Author Topic: Poems Written by Shailendra Joshi- शैलेन्द्र जोशी की कवितायें  (Read 98995 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poiet Shailendra Joshi
July 22
पानी की पीड़ा
पीड़ा मे पानी
तरसा गला एक बूंद पानी
पानी की पीड़ा
पीड़ा मे पानी
प्रकृति प्रक्रिया थी जो पिघलते थे
हिमालय से गिलेशियर गल गल
गंगा बहे घर घर पहुंचे पानी
ये सब हो जाये गी बीती कहानी
आप्राकृतिक हो गया मानव
धर लिया रूप उस ने दानव
काट डाले वन कैसे करे झरने छन छन
मन मे रह गया पानी स्रोत सब सुखे
विश्व शव हो रहा पानी
बचे कैसे पानी अभी तो घर मे थी लड़ाई
तैयार खड़ा विश्व युध पानी
मुखडे से पानी छीन लेगे पडोसी
ज़रूरत है सब को पानी
जाहा देखेगे पानी पागल हो जायेगा आदमी
तस्वीर मे भी देखेगे नदी झरने सागर
फाड़ देगा चीर देगा
दीवाना हुआ जो पानी के लिये आदमी
पानी पानी सारे कषट कालेष घुम रहे है पानी
सारी सुख संपदा है पानी
रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poiet Shailendra Joshi
July 15
एक क्लिक मा नाता बणदा
एक क्लिक मा नाता टूटदा
नया जमाना मा दगडू
दग्डया येथै ही बोल्दा
हथगुलियो मा सरकिणी
सर सर टच की दुन्या
टच ह्वैकी बि
अनटच सी स्या लोली दुन्या
अफ्हू रंग मा रंगी रांदी
सेल्फी दुन्या
मुखड़ी का म्यैला मा
ठगी कौथिगेर सी लगदी
स्या लोली क्लिक की दुन्या
रचना......................शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poiet Shailendra Joshi
July 13 · Edited
चाँद से बतियाने का मजा रात मे है
ये बात तारे जानते है
पर घर मे जुगुनू और भी बहुत है
चाँद से बतियाने को
तारो को घर से निकलना पड़ता है
घर पर चाँद से डेटिंग हो सकती नहीं
तारे सब आवारा है
लेकिन संस्कार भरे इनमे बहुत
जानते है चाँद से बतियाना है
तो तारो को घर से निकलना पड़ेगा
वो लड़के जानते है
वो खुबसुरत लड़की कब नहाके
बालो को झटकने के लिये
छत पर कब आयेगी
इसलिये वो किताबो को
लेकर छत पर टहलते है
तारे सब होश्यार है जानते है
घर से चाँद की चाँदनी देखेगी नहीं
इसलिये चाँद से बतियाने को
तारो को घर से निकलना पड़ता है
रचना .......................शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poiet Shailendra Joshi
July 29
छत मे आना गोरी ईद ए चाँद बनके
टूट जा ये रोजा आज तू जे देख के
हम तो तेरे दिदार के लिए
तरस गये है तेरे प्यार के लिए
तीर ए तरकस चुबा बैठे है
दिल ए गुलजार मे
गोरी तेरे प्यार मे
दर्द ए दिवार पर सर टिकया है
घुटन कमरे मे गम ए आसू बहा ये
तेरे प्यार मेईद है गले मिलो मेरे यार
भूल जा ओ तुम लड़की हो हम लडके है
ईद है बस गले मिलो मेरे यार
टूट जा ये रोजा आज तू जे देख के
रचना .... शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poiet Shailendra Joshi
July 23 · Edited
कविता----------------- शैलेन्द्र जोशी
भै नरु
हरु करियु भारु करियु त्वेन गढ़ गीतों तय भै नरु
हे त्वे जनि गितैर नि ह्वे सक दू फेर
गढ़ कवी गढ़ रफ़ी गढ़ कविन्द्र हे नरेन्द्र सिंह नेगी
सब्दो कु कोठार चा गढ़वाली भासा खुनी मौलियार चा
भै नेगी महान छाया गढ़ गीतों की जान छ्या
गीतों की गंगा सदनी तयरा मुख बीटी बग दी
हैसदी हैसदी गा दी गीत मुड मा टोपला हाथ मा बाज़ा
बहुत स्वाणु लग दू जब गांदी जब कुई पहाड़ी गाना
जब तू ढौल मा ऐकी ढौलैर हुवीकी
यु गीतों की छालार बैकी डैरो डैरो पौंच जादी
उत्तराखंड की समस्या मा रचय बस्य तयारा गीत
त्यरा नयु कैसीट जब बाज़ार मा अन्दु ता धरा धडी बिक जादू
त्यरा नया गीतों की जग्वाल मा लूग रैदन
जनि गीत बाज़ार मा अदन ता समलोणीया ह्वे जादन
कालजय गीतों कु रचनाकार गढ़वाली गीतों कु सिंगार
मखमली भोंन कु जादूगर भै नेगी
हिवाले संसकिरती तय हिवाला ऊँचे देंन वाला अपणु तोर कु कलाकार
गढ़ गीतों कु हीरा भी तू छे नवरतन छे तू गढ़ कु गढ़ रतन छे तू
बात बोदू गढ़ की मन की गढ़ गौरव छे तू
नौसुरिया मुरली जनि सुरीली गौली छा तेरी
गंगा जनि शीतलता चा तेरा गीतों मा
मायालु गीत तेरा मायालु भोंण चा
गीतों कु बाट की लेंन पकड़ी की गीतों का बटोई बणी की
गीतों का बाट ही बणी ग्या
ये मुलुक का सुर सम्राट बनी ग्या
गीतों कु पियूष जुगराज रया सदनी संसकिरती पुरुष

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poiet Shailendra Joshi
July 22
पानी की पीड़ा
पीड़ा मे पानी
तरसा गला एक बूंद पानी
पानी की पीड़ा
पीड़ा मे पानी
प्रकृति प्रक्रिया थी जो पिघलते थे
हिमालय से गिलेशियर गल गल
गंगा बहे घर घर पहुंचे पानी
ये सब हो जाये गी बीती कहानी
आप्राकृतिक हो गया मानव
धर लिया रूप उस ने दानव
काट डाले वन कैसे करे झरने छन छन
मन मे रह गया पानी स्रोत सब सुखे
विश्व शव हो रहा पानी
बचे कैसे पानी अभी तो घर मे थी लड़ाई
तैयार खड़ा विश्व युध पानी
मुखडे से पानी छीन लेगे पडोसी
ज़रूरत है सब को पानी
जाहा देखेगे पानी पागल हो जायेगा आदमी
तस्वीर मे भी देखेगे नदी झरने सागर
फाड़ देगा चीर देगा
दीवाना हुआ जो पानी के लिये आदमी
पानी पानी सारे कषट कालेष घुम रहे है पानी
सारी सुख संपदा है पानी
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Poiet Shailendra Joshi
July 20 · Edited
आपके लोकप्रिय व्यंग सम्राट नरेन्द्र कठैत जी का नया व्यंग संग्रह ''नाराज नि हुया " बहुत जल्द बाजार मे उपलब्ध होगा

पुस्तक के अन्दर की झलकिया

कागज पर बातै रफ़्तार पकड़नू तै हम ''अर्धविराम ,अल्पविराम बि लगौंदा पर कै बि 'अर्धविराम ,अल्पविराम मा बात तै थम्ने हिम्मत नि ! या इन बि बोल सकदा अर्धविराम ,अल्पविराम से क्वी बात थम्ये हि नि लोग त इख तक ब्व्लंदन कि जै दिन क्वी बात अर्धविराम ,अल्पविराम मा अटकगि समझ ल्या बात लटकगि ब्वनौ तै त अर्धविराम अर ,अल्पविरामा बाद पूर्णबिराम बि अपणी पूरी ताकत झौक दैंदु पर बात कै दौ , पूर्णविराम तै बि लांघी ऐथर बढ़ जांदी !

गड्वाली भासा मा “खुनौ तै ल्वे’’ बि ब्वल्ये जांदू यि बात तै कु लाटू नि जणदू होल्लू ! पर गड्वाली भासा बीटी ल्वे वुनि कम होणु च जन हमारि जुबान बीटी ब्वे ब्वनु हरचणु च ! दिखौण क्या च ,साफ़ झलकुणु च कि जै सरेल मा ल्वे दंन्कुणु चैणु छौ वे मा खुनौ दौरा प्वडना च ! , वे मा खुनौ क्वी दोस नि ! खून त अपड़ो काम कन्नै लग्यु च ! दरसल जब तक हम तै अपड़ा ल्वे कि कीमतों पता नि चल्द तब तक खूनन ही काम चलौंण प्व्डलू !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Poiet Shailendra Joshi
July 15
एक क्लिक मा नाता बणदा
एक क्लिक मा नाता टूटदा
नया जमाना मा दगडू
दग्डया येथै ही बोल्दा
हथगुलियो मा सरकिणी
सर सर टच की दुन्या
टच ह्वैकी बि
अनटच सी स्या लोली दुन्या
अफ्हू रंग मा रंगी रांदी
सेल्फी दुन्या
मुखड़ी का म्यैला मा
ठगी कौथिगेर सी लगदी
स्या लोली क्लिक की दुन्या
रचना......................शैलेन्द्र जोशी

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नेगी दा का जन्म दिवस मा मिल भी मने प्रेरणा दिवस डाला लगैकी...................शैलेन्द्र जोशी

तिन लगे डाली गीतू की
तिन लगे डाली बिचारो की
तिन लगे डाली संस्कीर्ति की
तिन लगे डाली लोकभासा की
आन बान शान की
ऐशू लगाला जलमदिबस मा
त्येरा नौकी डाली नेगी दा हम भि

रचना .........शैलेन्द्र जोशी

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Poiet Shailendra Joshi
 
छत मे आना गोरी ईद ए चाँद बनके
टूट जा ये रोजा आज तू जे देख के
हम तो तेरे दिदार के लिए
तरस गये है तेरे प्यार के लिए
तीर ए तरकस चुबा बैठे है
दिल ए गुलजार मे
गोरी तेरे प्यार मे
दर्द ए दिवार पर सर टिकया है
घुटन कमरे मे गम ए आसू बहा ये
तेरे प्यार मेईद है गले मिलो मेरे यार
भूल जा ओ तुम लड़की हो हम लडके है
ईद है बस गले मिलो मेरे यार
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रचना .... शैलेन्द्र जोशी

 

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