सैरा फागुण बीती
तीन होरी नी खेली छोरी
छलड़ी मा त ना न कर
कना कना हुलियार तेरा चौक ऐनी
फागुण होरी मा कना कना गीत लै गैनी
तीन कैकी नी सुणि
द्वार मोर् ढकीक भीतर लुकी राइ
तेरी मुखड़ी की सौ छोरि
तेरी मुखड़ी बिना घौर नि ज़ोऊ
त्वे दगडी होरी खीलने की मेरा जूकुडा भारी आस
नि कर सुवा मै निरास
पिचकारी भरी लायू
अबीर गुलाल भरी हात
नि ऐली भार रंग जालु बेकार
रचना शैलेन्द्र जोशी