Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527743 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Pradeep Kumar Naithani दर्पण का समणा बैठ्यु छौं उदास ....
 मन समझाणु च मिथे  य बात ...
 गां का यूँ गाला ,गदनो का धारा ...
 यु डांडा ,पुंगड़ा जु लगदा छा प्यारा ...
 
 पर अब तु  मेरी एक बात मानि ...
 इं बात थे कि तु अच्छी से जाणी ...
 जै देश म राला तेरा स्वामी ...
 वखि बसली तेरी जिंदगानी ....
 
 मन तेरु टुटलु जब सब कुछ छुटलु ....
 पितजि कु प्यार ,माँ कु दुलार ..
 दगड़ीयौं दगड़  किस्सा,भै बैणों से तकरार ..
 गाघर धरि कु तु पंधेरा से आंदी ..बातों से लोगों थे तु छे लुभान्दी ....
 
 अब नि कर तू क्या होलु भगवान ? ...
 जै देश म राला तेरा स्वामी ....
 वखि बसली तेरी जिंदगानी ...
 
 किले छे बैठीं तु दर्पण का समणी ...
 य सूरत च तेरी च तेरी य अपणी ...
 छै तू इ ,छै तू इ ,दुसरू नि और कुई ...
 विधाता का बणायां छन जु संजोग ...
 
 ऊपर नि चलदु कैकु जोर ....
 जै देश म राला तेरा स्वामी ..
 वखि बसली तेरी जिंदगानी ...
 
 बैठीं छै तू इन भोली बनकर ...
 किले नि तिथे इं बाते खबर ....
 कर तु उन्थे की प्यार मगर ...
 न आली रात न दिन आलु नजर ..
 
 ख़ामोशी तेरी सदा चली जाली
 गीत सदा तु यु ही गाली .
 जै देश म राला मेरा स्वामी ..
 वखि बसली मेरी जिंदगानी ..
 
 मेरी जिंदगानी मेरी जिंदगानी ..
दर्पण का समणा बैठ्यु छौं उदास .... मन समझाणु च मिथे  य बात ... गां का यूँ गाला ,गदनो का धारा ... यु डांडा ,पुंगड़ा जु लगदा छा प्यारा ... पर अब तु  मेरी एक बात मानि ... इं बात थे कि तु अच्छी से जाणी ... जै देश म राला तेरा स्वामी ... वखि बसली तेरी जिंदगानी .... मन तेरु टुटलु जब सब कुछ छुटलु .... पितजि कु प्यार ,माँ कु दुलार .. दगड़ीयौं दगड़  किस्सा,भै बैणों से तकरार .. गाघर धरि कु तु पंधेरा से आंदी ..बातों से लोगों थे तु छे लुभान्दी .... अब नि कर तू क्या होलु भगवान ? ... जै देश म राला तेरा स्वामी .... वखि बसली तेरी जिंदगानी ... किले छे बैठीं तु दर्पण का समणी ... य सूरत च तेरी च तेरी य अपणी ... छै तू इ ,छै तू इ ,दुसरू नि और कुई ... विधाता का बणायां छन जु संजोग ... ऊपर नि चलदु कैकु जोर .... जै देश म राला तेरा स्वामी .. वखि बसली तेरी जिंदगानी ... बैठीं छै तू इन भोली बनकर ... किले नि तिथे इं बाते खबर .... कर तु उन्थे की प्यार मगर ... न आली रात न दिन आलु नजर .. ख़ामोशी तेरी सदा चली जाली गीत सदा तु यु ही गाली . जै देश म राला मेरा स्वामी .. वखि बसली मेरी जिंदगानी .. मेरी जिंदगानी मेरी जिंदगानी .. height=398

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
 आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।
 
 द्वी हिस्सा व्हेगेन कूड़ी का गुट्यार मा पोड्गी दीवार ।
 ओडा धरेगेन पुंगड़यूंमा आज वली पली सार ।
 कैन या रीत बणायी कैन बणे होलू यूं रिवाज ।
 एक खून छो भैजी, वु बिग्वेणू किले च आज ।
 हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
 आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।
 
 बावा पनमा होन्दू छो जू भै मेरा दुःख मा दुखी ।
 आज में बिगर कनमा रैणू होलू वू सुखी ।
 एक मन छो हमरू, आज वु मेसे अलग किले गाई ।
 क्यांकू ते में देखी की मेरा भैजी आज मुख फरकाई ।
 हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
 आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।
 
 कन रै होलि राम लक्ष्मण भरत की जोड़ी ।
 एक दूजा का बाना जोन राज पाठ भी छोड़ी ।
 पाँच पण्डो कू भी याद करदन लोग किस्सा ।
 कृष्ण बलरामन भी निभाई भैजी कू रिस्ता ।
 हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
 आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।
 
 ये भगवान् यी दुनिया मा कब इनू दिन आलू ।
 बण्यूं सौरू भैजी मेरू कब अपडू व्हे जालू ।
 मिलन देख्नणू कू कू भ्गयान रालू यी धरती मा ।
 वे दिन एक न्यु इतिहास बणोलू यी पृथी मा ।
 
 हैंसी खेली की रैन्दू छो जू भैजी पोरू ।
 आज किले बण्यूं च वु मेरू सोरू ।।
 
 प्रदीप सिंह रावत "खुदेड़ "
 https://www.facebook.com/pardeep.rawat.9

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Garhwali Classes "गढ़वाली छुई"January 18पडिगे ह्युवालू डांडा रे
 
 बदन तय क़पैगे ये ह्युवालू रे
 
 चा की कनी बार रे
 
 राजे खंतरो मा भुज्या भटो कू ठुगार रे
 
 बाँज कुले डालियों की ठंडी बयार
 
 हार्डमांस तय चीरि की हड्गो तय कर नि च तार तार
 
 आंगेठो की तात मायादारो की बकिबात
 
 काजदारो कू काज ये हिम् बरखा न लुछयाली
 
 पर जुगो की डोरों घघरू नि छुटदू यी काजदार भी लग्या छा अपणा काज
 
 छोटा नानतिन तय कनु सजा होगे
 
 गवाडीयू च बुवौइन विते भीतर
 
 छटला बादल पिघलु हियु आलू भै कब बसंती घाम
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी

jagmohan singh jayara

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मेरु ज्यू करदु छ........

देवभूमि उत्तराखंड तैं देखौं, उड़िक अनंत आकाश सी,
नदी पर्वतों तैं निहारौं, जैक बिल्कुल पास सी

पुनर्जन्म अगर हो प्रभु, देवभूमि उत्तराखंड में हो,
तन भले ही बदल जाये, लेकिन मेरा कविमन हो

पुनर्जन्म में अगर बाघ बनु , उत्तराखंडियौं को नहीं खाऊँगा,
जाकर पहले देहरादून में, नेताओं को पहाड़ भगाऊँगा,

फिर आबाद होगा पहाड़, पलायन का पाप छूट जाएगा,
लौटेंगे मेरे पहाड़ के लोग, विकास का सैलाब आएगा......

पूछो हर प्रवासी उत्तराखंडी से,
क्या अपने घर गाँव से दूर,
ख़ुशी का अहसास करते हो,
या जिन्दा रहते हुए,
जीते हो या मरते हो,
या दुखों को अपने दिल में,
जिंदगी जीने के लिए,
दिन रात दफ़न करते हो?
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु:
"मेरा पहाड़" पर बहुत दिनों के बाद 25.1.2013
सर्वाधिकार सुरक्षित
www.merapahadforum.com
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी चन्द्रबदनी टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड
प्रवास: दर्द भरी दिल्ली
दूरभास: 09654972366

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Vijay Gaur भयात 
 
 कभि जु दगड़ी खेल्दु छौ,
 कभि जु अपणु सि मिल्दु छौ।
 कभि जु म्येरी हैंसी बानो,
 अपणु सुख-दुःख भुल्दु छौ।
 आज यु कन बगत ऐ ग्ये,
 एक हि कोख से जन्म्यु भै,
 म्येरू सोरु ह्वै ग्ये !!
 
 कभि जु घुग्गा बिठांदु छौ,
 कभि मि लम्डू, उठांदु छौ,
 कभि गट्टा -कुंजा खिलांदु छौ,
 कभि फुटयाँ घुन्डों सिलांदु छौ,
 आज यु कन बगत ऐ ग्ये,
 एक हि कोख से जन्म्यु भै,
 म्येरू सोरु ह्वै ग्ये !!
 
 कभि जु स्कूल लि जान्दु छौ,
 कभि जु कंचौ खिलांदु छौ,
 कभि दगड़ मा कुकर छुल्यांदु छौ,
 कभि सारयों मा बांदर हकांदु छौ।
 आज यु कन बगत ऐ ग्ये,
 एक हि कोख से जन्म्यु भै,
 म्येरू सोरु ह्वै ग्ये !!
 
 हे विधाता! मि त्वै स्ये बुन्नु छौं,
 अपणी हि न, सभि मन्ख्यों कि बात कनु छौं,
 अगर तिन भयात कु अंत यन हि लिख्युं,
 त मि त्येरि बात नि मनणु छौं,
 तु यु कनु इंसाफ कै ग्ये,
 जु बालापन कु अटूट ज़ोड़,
 या लोलि ज्वनि, आन्द-आन्द हि खै ग्ये.
 
 विजय गौड़
 सर्वाधिकार सुरक्षित   
 http://vijaygarhwali.blogspot.in/

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प्रयाग पाण्डे
पत्थर - सा जिगर , पानी - सी जुवां वालों का भरोसा क्या कीजे ,
हर बात में बात पलटते वे , ऐसों का भरोसा क्या कीजै ?

इस ठहरे दिल को क्या कहिये , इस बहती जुवां का क्या कीजे ,
कब पत्थर पिघले हैं प्यारे , कब गांठ पड़े है पानी में
जो ऐसी बातें करते हैं उन लोगों को समझा कीजे

हर आन दिखावे रूप नए , हर बात पै तेवर बदले जो
ऐसों की ना को क्या कहिये ? ऐसों की हाँ का क्या कीजे

जो गहरी बातों से अपनी गहराई को जतलाते हों
ऐसे गहराई वालों का गहरा तल पहचाना कीजे

ये दुनियां टिकी हुई है तुम - हम जैसों के ही हाथों पै
इसलिए बदल भी सकते हैं हम ही इसको समझा कीजे ।

-गिरीश तिवारी " गिर्दा "
"पहाड़ "द्वारा प्रकाशित " जैंता एक दिन तो आलो " से ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यकलु बानर ‎"दर्प-दहा"
 
 कैकु भल जै हैई
 दर्प-दहा यु पैलि रैई
 कैकु घर मा लागि
 यु बण मा लागि
 सदाबहार...
 जेठ कु चड़कण घाम कू जैसोँ
 छाँव मिलो ना ठण्डोँ पानि
 दर्प-दहा ज्युँ दिल मा मेरोँ
 मैत कु दब्यत सौरास पुकारि
 पुजण मा रुणि साल महेण
 दर्प-दहा यु सैणि-मैसि
 लडणु-झगणु ऊमर यु गुजरि
 दर्प-दहा मा दुनिया छाडि
 छाडि सबै...
 जैक लिजि दर्प-दहा
 जैक लिजि दर्प-दहा
 
 लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड

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घुघूती बासुती मेरे गाँव में आना......................
 जहां नदी इठलाती हुई कहती है
 आजा पानी में तर जा
 ये अमृत सी बहती है
 
 मेरे घर का पता ...............
 आम के पेड़ के नीचे
 पुराने मंदिर के पीछे
 जहां भगवान् बसते है
 
 मेरी शिक्षा-दीक्षा..................
 किताब से बाहर
 यथार्थ के धरातल पर
 बड़ों को सम्मान
 पर स्वयं पर आत्मनिर्भर
 
 मेरे मन की शक्ति ..................
 अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध
 आवाज़ उठाना विरोध जताना
 सबको ये महसूस कराना
 अपने अधिकार और कर्तव्य
 पर करो चिंतन
 
 पर मेरे गाँव के लोग ....................
 बड़े भोले-भाले से
 रहते है सीधे-सादे से
 करते है सहज बात
 http://kavyana.blogspot.in/2011/06/blog-post_14.html

 

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