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Articles & Poem on Uttarakhand By Brijendra Negi-ब्रिजेन्द्र नेगी की कविताये

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Brijendra Negi:
कच्ची


    (103)

गरम-गरम पक्वड़ि तैलि कि
दगड़ एक गिलास मा कच्ची,
काचु प्याज अर लूणा गारि,
खाँदम धैर दीण सच्ची।

नरक रिंगणी रैलि आत्मा
तरसणी रैलि कच्ची खुण,
स्वर्ग पौंछली यूंकि आत्मा
खाँदम धर्दी एक पव्वा कच्ची।


    (104)

कच्ची यूंकि खाणि-पीणि
कच्ची यूंकि दवै सच्ची,
जिकुड़ी मा रैन्द कच्ची यूंकि
सांस चल्दीं पेकि कच्ची।

कमान्दा छीं कच्ची खुण
जीवन खर्च कच्ची खुण,
बच्याँ छीं कच्ची खुण
म्वरण यूंल पेकि कच्ची।

..............

Brijendra Negi:
मैं निशब्द हूँ

(19)

मानव की निष्ठा में
नित पनपते छल-कपट से
                    स्तब्ध हूँ
              मैं निशब्द हूँ।

छल-कपट की निष्ठा में
नित बढ़ती धूर्तता से
               स्तब्ध हूँ
         मैं निशब्द हूँ।


(20)

व्यक्ति के अनुराग  में
नित पनपती छद्मता  से
                 स्तब्ध हूँ
           मैं निशब्द हूँ।

छद्मता के अनुराग में
नित बढ़ते अपराध से
              स्तब्ध हूँ
         मैं निशब्द हूँ।

क्रमश-------

Brijendra Negi:
मैं निशब्द हूँ


(21)

मानव की सहनशीलता में
नित बढ़ती शिथिलता से
                  स्तब्ध हूँ
             मैं निशब्द हूँ।

शिथिल सहनशीलता में
नित घटती   चेतना  से
                   स्तब्ध हूँ
             मैं निशब्द हूँ।


(22)

व्यक्ति   के   धर्म     में
नित बढ़ती धर्मांधता से
                 स्तब्ध हूँ
           मैं निशब्द हूँ।

धर्मांधता के धर्म में
नित बढ़ते अधर्म से
             स्तब्ध हूँ
        मैं निशब्द हूँ।


क्रमश....

Brijendra Negi:
मेरा पहाड़



मेहता जी तेरे-मेरे पहाड़ के,
दर्शन “मेरे पहाड़” में ।
बस इतना ही बचा अब,
तेरे-मेरे पहाड़ में ।


इंसान सारे बह गए,
शहरों की बयार में।
शैतानो का वास रहा गया,
तेरे-मेरे पहाड़ में ।


रिक्ख-बाघ-सुअर-बंदरों से
हर गाँव-गली त्रस्त है।
तेरी-मेरी टूटी घर-गौशालाओं में,
अपनी उत्पत्ति में मस्त हैं। 


मेहता जी तेरे-मेरे पहाड़ के,
दर्शन “मेरे पहाड़” में ।
बस इतना ही बचा अब,
तेरे-मेरे पहाड़ में ।

Brijendra Negi:
मैं निशब्द हूँ।


(23)

व्यक्ति के उपकार में
नित बढ़ते स्वार्थ से
             स्तब्ध हूँ
        मैं निशब्द हूँ।

स्वार्थ के  उपकार में
नित बढ़ती अपेक्षा से
              स्तब्ध हूँ
        मैं निशब्द हूँ।


(24)

व्यक्ति के प्रतिकार में
नित  बढ़ते  घात से
            स्तब्ध हूँ
        मैं निशब्द हूँ।

घात  के  प्रतिकार  में
नित बढ़ती नृशंसता से
                स्तब्ध हूँ
           मैं निशब्द हूँ।

क्रमश....

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