अन्धविश्वास ने पहाङ के शिक्षित और अशिक्षित लोगों को अब भी बुरी तरफ जकङ कर रखा है. इसी विषय पर "दुदबोलि-2006" से कुमांउंनी कवि उदय किरौला जी की एक कविता-पुराण सब खतम हैगो, गौं बाखई उज्याव हैगोI
कम्प्यूटर गौं-गौं पुजिगो, विज्ञानौ जमान ऐगोII
भूता रूणीं जगां आब, मकान बणि गयींI
तिथांणा* ढूंग माटैल, मकान सब सजि गयींII
भूता चक्कर में आज गौं मैंस खतम हैगो,
घर कुङि बेचि बेर, हिरदा पित्तर बगै ऐगोII
अस्पताल नामैके छन देपाता पर्च खतम हैगींI
सैणीं भूत पुजना लिजि डाक्टर सैब घर ऐगींII
बीमार कैं अस्पताल दिखाओ मन पक्को करि भै पूजोI
नान कूंणी भूत पुजणियोI भूता बजाय मैंस पूजोII
*तिथांण - श्मशान घाट