महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी की कविता !!!
चुसणा !
कविता मेरी सरि चुसणा फर,
ध्यान लगाओ चुसणा मा ।
कामकाज तैं कगरवट धरि दद्यो,
सोच फिकर तैं चुसणा मा ।।
चुसणा आंदा काम हमारा,
जाणा तक तैं हूणा से ।
सुणदा छो ता टक लगे की,
नी सुणदा ता चुसणा से ।।
बड़ों फरक चा ये चुसणा का,
भेद समझणा सुणणा मा ।
कना कनों की मौ चलि गैना,
चुसणै चुसणम चुसणा मा ।।
राज च चुसणौ सरा जाग जगत मा,
करता धरता चुसणा ही ।
कोर्ट कछैड़ी दफ्तर जतगा,
मुहर च लगदी चुसणा की ।।
पोणै जै कै कन क्या दगडयों,
रस कस सबि जिबिल चखणा ।
नकद नारायण कीसुंद जाला,
कपली फर लगणा चुसणा ।।
पाणिग्रहण की आड़म दगडयों,
छिन पकडान्दा चुसणा ही।
ब्यो का पैथर नौबत आंदा,
हम तैं यानै चुसणा की।।
गुरु द्रोण बि मनदा छाया,
विकट शक्ति तैं चुसणा की।
एकलव्य से गुरु - भेंट मा,
मांगे उन चुसणा ही।।
चुसणै कविता लेखी पुंगडम,
रैग्यों डंकुला चुसणा मा।
आई बरखा रुझि गै़ कागज,
कविता बि चलि गै चुसणा मा।।
(मौल्यार प्रकाशन, नयी दिल्ली बटेक प्रकाशित महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी का काव्य संग्रह अंज्वाल से सादर उधृत )