वो चेहरे मे थोड़ी खिल खिल रचना शैलेन्द्र जोशीby
Shailendra Joshi (
Notes) on Friday, April 19, 2013 वो चेहरे मे थोड़ी खिल खिल
वो शर्म से होठों मे हाथ लगाना
उंगली मे उंगली डालकर दोनों हाथो को मसलते हुए चलना
वो तेरा शाम को अपने आंगन की दीवार पे हाथ रखकर
थोडा ऐड़ी ऊँचा उठाकर वो हिलना
वो तेरा बालों का बिगड़ना
फिर बालो का बनाना
वो तेरी ख़ामोशी
वो तेरी मदहोशी
बांध चुकी है मुझे कल्पनाथा जो के धागों से
मेरी कविता बन आयी है तू
बूटा बूटा कर पौधा बन आया है
रिमझिम बारिश थी जो मूसला बन आयी है
जो तिनका था वो ज़ाहा बन आया है
वो थोड़ा थोड़ा वो थोड़ा जो अब ज्यादा बन आया है
बना चुकी मुझे अंगुली अंगूठी बन आयी है तू
तू अनजानी सुंदरी थी
पर स्वप्नों मे आकर स्वप्नसुंदरी बन आयी है तू
रचना शैलेन्द्र जोशी