मेरु ज्यू करदु छ........
देवभूमि उत्तराखंड तैं देखौं, उड़िक अनंत आकाश सी,
नदी पर्वतों तैं निहारौं, जैक बिल्कुल पास सी
पुनर्जन्म अगर हो प्रभु, देवभूमि उत्तराखंड में हो,
तन भले ही बदल जाये, लेकिन मेरा कविमन हो
पुनर्जन्म में अगर बाघ बनु , उत्तराखंडियौं को नहीं खाऊँगा,
जाकर पहले देहरादून में, नेताओं को पहाड़ भगाऊँगा,
फिर आबाद होगा पहाड़, पलायन का पाप छूट जाएगा,
लौटेंगे मेरे पहाड़ के लोग, विकास का सैलाब आएगा......
पूछो हर प्रवासी उत्तराखंडी से,
क्या अपने घर गाँव से दूर,
ख़ुशी का अहसास करते हो,
या जिन्दा रहते हुए,
जीते हो या मरते हो,
या दुखों को अपने दिल में,
जिंदगी जीने के लिए,
दिन रात दफ़न करते हो?
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु:
"मेरा पहाड़" पर बहुत दिनों के बाद 25.1.2013
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प्रवास: दर्द भरी दिल्ली
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