
मुश्किल जिंदगी
पहाड़ जनि.

ऊबड़-खाबड़ धरती
उकाळ-उंदार
पैदल बाटों मा
खुटों मा
बिनांदा कांडा
पिडांदा
गारा-ढुंगा     
सीढ़ी जना
छवटा-छवटा 
डुंडा-बिंगड़ा
रूखा-सूखा पुंगडा मा
घर्या बल्द अर
हल्य़ा ब्वाडा
दगड़ मा डळफ़ोडा   
घुसणा रंदीन
अपणा सुक्याँ हड्गा
बगत कु बगत
बरखण वल़ा बादळ 
कबी कबी
छुमछे जन्दिन पाणि
कखिम कखिम
या रै जन्दिन
तरसणा
चोळी जना
अर कबी
अति बरखा
कैरि जांद
सब कुछ चौपट
घर कूड़ी 
बोगै जांद
ये पहाड़ मा
मुश्किल जिंदगी
पहाड़ जनि

        डॉ नरेन्द्र गौनियाल...सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी कविता*****सपोड़ा सपोड़*****

            कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

 राज काज 
कनु ह्वैगे आज
ठेकेदार ह्वैगीं नेता
अर
नेता ह्वैगीं ठेकेदार
परसेंटेज की मार
कसि कै होलू
विकास
मथि बिटि ताळ तक
एक ही बात
पैलि द्यो
तब ल्यो
जु द्यालू
ऊ पालू
जु नि द्यालू
ऊ उनि रालू

शर्म न लाज
सबि जगा
कमीशन बाज
बढ़दू मर्ज
कपळी मा पकदु
विश्व बैंक कु कर्ज
काम काज
हो न हो
सपोड़ा सपोड़
द्वीई हथोंन
गबदाणा छन
ठेकेदार
नेता
अधिकारी
अन्ध्यर कूण पर
बैठ्याँ छन
खिसयाँ
बेरोजगार
आन्दोलनकारी.

           डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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*******गढ़वाली कविता ******जीति कि चुनौ******

                  कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

पैलि त खुटों मा सिवा
कनि लगान्दा छा
हाथ ज्वड़ी-ज्वड़ी कि कनि
छवीं लगान्दा छा
काकी-बोडी,दिदा-भुला
इनी बुलांदा छा
अब क्य ह्वै
जु देखिकी बि
बौगा मारंदा
बौग सारंदा

सुणदा नि छिन
बुलै बुलेकी
द्यखदा नि छन
आन्द जांद
जीति कि चुनौ
किलै
गंडगंडा हुयाँ छन
किलै
करकरा हुयां छन
किलै
गरगरा हुयाँ छन
किलै
चळचल़ा हुयाँ छन
किलै
खळखल़ा हुयाँ छन.

       डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित .narendragauniyal@gmail.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती

पहाड़ का दर्द नेताजी के नाम..........

दर्द एक आशिक का उभर आया है,
पहाड़ की हालत नाजुक है और नेताओ ने उसे बेच खाया है
नहीं तो बताओ ये बेहिसाब पैसा कैसे इनके दामन में आया है ?
ये तो कहते ही हैं की इन्होने दलाली में कमाया है,
खून तो यह दिल्ली के सरदारों ने लगाया है,
जिनकी चमचा गिरी कर पार्टी का टिकट पाया है,
अफ्सरान भी हो गए हैं मद मस्त, आती अब नीद है,
आखिर खाना पीना उन्होंने ही तो सिखाया है ?
ये ग्याडू तो बस रोने के लिए ही आया है
क्या पहाड़ बचाने का ठेका इसी ने उठाया है ?
अरे बड़ी मासूम है ये दुनिया जो जानती है,
कि कौन है गुनाहगार मगर इन्तेहाँ तो देखिये ?
जिसने लूटा... बेआबरू... किया बड़े रौब से,
उन्ही के मान के लिए आज मंच हमने सजाया है,
और देखो यह कौन है जो हिमालय बचाने की दुकान सजा लाया है ?
अरे कल तो बेचता था हिमालय को ...उठाता था इसका पर्दा,
आज कैसे बेगैरत बन कर .. ये बचाने का परचम उठा लाया है,
अरे पहले तो जमीन बेच खाई अब पानी और हवा बेचने का ठेका लाया है ,
बेटा ग्याडू तेरे नसीब में तो शायद सी ओ टू ही आया है,
और ये नेता इस जनता को लिक्क्विफ़ाईद ओक्सिजन में डूबा लाया है,
जो इसे वोट भी ड़ाल दिया ... ये हमारा जन प्रतिनिधि कहलाया है,
और लूटने को हमारी अस्मत ये जाने कहाँ कहाँ से बहाने ढूँढ लाया है ?
देखो ये कौन लुटेरा है पहाड़ का जो जख्मो में मरहम लगाने आया है ?

(आभार : मुजीब नैथानी)

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी कविता-******सुंगर बांदर गूणि हकांद,यख हम रै गयां******

            कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

चाँद अर मंगळ पर बि,आज मन्खी पहुँचीगे,
बेडु तिमला टिपद टिपद,यख हम रै गयां.

फोन मोबाईल इंटरनेट से,दुन्य सरि जुड़ी गे,
धै लगान्द अबी तक बि,यख हम रै गयां.

लोगोँ का नौनि नौना,कम्प्यूटरों मा खेलणा,
पाटी ब्वळख्य पकड़ी अबि,नौना हमारा रै गयां.

लोग अपणि गाड़ी मा,स्वां-स्वां जाण लग्यां.
पैदल बाटा उकाळी उंदारी मा,यख हम रै गयां.

फिल्टरों कु साफ़ पाणि,लोग छन पीण लग्यां.
गदेरों कु गंदल़ू पाणि पींदा,यख हम रै गयां.

बिजुली की चमक धमक मा,लोग छन रैण लग्यां.
छिलका जलैकि उज्यल़ू करदा,यख हम रै गयां.     

लोग ह्वैगीं धन्ना सेठ,ठाट बाट छन कनां.
अठन्नी चवन्नी गिंणदा गिंणदा,यख हम रै गयां.

सपोड़णा छन लोग मुर्गा माछी,बासमती राजमा.
कौणि झुंगारो मंडवा खांद,यख हम रै गयां.

देशी विदेशी कुकर लोग,अपणा भितर छन पल्यां.
सुंगर सौला बांदर गूणि हकांद,यख हम रै गयां.

      डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

Bhishma Kukreti

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 निपल्टो :गढ़वाली गजल


              गजलकार- पूरण पन्त पथिक

[गढ़वाली गजल, उत्तराखंडी गजल, मध्य हिमालयी  क्षेत्रीय  भाषा की गजल; हिमालयी  क्षेत्रीय भाषा की गजल; उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषा की गजल; भारतीय क्षेत्रीय भाषा की गजल; दक्षिण  एशियाई क्षेत्रीय भाषा की गजल; एशियाई क्षेत्रीय भाषा की गजल; पूरबी देशों की क्षेत्रीय भाषा की गजल लेखमाला]


          जो बि गै वो बौडु  नी छ कनो निपल्टो ह्वैगी भैजी
          उत्ताराखंडौ  पाणि  निरसु ,कनो किलै यो ह्वैगी भैजी .

        पुंगड़ी  /पटळि ली/द्वाखरी बंजी ,कुडी  /तिबारी खंद्वार भैजी .
         पौ की घंट /ढुंगा निरस्याँ रस्वाडा को गालन बी भैजी .
 
       मोर/ बिंयारा/ संगाड रूणा,  ढ़ैपुरा निरसै गैन भैजी
       बल पहाडौ  पाणि/ज्वानि  ,ब्वग्दा रैग्ये सदनी भैजी .
       धुरपळिम खिरबोज निरभगी रून्दो नि ,न हँसदो भैजी
        ग्वरबटा का ढुंगा /गारा बाटो  ह्यर्दा रंदन भैजी .
 
       इनो  असगुन किलै हम खुणि  ,लाटा-काला रयां भैजी
       बिंडी खाण कमाण  पितरकूड़ी  बिसरी ग्याँ भैजी .


      @पूरण पन्त पथिक देहरादून

गढ़वाली गजल, उत्तराखंडी गजल, मध्य हिमालयी क्षेत्रीय भाषा की गजल; हिमालयी क्षेत्रीय भाषा की गजल; उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषा की गजल; भारतीय क्षेत्रीय भाषा की गजल; दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय भाषा की गजल; एशियाई क्षेत्रीय भाषा की गजल; पूरबी देशों की क्षेत्रीय भाषा की गजल लेखमाला जारी .....

Bhishma Kukreti

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असली पछ्याण

कवि- पूरण पंत पथिक 


जै  मनखी  की नी अपणी बोली  -भाषा,
जै मनखी  की नी छ अपणी पछ्याण
वैको क्या ब्वन्न को होला ब्व़े-बाबा
वैकि  जिंदगी मां कुछ नी रस्याण .

ब्व़े कि  बोलि  ही छ दुधबोलि  हमारी
दुधबोली ही मातृभासा हमारी,
गढ़वाली  दुधबोली अर ब्व़े की बोली
ई  मातृभासा - पछ्याण हमारी .


सर्वाधिकार@ पूरण पंत पथिक,  देहरादून 9412936055

Bhishma Kukreti

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गढ़वाळी कविता-*****अपणि पुट्गी भरिकी विधाता हमारा बण्या छन*******

    कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल 

ऊ रूप्या देकी वोट लीणाs
हम रूप्या लेकि वोट दीणाs
ऊ दारू देकी वोट लीणाs   
हम दारू पेकि वोट दीणाs
जात-पात धर्म- भेद
स्वार्थ देखि वोट दीणाs
लोकतंत्र को यु कनु मजाक ह्वै
जनतंत्र को यु कनु खंद्वार ह्वै

राजनीति कूटनीति
रोजगार ह्वैगे आज
समाज सेवा भूलिकी
स्वार्थ सिद्धि ह्वैगे आज
छल कपटी भ्रष्ट लोग
सफ़ेदपोश बण्या छन 
अपणि पुट्गी भरिकी
विधाता हमारा बण्या छन

      डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmail.com

 

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