Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 527790 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कल्पना बहुगुणा ''हिमालय की  अचल  गोदी से भरी है भक्ति से जिसकी
 भागीरथ सुरसरी लाये धरा पर शक्ति से जिसकी
 गये  सुख स्वर्ग में जिससे युधिष्ठर  धर्म  के ज्ञाता
 रहा जो बुध के दुःख का महानिर्वाण  का दाता
  परम सुख धाम सदियों से रहा जो तापसी  जन का
               वही गढ़वाल है मेरा,
              वही गढ़देश  है मेरा।''
 इसी हिमालय के यशस्वी कवी स्वतंत्रता सैनानी मनोहर लाल उनियाल 'श्रीमन ' की पुण्यतिथि में हिंदी भवन  में उनका स्मरण कर उनके  व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला गया .साथ ही उनके चित्र का भी अनावरण किया गया .
 मेरे पिता होने पर कुछ मैंने  भी अपनी यादे सांझा की . मेरे पिता एक स्वाभिमानी, दबंग ,अन्याय को न सहना  और चाटुकारिता से परे थे . सादा जीवन उच्च विचार ही उनका जीवन था   प्रकृति- प्रेम  और देश-प्रेम की भावना उनमे कूट-कूट भरी थी . उनके व्यक्तित्व का स्वरूप हमें उनकी रचनाओं में बखूबी मिलता है। उन्होंने जैसा जिया वैसा ही लिखा . उनके स्वाभिमानी का परिचय इन पंकितियों में मिलता है -------
 "मैं गरीब हूँ बेशक  मुझमे पैसे का अभिमान नहीं है,
 तो क्या अपने मानव होने का भी ऊँचा ज्ञान नहीं है।
 मिट्टी  की काया  पर मेरी चढ़ा नहीं सोने का पानी
 तो क्या मिटटी और कनक की मुझको कुछ पहिचान नहीं है।"
 
 निरंतर कर्मशीलता का परिचय ----
 "आज नहीं तो कल होगा,
  ये गीत अधुरा पूरा .
 एक तारे पर साँसों के तू गाये जा रे सूरा।। ."
 
 इस तरह कई विषयों पर उन्होंने अपनी लेखनी चलाई . देश प्रेम,  प्रकृति प्रेम पर , मेहनत - मजदूरी करने वाले श्रमिकों पर , किसानों पर , सामाजिक व्यवस्था  पर ,भ्रष्टाचार नेताओं पर और एक क्रांतिकारी  के रूप में अपनी रचनाओं के माध्यम से जनता को ललकार कर उनमे  उर्जा भर देश के रक्षा के लिए लड़ मिटने को  प्रेरित करते थे .
 
 इसी तरह आज उनको स्मरण कर  और उनके प्रति अपने भावों को प्रकट कर  अपनी लिखी पंक्तिया एक श्रधान्जली के रूप में उनको अर्पण की------
 
 "-याद आते हो आज भी तुम
  इतने वर्षों बिछुड़ने के बाद भी तुम
 
 बीज बोये जो तुमने जीवन में
  अच्छे संस्कार और नैतिकता के
  वो इतने पल्लवित और विकसित तो नहीं हुए
  लेकिन आज भी अंकुरित से दिखायी  देते है कहीं।
 
 -याद आते हो आज भी तुम
  इतने वर्षों बिछुड़ने के बाद भी तुम।। — at hindi bhavan, dehradoon.''हिमालय की  अचल  गोदी से भरी है भक्ति से जिसकी भागीरथ सुरसरी लाये धरा पर शक्ति से जिसकी गये  सुख स्वर्ग में जिससे युधिष्ठर  धर्म  के ज्ञाता रहा जो बुध के दुःख का महानिर्वाण  का दाता परम सुख धाम सदियों से रहा जो तापसी  जन का वही गढ़वाल है मेरा, वही गढ़देश  है मेरा।'' इसी हिमालय के यशस्वी कवी स्वतंत्रता सैनानी मनोहर लाल उनियाल 'श्रीमन ' की पुण्यतिथि में हिंदी भवन  में उनका स्मरण कर उनके  व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला गया .साथ ही उनके चित्र का भी अनावरण किया गया . मेरे पिता होने पर कुछ मैंने  भी अपनी यादे सांझा की . मेरे पिता एक स्वाभिमानी, दबंग ,अन्याय को न सहना  और चाटुकारिता से परे थे . सादा जीवन उच्च विचार ही उनका जीवन था   प्रकृति- प्रेम  और देश-प्रेम की भावना उनमे  कूट-कूट भरी थी . उनके व्यक्तित्व का स्वरूप हमें उनकी रचनाओं में बखूबी  मिलता है। उन्होंने जैसा जिया वैसा ही लिखा . उनके स्वाभिमानी का परिचय इन पंकितियों में मिलता है ------- "मैं गरीब हूँ बेशक  मुझमे पैसे का अभिमान नहीं है, तो क्या अपने मानव होने का भी ऊँचा ज्ञान नहीं है। मिट्टी  की काया  पर मेरी चढ़ा नहीं सोने का पानी तो क्या मिटटी और कनक की मुझको कुछ पहिचान नहीं है।" निरंतर कर्मशीलता का परिचय ---- "आज नहीं तो कल होगा, ये गीत अधुरा पूरा . एक तारे पर साँसों के तू गाये जा रे सूरा।। ." इस तरह कई विषयों पर उन्होंने अपनी लेखनी चलाई . देश प्रेम,  प्रकृति प्रेम पर , मेहनत - मजदूरी करने वाले श्रमिकों पर , किसानों पर , सामाजिक  व्यवस्था  पर ,भ्रष्टाचार नेताओं पर और एक क्रांतिकारी  के रूप में अपनी रचनाओं के माध्यम से जनता को ललकार कर उनमे  उर्जा भर देश के रक्षा के लिए लड़ मिटने को  प्रेरित करते थे . इसी तरह आज उनको स्मरण कर  और उनके प्रति अपने भावों को प्रकट कर  अपनी लिखी पंक्तिया एक श्रधान्जली के रूप में उनको अर्पण की------ "-याद आते हो आज भी तुम इतने वर्षों बिछुड़ने के बाद भी तुम बीज बोये जो तुमने जीवन में अच्छे संस्कार और नैतिकता के वो इतने पल्लवित और विकसित तो नहीं हुए लेकिन आज भी अंकुरित से दिखायी  देते है कहीं। -याद आते हो आज भी तुम इतने वर्षों बिछुड़ने के बाद भी तुम।। height=238Like ·  · Share · January 17 at 10:28am ·

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दिल्ही वाली स्याली चल बाज़ार
त्वे खुनि मुल्य्लू घागरी

घागरी घुरि नी पैन दू भीना अगर मुल्य्न्दी कैपरी तो चल बाज़ार

हे निहोनिया स्याली हे निर्भाग्य स्याली कुछ कर सरम ल्याज़

हे बेक वार्ड जीजा अपनी सोच विचार आफी दगडी लिजा घागरी नी सिला दी नी सिला

मेरी मन मोहनिया स्याली चल कुरता सुलार ही सीली लै

ज़माणु मिनी स्कर्ट और टॉप कु और तू भीना चल नू चा कुर्ता सुलार

चल स्याली त्वे खुनि मुल्य्लू धोती साडी

भीना मेरी भी एक बात सुन लै कैपरी स्कर्ट टॉप मुल्य्न्दी चा तो मुलिया नी तो भूली जा आज बीती अपनी स्याली

कविता शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poem by Avaneesh Nautiyal
उत्तराखण्ड उत्णदण्ड हुयूँ चा ...

कुछ नेतों कु छन्द अयूँ चा ....

जन्ता किलसेणी धार खाळ ....

यून्कू समाचार बंद कयूँ चा ....

मिन पूछी सिपै जी तै ..

कख छी हमरा नेता जी ...

वेन बोली नेता जी त..

चिन्ता करणु दिल्ली जयूँ चा ...

मिन बोली....

आपदा ऐ छे पिछला साल ..

कख छ हमारा बाँठों माल ...

वेन बोली अच्छा अच्छा ....

जाँच टीम मौका पर भिज्युं चा ....

जाँच होली रिपोर्ट आली ....

चिन्ता ना कर घौर जा ...

नेता जी कू तुमारा बाना ....

बथ्यरी चिन्ता कर्युं चा ...

मिन बोली इन नि बोला ..

चुनौ माँ मेरु नेता जी तै वोट दियुं चा ...

त एक वोट माँ तेरु नेता जी तै मोल लियुं चा ...??

अर कौन सी तेरु वोट फोकट माँ दियुं चा ...

दारू अर मुर्गा त बेटा तेरु भी खूब उड़यूँ चा ....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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क़ाठन डाडा से बोली
ज़िन्दगी की छवी बात मा एक गीत मा लौला
एक भला गीत बणोला
वी गीत मा एक बात तेरी होली एक बात मेरी
वी गीत मा एक बात मेरा सुख दुख की
एक बात तेरा सुख दुख की
वी गीत मा तेरी खैरी भी लौला मेरी खैरी भी लौला
वी गीत माँ एक हैके की छवीबात लौला
डाडान बोली काठ से लाटा धरतल मा किलै बटणू चै तू
तू भी माटो ढेर चा मै माटो ढेर छोऊ
हमरा सुख दुख एक छन लाटा
हमरी पीड़ा भी एक चा
तब गीत मा अपणी छवीबात अलग अलग किलै लाण लाटा
हम दुवी माटा का ढेर चा
हम दुवी एक छा धरातल मा नि बाटण लाटा

रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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फिक्स !!!
 
 टिपड़ा मिलण फर
 हमरु गौं कु घल्तण्यानन्द
 बणिकि बगत्वार
 एक दिन चलिग्या नौनी क घार
 
 च्या-पाणि क बाद
 बात पक्की करे ग्यायी
 अर दगडी  समधि क समणि
 अपड़ी समस्या यन रखे ग्यायी
 
 कि समधि जी!
 द्वी कुट्मु कु एक कुटुम बणनू च
 कखि तुम फर लोड त नि प्वडनू च
 ग्येणा डमडमै बणयाँ
 अलमारी का दगड़ फ्रीज़ भी दियाँ
 
 हया !
 रेडू -घडी त गरीब आदिम भि देणु च
 नौना कि चिट्ठी अयीं च
 कि डबलब्यड का दगड़ सोफासेट भि चैणु च
 ब्वनु छो कि स्कूटर चलाण बि आ जान्द
 
 म्यारा लूंगी कि आदत च,
 कि ब्लैक एंड वाइट नि दयखदु
 अर बिना टैपरिकॉर्ड  कु  वु  रै  नि सकदु
 
 मूल बात यी च
 बकै हमरी क्वी डिमांड नी च
 पर भै !
 
 एक बात मी भूल ग्या छायी
 कि मिल कैश कि बात नि कायी
 तुम जणदा छां  कि मयारू लूंगी /जनि-कनि नि च
 दिल्ल्ली कि गाड़ियों मा ब्य़चणु रैन्द बिक्स
 अब यन बथावा कि
 नौनी क नाम फर कथगा कर्यूं च फिक्स
 
 समधि क चुप रैण फर
 घल्तण्यानन्द तैं गुस्सा आयी
 अर वैल देलिम आकी धमकी दयायी
 
 कि समधणी जल्दी दे जबाब
 नथरी बात ह्व़े जैली ख़राब
 मैं खतरनाक खानदानी आदमी छौं
 लड़का कु बाप छौं
 इलै सैइ अर साफ़ छौं
 
 वरना लड़की कैंसिल ह्व़े जैली
 नाक कटेली त तुमरी कटेली
 अर नाक रैली त तुमरी  रैली
 
 समधणी ल इथगा सूंणिकि
 गिच्चा ल कुछ नि ब्वालो
 अचणचक खुट्टा कु निकाल
 जैकु नंबर छौ सिक्स
 अर तुरंत समधि क मुंड फर
 कैर दे फिक्स।
 
 हरीश जुयाल 'कुटुज़' का कविता संकलन 'खिगताट' बटेक
 sk:)

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Poem by Avaneesh Nautiyal
उत्तराखण्ड उत्णदण्ड हुयूँ चा ...

कुछ नेतों कु छन्द अयूँ चा ....

जन्ता किलसेणी धार खाळ ....

यून्कू समाचार बंद कयूँ चा ....

मिन पूछी सिपै जी तै ..

कख छी हमरा नेता जी ...

वेन बोली नेता जी त..

चिन्ता करणु दिल्ली जयूँ चा ...

मिन बोली....

आपदा ऐ छे पिछला साल ..

कख छ हमारा बाँठों माल ...

वेन बोली अच्छा अच्छा ....

जाँच टीम मौका पर भिज्युं चा ....

जाँच होली रिपोर्ट आली ....

चिन्ता ना कर घौर जा ...

नेता जी कू तुमारा बाना ....

बथ्यरी चिन्ता कर्युं चा ...

मिन बोली इन नि बोला ..

चुनौ माँ मेरु नेता जी तै वोट दियुं चा ...

त एक वोट माँ तेरु नेता जी तै मोल लियुं चा ...??

अर कौन सी तेरु वोट फोकट माँ दियुं चा ...

दारू अर मुर्गा त बेटा तेरु भी खूब उड़यूँ चा

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जगा फर - 1

सब्या धाणी / अपणि जगा फर छन
चुल्लो / अनगिरो / लटे / धुरप्वलो
सिलवटो / जन्दरो / उर्ख्यलो
डवारा / पर्या / डाखुला
ग्याडा / तौल्ला / बारी
कसरया / गगरा /तम्वळा
अपणि जगा फर छन सब
पण / नि छन जगा फर
यूँ तैं बरतण वळा

मदन डुकलाण का शीघ्र प्रकाशय कविता संग्रह 'अपणु ऐना अपणी अन्वार' बटेक
sk :-)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगा फर - 3

जगा फर छन
हैळ - लठयूण
निसणू -जू
कुटला -दंदला
च्योला -बंसुला
पुंगड़ा -पटला
अपणि जगा फर छन सब
पण / नि छन जगा फर
जिमदरो करण वळा


सब कुछ जगा फर छ
पण जगा फर नि छन
जगा - जगों जयां लोग
झणि वो कख
'जगा बैठयां' छन
कखि वो
कुजगा त नि बैठयां छन

मदन डुकलाण के शीघ्र प्रकाशय कविता संग्रह 'अपणु ऐना अपणी अन्वार' बटेक
छाया : शंकर भाटिया, देहरादून
sk :-)

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सुददी - सुदि खामा -खाम !

न तू राधा
न मि श्याम
तैबि दुन्याम
फैले हाम
सुददी - सुदि
खामा -खाम

न मि स्वाणु
न तू बांद
तैबि प्यारु
हमतैं चाम
सुददी - सुदि
खामा -खाम

त्वेफर बुद्धि
न मीतैं ज्ञान
तैबि बन्याँ
हम विद्वान
सुददी - सुदि
खामा -खाम

तिन करे कब
मेरो ख्याल
मि किलै म्वरु
तेरा बान
सुददी - सुदि
खामा -खाम

न मितै बाडुली
न त्वेतैं पराज
तैबि आन्द
तेरी याद
सुददी - सुदि
खामा -खाम

न त्वेतैं फैदा
न मीतैं लाभ
जिन्दगी कनि
कन ब्योपार
सुददी - सुदि
खामा -खाम

जिन्दगी हमरि
हवा - बथां
तैबि हमतैं
कतगा गुमान
सुददी - भुद्दि
खामा -खाम

ह्वेगे रुमक
अछ्लेगे घाम
जिन्दगी सरके
सर-सराक
सुददी - सुदि
खामा -खाम

मदन डुकलाण के शीघ्र प्रकाशय कविता संग्रह 'अपणु ऐना अपणी अन्वार' बटेक
sk :-)

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बोतल विमोचन

"बस भै साब मेरी कैपिसिटी इतगे छ"
छोड़ यार ! तू बि कुछ नि छे'
न भै साब मिथै लगि गयाई'
अबे जादा नखरा नि कैर, ल्या ग्लास इनै धैर '
'मि पींदु नि छो पर आपकि इज्ज़त करनू छो '

(हरीश जुयाल 'कुटुज़' का व्यंग संग्रह 'khubsaat' बटेक )
s

 

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