Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527657 times)

Bhishma Kukreti

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******जनता बिचारी बलि बेदी चढ़ी*****



                      कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल

स्वार्थ कि रीति मा,राजकि नीति मा।
जनता बिचारी, बलि बेदी चढ़ी।।

ढोल कि पोल खुली कि खुली।
आंखि उघाड़ी तू बी देख भुली।।

भाड़ मा जाये जनता फनता।
मुराद हो पूरी यूँका मन की।।

 अफु पेट भर्री गळदम सळदम।
भूख मिटे न मिटे जन की।

विकास-विकास की बड़ी बात करीं।
आंख्युं देखि सब नाश करीं।।

काम कबी क्वी करीं न करीं।
खीसौं माँ राशि धरीं ही धरीं।।

चांठों अर चेलों की,कैम्प अर मेलों की।
देखो जख बी भरमार पड़ी।

 मिले न मिले सुविधा कबी क्वी।
 रैगे जनता फिर हाथ ज्वड़ी।

आंख्युं कु खैड़ सी बाखरो बैड़ सी।
रिपु ह्वैगे तुम्हारो,पाणि मा गैड़ सी।।

लागद शूल सी तुम्हारी जिकुड़ी।
जैन नि करी तुम्हारा मन की।।

माल़ा हो गालुंद ट्वपलि हो डालुंद।
तुमारा तरपां देश जाव भ्यालुंद।।

 डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित ..narendragauniyal@gmailcom                                           

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Garhwali Classes "गढ़वाली छुई"
October 18
दादू मेरी उल्यारू जिकुड़ी दादू मी पर्वतों को वासी
दादू मेरी सोंज्यड़या च काकू दादू मेरी गेल्या च हिलांसी !
छायो मी बाजी को पियारो छायो मी मांजी को लाडूलो
छो मेरा गोला को हंसुलो दादू रे बोजी को बिटूलो !
दादू मिन रोसल्युन का बीच बैठी की बांसुली बजैनी
... दादू मिन चैरी की चुलाखूयूँ चलखदा हुंयु चुला देखिनी !
देखि मिन म्वआरयूँ को रुनाट दादू रे कौथिग का थाल
दादू रे बे पोतली देखिनी लेन मिन रेशमी रुमाल !
दा
दू वो रूडी का कौथिग सुयुन्द सी सैंडा माँ की कूल
दादू वो सोंज्यड़यों की टोल व्हेग्यायी तिम्ला को फूल !
दादू रे उडमिला बुरांसुन लुछीन भोरों की जिकुड़ी
दादू रे किन्गोडयों का बीच देखदी मिन हेन्स्दी फ्युन्लाड़ी !
झुमकी सी तुड तुड़ी मंगरी मखमली हेरी से अंगडी
हिल्वार्यों हल्क्दी धोपैली घुन्कदी लोंक्दी कुयेडी !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कभित रात ब्यांली होलि सुबेर !
कभित खुलालि म्यरी खैरिकी घेड !!
कटैला यक दिन ई घोणा अँध्यारा !
कभित उजालु आलू यख फेर !!
साक्यो पुराणी बादलों मा " जोन "!
कभित ऐ जालि बोडि फिर भैर !!
बसग्याल जालू बिती यु अबत !
कभित बैणु मै बसंत मा ग्वेर !!
घुघूती बसालि मनमा कभि मेरा !
कबित आलू स्यु बक्त व वेर !!
सुपन्याँ मेरा सुपन्याँ हि नि राला !
कभित बिजालू यों सुपन्यों तें मैर !!
होला ई द्योयो देवता मेरा देणा !
कबि ना कबित मेरा भाग कि मुडेर.......!!

प्रभात सेमवाल ( अजाण ) सर्वाधिकार सुरक्षि

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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त्वे सि दूर एकि खुद क्या होंदी
आज मैन जाणी !
अपड़ा मन अप्वे जब समझे निपै
फिर त्वेतें माणी !!

तू मेरी सदानि हि रै पर मै कभि
तेरु ह्व़े नि पाई!
आज जब तेरा ओणा आस नि रै
अपडु भरोषु नि राई !!

मेरी हर बात तें भलू-भलू बताणु
याद आज फिर आणु !
मेरा हर राग तें बार-बार सुनाणु
अभिबी मै भूली नि पाणु !!

मेरा खातिर दुनियां छोड़ी जाणकि
करीं सों अर करार !
आज फिर मैतेनं याद आणु अपडुनि
विंकू सचु स्यु प्यार .!!

प्रभात सेमवाल (अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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इनी मेरी क़ज़ाण च:"
********************
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
देखि नी होलि कभी कैन , इनी मेरी कजाण च
भैंसी सी खबड़ी वींकी, हाथी जनी चाल च
चमड़ी वींकी इन कोंगऴी, जनी गैंडा की खाल च
आँखा वींका ढढू जना, गधी सी आवाज च
जुवाँ मुंड पर इथ्गा छन, दिन रात की खाज च
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च ..
*********************************************
मुखड़ी वींकी इनी प्यारी , जन खरस्यण्या कखड़ू हो
टंगड़ी वींकी मोटी इथ्गा, जन सुख्यूं सी लखड़ू हो
सुप्पा जन कान वींका, तिमला जन नाक च
कुकुर सी भुकुण मा वींकी, अपणी अलग धाक च
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
*********************************************
धम्म -धम्म जांदी जन, पैलवान क्वी तगड़ू हो
लट्ला वींका इन कुसज्जा , जन बाड़ी कु झंकड़ू हो
रंग वींकू क्या बतौण, जन फुक्यूं सी अरसा होंद
गलोड़ा वींका तिड़याँ इन, जन कट्ठऱ बगोट हो
थौऴ मा जाणै सिरड़ी गड़ी, मिन वा अब सजाण च
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
**********************************************
लम्बै वींकी इन ज्यादा, जन घौर की जन्दरी हो
मोटै इन च जन बोल्यो, क्वी लपेट्यीं मंदरी हो
पथा द्वि-एक भात खैकी ,आराम से सेंदी च
नींद मा रौंदी जब, बाघ सी वा घुरदी च
दगड़ी सेण बडू मुश्किल ,सेयाँ मा लतौंदी च
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
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झुमका पैरदी कान पर , जन मंदिरअ घंडलू हो
गौऴा पर माळा पैरदी , जन भैंसा कु संगळू हो
बाँदर सी खिर्स्येंदी वा, जब वीं मै पै गुस्सा आँद
सूपर्णखा सी दिखेंदी वा, जब मै वींका धोरा जांद
इन सैंदिस्ट खबेश से ,हराम सेण खाण च
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
*******************************************
कमर वींकी बरीक इन, जन डाळा कू गोळ हो
कपड़ा वीं पै इन लगदा ,जन रजै कू खोळ हो
भूत सी हैसण वींकू , थकलू जन खंगड़ौंद च
बचाण वींकू बकि बात कू , कागु जनी बसदी च ,
छुयूं मा सब हौरी जांदन, इन भारी बबाल च
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
***********************************************
मामला ब्यो कु हो त भुलौं, कै हैंकै कभी नी सुण
गढ़-कुमौ सरू एक हवे जाऊ पर अपणी कजाण अफ़ी ढूंढ़ण,
नी ढुंढल्या त कैन न कैन तुमतै फंसै देंण,
बिना दहेज़ कु कैन अपणु आईटम थमै देंण
जन मै सैणु तुम नि सैयां , इन मेरी इच्छा च
कवी तुम तै नी पुछू ,दिदौं कन तुम्हारी कजाण च
__/\___/\____/\____/\____/\____/\_____
मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
*******************************
(अविनाश ध्यानी)
ग्राम -लिही (पौड़ी गढ़वाल)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जै बोला उत्तराखंड जै बोला इखा नेताओ की
राज बनया बारा बर्ष हुवे गिन
हैकि नंदा जात भी पैटन लैगे
जै बोला नंदा बोला हों लै गे
दुनिया बदली गी जेट विमान की रफतार जनि
हम भी बारा बर्ष मा इत्गा ही हिट सक्या
इत्गा पैट सक्या
इत्गा ही चल सक्या
गैरसैन गैरसैन बोल दा रया
आखिरी दा एक कैबनेट बैठक गैरसैण तय दे सक्या
नेताओ का मुख बीटी विकाश ही विकाश
कख इस्कूल कखी अस्पताल
पाणी बिजली सड़क
चहुमुखी चा विकाश
पर इस्कूल छन मास्टर नि
पर अस्पताल छन डोक्टर नि
नल छन पाणी नि
सांसद छन विधायक छन
पर कुई लोला कामो नि
जै उत्तराखंड जै इखा नेताओ
बारा बर्ष मा एक कैबनेट बैठक ही दे सक्या उत्तराखंड तय गैरसैण तय
कविता शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालापन की माया ज्वनी तक राया।
तैरा बगैर कुछ भी याद नी आया।
व हैँसदी मुखडी ऊ सरम्याली आँखी।
अज्यौँ तक भी ह्यै सँग्गी मेथै भरमाँदी.,.........,.2
बालापन की माया..,......

ऊ स्कूल्या क दिन जोँ दिन रव्वाँ दगडै हम।
तरसी गयोँ मैँ सुणणू तेरी चुडयूँकी छम छम।
कभी भरमणोँमा तू मेरा पैजी बजाँदी.,...............
अज्योँ तक भी ह्ये सँग्गी मेथै भरमाँदी...............
बालापन की माया........

ऊँ कौथग्यौँ की याद अज्योँ भी छन संग-संग।
कभी मिल करी ते तंग कभी तिल करी मेँ तंग।
कौथग्योँ की भीडा बीच दुयी आँखी ते खुज्यांदी..
अज्योँ तक भी हे संग्गी मेथै भरमाँदी..............
बालापन की माया........

समलौण्या च तेरी तस्वीर समलौण्य रै गैना।
सौँ करार टुटगैन सब्बी सुपन्या सच नी व्यैना।
तैरी चाँद सी मुखडी आँख्यूं रिटणी राँदी.......
अज्योँ तक भी है संग्गी मेथै भरमांदी...............
बालापन की माया........

लटुली बडी कयैन मैन जू तेथै छा छुट्टी प्यारी।
एक अधूरी कथ्था बणिगे तेरी मेरी य्यारी।
खुद तेरी आँसू मेथै भारी दै जाँदी...............
अज्योँ तक भी है संग्गी मेथै भरमांदी................
बालापन की माया ज्वनी तक राया.....

मनोज सिँह रावत (बौल्या)

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साथ कैकु सदानि नि रैंदु गैल्यों पर याद ऐ जांदी अर एक बक्त बाद याद बि नि ओंदी
यों बातों तें मन राखिक यक सरल कविता लिखना कि कोसिस करी कन छ मितें जरुर
बताया मि जाग्यों रोलु

न मैन तेरा गैल सदनी राण
न त्वेन मेरा गैल सदनी राण
बस रै जाण इ बोल्या बोल
जू त्वे भि याद आण अर मै भि याद आण .

न मैन अंख्यो आंसू रुकी पाण
न त्वेन अंख्यों आंसू रुकी पाण
एक हेका की खुद मा खुदेक
योन कभी त्वे रुलाण अर कभी मै रुलाण

न मेरा मन मा मोळ्यार आण
न तेरा मन मा मोळ्यार आण
एक दूसरा सी दूर -दूर रैकी
त्वेन भि सुखि जाण अर मैन भि सुखि जाण

न मैन कभि येतें रुकी पाण
न त्वेन कभि येतें रुकी पाण
यु बक्त छ कैका रुकी नि रुकुदु
फिर त्वेन भि बिसरी जाण अर मैन भि बिसरी जाण

प्रभात सेमवाल .( अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दादा जी की बताईं बातों तें कविता कु रूप देण की कोसिस करी ,

जीवन का बाटा सौंगा नि
तु हिटदि रै कबि रुकि न

बसंत ओणा यक बक्त होंदु
बसंत ओणा सि पैलि सुखि न

खैरी हजार मिललि त्वैसणि
खैर्यों द्याखी कबि लुकि न

बैरी त्वै मिटाणा ताक मा रैला
मीटि जै पर कबि झुकी न

प्रभात सेमवाल (अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पौढ़ी लेखी की, हौडू- हौडू पोड़ी की,
बड़ू बणगे तू राजी रौ,
विदेश जै की, जौ जगा जोड़ी की,
ठाठ कानी छै तू राजी रौ,
जणदू छौं भुला मी तेरी सरी गाथा,
हाथ जोड्यां त्वेकू मै न सुणों,
हे मेरा भुला जरा चुप रौ,
बड़ा दिनु बाद घौर अयें तू ,
घौर मु ऐकि जरा थौक ख़याल,
हिसर-काफुल सी मिठ्ठी मीठी छ्वीं,
लगै-सुणि की जी भऱ्याल,
भोल तिन फेर वापस चली जाण
औ जरा धोरा मेरा गौला भिटयों
हे मेरा भुला जरा चुप रौ,
वू मुल्क ही अपणु होंदु
जख बीतादु अपणु बचपन
जख रौंदन बवे- बुबा, भै-बैणा और
जख अपणा जलड़ा होंदन,
यखी बिटीन खाद पाणी मिललू त्वे ,
सेखी मारी मेरु जी न जलौ,
हे मेरा भुला जरा चुप रौ,
मै न पौढ़ी न लेखी सक्यों,
न देखि सकेनी मिन सुपन्या बड़ा
घौर ही मु लमडी- खरसेकी,
बींगी गयों मी वेद सरा,
तेरी आख्यों मा पीड़ा देख णु छौ,
खुश नी छै तू वख़ सच बतौ,
हे मेरा भुला जरा चुप रौ,
बढ़ू बणगे तू राजी रौ,
मैलु मा रौणी तू राजी रौ...
हे मेरा भुला जरा चुप रौ..
(अनिल पालीवाल )

 

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