Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527744 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Photo Poetry बेटियाँ
 
 मै
 चढ़ सकती हू
 चोटी चोटी,
 लड़ सकती हू
 खुद  से तुमसे,
 कभी ना आंकना
 छोटी मोटी,
 पेड़ पत्तियाँ
 पहाड़  चोटियाँ,
 कर सकती  हू
 बोटी -बोटी,
 बेटी-बेटी
 मत उलाहना,
 मैं
 चढ़ सकती हूँ ,
 चोटी चोटी !
 चोटी चोटी ! !
 चोटी चोटी ! !!
 
 जयप्रकाश पंवार "जेपी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आज से पेली

घौर का द्वार पर लिखू रेन्दु छौ - स्वागतम ,,

आवा

बैठा

अब कुड़ी बणन से पैली साईन बोर्ड लगी जांदू

"कुकुरू से सावधान '

"भीतर आण मना चा '
by-हरीश गौड़

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Garhwali Classes "गढ़वाली छुई" मूसौँ की एक टोली तलवार लेकी भगणी छाई।
 तबरी बागल पूछी है मूसौ कख जाणा छँया तुम सब??
 तबरी एक मूसू बोली यार बाग भैजी
 उना हाथी की दूसरा नम्बर वली नौनी थै कैल परपोज कैरी
 अर नाम हमरू ऐग्या।
 
 ब्यै (ब्येई) का सौँ आज तो लाँसेँ बिछा देँगे लाँसेँ.......
 चखन्यौ बणा दिया इसने......
 by-मनोज बौल्या

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Garhwali Classes "गढ़वाली छुई"December 1ठहर गी आवाज कख्खी ...
 बण गी ख़ामोशी यख्खी ..
 
 पन्नों की आवाज से .....
 हवा थे आहसास व्हे गी ..
 कब तक यु राला कोरा ..
 दर्द यूँ का मन म रेगी ..
 
 ठहर गी आवाज कख्खी
 बण गी ख़ामोशी यख्खी
 
 मौसम भी अब बदलगी ..
 आसमां बरखा से भीग गी ..
 धरती उनि सुख्खी रैगी .
 शब्द कख बटे कि आला ..
 पन्नों का जु दर्द मिटला ...
 
 ठहर गी आवाज कख्खी ..
 बण गी ख़ामोशी यख्खी ...
 
 पैली जन हवा अब नि चलदी ..
 दिन भी अब रात लगदी ..
 जिन्दगी अब जिंदगी से खलदी ..
 बात कोई अब अच्छी नि लगदी..
 
 ठहर गी आवाज कख्खी ..
 बण गी खामोशी यख्खी
 
 रिश्ता किले टूटी गेनी ..
 अपणा सब किले बिखिर गेनी ...
 अलग च सबकी राह ,मन म च सबकी चाह ..
 रास्ता इन कोई ढुंडलु ,हमथे कि जु सबसे जुड़लु ...
 
 ठहर गी आवाज कख्खी ..
 बण गी खामोशी यख्खी ...
 
 मोड़ जिन्दगी का कभी त इन आला ..
 कोरा पन्नों म, पोड़लु जब अपणों कु साया
 शायद,खुश होलू तब वे कु मन ..
 चलली तब हाथ से वेकि रुकीं कलम ..
 वेकि रुकीं कलम ...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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विता शैलेन्द्र जोशी
 
 चला दी पेटा दी हिटा दी हे जी
 मेला लगियु चा जी सैणा श्रीनगर मा जी
 मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमादी
 बतियों कु मेला चतुद्रशी वैकुंठ कु मेला जी
 भक्तो की भीर जी
 पुत्र आश मा औत सौजडियो कु खाडू दियू जी
 चला वी कमलेस्वर मा जी
 मिते फौंदी मुल्य्दी चूड़ी बिंदी लादी
 भली क्रींम पाउडर बुरुंसी लिपस्टिक मेला की समूण मा ल्या दी
 मिते जादू सर्कस बन बनी का खेल तमासा दिखा दी
 मिते चर्खी मा बैठे की घुमा दी
 मिते चौपड़ वा गोला बाज़ार की घुमा दी
 मिते सैणा श्रीनगर ले जा दी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढवाळ की धै
 नरेन्द्र सिह नेगी
 हमारी पछाण
 हमारू मान
 हमारू सम्मान
 हमारी जान
 गंगा जन छाळू मन
 पनध्येरा जन बगदू प्रेम
 फ्योळी जन हैसदू बसंत
 हिमाळै जनु चमकदू प्रेम
 पाडे पिडा मा भभरान्दी जिकुडे आग
 
 नरेन्द्र सिह नेगी जी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Garhwali Classes "गढ़वाली छुई"November 8त्वे सि दूर एकि खुद क्या होंदी
 आज मैन जाणी !
 अपड़ा मन अप्वे जब समझे निपै
 फिर त्वेतें माणी !!
 
 तू मेरी सदानि हि रै पर मै कभि
 तेरु ह्व़े नि पाई!
 आज जब तेरा ओणा आस नि रै
 अपडु भरोषु नि राई !!
 
 मेरी हर बात तें भलू-भलू बताणु
 याद आज फिर आणु !
 मेरा हर राग तें बार-बार सुनाणु
 अभिबी मै भूली नि पाणु !!
 
 मेरा खातिर दुनियां छोड़ी जाणकि
 करीं सों अर करार !
 आज फिर मैतेनं याद आणु अपडुनि
 विंकू सचु स्यु प्यार .!!
 
 प्रभात सेमवाल (अजाण )सर्वाधिकार सुरक्षित

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Garhwali Classes "गढ़वाली छुई"November 2इनी मेरी क़ज़ाण च:"
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 मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
 देखि नी होलि कभी कैन , इनी मेरी कजाण च
 भैंसी सी खबड़ी वींकी, हाथी जनी चाल च
 चमड़ी वींकी इन कोंगऴी, जनी गैंडा की खाल च
 आँखा वींका ढढू जना, गधी सी आवाज च
 जुवाँ मुंड पर इथ्गा छन, दिन रात की खाज च
 मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च ..
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 मुखड़ी वींकी इनी प्यारी , जन खरस्यण्या कखड़ू हो
 टंगड़ी वींकी मोटी इथ्गा, जन सुख्यूं सी लखड़ू हो
 सुप्पा जन कान वींका, तिमला जन नाक च
 कुकुर सी भुकुण मा वींकी, अपणी अलग धाक च
 मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
 *********************************************
 धम्म -धम्म जांदी जन, पैलवान क्वी तगड़ू हो
 लट्ला वींका इन कुसज्जा , जन बाड़ी कु झंकड़ू हो
 रंग वींकू क्या बतौण, जन फुक्यूं सी अरसा होंद
 गलोड़ा वींका तिड़याँ इन, जन कट्ठऱ बगोट हो
 थौऴ मा जाणै सिरड़ी गड़ी, मिन वा अब सजाण च
 मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
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 लम्बै वींकी इन ज्यादा, जन घौर की जन्दरी हो
 मोटै इन च जन बोल्यो, क्वी लपेट्यीं मंदरी हो
 पथा द्वि-एक भात खैकी ,आराम से सेंदी च
 नींद मा रौंदी जब, बाघ सी वा घुरदी च
 दगड़ी सेण बडू मुश्किल ,सेयाँ मा लतौंदी च
 मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
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 झुमका पैरदी कान पर , जन मंदिरअ घंडलू हो
 गौऴा पर माळा पैरदी , जन भैंसा कु संगळू हो
 बाँदर सी खिर्स्येंदी वा, जब वीं मै पै गुस्सा आँद
 सूपर्णखा सी दिखेंदी वा, जब मै वींका धोरा जांद
 इन सैंदिस्ट खबेश से ,हराम सेण खाण च
 मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
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 कमर वींकी बरीक इन, जन डाळा कू गोळ हो
 कपड़ा वीं पै इन लगदा ,जन रजै कू खोळ हो
 भूत सी हैसण वींकू , थकलू जन खंगड़ौंद च
 बचाण वींकू बकि बात कू , कागु जनी बसदी च ,
 छुयूं मा सब हौरी जांदन, इन भारी बबाल च
 मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
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 मामला ब्यो कु हो त भुलौं, कै हैंकै कभी नी सुण
 गढ़-कुमौ सरू एक हवे जाऊ पर अपणी कजाण अफ़ी ढूंढ़ण,
 नी ढुंढल्या त कैन न कैन तुमतै फंसै देंण,
 बिना दहेज़ कु कैन अपणु आईटम थमै देंण
 जन मै सैणु तुम नि सैयां , इन मेरी इच्छा च
 कवी तुम तै नी पुछू ,दिदौं कन तुम्हारी कजाण च
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 मैं तै न पूछा दिदौं कनी मेरी कजाण च
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 (अविनाश ध्यानी)
 ग्राम -लिही (पौड़ी गढ़वाल)

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हमर पहाडा कू हेरू रंग चा ,
 ठंडी हव्वा ठंडू पाणी हमर संग चा ,
 उत्तराखण्ड की खूबसूरती देखी दुनिया दंग चा I
 देवी देवतो कू यखी वास चा ,
 हमर गढ़वाल की बात ही कुछ खास चा I
 उत्तराखण्ड भारत कू एक खूबसूरत अंग चा ,
 हमर पहाडा कू हेरू रंग चा I
 ठंडी हव्वा ठंडू पाणी हमर संग चा II
 Written By :- दीपू गुसाई

 

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