""जीर्णोउद्धारकि जरूरत पड़ी गे उकणी, जो हमार बूब बुडबूबूल बने रौछी थान ..
गढ़- कुमाँउ समाज कै आघिन बढाहै,
धर पोथिया गणेशम दूब ..
स्वैणामें कै गयी "शेर दा" ...
मानि लियो रे "अनपढ़" कें बूब ....
पहाडाकै ह्या तुम ,पहाड़ ले रया तुम ,
म्यार उत्तराखंडक तुम छा लाल ,
देश विदेश में हमार भाई बैणी,
फैली रई देखो गदुवैकी झाल ,
आज देश विदेशाकी सैर करणछा ,
पर पहाड़क ले धरो हो ध्यान ,
जीर्णोउद्धारकि जरूरत पड़ी गे उकणी,
जो हमार बूब बुडबूबूल बणे रौछी थान ..
अब उत्तराखंडक पाख भली छै दियो,
गढ़- कुमाँउ दीये छै भाल,
जोड़ दियो इनुकै बीच दोशानाम,
करिदियो तुम अब यस कमाल.
सार-सार नेताउक बांस बनाओ,
दादर है मस्ते छै जनताक लाल,
धुरी बाँधी दियो गैरसैण पारी,
उत्तराखंड कै करी दियो खुशहाल .
त्रिभुवन चन्द्र मठपाल