Author Topic: Poems Written by Shailendra Joshi- शैलेन्द्र जोशी की कवितायें  (Read 43620 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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माना   मेरा   रकीब मुझसे दबंग है

पर क्या मेरी चाहत उससे कम है

वो आ भी चाहे कितना करीब तुम्हारे

पर मुझे दूर ना कर पायेगा

वो दिल देगा तुम्हे अपना

पर तुम क्या दोगी

क्योंकि तुम्हारा दिल तो है पास मेरे

रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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काली घघरी मा लाल चदरी भली लगी हो

अन्वार मा सजीली बिंदी भली लगी हो

संतो कू पंथ मायादारो तै रैबार रंत

सबु तै रितु बसंत भली लगी हो

ऊँचा डंडियो मा बुरांश पंछियो मा हिलांश

सुबैरी मा सूरज राती मा चाँद भली लगी हो

हॊसियो तै प्रेम कू बाट

नातियो कू छिबड़ाट दाणा सायानो तै भली लगी हो

प्यारु गढ़वाल रौतैलू कुमाऊ

दोल दगडी ढमौ भली लगी हो

सजीली धजीली मा गोरी मुखडी

कुंगली माया मा बसुंली की भौंण भली लगी हो

रुड़ी दीन्यो मा छैल

हुन्दी दीन्यो मा घाम

दूर डाँडो माँ अछेदु घाम

क़ाठो मा सर्मयलि जून भली लगी हो

रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चश्मा रचना शैलेन्द्र जोशी

जब आँखों मे आ जाता शारीरिक विकार

आंखे दे देती दुत्कार

तब तो सुख का एक ही आधार

वो है अपना चश्मा यार

देता आँखों को माँ जैसा दुलार

तभी कहलाता चश्मा मेरे यार

अगर चश्मा नहीं होता होता यार

विकारी आंखे यत्तीम होती मेरे यार

आँखों की माँ है चश्मा तभी कहलाता चश्मा

आँखों देता माँ जैसा प्यार

तभी कहलाता चश्मा मेरे यार

रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From - Shailendra Joshi


ऋतू बसंत छाया है
धरती उगल रही है फूल
कैसी सुंदर ऋतू बसंत
मिटी धूल मे भी सुगंद
हिर्दय मे छाया है ऋतू बसंत
धुप हो गयी कुछ अब गुनगुनी
रंगों से रंगी है धरती
खेल रही है होली रंग रही तन बदन
छाया सारा जीवन ऋतू बसंत

रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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वो चेहरे मे थोड़ी खिल खिल  रचना शैलेन्द्र जोशीby Shailendra Joshi (Notes) on Friday, April 19, 2013  वो चेहरे मे थोड़ी खिल खिल

वो शर्म से होठों मे हाथ लगाना

उंगली मे उंगली डालकर दोनों हाथो को मसलते हुए चलना

वो तेरा शाम को अपने आंगन की दीवार पे हाथ रखकर

थोडा ऐड़ी ऊँचा उठाकर वो हिलना

वो तेरा बालों का बिगड़ना

फिर बालो का बनाना

वो तेरी ख़ामोशी

वो तेरी मदहोशी

बांध चुकी है मुझे कल्पनाथा जो के धागों से

मेरी कविता बन आयी है तू

बूटा बूटा कर पौधा बन आया है

रिमझिम बारिश थी जो मूसला बन आयी है

जो तिनका था वो ज़ाहा बन आया है

वो थोड़ा थोड़ा वो थोड़ा जो अब ज्यादा बन आया है

बना चुकी मुझे अंगुली अंगूठी बन आयी है तू

तू अनजानी सुंदरी थी

पर स्वप्नों मे आकर स्वप्नसुंदरी बन आयी है तू

रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi वो चेहरे मे थोड़ी खिल खिल
 
 वो शर्म से होठों मे हाथ लगाना
 
 उंगली मे उंगली डालकर दोनों हाथो को मसलते हुए चलना
 
 वो तेरा शाम को अपने आंगन की दीवार पे हाथ रखकर
 
       थोडा ऐड़ी ऊँचा उठाकर वो हिलना
 
 वो तेरा बालों का बिगड़ना
 
 फिर बालो का बनाना
 
 वो तेरी ख़ामोशी
 
 वो तेरी मदहोशी
 
 बांध चुकी   है मुझे कल्पनाथा जो  के धागों से
 
 मेरी कविता बन आयी है तू
 
 बूटा बूटा कर पौधा बन आया है
 
 रिमझिम बारिश थी जो मूसला बन आयी है
 
 जो तिनका था वो ज़ाहा बन आया है
 
 वो थोड़ा थोड़ा वो थोड़ा  जो  अब ज्यादा बन आया है
 
 बना चुकी मुझे अंगुली अंगूठी बन आयी है तू
 
 तू अनजानी सुंदरी थी
 
 पर स्वप्नों मे आकर स्वप्नसुंदरी बन आयी है तू
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासुposted toShailendra Joshi
जोशी जी,
 
 आप सृजन करते रहो,
 अनुभूति व्यक्त करते रहो,
 कलम से मन की बात कहते रहो,
 पर्वतों से अतीत पूछते रहो,
 देवताओं की धरती उत्तराखंड,
 जन्मभूमि है तुम्हारी,
 गर्व करते रहो......
 
 लिख दो काल के कपाल पर,
 जो देखते हो, कल्पना करते हो,
 शैलपुत्र सोचना क्या,
 रचना संसार अंतहीन है......
 
 बद्रीविशाल की आप पर,
 कृपा रहे,
 मिलता रहे माँ सरस्वती का,
 आशीर्वाद आपको,
 मेरा कविमन तो यही कहे....
 
  -जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
 18.42013
 jjayara@yahoo.comLike ·

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ज़मीन की सच रचना शैलेन्द्र जोशीby Shailendra Joshi (Notes) on Wednesday, April 24, 2013 at 10:49amदुंगा कुंगला ही ज्यू होंदा
स्याल भुक्का नी मोरदा
पाड़ मा जीबन सौगु ही ज्यू होंदा
नौन्याल देस नी पैट दा
ज़मीन की सच जणदा तुम त
सैरा पुंगड़ा डुटयाल नि बसदा
नेतो की सच जांणी की भी हर बार किल्है ढगदा
भोल की आस मा हम
हर कै पर विस्वास किल्है कर दा
जुकुड़ी की सच जणदा तुम त
मुखुडी कू रंग देखी नी ढगदा
रचना शैलेन्द्र जोशी   

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Shailendra Joshi दुंगा कुंगला ही ज्यू होंदा
 
 स्याल भुक्का नी मोरदा
 
 पाड़ मा जीबन सौगु ही ज्यू होंदा
 
 नौन्याल देस नी पैट दा
 
 ज़मीन की सच जणदा तुम त
 
 सैरा पुंगड़ा डुटयाल नि बसदा
 
 नेतो की सच जांणी की भी हर बार किल्है ढगदा
 
 भोल की आस मा हम
 
 हर कै पर विस्वास किल्है कर दा
 
 जुकुड़ी की सच जणदा तुम त
 
 मुखुडी कू रंग देखी नी ढगदा
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी

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Harshpal Singh Negi
posted to
Shailendra JoshiApril 18Aapki rachnao ka mai bada fan hun aur subhkamnaye deta hun ki agey bhi aap aise hi    likhtey rahengey ...Like ·

 

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