Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527790 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
मेरा पाड़े की प्रीत

आंखी नी घड़े,आंखी नी दडे
ऐ प्रीती बोली आंखी नी पड़े

बोली बोली भेद जीकोडी कू खोली
माया घेर कू गेडले तू गेडी

बुरंस प्योंली घुघूती हिलांसा
छुटी दगडीयों कू अबै वो साथा

कंडी मा भी फुल खिलेगैणी
ऐ मौल्यार मा भी हैरालू ऐगैणी

चडै यू नशा डोल दामू मशुबाजा
कंणुडी घण घण बजणा छिण

अरसा कड़ेई मा तळणा छिण
बेदी मा अब फेरा लगणा छिण

ब्योला ब्योली अब मिलण छिण
आंखी कू टिपडा अबै ज्योलण छिण

मेर पाड़े की प्रीत सबूसे निराली च
ब्यो होंणक बाद आंखीणी मुख खोलीच

आंखी नी घड़े,आंखी नी दडे
ऐ प्रीती बोली आंखी नी पड़े

बोली बोली भेद जीकोडी कू खोली
माया घेर कू गेडले तू गेडी

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भगवान सिंह जयाड़ा
 
***मन मिटाव किलै ***
मन इन्शान कु किलै बदली जांदू ।
एक जनु यु सदानी किलै नि रांदु ।।
द्वेष भाव किलै यख मन मा औन्दू ।
अपुरू किलै यख हम सी दूर जांदू ।।
जै अपुरु समझदा किलै मुख फ़ेरदु ।
अफु अफु मा ही किलै फुकेंदु रांदु ।।
किलै मन मिटाव अपरोऊ सी होंदु ।
अपुरु किलै कभी मुख मोड़ी जांदू ।।
मन कु यु मैल हटौण पडौलू पैली।
प्रीत प्रेम तब यख सदा बणी रैली ।।
छोटी छोटी बातु पर कभी नि रूठा ।
मिली जुली राँण कु तुम खड़ा ऊठा ।।
नि रौवा आपस मा यख मुख मोड़ी ।
प्रीत प्यार रखा सदा यख थोड़ी थोड़ी ।।
आपसी प्यार जब यख यु बण्यु रालू ।
जिंदगी जीण कू तब सच्चू मजा आलू।।
मन इन्शान कु किलै बदली जांदू ।
एक जनु यु सदानी किलै नि रांदु ।।

द्वारा रचित >भगवान सिंह जयड़ा
अबुधाबी (यूं .ए .ई .)
दिनांक >18/02/2013

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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एक कल्पना मेरे मन की ,,,,,
******साहिल और लहरें ***
लहरों ने छेड़ा कुछ यूँ ही साहिल को ,
तुम सदा खामोश निष्चल क्यों रहते हो ,
हम बेताब रहते है तुम को मिलने को ,
तुम हो कि इजहार तक नहीं करते हो ,
साहिल ने कहा तब मुझे क्या जरूरत है ,
तुम सदा हमें गले तो मिलते रहते हो ,
थपेड़ों का अहशास तो जरूर होता है मुझे ,
मगर मैं अचल निष्चल को मजबूर हूँ ,
दिल तो मचलने को मेरा भी करता है ,
मगर क्या करू बंदिशों से जकड़ा हुवा हूँ ,
अगर जज्ज्बात में अपनी हद तोड़ता हूँ ,
तो क़यामत सी आ सकती है जमीं पर ,
तुम मनचलों का क्या भरोंसा है यहाँ ,
तुम कहाँ तक चली आओगी जहां पर ,
फिर तो साहिल की क्या हैशियत यहाँ ,
इस जहां पर सकल तुम ही मचलावोगी ,
सारी धरा पर तब तुमारा ही राज होगा ,
जमीन सारी तुम में बिलींन हो जायेगी ,
जल प्रलय का मंजर होगा सब जगह ,
तुम्हारी मौज मस्ती मुझे महँगी पड़ेगी ,
कोशता रहूँगा तब हर पल अपने को ,
सोचता हूँ हर पल सदा इसी सपने को ,
इस लिए मत छेड़ो मुझे यूं इस कदर ,
नहीं तो भटकती रहोगी सदा यूँ दर बदर ,
मुझे निष्चल खामोस सदा यूँ ही रहने दो ,
बस यूँ ही मिलने का सिलसिला चलने दो ,

द्वारा रचित >भगवान् सिंह जयाड़ा
दिनांक >16/02/2013

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भगवान सिंह जयाड़ा
February 14
****यु कनु बदलाव *****
नि सुणेदी कखी गोरु की घाडुली ।
नि बजदी कखी ग्येरू की बांसुरी ।।
हर्ची गैन कखी घर की जांदुरी ।
कख हरिची होली घर बुणी मांदुरी ।।
बांजी पड़ीग्यन गोंऊ की ऊखल्यारी ।
रतब्याण माँ उठदी थई बेटी ब्वारी ।।
हर्ची गैन कखी अब ऊ झुमैलू गीत ।
हर्ची गैई कखी उ मनिख्यों की प्रीत ।।
नि लगदी अब बैखारू की कछड़ी ।
ह्युंद की रातू बैठदा था कभी दगडी ।।
हर्ची गैई कखी कौथग्यारू की टोली ।
खेला मेला होन या दीपावली ,होली ।।
तीज त्योहारु की रौनक भी नि रैगी ।
हर्ची उलार यख देखा कनु बक्त एगी ।।
भली लगादी थई घस्यार्यों की टोली ।
हेंसुणु खेलणु और मुंड मा गडोली ।।
ब्याखुनी कु घर ओंदा गोरू की लैन ।
उ पूराणा दिन नि जाणी कख गैन ।।
मौसम बदल्न्यु छ ,बदलगी यख हवा।
विनती छ मेरी सभी मिली जुली रवा ।।
अपणी संस्क्रती सी बिमुख नि होवा ।
पुराणी सभ्यता अपरी कुछ त बचावा ।।
नि सुणेदी कखी गोरु की घाडुली ।
नि बजदी कखी ग्येरू की बांसुरी ।।

द्वारा रचित >भगवान सिंह जायाड़ा
दिनांक >14 /02 /2013

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेरू पहाड ता कुछ भी नी बदली।
बदली ग्योँ ता हम बदली ग्योँ दगडयोँ....।
यख शिव कू कैलाश वीच।
यख बदरी केदार वीच।
यख रीति रिवाज वीच।
यख ढोल दमौ कू साज वीच।
बदली ग्योँ ता हम बदली ग्योँ दगडयोँ....।

यख डाल्यूँ मा मौल्यार वीच।
यख जुकडयूँ मा उलार वीच।
यख गदन्यूँ मा उदगार वीच।
यख डाँडयूं मा बहार वीच।
बदली ग्योँ ता हम बदली ग्योँ दगडयोँ....।

यख चखुल्यूँ कू चूँयीँच्याट वीच।
यख बालैकी किकलाट वीच।
यख बिनसिरी कू रगरयाट वीच।
यख ब्यखुनी कू टपराट वीच।
बदली ग्योँ ता हम बदली ग्योँ दगडयोँ....।

यख माँजी कू लाड वीच।
यख बोडी की जग्वाल वीच।
यख काकी कू प्यार वीच।
यख बौजी की मजाक वीच।
बदली ग्योँ ता हम बदली ग्योँ दगडयोँ....।

यख बुबाजी की डैर वीच।
यख बोडा की खैर वीच।
यख दादा कू सुल्पा सैर वीच।
यख भैजी की सकासैर वीच।
मेरू पहाड ता कुछ भी नी बदली।
बदली ग्योँ ता हम बदली ग्योँ दगडयोँ....।

मनोज रावत (बोल्या)

एक बार बौडी त जा मेरा गढ मा पक्का दावा च मेरू यू ही मिलालू।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यकलु बानर ओ सिपैई दाज्यु
 लेफ्ट राईट... लेफ्ट राईट...
 रोज त्यर परेड छा
 हाथ कु बँन्दुक त्यर
 जूँ पराण हथैल धरि
 सिना तानि गोलि तै
 दुश्मनु कु भेद कै
 दुश्मनु कु भेद कै
 ओ सिपैई दाज्यु
 खूट मा त्यर प्रणाम छा
 खूट मा त्यर प्रणाम छा
 ठण्ड गरम त्वैमा ना
 बिन मौसम पराण छै
 भै-बैणि, इज-बबा, सुवा तै दूर छै
 बोडँरु मा लागि छा
 ओ भगवति माता
 रखदे आपण हाथ रे
 कै कु च्याला कै कु मुँया
 बोडँरु तैनात छा
 अपणु जूँ पराण
 देश कु निछाँर कु
 बोडँरु तैनात छू
 गढ-कुँर्मो रेजिमेण्ट
 सुख-दुखै कि कै छू बात
 इनरि मनमा नि छू आज
 ओ सिपैई दाज्यु
 खूट मा त्यर प्रणाम छू
 त्यागि तुमुल माया रे
 त्यागि तुमुल यु पराण
 देश कु खातिर रे
 कुँर्मो-गँढु कु सिपै
 तुमरि वीर गाथा रे
 उत्तँराखण्ड कु गर्व रे
 तुमरि वीर गाथा रे
 
 लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
 © 2013 copy right sundarkabdola

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु ‎"एक ढुंगु,बणे देवा"
 
 जब आदेश वैकु आलु,
 दूत वैकु,
 डोरड़ा फर बांधिक,
 लसोड़िक ल्हिजालु,
 बोललु ऊ,
 बोल रे कवि,
 बतौँ  तेरु हिसाब,
 फिर बतालु,
 बणि  जा तू एक  ढुंगु,
 तब मै बोललु,
 मैकु उत्तराखंड कू,
 एक ढुंगु,बणे देवा....
 
 -जगमोहन सिंह जयाड़ा  "जिज्ञासु"
 23.2.13

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यकलु बानर मी यस कै लिखदूँ
 त्यर आँखा भरदूँ
 बोल पँहाडि परदेशी
 कै लिखदूँ...
 
 बुँढि ईजा कू आँख्यु कु स्याहि
 कलम डूँबै बै
 ईजा कु किमत आँसू मा रचँदु
 जैकु बगणु आँखण आँसू
 नहर किनारुँ बौल किनारुँ
 पुश्तैणि धरति सिचणु कु काँरु
 आँखण आँसू खेत- खलियाण मेड़ मा बैठि
 पुतैई दगैई वैकु सुख- दुख हैगे
 आँखा आँसू खेत मा बरकि
 हरि- भरि यु खेत ले हैगे
 
 बोल पँहाडि परदेशी
 कै लिखदूँ...
 बुँढ- बाँप कु छै तू लाँठि
 कसि बतु मि.. ओ ईजा
 परदेशी हैगो उ लाँठि
 ज्युँ छि बुढिण काँऊ कु तुमरि लाँठि
 परदेशी हैगो सैण दगडि उ लाँठि
 
 बोल पँहाडि परदेशी
 कै लिखदूँ...
 कस उगैई यु फसल
 जबै बनेलै तू ले बौज्यु
 त्यर सैण ले होलि कैकि ईजा
 जस उगैई यु फसल
 यु पिड़ै... याद करि मेहसूस ले हाल
 किले कि दगडि
 जस उगैई वस कटैई
 जस उगैई वस कटैई
 
 लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
 © 2013 sundarkabdola ,

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यकलु बानर

“छाँव-छरपट चेलि मेरी
गाई ले त्यर प्यारि लगदि”

राति घाम चुई मा पँहुचि
गढ-भिडो मा दौडि भागि
घाँ कु डालु ख्वर मा तेरो
फुर-फुर करदि इग्लिश बोलि
पढण-लिखण मा अवल छै
शान-शौक दी डबल कु तेरो
बुते कि तू लखिया छै
बुते कि तू लखिया छै

छाँव-छरपट चेलि मेरी
काम-काज मा हाथ सरौण्दि
ईजा-बौज्यु-आम्मा-बुबु सेवा करदि
“छाँव-छरपट चेलि मेरी
गाई ले त्यर प्यारि लगदि”

भैस नऊण-दुध पिऊण
तू छै मेरो दै कू ठेकि
मयण कू जैसो मेरी चेलि
जबै तू जालि यु घर छोडि
याद तू आलि मेरी चेलि
याद तू आलि मेरी चेलि
त्यर छवट-छवट बात
नटखट याद
जबै तू जालि यु घर छोडि
याद तू आलि भौते भारि
याद तू आलि भौते भारि

सौरास मा जैकि नि बदलि
सासु-सौरा ईजा-बौज्यु तै समझी
पढि-लिखे घर संसार लगैई
छाँव-छरपट चेलि मेरी
जबै तू जालि यु घर छोडि
याद तू आलि भौते भारि
याद तू आलि भौते भारि
त्यर नान-नान कपडा
ठुल-ठुल झौरा
सिराण मा धेरि
अपणु मन जिकुडि तै बुथुण
तेरो-मेरो साथ छी इतगा
अपणु मन जिकुडि तै बुथुण
जबै तू जालि यु घर छोडि
याद तू आलि भौते भारि
“छाँव-छरपट चेलि मेरी
गाई ले त्यर प्यारि लगदि”

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यकलु बानर

ओ सिपैई दाज्यु
लेफ्ट राईट... लेफ्ट राईट...
रोज त्यर परेड छा
हाथ कु बँन्दुक त्यर
जूँ पराण हथैल धरि
सिना तानि गोलि तै
दुश्मनु कु भेद कै
दुश्मनु कु भेद कै
ओ सिपैई दाज्यु
खूट मा त्यर प्रणाम छा
खूट मा त्यर प्रणाम छा
ठण्ड गरम त्वैमा ना
बिन मौसम पराण छै
भै-बैणि, इज-बबा, सुवा तै दूर छै
बोडँरु मा लागि छा
ओ भगवति माता
रखदे आपण हाथ रे
कै कु च्याला कै कु मुँया
बोडँरु तैनात छा
अपणु जूँ पराण
देश कु निछाँर कु
बोडँरु तैनात छू
गढ-कुँर्मो रेजिमेण्ट
सुख-दुखै कि कै छू बात
इनरि मनमा नि छू आज
ओ सिपैई दाज्यु
खूट मा त्यर प्रणाम छू
त्यागि तुमुल माया रे
त्यागि तुमुल यु पराण
देश कु खातिर रे
कुँर्मो-गँढु कु सिपै
तुमरि वीर गाथा रे
उत्तँराखण्ड कु गर्व रे
तुमरि वीर गाथा रे

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right sundarkabdola

 

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