कल्पना बहुगुणा ''हिमालय की अचल गोदी से भरी है भक्ति से जिसकी
भागीरथ सुरसरी लाये धरा पर शक्ति से जिसकी
गये सुख स्वर्ग में जिससे युधिष्ठर धर्म के ज्ञाता
रहा जो बुध के दुःख का महानिर्वाण का दाता
परम सुख धाम सदियों से रहा जो तापसी जन का
वही गढ़वाल है मेरा,
वही गढ़देश है मेरा।''
इसी हिमालय के यशस्वी कवी स्वतंत्रता सैनानी मनोहर लाल उनियाल 'श्रीमन ' की पुण्यतिथि में हिंदी भवन में उनका स्मरण कर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला गया .साथ ही उनके चित्र का भी अनावरण किया गया .
मेरे पिता होने पर कुछ मैंने भी अपनी यादे सांझा की . मेरे पिता एक स्वाभिमानी, दबंग ,अन्याय को न सहना और चाटुकारिता से परे थे . सादा जीवन उच्च विचार ही उनका जीवन था प्रकृति- प्रेम और देश-प्रेम की भावना उनमे कूट-कूट भरी थी . उनके व्यक्तित्व का स्वरूप हमें उनकी रचनाओं में बखूबी मिलता है। उन्होंने जैसा जिया वैसा ही लिखा . उनके स्वाभिमानी का परिचय इन पंकितियों में मिलता है -------
"मैं गरीब हूँ बेशक मुझमे पैसे का अभिमान नहीं है,
तो क्या अपने मानव होने का भी ऊँचा ज्ञान नहीं है।
मिट्टी की काया पर मेरी चढ़ा नहीं सोने का पानी
तो क्या मिटटी और कनक की मुझको कुछ पहिचान नहीं है।"
निरंतर कर्मशीलता का परिचय ----
"आज नहीं तो कल होगा,
ये गीत अधुरा पूरा .
एक तारे पर साँसों के तू गाये जा रे सूरा।। ."
इस तरह कई विषयों पर उन्होंने अपनी लेखनी चलाई . देश प्रेम, प्रकृति प्रेम पर , मेहनत - मजदूरी करने वाले श्रमिकों पर , किसानों पर , सामाजिक व्यवस्था पर ,भ्रष्टाचार नेताओं पर और एक क्रांतिकारी के रूप में अपनी रचनाओं के माध्यम से जनता को ललकार कर उनमे उर्जा भर देश के रक्षा के लिए लड़ मिटने को प्रेरित करते थे .
इसी तरह आज उनको स्मरण कर और उनके प्रति अपने भावों को प्रकट कर अपनी लिखी पंक्तिया एक श्रधान्जली के रूप में उनको अर्पण की------
"-याद आते हो आज भी तुम
इतने वर्षों बिछुड़ने के बाद भी तुम
बीज बोये जो तुमने जीवन में
अच्छे संस्कार और नैतिकता के
वो इतने पल्लवित और विकसित तो नहीं हुए
लेकिन आज भी अंकुरित से दिखायी देते है कहीं।
-याद आते हो आज भी तुम
इतने वर्षों बिछुड़ने के बाद भी तुम।। — at hindi bhavan, dehradoon.

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Share · January 17 at 10:28am ·