Author Topic: Poems Written by Shailendra Joshi- शैलेन्द्र जोशी की कवितायें  (Read 98960 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
February 13
एक सैड हिन्दी इंग्लिश चा
एक सैड गढ़वलि खासणी चा
मै कै हौर नि
तुमरि घौर बात करणु छौ
छवी कब गप्प
गप्प कब गॉसिप
बण ग्येनी
तुम तै क्या
कै तै बि पता नि चली
जन बोई कब मम्मी
मम्मी कब मॉम हवेगे
जन बुबा कब पापा
पापा कब डैड ह्वेगे
तुम ही बोला पता चलि
सैद बदलदु समाज येथै हि बोल्दन
उन बि परिवर्तन समाजों नियम चा
पर ये परिवर्तन हौर कुछ नि ह्वे
गढ़वलि हर्ची गै
रचना। .......शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
February 13
प्रेम मूरत है तू
राधा मीरा प्रेम दीवानियों सी
सच्ची सुरत है तू
खामोश सी भी है तू
गुमसुम सी भी है तू
छुईमुई सी कोमल भी है तू
दिखती कभी एक झलक पर
रुई सी फुर हो जाती है तू
बनाने वाले ने भी क्या बनायी है तू
कुदरत की सबसे नयाब
खुबसुरत तोहफा है तू
अनगिनत तारों के बीच अकेला चाँद है तू
हुस्न के बाज़ार मे ,
सबसे अलग किस्म है तू
जादुई तिलिस्म है तू
तुझे पाने का कोई
खुलजा सिम सिम जैसा दरवाजा होता
क्योंकि तू मेरा खजाना है
बस बस खुलजा सिम सिम जैसा दरवाजा होता
तो मै ख़ुशी के मारे परवाज करता
रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
February 14
सुखे मन मे
गीली बारिश की आस है
मन की मिटटी मे
गिरे बारिश की फुहार
खुश्बु उड़े मन की मिटटी
की फिजा मे
रे मन रे मन भिगजा
आज बारिश
नाच फिर मन मोरा
छम छम आज बारिश मे
रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
February 14
दास्तान ए इश्क़
कब हुआ शुरू
ये बात तो
बहस की है जरा
लेकिन खेल
सारा नज़र का है
चेहरे मुस्कुराहट पहले आयी
या शर्म की लाली
ये बात तो
बहस की है जरा
लेकिन खेल
सारा नज़र का है
दुपट्टा पहले सरका
या झुकी आँखे पहले उठी
ये बात तो
बहस की है जरा
लेकिन खेल
सारा नज़र का है
उसके चेहरे के पसीने
लतपत रुमाल मे था
प्यार का करार
जो रख दिया था
रेस्टोरेंट कि मेज मे
या राह मे गिरी चुनरी
पर था प्यार का पैगाम
ये बात तो
बहस की है जरा
लेकिन खेल
सारा नज़र का है
रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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By Sunil Negi
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Shailendra Joshi is one such exemplary Poet of Garhwali and Hindi whose every poem carries a credible message for Uttrakhand and the Indian Society. You give Shailendra a hint and you'll get a fantastic product in the shape of a passionate poetry. Shailendra, I am sure possesses a bright future as an intellectual Poet of Garhwali and Hindi and will go a long way in his life. I am sure the time is not far when his poetries and writings will fetch him tremendous amount of societal credibility and will be counted in the list of popular and adorable celebrities of Uttrakhand, though in my personal opinion he is even today a personality of the sorts in the field of writing poems and lyrics. Good luck to him and wih God to give him progress and prosperity in his field of writing.
Sunil Negi, President, Uttrakhand Journalist Forum

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
11 hours ago · Edited
दिदा दागी बि चा
दिदा बागी बि चा
और बणयु सबसे भलु
आज बीजेपी मा
भोल बणगी कांग्रेसी
परसी नितरसी बितेनी
सपा बसपा मा
आज बणगी दिदा निर्दली
सुधारक बणयु समाज कु
उठायु बीड़ा नेतागिरी कु
गिच्ची भितर कुछ भैर कुछ
छाई दिदा बडू आली जाली
भैर इमानो झुटू स्वांग
भितर बिटी चा दिदा कपटी बैमान
रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
April 27 ·

शिलान्यास के पट्टो मे
नाम गुदवाने वाले पठठे
जनता के दिल मे राज नहीं करते
भले कुछ दिन पिछवाडे को
कुर्सी का आराम मिल जाये
जनता की जब मार पडे
पीड़ा हरने वाला बाम भी फिर ना मिले
रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
April 26
मोरी पतली कमर
पतली पतली पानी पतली
कागज से भी पतली
मोरी पतली कमर
हवा मे लहराये मोरी पतली कमर
जवान छोरों के जिगर मे आग लगाये
मोरी पतली कमर
कभी बलखाये
कभी झुमयाये जामने को
ऐसी नाजुक ऐसी चंचल
मोरी पतली कमर
रचना शैलेन्द्र जोशी

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Shailendra Joshi
April 25

चाँद खो गया है
आकाश अस्मित है
तारे सब मजनू है
किसी जुगनू को रास्ता
क्यों बताये
ये जानते है
आसमान मे
चाँद की डेटिंग कब है
आखिर तारे है चमकते
जुगनूओं से भयभीत विचलित होते नहीं
रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
April 19 · Edited
सुबह सुबह
अखबार पढे न पढे
पर अख़बार को पलटना
अच्छा लगता है
शायद ये पुरातन
आदिम आदत है
जो छुटती नहीं ऐसे
इस को ही कहते है
मानवीय आदत
जो होती है अधभुत
रचना शैलेन्द्र जोशी

 

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