Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527790 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jagmohan Aazad
 
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उनके गुस्लख़ाना से निकलने वाली
हर एक नाली खुलती हैं
पवित्र गंगा की लहरों में जाकर
उनके बैतुल-ख़ला की लंबी-लंबी
सुरंगों से निकलने वाला गंद...
तेजी के साथ-
गंगा की पवित्र धाराओं में होता शामिल,
उनके बावर्चीख़ाना के पकवानों का रस-रंग
गिरता है...हर रोज गंगा की गोद में...।
उनके शरीर से निकलने वाले मैल की बत्तियां
बहाई जाती हैं-खुलेआम
पतित-पावनी गंगा में सुबह-शाम...
इसके बाद...
वह साफ शीशे के सामने
होते हैं खडे....खुद के चेहरे को साफ कर...
आधुनिक रंग-रोगन की क्रिमों से...
निकलते हैं...
लाखों करोड़ों की गाड़ियों में बैठ-
गंगा को बचाने को...।
...और...
जब भी गुज़रते हैं...गंगा के किनारे-किनारे
...तब-तब नहीं भूलते...
..थूकना वह,मां गंगा के चेहर पर,
...करोड़ो-करोड़ रूपए की धनराशि-कराते हैं......स्वीकृत-
पतित-पवानी गंगा को...साफ कराने को-
निर्मल गंगा की धार को रोकने को
खुद को विकसित करने को...।
....फिर...आलिशान होटलों...हाईटैक...सुख-सुविधानों से लेस-
कमरों में बैठ.......टीवी...अखबारों में चहचहाते हैं...वह
...और...
भाड़े पर लाए...लोगों की भीड़ से हंगामा कराते हैं...
...दिन भर चीखते-चिल्लाते हैं....
...और...शाम ढलते ही...गंगा किनारे-
शबाब-कबाब की महफिल सजाते हैं....
...और गंगा है कि...रो...रही है....खो रही है....खुद की पवित्रता....निरंतर...
...और फिर भी वह चीख रहे हैं...चिल्ला रहे है...निरंतर...चलो सब चलो..
साथ हमारे
हम सब को...बचाना है...पतित-पावनी..गंगा को बचाना है....।

जगमोहन 'आज़ाद'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यकलु बानर
सबै हैगिण छल-बल पहाडि
दुर दँराजु नँगरु किनाँरु
गौ ले लागणो यु सुनसान
बँखाई मा लागि यु वरदान
सिमट गये रे घर परिवार
ना सुख-दुख कैकु मनमा आज
मस्त मँलग यु अपणु आप
जूँउ तरिकु ले बदलि गै

सबै हैगिण छल-बल पहाडि
पढि लिखि तुम अनपँढ छा

"पता नही है तुमको आज"

'अपणु सँस्कृति कु आधार
बोलि-भाषा कु व्यवहार'

एम॰ए-बी॰ए तुम अनपँढ छा
बोलि-भाषा ममी-डेडि
कँहा गये रे ईजा-बौज्यु ...?

सबै हैगिण छल-बल पहाडि
दि डबलु कु टुकुडि मा
एक घुँट कु दाँरु मा
दँबग बनि तुम लोटि ऊँछा
दि चार दिनु कु छुट्टि मा
"दँबग गैई यु तुमरि देखि"

गौ कु बाँटु तै दँबग
ब्यौ-बँरातु तै दँबग
बोलि-भाषा तै दँबग
फैन्शि-फैशन तै दँबग
गिज-खापडि तै दँबग
डँबलु वालु तै दँबग
कै यु छा तुमरि यु दँबग ...?

बुँढ-बाँढि एक नजर
कैथे बोलि उ नजर
धुँधलित दैखणि वैक उँमर
यौवन छाडि बुँढि हैगे
सार ऊमर हाँट-बाँट तोडि
तै बनि
यु पहाड यु दँबग
यु पहाड यु दँबग

बोलो दगडियोँ कौन दँबग ...?

सबै हैगिण छल-बल पहाडि
रित कु र्कज निभे दे आज
बँखाई मा जोडो कल कु बात
कुड पाँथरि अण्यार उजैलि
धात लगुणो यु पहाड
पुरैण जमान कु पुरैण रिर्वाज
बुँढ-बाँढि कु यु आँखण
आज निभे दे यु रिर्वाज
गुजर जमान कु झँवड- चाँचरि
बुँढ-बाँढि कु यु नजर
तरसि गी रे यु डगर
हुँडकि-बौल थाल नचै दे
बुढिण आँखण चमक जगै दे
चिमडि ग्लाँड हँसि दिखै दे

http://phadikavitablog.wordpress.com/2013/02/23/ सबै-हैगिण-छल-बल-पहाडि /
लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Pardeep Singh Rawat
पहाड़ तो अब केवल साइबर मिडिया में आबाद च,
सच त यो च दगड़यों पहाड़ अब पहाड़ में ही बर्बाद च ।

कुछ नुकसान पहुंचे पहाड़ तै सुआर और बन्दरू न,
बकि जू बचि वू उज्याड़ी डाम का थोकदरू न।
जब बटी की गाजर घास न पहाड़ मा पसारी पौ ,
तब बटी बंजर का बंजर व्हेन पहाड़ा का गौ ।
गोड़ी भैंसी छै नीन,पुंगडियों मा अब कख खाद च,
सच त यो च दगड़यों पहाड़ अब पहाड़ में ही बर्बाद च ।

कुछ माटू रेत हडपी पहाड़ो कू खनन माफियों न,
बकि जू बचि छो वु बोगायी बस्ग्याई आपदो न।
कुछ हैरा भैरा जंगळ स्वा कैन रूडियों की आग न,
बकि जू बची छा वू कटे देन बन बिभाग न।
अपड़ी सरकार मा न क्वी जवाब च
सच त यो च दगड़यों पहाड़ अब पहाड़ में ही बर्बाद च ।

क्वी नारी खूनै कमी न मोरि, कै तै मारी शराबी मर्द न,
कैते इकुलांसा बोझ न मारी,क्वी मोरी बिचरि स्वीली दर्द न।
कुछ बच्चों कू भबिष्य अन्धकार कै हलधर मास्टर न,
बकि जू बचि छा उन्ते मारी गलत इलाज क़ा डाक्टर न ।
बेटी ब्वारी करदन काम धाण इख बैख बण्यूँ नवाब च
सच त यो च दगड़यों पहाड़ अब पहाड़ में ही बर्बाद च ।

मुख्यमन्त्री जी दिल्ली मा ज्यादा मंत्री बिदेशू की सैर मा ,
खूब लूटेणू दगड़यों उत्तराखंड हमरू दिन दोहपहर मा ।
कनमा कन बिकास न नीति च न नीयत च साफ,
जन प्रशासनच दगड़यों उनि हम और आप।
अब ये पहाड़ो कू रक्षक बस यू बद्रीनाथ च
सच त यो च दगड़यों पहाड़ अब पहाड़ में ही बर्बाद च ।

प्रदीप सिंह रावत " खुदेड"

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यकलु बानर सबै हैगिण छल-बल पहाडि
 दुर दँराजु नँगरु किनाँरु
 गौ ले लागणो यु सुनसान
 बँखाई मा लागि यु वरदान
 सिमट गये रे घर परिवार
 ना सुख-दुख कैकु मनमा आज
 मस्त मँलग यु अपणु आप
 जूँउ तरिकु ले बदलि गै
 
 सबै हैगिण छल-बल पहाडि
 पढि लिखि तुम अनपँढ छा
 
 "पता नही है तुमको आज"
 
 'अपणु सँस्कृति कु आधार
 बोलि-भाषा कु व्यवहार'
 
 एम॰ए-बी॰ए तुम अनपँढ छा
 बोलि-भाषा ममी-डेडि
 कँहा गये रे ईजा-बौज्यु ...?
 
 सबै हैगिण छल-बल पहाडि
 दि डबलु कु टुकुडि मा
 एक घुँट कु दाँरु मा
 दँबग बनि तुम लोटि ऊँछा
 दि चार दिनु कु छुट्टि मा
 "दँबग गैई यु तुमरि देखि"
 
 गौ कु बाँटु तै दँबग
 ब्यौ-बँरातु तै दँबग
 बोलि-भाषा तै दँबग
 फैन्शि-फैशन तै दँबग
 गिज-खापडि तै दँबग
 डँबलु वालु तै दँबग
 कै यु छा तुमरि यु दँबग ...?
 
 बुँढ-बाँढि एक नजर
 कैथे बोलि उ नजर
 धुँधलित दैखणि वैक उँमर
 यौवन छाडि बुँढि हैगे
 सार ऊमर हाँट-बाँट तोडि
 तै बनि
 यु पहाड यु दँबग
 यु पहाड यु दँबग
 
 बोलो दगडियोँ कौन दँबग ...?
 
 सबै हैगिण छल-बल पहाडि
 रित कु र्कज निभे दे आज
 बँखाई मा जोडो कल कु बात
 कुड पाँथरि अण्यार उजैलि
 धात लगुणो यु पहाड
 पुरैण जमान कु पुरैण रिर्वाज
 बुँढ-बाँढि कु यु आँखण
 आज निभे दे यु रिर्वाज
 गुजर जमान कु झँवड- चाँचरि
 बुँढ-बाँढि कु यु नजर
 तरसि गी रे यु डगर
 हुँडकि-बौल थाल नचै दे
 बुढिण आँखण चमक जगै दे
 चिमडि ग्लाँड हँसि दिखै दे
 
 http://phadikavitablog.wordpress.com/2013/02/23/ सबै-हैगिण-छल-बल-पहाडि /
 लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
 © 2013 sundarkabdola , All Rights Reserved

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
‎"क्या छैं तू कन्नि"

मेरा बेटा,

माँ पूछणि छ,

नौनु बोंनु,

फेसबुक छौं पढ़णु,

माँ मैं ध्यान सी,

किलैकि अब हमारा,

बोर्ड का पेपर नजिक छन,

ब्यालि मैन,

फेसबुक खरीदण कू,

पैंसा नि मांगी था त्वैमु....

पढ़ पढ़ मेरा लाटा,

मैं त्वैकु,

क्वी कमि नि होण द्योलु,

पढण लिखण का खातिर...

फेसबुक का दिवाना,

होयां छन छोरा छारा,

हमारा पाड़ मा,

घल्कैक भी,

बाच नि गाड़दा,

माँ बाप बोन्ना छन,

क्या ह्वै होलु,

कखि बाक्की मू जावा...


-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"

सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्लॉग पर प्रकाशित

26.2.2013
www.jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु ‎"रैबार अयुं छ"
 
 मेरा दगड़या कू,
 
 मैकु रैबार अयुं छ,
 
 त्वैकु कनुकै बतौं हे दिदा,
 
 यख मौल्यार छयुं छ,
 
 फयोंलि का दगड़ा,
 
 अड़ेथु बणिक,
 
 बौल्या बुरांश अयुं छ...
 
 जगमोहन सिंह जयाड़ा,
 
 कवि नाम "जिज्ञासु" मेरु,
 
 मन मेरु पाड़ गयुं छ,
 
 मेरा दगड़या कू,
 
 मैकु "रैबार अयुं छ"....
 
 -जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
 
 सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्लॉग पर प्रकाशित,
 
 25.2.13
 
 www.jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Vijay Gaur हम इथगा मजबूर किलै छाँ?
 
 हम इथगा मजबूर किलै छाँ?
 पहाड़ी ह्वैकी बि पहाड़ से दूर किलै छाँ??
 
 जख कबि टुट्या खटलोँ का सारा ग्वाया लगैन,
 जख कबि माटु अर गारा इना-उना छमडैन,
 जख कबि कमेडू - कलमन आखर लिख्येन,
 जख कबि बड़ी घाम बाँचि गिनती- पाड़ा सिख्येन,
 वीं जलमभूमि से बगणा बदस्तूर किलै छाँ??
 हम इथगा मजबूर किलै छाँ??
 
 जख कबि बार-त्योहार रंग-पटखा उड़येन,
 जख कबि दगिड्यों दगड़ी खौला-म्येला घुमैन,
 जख कबि ब्यों-बरत्यों मा बिस्तर-लखडा सरैन,
 जख कबि गोँ बिटी दिदी-भुली सैसुर लख्वैन,
 वूँ रीत-रिवाजों थैं बिसरणा हुजूर किलै छाँ??
 पहाड़ी ह्वैकी बि पहाड़ से दूर किलै छाँ??
 
 जख कबि अपणी भासा का क ख ग सिख्येन,
 जख बाटु हिटदा झणी कथगा पट मिसयेंन,
 जख कबि जागर, थड्या, चौफंलों कि भौंण सुणयेंन,
 जख कबि ग्वैर बणी पाखों रसिला गीत गुनगुणेंन,
 वीं पछ्याण फुंड खैति हूणा मसहूर किलै छाँ??
 हम इथगा मजबूर किलै छाँ??
 
 लोग अपणु अस्तित्व सणी झणी क्य-क्य करदन,
 भांडु नि रा त औंज्वल्योंन पाणि भरदन,
 अपणी बोलि बुल्दरों कि संख्या ब्यखुनि-फजल उन्द जाणी,
 अर हम छाँ कि कुच हथ-खुटा हि नि मरदन,
 दुन्या दयेखा साब बणनी अर हम मजदूर किलै छाँ??
 पहाड़ी ह्वैकी बि पहाड़ से दूर किलै छाँ??
 
 विजय गौड़
 मि पहाड़ी, पहाड़ म्येरि पछ्याँण
 पूर्व प्रकाशित
 सर्वाधिकार सुरक्षित....     
 http://vijaygarhwali.blogspot.com/

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जगा फर - 3

जगा फर छन
हैळ - लठयूण
निसणू -जू
कुटला -दंदला
च्योला -बंसुला
पुंगड़ा -पटला
अपणि जगा फर छन सब
पण / नि छन जगा फर
जिमदरो करण वळा


सब कुछ जगा फर छ
पण जगा फर नि छन
जगा - जगों जयां लोग
झणि वो कख
'जगा बैठयां' छन
कखि वो
कुजगा त नि बैठयां छन

मदन डुकलाण के शीघ्र प्रकाशय कविता संग्रह 'अपणु ऐना अपणी अन्वार' बटेक
छाया : शंकर भाटिया, देहरादून
sk :-)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 जगा फर - 1
 
 सब्या धाणी / अपणि  जगा फर  छन
 चुल्लो  / अनगिरो  / लटे / धुरप्वलो
 सिलवटो / जन्दरो  / उर्ख्यलो
 डवारा  / पर्या  / डाखुला
 ग्याडा / तौल्ला / बारी
 कसरया / गगरा  /तम्वळा
 अपणि  जगा फर  छन सब
 पण / नि छन जगा फर
 यूँ तैं बरतण वळा
 
 मदन डुकलाण का  शीघ्र प्रकाशय कविता संग्रह 'अपणु ऐना अपणी अन्वार' बटेक
 sk :-)Photo: जगा फर - 1 सब्या धाणी / अपणि  जगा फर  छन चुल्लो  / अनगिरो  / लटे / धुरप्वलो सिलवटो / जन्दरो  / उर्ख्यलो डवारा  / पर्या  / डाखुला ग्याडा / तौल्ला / बारी कसरया / गगरा  /तम्वळा अपणि  जगा फर  छन सब पण / नि छन जगा फर यूँ तैं बरतण वळा मदन डुकलाण का  शीघ्र प्रकाशय कविता संग्रह 'अपणु ऐना अपणी अन्वार' बटेक sk :-) height=403

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है मेरी प्यारी तेरी मेरी य्यारी।
दूर देश मा याद आँदी भारी।
तेरू गुस्सा हूण फिर मानी जाँद।
परदेश मा मेँ भारी पिताँद।
तेरी याद आँदी प्यारी तेरी याद आँद......।

त्वे बिगर यख प्यारी बाटा सूना लगदीन।
तेरा हथौकू पक्यूँ खाणूकू यख ज्यू तरसदीन।
तेरा मजाकै मुटगी की मार यख धक्का मेँ लगदीन।
तेरी चुँगनी की चसाक यख भारी भरमदीन।
तेरी याद आँदी प्यारी तेरी याद आँद.........।
By-: मनोज रावत (बोल्या)

 

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