Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 147705 times)

Bhishma Kukreti

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चबोड़ इ चबोड़ मा 'घचकाण'


                                     जिंदा  गढ़वळि साहित्यकारों  हंत्या पूजै 

 

                                                भीष्म कुकरेती

 

पुछेर (थाळि माँगक पील चौंळ सुंगद ) -  ओम नमो गुरु को आदेस .... आप पौड़ी बिटेन खबर सार का सम्पादक विमल नेगी छन ?

विमल नेगी - जी माराज

पुछेर, बक्की ( घुण्ड हिलैक)  - आप पर भगवती प्रसाद नौटियाल जीक  हंत्या लगीं च.

विमल नेगी - पण माराज मी ह्वाई नेगी अर भगवती प्रसाद जी ह्वाई नौटियाल. अर  हंत्या त परिवारौ  लोगूँ आन्द

पुछेर, बक्की - आप पर साहित्यिक हंत्या लगीं च. आप सौब लोग साहित्यिक कुटम का छंवां

विमल नेगी - पण माराज हंत्या त मोर्याँ  लोगूँ आन्द. अपण नौटियाल जी त क्या सुन्दर छन , बिलकुल तंदुरस्त छन . अचला नन्द जीक दगड गढवाली शब्दकोश प्रकाशन कि तैयारी करणा छन.   पण माराज यि नै किस्मौ हंत्या कैन पुजण . कख छन जागरी जु ज़िंदा मनिखौ हंत्या पूजन?

पुछेर, बक्की -  या कळगुगि हंत्या च. जाओ गढवाल भवन मा जाओ उख ज़िंदा गढ़वळि साहित्यकारों हंत्या पूजै  हुणि च.

[ विमल नेगी क गढ़वाल भवन क तर्फां जाण ]

विमल नेगी- चलो उना इ जये  जाओ जख ज़िंदा साहित्यकारों हंत्या पूजै च

                                        [गढ़वाल भवन को चौक मा भीड़ लगिं  च ]

एक दर्शक - यि कनफणि सि हंत्या घड्यळ उरयूँ च .

हैंको दर्शक - हाँ भै  हंत्या ज़िंदा मनिखों  अर जागरी छन भग्यान स्वर्गवासी लोग

तिसरु दर्शक - हाँ सि द्याखो ना जागरी छन स्व. अबोध बंधु बहुगुणा अर थाळि बजौण वाळ छन  गोविन्द चातक अर भौण पुजण वाळु मा छन डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि सौब भग्यान हुंयाँ  छन.

 अबोध बंधु बहुगुणा डौञरु ब्जान्दन अर  डा. गोविन्द चातक थाळि छणकांदन

अबोध बंधु बहुगुणा - भै जै जै तै डौर लगदि ह्वाऊ या आलोचना सहन नि  करी सकदा ह्वावन ओ भैर चली जवान . आज दुनिया मा पैलि दै ज़िंदा लोगूँ  हंत्या पूजै  हुणि च अर हम सौब जागरी अर भौणेर स्वर्गवासी छंवां.

 [कुछ लोग भैर चली जान्दन ]

अबोध बंधु बहुगुणा --


ओ ध्यान जागि जा

गरीबी का मरयाँ गढवाली साहित्यकार को  ध्यान जागि जा

डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि  (भौण पुजदन ) -ओ ध्यान जागि जा

अबोध बंधु बहुगुणा -- ओ अपण बाड़ी पळयो खैकी भाषा सेवा का भड़ को ध्यान जागि जा

डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) -भाषा सेवा का भड़ को ध्यान जागि जा
 
अबोध बंधु बहुगुणा --वो प्रकाशक को थिन्च्याँ  गढवळी साहित्यकार को ध्यान जागि जा

डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) - ओ गढवळी साहित्यकार को ध्यान जागि जा

अबोध बंधु बहुगुणा -- ओ सरकारी  अवहेलना का मरयां , पिट्यां  साहित्यकार को   ध्यान जागि जा

डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) - मरयां , पिट्यां साहित्यकार को ध्यान जागि जा

अबोध बंधु बहुगुणा -- ओ अपणो इ समाज से तिरयां, दुतकर्याँ  गढवळी साहित्यकार को ध्यान जागि जा

डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) -तिरयां, दुतकर्याँ  साहित्यकार को ध्यान जागि जा

अबोध अबन्धु बहुगुणा - हिंदी , अंग्रेजी की धौंस का रुवयां गढवळी साहित्यकार को ध्यान जागि जा

डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) -धौंस का रुवयां गढवळी साहित्यकार को ध्यान जागि जा

अबोध बंधु बहुगुणा (जोर से )  --  ओ भाषा संस्थान को अनुदान जागि जा 

डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) - अनुदान जागि जा 

अबोध बंधु बहुगुणा (हौर जोर से )- संस्कृति विभाग कि कृपा जागि जा

डा. हरि दत्त भट्ट शैलेश, डा. शिवा नन्द नौटियाल आदि आदि (भौण पुजदन ) - कृपा जागि जा , कृपा जागि,  जागि जा

अबोध - हाँ त मेरा सुणदेरा ! अब जागर कथा चातक जी अर नौटियाल जी सुणाला

गोविन्द चातक - ओ जैन्तो बार मा अभिमन्यु रुपी गढ़वळि भाषा  तै मारणो  चक्र व्यूह रच्यूं च 

भौणेर - व्यूह रच्युं च,

चातक - अभि मन्यु का समणि कौरवों का क्वी भड़ नि टिक साकू 

भौणेर -क्वी भड़ नि टिक साकू 

शिवानन्द नौटियाल - तब जैन्तो बार मा बाळा अभिमन्यु तै सात जोधाउं न मारी दे

एक पर हंत्या आई - (वै तै धुपण सुंगये जाणु च . ) ये दिदाओं . वो कु कु जोधा छ्या जौन इकदगड़ी अभिमन्यु मारे ?

विश्वम्बर चंदोला - पैलो जोधा छयो ब्रिटिश राजशाही जैन गढवाली रुपी अभिमन्यु की साँस रोकी.

भौणेर - गढ़वळि कि साँस रोकी

सदानंद कुकरेती - अंग्रेजी की धौंस  दुसरो जोधा छयो जैन  गढ़वळि कि मौणि मड़काई

भौणेर -गढ़वळि कि मौणि मड़काई

शिव नारायण सिंग बिष्ट - तिसरो जोधा भारतीय सरकार न  भंयकर रूप मा हिंदी का बाण  गढ़वळि कि छाती मा मारिना

भौणेर -गढ़वळि कि छाती मा बाण मारिना

भजन सिंग सिंग - चौथो जोधा छयो उत्तर प्रदेश को शासन  तैन गढ़वळि का हथ खुट तोड़ीन

भौणेर -गढ़वळि का हथ खुट तोड़ीन

हरि दत्त भट्ट शैलेश- पंचों जोधा छयो उत्तराखंड शासन जैन गढ़वळि का घुण्ड मुंड फोड़ीन

भौणेर -गढ़वळि का घुण्ड मुंड फोड़ीन

सबि [एक दगड़ी ]- अर सातों जोधा छयो गढ़वाली समाज जैन   गढ़वळि  भाषा तै तिराई , भगाई, लत्यायी

सबी [एक दगड़ी ] औ इन मा गढ़वळी  रुपी अभिमन्यु मारे ग्याई

गढ़वळी रुपी अभिमन्यु मारे ग्याई

भौणेर - अपडो न अपड़ो तै लात मारी

केशव अनुरागी  - ये दिदा भिलन्कार पोड़ी गे, दैसत पोड़ी गे. कुंती बुल्दी बल कनो बाळि  उमर मा अपणो न इ अपण तै मारि .

[इथगा मा दर्शक दीर्घा बिटेन एक दर्शक पर  हंत्या आई ]

अबोध बंधु बहुगुणा - ये पौन माराज अपणो घौर च कैको नुकसान ना करी . तेरी पूजा होली. त्वे तै  से प्रशंशा पत्र  कि बळि द्योला मानि  जा पौन दिबता ..

 भौणेर - मानि जा पौन दिबता .

अबोध बंधु बहुगुणा - अपणो नाम बथा, अपणो कुल बथा, अपणो लालसा बथा . तेरी जळकटे होली .

 भौणेर -पौन दिबता अपणो नाम बथा, अपणो लालसा बथा

जीत सिंग नेगी - मी जीत सिंग नेगी छौं . नई नई कज्याण्यु बिगरौ मा जन बुल्यां सौब में बिसरी गेन . म्यरा कैसेट नी  छन त क्या मी गितांग नि छौं /  क्या इतियास मै से यि पूछल बल मीन इथगा गीत लेखिन अर फिर गैबि छन पण चूंकि   मेरा नया ज़माना का हिसाब से कैसेट नि ऐन त मि गितांग इ नि छौं ?

भजन  सिंग सिंग - भुला जीत सिंग ! जब तलक  ये संसार मा  सूरज रालो त्यरा नाम गढ़वळी  संसार मा रालों .  धष्माना जी अर तुम   इ वो जोधा छंवां जौंका  रिकोर्ड पैलि बार रिकोर्ड ह्वेन  पौन दिबता मानि जा

भौणेर - जब तलक सूरज रालो जीत सिंग जीको  नाम गढ़वळी संसार मा रालों

दर्शक दीर्घा से बालेन्दु बडोला  को पौन - होई होई मोरि  ग्यों मोरि  गयौं . मि बालेन्दु बडोला  छौं .  क्वी सुणदेर नी च, क्वी पूछंदेर नी च.

भौणेर -गढ़वाली भाषा  थौळ मा क्वी सुणदेर नी च, क्वी पूछंदेर नी च

भौणेर - क्वी सुणदेर नी च, क्वी पूछंदेर नी च

भौणेर -  क्वी पूछंदेर नी च

डंडरियाल भौणेर - ओ दिदा बालेन्दु  ! इन कठोर बचन ना बोल.  , भुला तन ना बोल

भौणेर -  भुला कठोर  बचन  ना बोल

बालेन्दु  कु पौन - ओ जब भीष्म कुकरेती तै खबर सार मा एक ना द्वी दफैं पूछे गे. ऊं पर संदेह करे गे कि तुमन सची इथगा ल्याख त मेरो क्या हाल होला

भौणेर -त मेरो क्या हाल होला , त मेरो क्या हाल होला

महावीर गैरोला भौणेर - ये पौन दिवता इन क्या होई ग्याई जु तू पौन रूप मा आई गेयी

भौणेर -पौन रूप मा आई गेयी

बालेन्दु बडोला  कु पौन - खबर सार मा भीष्म कुकरेती भगार लगाये गे बल भीष्म कुकरेती झूट बोलणु च कि वैन बारा सौ तेरा सौ से जादा लेख लिखेन .

भौणेर -बारा सौ तेरा सौ से जादा लेख लिखेन

बालेन्दु बडोला - अर वो बि इलै कि भीष्म कुकरेती क क्वी किताब नी छपी. 

भौणेर-बारा सौ तेरा सौ से जादा लेखुं क बाद बि  क्वी किताब नी छपी. क्वी किताब नी छपी

डंडरियाल भौणेर - पण भुला या त कुकरेती कि परेशानी च

भौणेर-कुकरेती कि परेशानी च , तेरी परेशानी नी च

बालेन्दु बडोला कु पौन [डौञड्या नरसिंग का विकराळ रूप मा ] -  फूं , फूं ,फूं  फ्वां ,फूं फ्वां 

शिव नारायण सिंग बिष्ट - ये पौन माराज अपनों भेष   मा आ   .सांत ह्व़े जा माराज

भौणेर- औ औ सांत ह्व़े जा माराज , अपणो  मिजाज मा आओ माराज .

शिव नारायण सिंग बिष्ट -तुमारि ल़ाळसा   क्याच माराज

बालेन्दु बडोला कु पौन- मीन बि पचास से बिंडी कथा लेखिन, पत्रिकाओं मा छपैन 
 
भौणेर-पचास से बिंडी कथा लेखिन
 
 भौणेर- पत्रिकाओं मा छपैन 

 बालेन्दु बडोला कु पौन-  अर अब नरेंद्र कठैत  सरीखा युवा जोधा मै से सवाल कारल कि मैन क्या लेखी ? अर मेरो लिख्युं पर संदेह कारल त मै पर क्या बीतली !

भौणेर- इथगा लिख्युं पर संदेह कारलु

भौणेर- मै पर क्या बीतली !  जिकुड़ी जौळळि

भौणेर-जिकुड़ी जौळळि

जबर सिंग कैंतुरा, मोहन लाल ढौंडियाल अर ललित केशवान का पौन नाचण मिसे गेन

जबर सिंग कैंतुरा - मि जबर कैंतुरा छौं अर मेरी किताब नी छपीं त क्या  मि गढ़वळि  कथाकार नि छौं ?

मोहन लाल ढौंडियाल - मीन बि कथा पत्रिकाओं मा छपाईन .पण किताब नि आई

भौणेर- अपड़ो न अपड़ो तै मार . बथा केशवान जी क्या बिपदा च ?

केशवान कु पौन - मेरी बि कथा छपीं छ्न. पण किताब क्वी नि छपी 

 भौणेर- औ औ किताब क्वी नि छपी 

केशवान - कठैत सरीखा मै तै पूछल कि मीन कुछ नि ल्याख त मै पर क्या बीतली ?

भौणेर- औ औ मै पर क्या बीतली ?

अर्जुन सिंग गुसाईं भौणेर-मि अर्जुन सिंग गुसाई भर्वस दिलांदु बल गढ़वळि कथाओं मा  केशवान को नाम  रालो

भौणेर- औ औ कथाओं मा केशवान को नाम रालो

केशवान (रुंद रूंद )  - ना मेरी क्वी किताब छप, नाइ इ कथा मेरा पास छन

 भौणेर- औ औ नाइ इ कथा मेरा पास छन

केशवान ( भाकोरा भाकोरिक  रूंद ) - अपण कठैत सरीखा क्वी नवाड़ी  भड़ शक्क कारल त क्या होलू ?

भौणेर- औ औ नवाड़ी भड़ शक्क कारल त क्या होलू ?

अर्जुन सिंग गुसाईं -  कवा ककड़ान्दन ढाकरी चलदा रौंदन

भौणेर- औ औ  कवा ककड़ान्दन ढाकरी चलदा रौंदन

भजन सिंग सिंग -- ये कथाकारों सांत  ह्व़े जाओ.  किताब छप या ना छप तुमारो मिळवाग क बड़ी  बडै होलि

भौणेर- औ औ किताब छप या ना छप तुमारो मिळवाग क  बडै  होलि

भौणेर- कठैत की बात से याद आँदी बल  अपड़ो न अपड़ो तै मार .

शिव नारायण सिंग बिष्ट - माध्यम बदलदा रौंदन पण मिळवाग त मिळवाग होंद. माध्यम क्वी बि ह्वाओ अंशदान त अंशदान होंद.

भौणेर- कठैत की बात से याद आँदी बल अपड़ो न अपड़ो तै मार .

अबोध बंधु बहुगुणा - सांत ह्व़े जाओ ये सौब पश्वा माराज

भौणेर- कठैत की बात से याद आँदी बल अपड़ो न अपड़ो तै मार .

जाय लाल वर्मा ---आधुनिक गढ़वाली काव्य तू जाग . त्यरो ध्यान  जागी जा

आधुनिक गढ़वाली काव्य का भौं भौं ब्युंत तू जाग

आधुनिक  गढ़वाली कथा तू जाग

आधुनिक  गढ़वाली नाटक तू जाग

आधुनिक गढ़वाली समीक्षा तू जाग

आधुनिक गढ़वाली व्यंग्य तू जाग

आधुनिक गढ़वाली निबंध  तू जाग

आधुनिक गढ़वाली साहित्य का  भौं भौं ब्युंत  तू जाग

भौणेर -  साहित्य का सबि ब्युंत जाग , युंका ध्यान जागि जा

गुणा नंद जुयाल - प्रकट ह्व़े जान, प्रकट ह्व़े जान भौंभौं  किस्मौ का ब्युंत  प्रकट ह्व़े जान,

भौणेर - औ औ भौंभौं किस्मौ का ब्युंत प्रकट ह्व़े जान,

मदन डुकलाण कु पौन - मै छयो मेरा दामी निंदरा  भुल्युं

अर मेरा दामी मै छयो सियूँ

झलकारा बेडशीट , झलकारा कौट

अर मेरा दामी तुइन लगाए  पराज   

भौणेर - औ औ अर मेरा दामी तुइन लगाए पराज   

तारा दत्त गैरोला - प्रकट ह्व़े जैन , प्रकट ह्व़े जैन , सम्पादकीय ब्युंत प्रकट ह्व़े जैन

 भौणेर - औ औ सम्पादकीय ब्युंत प्रकट ह्व़े जैन

ललिता वैष्णव  - संपादकों का भड़पन तू जाग

जाग जाग रे संपादकों का निस्वार्थ सेवा तू जाग

पुंगड़ी पाटळि बेचीं , लौड़ गौड़ नि  देखी ,

हे संपादको का त्याग तू जाग

भौणेर - औ औ अपड़ो ना अपड़ो तै मारी

अलग भौण का भौणेर - औ औ हे संपादको का त्याग तू जाग

अर्जुन सिंग गुसाईं - धाद का ध्यान सौंजा

चिट्ठी पत्री को ध्यान सौंजा,

गढ़ ऐना को ध्यान सौंजा,

अन्ज्वाळ को ध्यान सौंजा,

बुरांस को ध्यान सौंजा

गढ़वळी धाई को ध्यान सौंजा

रन्त रैबार को ध्यान सौंजा 

खबर सार को ध्यान सौंजा 

भौणेर - आजक  सबि गढवळि पत्रिकाओं क ध्यान सौंजा

भौणेर -  आज का सबि संपादकों का ध्यान सौंजा

दामोदर प्रसाद थपलियाल - हिंदी की आंचलिक पत्रिकाएं जु गढवळी तै मजबूत करणा छन कु ध्यान सौंजा

शिखरों के गरजते  स्वर को ध्यान सौंजा


पराज को ध्यान सौंजा

शैलवाणी को ध्यान सौंजा

गढ़ जागर को ध्यान सौंजा

अर्जुन सिंग गुसाईं - हे ज़िंदा पितरों !  कैको नाम रै गे हो त माफ़ कर्याँ माराज

भौणेर - औ औ ज़िंदा पितरों माफ़ कर्याँ माराज

बिगळयाँ  भौण का भौणेर - कठैत की बात से याद औंद  बल अपड़ो न अपड़ो तै मार .

मदन डुकलाण कु पौन - कु सुणलु मेरी बात ?

भौणेर - औ औ कु सुणलु मेरी बात ?

जाय कृष्ण उनियाल  - मि फ्यूंळी पत्रिका का कु सम्पादक  जय कृष्ण उनियाल सुणलु तेरी  बात

लोकेश नवानी को पौन (झिंग्री लेक )- धाद कु मि लोकेश . कु सुणलु मेरी बात ?

दामोदर थपलियाल - मि रान्को कु सम्पादक दामोदर थपलियाल सुणलु तेरी बात

इश्वरी प्रसाद उनियाल कु पौन - मि पैलो दैनिक गढ़ ऐना अर रंत रैबार कु सम्पादक इश्वरी प्रसाद उनियाल छौं. कु सुणलु मेरी बात ?

सकुंत  जोशी - मी रैबार कु सकुंत  जोशी छौं मि सुणलु तेरी बात

पूरण पंत - मि गढ़वाली धाई कु सम्पादक पूरण पंत .कु सुणलु मेरी बात ?

सतेश्वर आजाद - मि मैती कु सम्पादक सतेस्वर  आजाद . मि सुणलु तेरी बात

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार .

सदानंद कुकरेती - विशाल कीर्ति की जय हो . मि सबि संपादको तर्फान सदानंद कुकरेती आपसे अरज करदो कि आप तैं क्या दुःख च . आपकी क्या लाळसा रै ग्याई ये मेरा सौंजड्या जरा सुणाओ त सै

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार

सबि इकी भौण मा -  नरेंद्र कठैत  अपणी किताब 'लग्यां छां' (२००८) मा लिखदन बल 'पिछ्ल्या लंबा टैम बिटि गढवळि  साहित्यकार , पत्रकार बडा भै विमल नेगी गढवळि पाक्षिक 'उत्तराखंड खबर सार ' मा कुणा कुमच्यरो बिटि' नौ का कालम मा छपणा छन. गढ़वाली भाषा साहित्य पर विमल भै कि लगन अर मेहनत भौत कुछ सिखलाणि च . वूंका देखा देखी हौरी आंचलिक पत्र पत्रिकौन बि गढवळि व्यंग्य छपण सुरु कर याली ."

अर्जुन सिंग गुसाईं - घोर अन्याय. घोर अन्याय . हिलांस मा त गढवळि व्यंग्य छपदा छया. हिलांस से व्यंग्यकारो विज्वाड़ पैदा ह्व़े  पत्रिकाओं दगड घोर अन्याय

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार . अपडो न अपडो पर अन्याय  कार

लोकेश नावानी कु पौन (डौञड्या नरसिंग आंदो  ) हु हु धाद से त व्यंगकारो की फ़ौज खड़ी ह्व़े 

पराज कु विनोद  नेगी अ पौन -  फूं फूं फ्वां फ्वां !  पराज का  गढवळि व्यंग्यों से त सभाओं मा बहस सुरु ह्व़े.

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार . अपडो न अपडो पर अन्याय कार

इश्वरी प्रसाद उनियाल कु पौन (हथ मा खुन्करी अर तलवार लेकी अपण छाती पर कटांग लगान्द लगान्द. ल्वे का छींटा .. ) झूट सब झूट . बेज्जती, सरासर बेज्जती, तौहीन . तिरस्कार

भौणेर -बेज्जती, सरासर बेज्जती, तौहीन . तिरस्कार

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार . अपडो न अपडो कि बेज्जती कार

भौणेर -अपडो न अपडो कि बेज्जती कार

इश्वरी प्रसाद उनियाल कु पौन ( अब गरम ज़िंदा कवीला  बुकांद बुकांद ) - दैनिक गढ़ ऐना मा रोज व्यंग्य छ्पदो छौ

भौणेर -दैनिक गढ़ ऐना मा रोज व्यंग्य छ्पदो छौ

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार

इश्वरी प्रसाद उनियाल कु पौन ( उछळि उछळिक ) - दैनिक गढ़ ऐना मा रोज व्यंग्य चित्र छ्पदो छौ

भौणेर -दैनिक गढ़ ऐना मा रोज व्यंग्य चित्र छ्पदो छौ

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार

इश्वरी प्रसाद उनियाल कु पौन (डाळ बूट इना उना ल्हसोर्दु  )  हू हू झूट सौब झूट . गरजते स्वर अर रंत रैबार मा खबर सार से पैलि व्यंग्य छपणा रौंदा छया

भौणेर -खबर सार से पैलि व्यंग्य छपणा रौंदा छया

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार

मदन डुकलाण  (मुंड  झिंगरैक , झुल्ला फाडिक ) - चिट्ठी पत्री मा त व्यंग्य छपणा इ रौंदा छा. घोर अपमान . घोर अपमान

भौणेर -घोर अपमान . घोर अपमान

 भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार

पूरण पंत पथिक- मि पथिक छौं, म्यरा क्थ्गासम्पाद्कीय व्यंग शैली मा छन . बेज्जती , बेज्जती

विश्वम्भर दत्त चंदोला - हे माराज !  सबि सम्पादक सांत ह्व़े जाओ. 

भौणेर -सबि सम्पादक सांत ह्व़े जाओ. 

विश्वम्भर दत्त चंदोला - इतिहास तुम तै कबि नि बिसरल. मनिख हाड मांस को पिंड च . गलती सब्युं से हुंद. कठैत जी से गलती ह्व़े गे होली.

भौणेर -इतिहास तुम तै कबि नि बिसरल

शिव नारायण सिंग बिष्ट - औ औ समीक्षा को धुरंदरो कु ध्यान जागि जा

ओउम गुरु का आदेस . समीक्षा को धुरंदरो कु ध्यान जागि जा

काव्य समीक्षा को ध्यान जाग

गद्य समीक्षा को ध्यान जाग

सबि ब्यूँतों की समीक्षा को ध्यान जाग

 भौणेर - समीक्षा को धुरंदरो कु ध्यान जागि जा

भगवती प्रसाद नौटियाल कु पौन ( झिन्ग्रांद , झिन्ग्रांद ,) यो ठीक नि ह्व़े मीन माफ़ नि करण . या त क्वी समीक्षा नि ह्वेई

भौणेर - या त क्वी समीक्षा नि ह्वेई

नरेंद्र कठैत  कु पौन - हाँ यू ठीक नि ह्वेइ

हरीश  जुयाल कु पौन - हाँ या त क्वी बात नि ह्वेई

भगवती प्रसाद कु पौन ( झिन्ग्रांद , झिन्ग्रांद ,) हाँ यो ठीक नि ह्वेई. जिकुडि जळि गे 

भौणेर - कौन देस से आई . जटा फिर्काई . गाज्न्तो बाज्न्तो कौन कौन देस से आई

भगवती प्रसाद कु पौन ( झिन्ग्रांद , झिन्ग्रांद ,)- मै भगवती प्रसाद नौटियाल छुं.

भजन सिंग सिंग - सांत माराज , सात माराज . अपणी लाळसा ब्वालो माराज

भगवती प्रसाद कु पौन ( झिन्ग्रांद , झिन्ग्रांद ,)- ये भीष्म कुकरेती न मै आलोचक कि तलवार से घैल करी.

गोविन्द चातक - गुरु जी , आलोचना  तलवार बौणिक घैल करदी इ च. आपन बि कबि आलोचना की तलवार  से कतल्यो त करी होली कि ना.

 भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार. आलोचना की तलवार से कतल्यो कार

हरीस जुयाल - अरे गौणि गाणिक त एकाद भूमिका लिख्वार छ्या एकी त समालोचक छ्या नौटियाल जी . फिर  कुकरेती जी तै नौटियाल जी तै इन नि छिंडारण   चयाणु छौ.

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार

नरेंद्र कठैत - कुकरेती जीन भौत इ अशिष्ट काम करी

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, भौत इ अशिष्ट काम करी

नरेंद्र कठैत -  भीष्म कुकरेती न आलोचना मा गाळी गलोज करी

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, गाळी गलोज करी

नरेंद्र कठैत - भीष्म कुकरेती न बोलि बल  हिंदी प्रयोग ठीक नी च पण अफु बि लेखुं मा हिंदी-अंग्रेजी  का प्रयोग करी.

 भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार,अफु बि लेखुं मा हिंदी का प्रयोग करी.

सबि - जावा क्वी भीष्म कुकरेती तै बुलाओ

भीष्म कुकरेती को आण -

प्रथम नाम ल्योलू मि सरस्वती कु

प्रथम नाम ल्योलू मि हास्य दिवता प्रथम कु

प्रथम नाम ल्युलू मि पंचनाम दिव्तौं कु

प्रथम नाम ल्योलू साहित्यिक गुरु अर्जुन सिंग गुसाईं को

जौन मि तै कथा लिखणो उकसाई

भौणेर -कथा लिखणो उकसाई

प्रथम नाम ल्योलू मि गुरु रमा प्रसाद घिल्डियाल पहाड़ी कु  जौन मै गढ़वळि मा लिखणो उकसाई

भौणेर -गढ़वळि मा लिखणो उकसाई

सदा नन्द कुकरेती - अ  रिश्ता मा तुम म्यरा ददा जी पण उमर मा मी तुमारो ददा . तुम पर  भगार च बल तुमन  आलोचना मा  बिचकीं  भाषा ,अशिष्ट भाषा इस्तेमाल कार

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल

भीष्म कुकरेती - जी, मीन  बिचक्याँ शब्द इस्तेमाल करीन

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल

भीष्म कुकरेती - जरा तुम सौब इन बताओं बल सम्भोग, राति शब्द शालीन छन

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल

सौब  - हाँ शालीन छन . नाट्य शाश्त्र का शब्द छन

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल

भीष्म कुकरेती - त हे म्यरा गुरु जन जु मि यूँ शब्दों गढवळि मा अनुबाद करलु त क्या होलु ?

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल

सौब- द्याखो जी साहित्य अर रोजमरा कि भाषा मा यो त दिखण इ पोडल कि अनुदित शब्द असभ्य नि ह्व़े जावन

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल

भीष्म कुकरेती - वाह ! आर्य संस्कृति से उपज्यां  संस्कृत का शब्द सभ्य अर द्रविड़ सभ्यता से लियां शब्द असभ्य ?

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, बिचकीं भाषा ब्वाल

सौब- देस, काल अर वर्ण को ख़याल त करणि पोडल

भीष्म कुकरेती - ठीक च जु तुम सब्यूँ कि या इ राय च त सुधार करे जालो

अबोध बंधु बहुगुणा --  तुम हिंदी शब्दों विरोधी छंवां अर हिंदी , अंग्रेजी शब्दों इस्तेमाल करदवां ?

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, हौरू  तै अड़ाण अर अफु सियूँ रौण

भीष्म कुकरेती - मी बीडी सिगरेट पींदु त क्या बीडी सिगरेट का विरोध करण बुरु  च क्या ?

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, हौरू तै अड़ाण अर अफु सियूँ रौण

सौब - पर ...

भीष्म कुकरेती - बस यो इ हाल छन. 'पर' पर' ... कबि त स्वीकार कारो कि हिंदी गढवळि तै मारी देली. . मी अफु पर बि भगार लगान्दु. मीन 'हिंदी का वासराय' लेख मा अफु तै बि 'खत्युं बीज' ब्वाल

नरेंद्र कठैत - यू सौब झूट च भीष्म कुकरेती जी न इन कवी लेख नि ल्याख.

 भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार, हौरू तै अड़ाण अर अफु सियूँ रौण

भीष्म कुकरेती - जु तुमन यू लेख नि बांच त यांक मतलब यो नी च कि यू लेख छपी नी च

 नरेंद्र कठैत - यू सौब झूट च

सौब - कठैत जी ! यदि आपन क्वी लेख नि बांच त यांको यू अर्थ नि होंद कि हौरू न ल्याख इ नी च.

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै सिखाणो बान कंडाळी न  चुटी .

भौणेर - मीन नि बांच त यांको अर्थ नी होंद कि हौरून ल्याख इ नी च.

तारा दत्त गैरोला- भीष्म जी ! घपरोळ से क्या फैदा ?

भौणेर -अपड़ो न अपड़ो तै मार,

भीष्म कुकरेती - जी यू त क्वी बि 'कौंळी किरण' बांची ल्याओ फिर जाणै जै सक्यांद कि घपरोळया लेखुं से क्या फैदा होंद!

भजन सिंग सिंग - पण घपरोळ शब्द म लडै कि गंद आन्द 

भीष्म कुकरेती - जी ठीक च. आज से इन कॉलम का नाम होलु 'घचकाण'

नरेंद्र कठैत - पण इन बहस इ ठीक नी च

पार्थ सारथी डबराल- साहित्य मा सम्वाद जरूरी च

भौणेर -साहित्य मा सम्वाद जरूरी च

श्याम चंद नेगी - बहस से साहित्य का बनि बनि जरूरी बातों पर साहित्यकारों ध्यान जांद.

गणेश प्रसाद बहुगुणा 'शाश्त्री' - बहस से इन बात भैर आन्दन जु इतिहास से लुक्याँ रौंदन

भौणेर -साहित्य मा सम्वाद जरूरी च

अबोध बंधु बहुगुणा  - त हे मेरा दिवतौं अब सौब मानि जाओ . सांत ह्व़े जाओ

केशव अनुरागी - मी केशव अनुरागी जरा बडै कु ताल बजांदु त सौब नाचो

झेई - - - झे-  - - - , ता - - - - ता -

ता ता , झेई - - - त्रिणता , झे,  तागता

झगेक, झेई .......

ब्रह्मा नन्द थपलियाल - मि ब्रह्मा नन्द थपलियाल  ढोल सागर कु एक छंद गौलु   अर फिर आजक पूजै संपन माने जावो

अरे गुनि जन शब्द ईश्वर रूप च

शब्द कि सुरति शाखा

शब्द का मुख विचार शब्द का ज्ञान आँखा

यो शब्द बजाई , हृदया जाई बैठाई 

(नाम काल्पनिक माने जावन )

Copyright@ Bhishma Kukreti , 13/7/2012

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गढवाली -हास्य व्यंग्य साहित्य

                              प्रजातंत्र का रागस


                               भीष्म कुकरेती

      [गढवाली व्यंग्य, गढ़वाली हास्य साहित्य, गढवाली गद्य, गढ़वाली साहित्य, गढ़वाली भाषा, गढ़वाली रचनाये, लेखमाला] 

     

   कुज्याण !   कुज्याण ! रावण राज तै किलै दानव राज बुले जांद धौं . कुज्याण ! कुज्याण ! दुर्योधनो कुणि रागस किलै बुल्दन धौं !

रावण न त सीता क अपहरण  बि इलै कार बल लक्ष्मण न वैकी बैणि क नाक काटी. महाभारत मा दुर्योधन पर पांडव विरोधी हूणो भौत सा भगार छन पण कखि बि दुर्योधन तै इन नि बताये गे बल दुर्योधन (पांड छोड़िक ) लोक   न्याय विरोधी रै या वैन जनता कु नुकसान करी. जु वाल्मिकी या व्यास जी आज रामायण या महाभारत रचदा त रावण अर दुर्योधन दिवतौं  श्रेणी मा आंदा.

         अब प्रजातंत्र का खुले आम मखौल त द्याखो - जाय ललिता , लालू प्रसाद यादव जन नेता भ्रष्टाचार विरोधी  अभियान का रथी सारथी बण्या छन. काणा बस ड्राइवर बण्या छन.

   जु अभियोग का कारण जेल मा छया वो उत्तर प्रदेश का जेल मंत्री बण्या छन अर जेल मा क्या क्या सुविधा हूण चएंद पर जन अभियान चलाणा छन.

जौं तै गढवाल कुमाऊं क भूगोल अर संस्कृति कु आता पता मालूम नि छयो वो उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बण्या छन अर अफु तै बंगाली बथाणा छन. बाप कमाई खाणा छन.

  जु राजभवन मा कुकर्मो वजै से भैर ह्वेन वो मुख्यमंत्री तै आशीर्वाद दीणा छन . जौन मुख  लुकाण छौ वो पधान बण्या छन

   जौं तै राज धर्म की रक्षा करण छे वो प्रधान मंत्री कुर्शी पाणो धमध्याट करणा छन. स्याळ बाग चिनखौं जग्वाळि  बखान करणा छन.

    ममता बनर्जी  सरीखा नेत्याण बंगाल विकास को रूण  रोणा  छन  अर आधुनिक विकास स्रोत्र पर कुलाड़ी चलाणि छन . जै फौंटि मा बैठया छन वै इ  फौंटि  काटणा  छन.

भारत का महान अंतर राष्ट्रीय प्रसिद्ध अर्थ शास्त्री गरीबो कुण बुलणा छन छबीस  रूप्या ध्याड़ी से काम  चलाओ अर अफु सरकारी  खर्च पर छतीस लाखौ बाथरूम बणाणा छन. ये भाई त्यार बांठ  आल  बासी तिबासी सुक्यूँ एक रुटळ ,  अर म्यार बांठ आला  म्वाटो म्वाटो घीयो भर्याँ स्वाळ.
 
  जु कबि वकालत करद दै झूट तै सच अर सच तै झूट सिद्ध करी दीन्दा छा वु अब मानव संसाधन का पधान बौणि  मानवीय आचरण सुदानो  बान  नियम बणाणा छन.  चचराट को गोल्ड मेडलिस्ट , सींद दै बि बड़बड़ाट  करण वाळ मौनव्रत सिखाणो स्कूलौ हेड मास्टर बण्यु च .
 
अच्काल नेता भ्रष्टाचार मा पकड्यान्दन, थ्वड़ा देरौ कुण जेलौ हवा खान्दन अर जब जेल बिटेन ड़्यार औंदन त यूंक स्वागत इन होंद जन बुल्यां यूंन   वर्ल्ड कप जीति ह्वाओ या मगल ग्रह मा भारतौ तिरंगा  फैराइ ह्वालो. यांकी बुल्दन बल बेशरमौ जीब  काटो त जीब  हाथेक हौर बढ़ी जांदि .
 
जौंन इस्कूलम मास्टरों तै पीट वूंक आज कथगा इ कॉलेज  खुल्यां छन. अजाण  सिलेबस बणाणा छन

बीड़ी- सिगरेट बणाण वळा कैन्सर बचाओ आन्दोलन का धड्वे बण्या छन. डा  बि  मि द्योलू  अर अस्पताल बि मि इ ख़ुलुलु .

जौंन धनुष बाण नि देखी वो आर्चरी फेड्रेसन का महंत बण्या छन. बैरा व्योईस डिटेक्टिव (अवाज पछ्यण)  संस्थान का अध्यक्ष  बण्या छन.
 
जौन राजनीति क खेल  छोड़िक जिन्दगी मा गुल्लि डंडा बि नि खेल वो इंटरनेशनल  क्रिकेट बोर्ड का मुखिया बण्या छन. अर कपिल देव , वेंगसरकर जन लोग ऊंका हुक्का भरणा छन.

जौं तै कौम वेल्थ गेम मा भ्रष्टाचार का गुनाह मा जेल मा हूण चयेणु छौ. लन्दन औलेम्पिक मा वूंको स्वागत की तैयारी चलणि च. यी लोक त प्रजातंत्र अर पूजनीय न्यापालिका तै चुसणा दिखाणा छन

मी अबि बि नि समजी सौकू कि यूँ प्रजातंतरौ रागसूं कुण राम कख ह्र्ची गे. या इन त नी च बल नंग देखिक भगवान बि डरद. या कळजुग मा राम जनम ल़ीण से डरणा छन ?

 या राम न जनम त ले ले होलु पण क्वी विश्वामित्र पैदा नि ह्व़े होलु !

 Copyright@ Bhishma Kukreti 14/7/2012

 गढवाली व्यंग्य, गढ़वाली हास्य साहित्य, गढवाली गद्य, गढ़वाली साहित्य, गढ़वाली भाषा, गढ़वाली रचनाये, लेखमाला जारी ....

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गढवाली -हास्य व्यंग्य साहित्य

 

                                  तैकि रांड ह्व़े जैन

 

                              चबोड्या-     भीष्म कुकरेती

 

 [गढवाली हास्य साहित्य , गढ़वाली व्यंग्य साहित्य लेखमाला]

 

- ये भूलि ह्यां जु कुल्याणो बड़ो हौज बणणु छौ स्यू बणण बन्द ह्व़े ग्याई,  ...

--किलै ए दीदि ?

- भ्रष्टाचार को अन्याव लगी गे. आनाळ ( बिलम्ब) को रोग लगी गे

- तै भ्रष्टाचार की औताळि खाण लैक क्वी नी रैन

-तै  भ्रष्टाचार  पर बुरळ  (चींटी ) पोड़ी जैन 

-तैको  जड़ नाश ह्व़े जैन .

--ये जी ! जु गौंकु  बाटो छौ वु बौगि गे

- कन ये ब्वारी! इन त कबि नि ह्व़े थौ.

- भ्रष्टाचार को घूणन अर धिवड़न  बाटो कुरेदि दे

- सचो ब्रह्म होलू त बांज पोड़ी जैन तै भ्रष्टाचार क  साखि

- ए पैणु  ह्वाई त ह्वाई , हैंको पैण लैक नि राओ स्यू भ्रष्टाचार

-तै  भ्रष्टाचार कि रांड ह्व़े जैन

--भिलन्कार पड़ी जैन तै भ्रष्टाचार को  चौक-कूड़  मा

- ए बौ आज बि पाणि पेक सीण पोड़ल. आज बि राशन दुकान मा सड्यू  इ सै ग्यूं नि आई .   

-ह्यां स्यू दुकानदार द्वी मैना बिटेन किलै  बौगाणु  च बल राशन आज आलो,  आज आलो..

- बौ ए ! भ्रष्टाचार को बिजोग पोड़ी गे .भ्रष्टाचार से पब्लिक डिस्ट्रिब्युसन   सिस्टमौ अन्खर पंखर (अंग ) भंग ह्व़े गेन .

- तै भ्रष्टाचार का  खुट मुख सौड़ी जैन

- तै भ्रष्टाचार ऐ लद्वडि डाळ लगी जैन

-- कोढ़ी ह्व़े जैन स्यू भ्रष्टाचार

-लुच्या ऐ जैन तै भ्रष्टाचार पर

-भगन्दर ह्व़े जैन तै भ्रष्टाचार पर

--मुक दिखाण लैक नि राओ स्यू भ्रष्टाचार

- ए अनुसूचित जाति अर बी.पी ओ तहत कूड़ो कुण मिलण छौ बीस हजार तू लेकी ऐ गौण गाणि क  पांच हजार

- हाँ ए ब्व़े ! देहरादून बिटेन चली त छया पूरो बीस हजार पण जिला, तहसील , ब्लौक , ग्राम  प्रधान  का चौकुंद आन्द आन्द चळि गेन  बीस हजार अर हमर बांठो आई बस पांच हजार

- तै भ्रष्टाचार ऐ  कूड़ी खंद्वार ह्व़े जैन

-तै भ्रष्टाचार कि  मवासी कु रगड़ ह्व़े जैन

- ए बरसक  सौण मा बैगी जैन तै भ्रस्टाचारै  कूड़ी-पुंगड़ी

- ऐंसू बग्वाळ खयाल त खयाल  पण तै भ्रष्टाचार का स्व़ार भार - अनाचार , अत्याचार नि खैन पैन बार त्योवारूं स्वाळ , भूड़ी , पकोड़ी अर लगड़ी
 
- ये निर्भागी तू ऐंसू पास नि ह्व़े ? तू त बुलणो छौ बल फस किलास ऐली !

- गणितौ मास्टर बुल्दो छौ - म्यार इख प्राइवेट  टयूसन म आ.

-साईंसौ   मास्टर बुल्दो छौ घीयक घंटी ला

-प्रिंसिपल बुल्दो छौ बल म्यरा स्याळौ   कोचिंग क्लास मा जा

-- निफटाळि लगी जैन तै भ्रष्टाचार को बुबा लालच -लोभ को

-- द्वढकि  लगी जैन तै भ्रष्टाचार की ब्वे- इच्छा की, चाहत की

-- ये खड़ी फसल मा आग कैन लगाई

-- बड़ो भाई  न खड़ी फसल पर आग लगाई

--खज्यात ऐ जैन भ्रष्टाचार  को सगो भाई जळतमारी को , इर्ष्या को नाश ह्व़े जैन.

- निबौड़ू ह्वाओ यू भ्रष्टाचार,

--ताखिम तड़म  लगी जैन - अफखवा विरती जु पैदा करदो भ्रष्टाचार

-ये किलै नि चौल दाखिल खारिज ?
 
--पटवारी बुलणो च लाओ नै किस्मौ दूण दैज

-- किलै नि कवी  खड्यानु वीं भावना तै जु मांगदि  बनि बनि भौणि  दूण दैज

- ये म्यरो लाटा ! अस्पताल बिटेन नि लै तू दवाई ?

-- सरकारी डाक्टर बुलणो - म्यरो प्राइवेट क्लिनिक बिटेन ली जाओ खूब दवाई

--कुछ त स्वाचो इन किलै ह्वाई

- कुछ त कारो बल फिर भ्रष्टाचार  की नि ह्वाओ घर -बौड़ाइ

-- बैठ बैठिक कुछ नि  होण जब तलक करील्या ना भ्रष्टाचार की ठुकाई, पिटाई

--  सोच सोचिक कतै कुछ  नि होण जब तलक करील्या ना भ्रष्टाचार की थिंचाई

--निंद भजाओ   , बिज़ी जाओ अर करो तै भ्रष्टाचार की खड्डाउन्द  दबाई

- तै भ्रष्टाचार की डांडी सजाओ

--तै भ्रष्टाचार की चिता जळाओ

--तै भ्रष्टाचार तै इन मड़घट मा जळाओ , इथगा जळाओ

-- बल भ्रष्टाचार दुबर  जनम लीण लैक रै इ नि जाओ

 

Copyright@ Bhishma Kukreti , 16/7/2012

-गढवाली हास्य साहित्य , गढ़वाली व्यंग्य साहित्य लेखमाला जारी ...

 

 

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Kya Gori Kya Saunli (1975): portraying female characteristics Satirical means

(Review of Satirical Articles of Prolific Garhwali Satirists)

                              Bhishma Kukreti
[Notes on Satirical Articles; Garhwali Satirical Articles; Uttarakhandi Satirical Articles; Mid Himalayan regional language Satirical Articles; Himalayan regional language Satirical Articles; North Indian regional language Satirical Articles; Indian regional language Satirical Articles; South Asian regional language Satirical Articles; Asian regional language Satirical Articles]

                The original Garhwali modern prose literature started from 1912- 1913. Bhakt Prahlad by Bhavani Datt Thapliyal is first Garhwali drama and ‘Garhwali That’ by Sada Nand Kukreti is first modern Garhwali short story.  Both the pieces of Garhwali prose literature are satirical literature.
                Abodh Bandhu Bandhu Bahguna did not mention any word Vyangatmak Nibandh or lekh in Gad Myateki Ganga (a brief history of Garhwali prose, 1975).
 However, by various means, the article ‘Kya Gori Kya Saunli ‘of Dr. Govind Chatak published in Gad Myateki Ganga (1975, page   65) is satirical article. The writer describes various characters of females differently with humorous ways.
  Dr Chatak uses Garhwali proverbs with intense affectivity as
बात या च कि घर से बड़ी घरवाळी .
**मन लग्यो गधी से त परी को क्या काम? मन कि रोटी छ, खुसी को सौदा. उनो त जवानी मा मेंडुकि सुन्दर दिखेंदी पण उथा पाणी मा रण पर मेंडुकि गोरी नि बौणि पौन्दी ,
** दुनिया मा गोरी जनान्यों तै खूब माणदि
**
चा दिवराण हो चा जिठाण -कु कै से काम छ? तु डंडा त मै तिरसूल
**
कखी नाक कखी नथुली
  The phrases create laughter and irony too.
  The article is serious and has sharp satire too.

Copyright@ Bhishma Kukreti , 16/7/2012
Notes on Satirical Articles; Garhwali Satirical Articles; Uttarakhandi Satirical Articles; Mid Himalayan regional language Satirical Articles; Himalayan regional language Satirical Articles; North Indian regional language Satirical Articles; Indian regional language Satirical Articles; South Asian regional language Satirical Articles; Asian regional language Satirical Articles to be continued…

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गढवाली -हास्य व्यंग्य साहित्य

 

                  भगत  सिंग  पैदा  हूण  चयेंद   

-- बल भुला परिवार की आन शान कि बात च .मुन्डीत  को नाम की बात च . सिंयीं भ

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गढवाली -हास्य व्यंग्य साहित्य

 

                  भगत  सिंग  पैदा  हूण  चयेंद   


               चबोड्या - भीष्म कुकरेती


-- बल भुला परिवार की आन शान कि बात च .मुन्डीत  को नाम की बात च . सिंयीं भयात तै बिजण चएंद.  हम तै कुछ करण चयेंद .

--हाँ भैजी आप सै बुलणा छन, हम तै कुछ करण चयेंद .

--जा अपण नौन्याळु तै उख भेज जां से दुसर मुन्डीत का लोग हमर कूल नि त्वाड़ण . हमम एका हूण चएंद.

- भैजी अपण नौनु तै बि भ्याजो.

-- अरे त्वे पता i  च बल मीन अपण  नौन्याळ  गंगा जी का जौ तरां पाळिन .  इन मा कन कैक ऊं तैं दंगा फसाद मा भेजुं ? भै हमारि भयात मा इथगा नौन्याळ छन ऊं तै जाण चएंद.

--भगत सिंग सौब तै चयाणा छन पण अपुण इख ना, पडोसी क ड़्यार !

--- भाईओ ! म्यार नाम   क्या  बुन्या  क्या  कन्या  च अर  सामाजिक कार्यकर्ता छौं. मी ये बड़ो मच से आप सौबसे प्रार्थना करदो बल हम सौब तै अपण बच्चों दगड गढवळि मा बचळयाँण चयांद .
 
--क्या कन्या   भैजि ! तुम अपण नौन्याळो दगड गढवळि मा किलै नि बचळयांदा?

---अरे दिमाग खराब हुयुं च म्यरो ! म्यार नौनो गढवळी बुलण से अंग्रेजी अर हिंदी खराब नि ह्व़े जालि !

--भगत सिंग सौब तै चयाणा छन पण अपुण इख ना, पडोसी क ड़्यार !

-- मि  फुन्द्यानाथ आप सौब प्रवासी  भाईयों  से प्रार्थना करदो कि हम सौब तै साल  भर  मा अपण  गा  गढ़वाळ जाण चएंद अर उख अपण कूड़ो रख रखाव को पूरो इंतजाम करण चएंद   

--फुन्द्यानाथ भैजी ! गाँ मा आपक कूड खंद्वार ह्व़े ग्याइ  ? वै तै छाणा किलै नि छंवां  ?

--दिमाग  खराब हुयुं च म्यार ? जथगा  पैसा मा मि गौं को कूड छाण या चिणण मा लगौल उथगा पैसा मा त ड्यारा दूण  मा  छ्वटि कोठी लगि जालि.

--भगत सिंग सौब तै चयाणा छन पण अपुण इख ना, पडोसी क ड़्यार !

- भाइयो मि अफलातून  विचारक बुल्दु  बल  गढ़वळि संस्कृति बचाणो एक तरीका च बल हम तै  परदेस मा बार त्यौहारों दिन गढ़वळि खाण पीण बणाण  चएंद जां से बच्चों तै हमारि संस्कृति से परिचय हून्दो राउ.

--अरे अफलातून जी ! क्या बात आज मकरैणि दिन आपक इख पिजा अर चाइनीज चिकन नोड्यूल बण्या छन ?

--हाँ ! मेरो सरो परिवार मोडर्न विचारोंक जि च .

--भगत सिंग सौब तै चयाणा छन पण अपुण इख ना, पडोसी क ड़्यार !

-- मि महान गढ़वळि कवि धुन्धलो  आप सबि साहित्यकारों तै धाद दीन्दो  कि हम साहित्यकारों तै न्यूतो गढ़वळि भाषा म छपण चयेंद.

--अरे धुन्धलो जी ! बधाई हो आपक नौनो ब्यौ च . पण न्यूतो पत्र त हिंदी मा च

--हाँ यार म्यार द्वी चार कवि मित्र हिंदी का छन त ऊंक बान न्यूतो कार्ड हिंदी मा इ छपाण पोड़.

--भगत सिंग सौब तै चयाणा छन पण अपुण इख ना, पडोसी क ड़्यार !

- मि स्यूंसाट  जी छौं अर मेरी राय च कि हम तै अपणि गढ़वळि संस्कृति क दर्शन हौरी लोगूँ तै बि कराण चएंद . जन कि ब्यौ काज मा गढ़वळि गाणा लगाण चएंद जां से दुसर कौम का पौणु  तै  पता लग जाओ कि हमारि संस्कृति क्या च .

-- आपक नौनो ब्यौवक  बधाई हो स्यूंसाट जी. इ क्या वेस्टर्न म्यूजिक को गाणा?

--हाँ जी. म्यार सबि बौस ब्यौ मा अयाँ छन त ऊं तै त  दिखाण इ पोड़ल कि म्यार समाज मोडर्न च

--भगत सिंग सौब तै चयाणा छन पण अपुण इख ना, पडोसी क ड़्यार !

- आण वाळ भगत सिंगों स्वागत च म्यार इख ना,  पडोसी क इख.


Copyright@ Bhishma Kukreti 17/7/2012

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 Talu Mixchar: Satire attacking on dishonesty
(Critical review of Representative Garhwali Satirical Articles and Satirists)

                            Bhishma Kukreti
[Notes on satire attacking dishonesty; Garhwali satire attacking dishonesty; Uttarakhand satire attacking dishonesty; mid Himalayan satire attacking dishonesty; Himalayan satire attacking dishonesty; North Indian satire attacking dishonesty; Indian satire attacking dishonesty; south Asian satire attacking dishonesty; Asian satire attacking dishonesty]
[व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; गढवाली व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; उत्तराखंडी व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; मध्य हिमालयी व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; हिमालयी व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; उत्तर भारतीय व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; भारतीय व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; दक्षिण एशियाई व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; एशियाई व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार लेखमाला ].

                    Dhad magazine published a Garhwali satirical article ‘Talu Mixchar ‘by Naveen Chandra Nautiyal in its September 1988 issue.
  The satire attacks on the dishonest behavior of today’s human beings. The Garhwali satire also deals with the persons who don’t abide their promises. The satire searches that people have ambitions for accepting responsibilities more than their capacity.
     According to Anil Dabral the satire is an average satire in terms of language style and story line.
Reference-
Dr. Anil Dabral, Garhwali Gady Parampara, 2007, (pp425).

Copyright@ Bhishma Kukreti, 17/7/2012
Notes on satire attacking dishonesty; Garhwali satire attacking dishonesty; Uttarakhand satire attacking dishonesty; mid Himalayan satire attacking dishonesty; Himalayan satire attacking dishonesty; North Indian satire attacking dishonesty; Indian satire attacking dishonesty; south Asian satire attacking dishonesty; Asian satire attacking dishonesty to be continued…
व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; गढवाली व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; उत्तराखंडी व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; मध्य हिमालयी व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; हिमालयी व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; उत्तर भारतीय व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; भारतीय व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; दक्षिण एशियाई व्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार; एशियाईव्यंग्य में बेईमानी , असत्य पर प्रहार लेखमाला जारी ..

Bhishma Kukreti

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गढवाली -हास्य व्यंग्य साहित्य

                        राजनीति मा हंसाण वळा वीर

 

                        चबोड्या - भीष्म कुकरेती

 
 
 (राजनैतिक हास्य-व्यंग्य; गढवाली राजनैतिक हास्य-व्यंग्य; कुमाउनी राजनैतिक हास्य-व्यंग्य; उत्तराखंडी राजनैतिक हास्य-व्यंग्य; मध्य हिमालयी राजनैतिक हास्य-व्यंग्य; हिमालयी राजनैतिक हास्य-व्यंग्य; उत्तर भारतीय राजनैतिक हास्य-व्यंग्य; भारतीय राजनैतिक हास्य-व्यंग्य; एशियाई राजनैतिक हास्य-व्यंग्य लेख्मला ]
 
 

    अच्काल मि जख बि जांदु लोकार बुल्दन भै भीषम जी जरा हंसै  देन. अब बतावदि   टी .वी. चैनलुं मा इथगा हंसण वळ प्रोग्राम छन पण हौंसौ  मांग पूरी नि होंदी. हूण बि कन कैक च महगाई जन , भ्रष्टाचार जन अंस्दारी गैस जब भारत मा फैलीं राल्या  त  लोगूँ तै हरदम हंसणो ग्वाळा चयांदी छन.

 -- अब परसि उखम एकन पूछि दे बल अच्काल राजनीति मा सबसे जादा हंसाण वाळ कु कु छन, कु कु छया ?

--अब जन कि  बात गंभीर छे त जबाब दीणि पोड़ .

--पंवार जी बि खूब हंसांदन .

--कनो ?

--ए भै कृषि मंत्री ह्वेक बुल्दन बल सरकार मंहगाई ख़तम करणो कुछ नि करणि च . अब जब मंत्री इ ब्वालल बल सरकार कुछ नि करणि च त मुर्दों तै बि हौंस  आलि कि ना.

--जी बात त सै च भै

- जी इन लगद लाल कृष्ण अडवाणी जी बि हंसौण वाळ भड़ छन

-- क्या बुना छंवां गुरु गंभीर लाल कृष्ण अडवाणी जी अर कौमेडियन  ?

-- कौमेडी करण मा ले क्या च? अब द्याखो ना अडवाणी जी छै साल तलक लौह पुरुष का भेष मा भारत का गृह मंत्री रैन   तब त मा बैणि तलाक  जु अडवाणि जी तै उन्ना देसुं मा (विदेस) काळो धन कि जरा एक डै  बि याद आई होलि  धौं  अर अच्काल ऊं पर रबत लग्युं च बल  भारत कु काळो धन उन्ना देसुं मा च . अब इन मा कै बि गरीब क्या मातबर रून्दा तै .हौंस आई जालि कि ना?

---हाँ !  हाँ!  हौंस त आई जालि. हाँ अडवानी जी बि राजनीति का भला कौमेडियन छन .

-- भारतीय जनता पार्टी बुल्दी बल उत्तर प्रदेश मा उंकी मुख्य विरोधी पार्टी समाजवादी पार्टी च .

---- हाँ ! इखमा   कै तै गलत फहमी नी च बल उत्तर प्रदेश मा भारतीय जनता पार्टी  कि  मुख्य विरोधी पार्टी समाजवादी पार्टी च.

---हाँ ! पण जब डिम्पल यादव निर्विरोध लोक सभा मा पौंछि ग्याई त इन लगद कि भारतीय जनता पार्टी जोकरूं  पार्टी च अर लोगुं तै हंसाण मा सबसे  अग्वाडि  च 

--चौधरी चरण सिंग जी जब ज़िंदा छा अर उत्तर प्रदेश क मुख्य मंत्री छा त छकैक हंसांदा  छया  हिंदी फिल्मो कोमेदियाँ महमूद जी बि चरण सिंग जी से जळदो छा .

-- हैं ! क्या बुन्ना छंवां ? चौधरी जी त गुरु गम्भीर मनिख छया . हौंस त oonk  न्याड़ ध्वार बि नि आँदी छे.

-- हाँ इनी लगद छौ पण..

---पण क्या ?

---  चौधरी जी न फरमान निकाळ बल उत्तर प्रदेश बिटेन अंगरेजी अर अंग्रेजियत तै गबये जाओ, अंगरेजी अर अंग्रेजियत को jad  नाश करे जाओ .

--त ये भै चरण सिंग जी पवित्र भारतीय छया

-- हाँ  चरण सिंग जी न इना उत्तर प्रदेश की स्कूलों-कौलेजों मा  अंग्रेजी पढ़ण- पढ़ाण बन्द कराई अर उना दुसर दिन अपण नौनु तै अमेरिका भेजी द्याई

-- औ तबि त मि बोलूं! कि अजय सिंग तै इथगा फुकानी अंगरेजी कनै आँदी

--हाँ अर इनी मुलायम सिंग जी  बि गुरु क पद चिन्हों पर चलिन. उत्तर प्रदेश मा अंगरेजी क विरोध कार  अर उख अपण नौनौं तै डिल्ली मा अंग्रेजी स्कूल -कौलेजूं  मा भर्ती करे द्याई 

-औ !

--- मुलायम सिंग जी त भौत दै हंसांदा  छया.

--अच्छा ?

--हाँ ! अंग्रेजी भजाणौ  बान मुलायम सिंग जीन उत्तरप्रदेश मा तमिल, तेलगु , कन्नड़ अर मलियालम सिखाणौ संस्थान खोलिन

-- पण या त बडी बढिया बात च बल उत्तर भारतीय द्रविड़ भाषा सीखन . इखमा हंसणौ बात क्या च ?

-- हंसणो बात या च कि  उत्तर प्रदेश कि अपणि भाषाओं जन कि गढ़वळि , कुमाउनी या ब्रज की छ्वीं बात मुलायम सिंग जी न कबि नि कार

-- हाँ हाँ या त हंसणा बात च .

-- अब इनी एक हंसोड्या कलाकार छन अपण डा. रमेश पोखरियाल 'निशंक' जी

-- तन ना बोल भै ! निशंक जीक  सौब किताब त गंभीर अर उपदेश सिखाण वळि छन

-- न्है न्है, निशंक जी बड़ा कौमेडियन  छन भै आर मुलायम सिंग जीक खास च्याला छन !

-- मि  तै त विश्वास नि आन्द . कख मुलायम सिंग जी  कख निशंक जी. दुयूंक मेल होई नि सकुद

--द ब्वालो ! मुलायम सिंग जी न उत्तर प्रदेश की अपणी   बोलि -गढव ळी - कुमाउनी, ब्रज जन भाषा बिसरिक  द्रविड़ भाषाओं विकासौ  बान सरकारी कोष खाली कार . त इख उत्तराखंड मा निशंक जी  न गढवळि अर कुमाउनी भाषाओं तै तिरैक संस्कृत तै राज भाषा  घोषित करी.

-- हो , हो, हां, हा  इन हौंस त मै तै पड़ोसन फिलम देखिक बि नि आई जन हौंस मुलायम सिंग जी अर निशंक जीक स्वांग अर करतब सूणिक आणि च. हु -हु हा- हा --कौमेडियनो फौज .. .हा हू हा हू

- हाँ अर इखि ना  अमेरिका मा बि भौत सा हंसाण वळ स्टेन्डिंग  पौलिटिकल कौमेडियन छन

-- जन कि ?

-- जन कि क्या ! अपण ओबामा जी बि बड़ा पौलिटिकल कौमेडियन छन

--नै नै अमेरिका क राष्ट्रपति अर  कौमेडियन ?

-- ए भै जु अपुण देसौ   आर्थिक स्तिथि ठीक करणौ  बान भारत पर भगार लगाओ कि भारत मा उन्ना देसी ( विदेशी ) निवेश नि हूणु च वै से बड़ो अंतररास्ट्रीय कौमेडियन ku ह्वालो ?

--- हू ! हू ! हां ! हां ! बस भै  अब बन्द कारो पोलिटिकल कौमेडियनो छ्वीं . जख सनी, छन्नी , गौशाला को  हरेक कूण्याम ,  हरेक  आळम स्याळ   बैठया ह्वावन वीं  सनी क चिनखौं  क्या हाल होला ?

 

 Copyright@ Bhishma Kukreti, 18/7/2012

 

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Bhishma Kukreti

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गढवाली -हास्य व्यंग्य साहित्य

 

                                       कॉलेजौ पढाई से नुकसान


                                            चबोड्या - भीष्म कुकरेती


 [ हास्य व्यंग्य साहित्य; गढ़वाली हास्य व्यंग्य साहित्य; उत्तराखंडी हास्य व्यंग्य साहित्य; मध्य हिमालयी हास्य व्यंग्य साहित्य; हिमालयी हास्य व्यंग्य साहित्य; उत्तर भारतीय हास्य व्यंग्य साहित्य; भारतीय हास्य व्यंग्य साहित्य; एशियाई हास्य व्यंग्य साहित्य लेख]

-- बाबा जी ! पता च तुम तै ?

-- क्या ?
 
--- तुम त अंदाज बि नि लगै सकला ! 

--क्या भै ?

-- मै तै आई. आई. टी. मुंबई, आई. आई. टी. खडगपुर इ ना इन्डियन इंस्टिच्युट  अहमदाबाद मा बि ऐडमिसन मिलि ग्याई.

-- अरे वाह ! या त पुळयाणो बात च.खुसी मनाणो बात च . पण ..?
 
- क्या पण ?

--- तू अछेकी यूं कॉलेजूं मा जाण चांदि  क्या ?

--पण बाबा जी तुमि त बुल्दा छा बल हरेक बच्चा तै बढिया से बढिया कॉलेज मा पढ़ण चयेंद .

-- ब्य्टा !  बात त सै च पण कुछ बात बस बुलणो कुण हुन्दन . फिर कथगा इ बड़ा आदिम छन जौन  बड़ा कौलेजुं मा नि पौड़ पण छना त  मतवार . मै नि लगद अपणा शरद पंवार जीन कै बड़ो नामी कॉलेज मा पौड़ी ह्वाऊ  . अपण घनश्याम दास बिड़ला  जी क इतियास बाँचो त मै नि लगद वो बड़ा कॉलेज मा पढ़न से इथगा बड़ा उद्यमी  - इथगा महान उद्योगपति ह्वेन.

-- चुचो ! सि वीडियोकोन का  मालिको तै दिखदि. तिनि भयुंन  अहमदनगर या  पूना क कॉलेजूं   मा पौड़ पण आज दिखदि सि आई .आई.  टी अर आई. आई. ऐम का पड्या लिख्यां लोगूँ तै नौकरी दीन्दन.

--पण आप बि त कॉलेज मा गे छया .
 
--हाँ गे छौ. पण जु मै जाणदु थौ कि कॉलेज की पढ़ाई  लिखै से कुछ नि होंद त मि इंटर  कौलेज मा बि नि जान्दो. वैबरी अकल इ नि छे . फोकट मा म्यार छै सात साल बर्बाद ह्वेन .  अरे कखी सरकारी दफ्तर मा चपड़ासी बि लगदो त  आज घूसौ पैसौ न  अपण कूड होंद अर रिटायर होणो परांत पेंसन पट्टा अलग. अब क्वी बि बाप नि चालो बल वैकी सन्तान बि वै इ गल्थी कार जु बुबा से ह्व़े छे.

--पण तुमन कबि बि नि ब्वाल कि आप न कॉलेज जैक गल्ति कार. उल्टो आप बुल्दा छ्या कि कॉलेज कि पढाई मतबल बिग मैन

--ओ त मि त्वे से इलै लुकान्दो छौ  कि तू मै तै  छ्वटु म्वटु नि मानि. हरेक बुबा अपण नौन्याळो से अपण गल्ति लुकांद. गल्ति से बि अपण गल्ति नि  बथान्द.अब तु बड़ो ह्व़े गे तमी बथै इ  द्यूंद  कि   नौकरी लगणि  नि छे त मीम कॉलेज जाणो अलावा टैम पास करणो  क्वी हैंक  काम नि छौ . इख तलक कि पी.एच .डि क फ़ार्म बि इलै इ भौर छौ कि टाइम पास करणो कुछ हौरी काम इ नि छौ.  अर जनि मै तै काम मील मैन  इ नि द्याख कि पी.एच डी. होंद क्या च.

-- मीन त सोची छौ कि तुम भौत पुळेलि (खुश) हवेल्या कि टॉप कौलेजूं न बि मान कि मि भारत का होशियार अर होनहार  छात्र छौं.

-- ओहो खुस त मि छौं. अरे हौर्युं स्वीकृति से हम होशियार थुका हूंदा . तू त अपणो आप मा होनहार छे. तू कै बि ऐरा गैरा  कॉलेज मा बि पढ़लि त वै कौलेजौ नाम बड़ो ह्व़े जालो .

-- पण ब्व़े कि बड़ी गाणि च बल मि कै नामी गिरामी विश्व प्रसिद्ध कॉलेज मा तालीम ल्यूं .

--अरे ब्यटा   यि सौब दिखाणा बात हून्दन. भै जब कैकु नौनु नामी कॉलेज मा पढ़दो त ब्व़े क अहंकार मा हौस मा वृद्धि होंद अर न्याड़ ध्वारो लोगूँ अर रिश्तेदारों पर धौंस जमाणो एक जरिया हुंद  . या बात त दुसरो पीठ मा सत्तू छोळणो बात ह्व़े .

--- त बुबा जी मि क्या कौरू ?

-- अरे अब त तू समजदार नागरिक ह्व़े गे भै. गांवक सि बात हूंद त  तीन अर मीन दगड़ी बैठिक हुक्का पीण छौ. अब त त्वे तै खुद निर्णय लीण चएंद. तेरी जगा मि ले हूंद त मीन कै एन. जी. ओ. की मदद से भारत भ्रमण पर जाण छौ . जिन्दगी का असली अनुभव दूसरों पैसा से भ्रमण से हुंद.

-- बुबा जी एक बात पूछूं ?

--हाँ हाँ एक ना द्वी पूछ बेटा.

आपक कुड़कि त नि ह्व़े ग्याई ?

-- ना ना ब्यटा अबि तलक कुड़कि त नि ह्वाई पण हां जु तू इथगा बड़ा कॉलेज म एड्मिसन लेलि त फीस इ फीस मा इखक एक रूमौ फ़्लैट अर गढ़वाळौ कूड़ी पुंगड़ी बिकि जाला  अर बकै खर्चा  बान कुज्याण क्य होलु धौं .

-- त ठीक च , पापा मि कै म्युनिसपैलिटी क कॉलेज मा भर्ती ह्व़े जान्दो.

-- साबास ब्यटा. तीन मै तै कुडकी होण बचै द्याई.


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Bhishma Kukreti

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Jab Mai yampuri Gayo:  Speaking Contemporary Problems satirically
(Analysis of Representative Garhwali Satirical essays and Satirists)
                             
                        Bhishma Kukreti
 Nathi Cahnd is the writer of a Garhwali satire ‘Jab Mai yampuri Gayo’ published in September Dhad 1988).
    Ghimandu could not get seat for heaven as being a Garhwali laborer living in plains. However, bribe is a must for getting seat in hell too. Nathi Chand tries to push contemporary issues without required imagination. The satire is an average satire.
Reference-
1--Dr. Anil Dabral, Garhwali Gady Parampara, 2007, (pp425).
2-Dhad, September, 1988, issue
Copyright@ Bhishma Kukreti, 18/7/2012   

 

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