Author Topic: उत्तराखंड पर लिखी गयी विभन्न किताबे - VARIOUS BOOKS WRITTEN ON UTTARAKHAND !  (Read 180311 times)

umeshbani

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श्रीमान दीपक कार्की भी  अच्छे कुमाउनी कवि है

umeshbani

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श्रीमान दीपक कार्की भी  अच्छे कुमाउनी कवि है इनकी कई सव रचित रचाने कुमोनी काब्य संकलन मे है

umeshbani

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there are many mistakes in writing in Hindi pls ignore mistakes

हेम पन्त

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Umesh ji plz provide details of Karki ji's book and address of publisher etc...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Many-2 Congratulation to Paur Ji on Releasing his book "“उकाल-उंदार” - पाराशर गौड़ "

अन्तरजाल पर साहित्य प्रेमियों की विश्राम स्थली  मुख्य पृष्ठ
03.17.2009
 
हिन्दी राइटर्स गिल्ड की कहानी कार्यशाला - 2
समाचार
 
 फरवरी, २००९ – कार्यक्रम का अगला चरण कहानी कार्यशाला का था। भगवत शरण जी ने अपनी कविता “तुम्हारी छवि” का पाठ किया। पाराशर गौड़ ने अपनी कहानी अधूरे सपने की चर्चा करते हुए कहा कि कहानी आकाश से नहीं उतरती अपितु अपने आस-पास घट रहा है वही कहानी है। भुवनेश्वरी पांडे ने अपने बचपन में पढ़ी हुई कहानियों को याद किया। राकेश तिवारी जो कि हिन्दी टाइम्स साप्ताहिक समाचार पत्र के प्रकाशक व संपादक हैं ने कहा कहानी वस्तुतः स्थिति का बयान है। उन्होंने हाल में ही हुई घटना जिसमें मिसीसागा में तिरंगे का अपमान हुआ उसकी चर्चा करते हुए कहा कि कहानी तो उस दिन भी घटी है। आचार्य संदीप त्यागी ने कहा साहित्य शास्त्रियों का कहना है कि कविता की कसौटी गद्य होता है। कहानी में कहानी के उद्देश्य की पूर्ति होना आवश्यक है। उन्होंने प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद की कहानियों को अपनी प्रिय कहानियाँ बताया। उन्होंने उदाहरण स्वरूप अपनी कविता “जवां भिखारिन” का पाठ करते हुए कविता के मूल में कहानी का होना प्रमाणित किया। डॉ. शैलजा सक्सेना ने कहानी की चर्चा करते हुए निर्मल सिद्धू की कहानी “अस्थि कलश” की विस्तार से समीक्षा की। उन्होंने हिन्दी राइटर्स गिल्ड के ई-सदस्य अमरेन्द्र कुमार के ब्लॉग पर कहानी पर लिखे हुए आलेख की भी चर्चा की और उपस्थित सदस्यों को प्रोत्साहित किया कि वह अमरेन्द्र के ब्लॉग पर जाकर अमरेन्द्र का कहानी के विषय में लिखा आलेख अवश्य पढ़ें। राज महेश्वरी ने कहा “कहानी वही अच्छी होती है जो अच्छी लगती है।“ उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक मानव कहानी लिख सकता है और उन्होंने हँसते हुए बताया कि उनकी नातिन की कहानी सारा-सारा दिन ख़त्म ही नहीं होती। आशा बर्मन कहा कि कहानियों से हमारा परिचय तो बचपन से ही आरम्भ हो जाता है। उन्होंने प्रेमचंद की कहानियों में पात्र के अनुसार भाषा की विविधता की प्रशंसा की। उन्होंने आगे बचपन का संस्मरण सुनाते हुए बताया कि कैसे उनके दादा जी को भी प्रेमचंद की कहानियाँ सुनना बहुत अच्छा लगता है। कहानी लिखने के विषय में बोलते हुए उन्होंने बताया कि बचपन में जब घर-मोहल्ले के बच्चे जब उनके पिता जी को घेर कर कहानी सुनाने का आग्रह करते थे तो पिता जी कहानी शुरू तो करते थे पर उस कहानी के हर चरण को बच्चों द्वारा ही आगे बढ़वाते हुए एक सार्थक अंत करते थे। उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपने जीवन के अनुभवों के विषय में ही लिखना चाहिए। निर्मल सिद्धू ने अपनी कहानी की समीक्षा के लिए डॉ. शैलजा सक्सेना का धन्यवाद किया और उन्होंने कहा कि कहानी केवल किसी समस्या की चर्चा ही नहीं करे बल्कि उसका समाधान भी सुझाए। उन्होंने अपने विद्यार्थी काल में पढ़े चंद्रधर शर्मा गुलेरी को अपना प्रिय लेखक बताया। सरन घई ने अपनी नई पत्रिका के प्रकाशन की घोषणा की और एक लघुकथा सुनाते हुए कहा कि इस कहानी में पात्रों का परिचय नहीं देने की आवश्यकता नहीं बल्कि हर पात्र का परिचय स्वतः होता चला जाता ही। कार्यशाला का अन्त सुमन कुमार घई ने किया।



भगवतशरण श्रीवास्तव, पाराशर गौड़, सोहनी गौड़, डॉ. शैलजा सक्सेना पीछे विजय विक्रान्त

shailesh

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Source : http://e-goriganga.blogspot.com/search?updated-min=2009-01-01T00%3A00%3A00%2B05%3A30&updated-max=2010-01-01T00%3A00%3A00%2B05%3A30&max-results=6

हुणदेश व्यापार केन्द्रित तीन पुस्तकों का विमोचन
पूर्व घोषणा के अनुरूप भारत तिब्बत व्यापार पर लिखी गई तीन महत्वपूर्ण पुस्तकों, (1) Hot Pursuit of Kazakh Bandits by a Johari Trader, 1941, (2) Travails of Border Trade तथा (3) Caravan to Tibet, का विमोचन जिसका आयोजन समारोह जोहार मिलन केन्द्र, हल्द्वानी तथा मल्ला जोहार विकास समिति, मुन्स्यारी द्वारा दिनांक 22 मार्च,2009 किया गया । यह समारोह दुर्गा सिटी सेंटर, हल्द्वानी में 3-6 बजे सांय में आयोजित किया गया जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों से आये 250 से अधिक लोगो ने भाग लिया जिसमें मीडिया, प्रेस तथा लखनऊ, दिल्ली, मुन्स्यारी, देहरादून तथा नजदीक के स्थान भीमताल, नैनीताल, उधमसिंह नगर से आये प्रतिभागी शामिल हुये।
प्रमुख गैरसौका प्रतिभागियो मे प्रो. अजय रावत, डा. गिरिजा पांण्डे, श्री आनन्द बल्लभ उप्रेती, सम्पादक पिघलता हिमालय, श्री दिवाकर भट्ट, संपादक आधारशिला, पूर्व आई.जी. पुलिस श्री बचखेती , श्रीमती जया गुप्ता सहित हल्द्वानी नैनीताल के स्थानीय प्रबुद्ध नागरिक शामिल थे। सौका समाज के करीब सभी आयुवर्ग के लोग पुरूष व महिलायें उपस्थित थे ।

समारोह का आयोजन व्यवस्थित ढ़ग से किया गया था प्रतिभागियों के यथोउचित स्वागत तथा आरामदायक बैठने, पानी, अल्पाहार आदी की बढ़िया व्यवस्था की गई थी।
हल्द्वानी में तीन उच्चस्तरीय पुस्तकों के विमोचन को सहज में एक एतिहासिक घटना माना जा सकता है जिससे हल्द्वानी में गंभीर प्रकाशन को शुरू कर उसे प्रमुख शिक्षा केन्द्रो में ला खड़ा किया है। हल्द्वानी में अभी नैनीताल में कंसल व नारायण बुक डीपो सरीखे उच्चस्तरीय पुस्तकों के दुकानो का अभाव है तथा ऐसी पुस्तकों को प्राप्त करने में अति कठिनाई होती है।

श्री गजेन्द्र सिंह पांगती, अध्यक्ष जोहार मिलन केन्द्र ने बहुत सुयोग्य समारोह संचालन किया। पुस्तकों के लोखकों तथा उनके प्रकाशकों के बारे में श्री हीरा सिंह धर्मसक्तू, श्री गजेन्द्र सिंह पांगती तथा डा़. नारायण सिंह पांगती ने श्रोताऔं को विस्तार से अवगत कराया।

तदुन्तपराय, लेखकों ने विस्तार पूर्वक अपने पुस्तकों के बारे में बताया। श्रीमती दीपा अग्रवाल ने बताया कि वह किस प्रकार अपनी माता नैन्सी जोशी व पिता डा. आर्थर रावत तथा श्री ईन्द्र सिंह रावत और डा़ शेर सिंह पांगती जी के पुस्तकों से प्रभावित हुई। अब डा़ शेर सिंह पांगती जी के पुस्तक “ हाट परस्यूट आफ कज्जाकी बैन्डिटस ” (बिमोचित हो रही दूसरी पुस्तक) को जानने के बाद उन्होने माना कि शौका व्यापारियों के बहीदुरी के किस्से जिन्हे उन्होने बचपन में सुना तथा पुस्तक में पढ़ा तथा अपनी पुस्तक में लिखा वह महज कल्पना न थी बल्कि वास्तविक घटनायें थी। उन्होने कहा कि आज अपनो के बीच अपने को पाकर बहुत खुश है तथा उनके कार्यो को मान्यता दिये जाने से वे काफी उत्साहित हुयी है। डा़. नारायण सिंह पांगती ने एल्मार ग्यापा द्वारा लिखित व डा़ शेर सिंह पांगती द्वारा अनुवादित पुस्तक के प्रकाशन की भूमिका विस्तार से बताई कि किस प्रकार उनकी पत्नी श्रीमती जया ने इस विषय पर रुचि लेना शुरू किया और उन्होने अपने स्व. पिता के साहसिक कारनामों को प्रकाशित कर के उसे अपने माता पिता को उनके प्रसाद स्वरूप समर्पित करने का निर्णय लिया। डा़ शेर सिंह पांगती नें इसे अनुवाद करने के तथा श्री ग्यापा के साथ के अनुभवों को बताया। श्री भवान सिंह रावत अपने पश्चिमी तिब्बत के लम्बे व घटनापूर्ण कार्यकाल के अनुभवों से सभी को अवगत कराया जिसमें उन्होने चीनी अधिकारियों से व्यवहार जो राजनीतिक बदलाव के साथ किस प्रकार बदल गयीं को रोचक ढ़ंग से प्रस्तुत किया। उन्होने बताया कि श्री लक्ष्मण सिंह जागपांगी जिन्हे उत्तराखंड के प्रथम पद्मश्री होने का गौरव प्राप्त है उनकी तिब्बत व्यापार में मुख्य भूमिका होने से उनके संबन्ध में उनके जीवनबृत तथा कार्यो पर एक खंड़ उनकी पुस्तक में जोड़ा गया है।
लेखकों के बाद सर्व श्री सुरेन्द्र सिंह पांगती, उ.प्र. के सेवा निवृत वरिष्ठ सिविल अधिकारी, श्री आनन्द बल्लभ उप्रेती, सम्पादक पिघलता हिमालय, प्रोफेसर अजय रावत ने भी कष्टदायक शौका जीवन व तिब्बत व्यापार बिषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किये तथा लेखकों के अथक प्रयासों की भूरी भूरी प्रशंसा की।
इस आयोजन के मुख्य अतिथि श्री शेर सिंह रावत, सेवानिवृत संयुक्त सचिव, भारत सरकार ने विस्तार से बताया कि किस प्रकार वे श्री भवान सिंह रावत के पुस्तक के लिखे जाने के दौरान उससे जुड़े रहे और उनके पुस्तक के सुधार के सुझावों को श्री रावत ने सहर्ष स्वीकार किया। उन्होने आशा व्यक्त किया कि श्री रावत के बढती उम्र तथा गिरते स्वास्थ्य के वावजूद यह उनके नये कैरियर की शुरूवात है और वे शीघ्र और अन्य पुस्तके लिखेंगे। उन्होने उनके इस पुस्तक के हिन्दी में अनुवाद कराने की आवश्यकता पर भी बल दिया ताकि सारे शौका समाज में इसका पठन सुलभ हो सके।

इस आयोजन के अध्यक्ष डा. आर.एस. टोलिया, मुख्य सूचना आयुक्त, उत्तराखंड ने तीनों पुस्तकों, जो आज बढ़ते जोहारी साहित्य में शामिल हुये हैं, से प्रत्येक के वास्तविक महत्व को समझाया। दीपा अग्रवाल की पुस्तक तिब्बत व्यापार पर आधारित पहली बच्चो की किताब है अतः इसे हमारी नई पीढ़ी को पढ़ाने को उपलब्ध कराने की जरूरत है क्योंकि इसके उत्कृष्ट लेखन, सुलभ प्रस्तुति तथा विश्वस्तरीय बाल साहित्य होने की वजह से इसे हाल ही में अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है। एल्मार ग्यापा-शेर सिंह पांगती में एक बहादुर व जांबाज जोहारी की कथा है जिसके द्वारा कज्जाक लुटेरों का पीछा किया जो न बहुत बड़ी संख्या मे थे वरन पूरी तरह हथियारों से लैस थे, इसे पढ़ने की संस्तुति हमारे नवयुवको व नई पीढ़ी को प्रेरित करने के लिये की जाती है। अंत में श्री भवान सिंह रावत की पुस्तक इस लिये खरीदी जानी चाहिये क्योकि यह पश्चिमी तिब्बत पर राजनैतिक व क्षेत्रीय इतिहास को उजागर करता है तथा हुणदेश व्यापार के भीतरी राज तथा कई अन्य तथ्यो से जो अब तक अज्ञात थे से रूबरू कराता है। इसमे कोई शक नहीं कि ये तीनो पुस्तके न सिर्फ उनके लेखकों, प्रकाशको बल्कि बहीदुर सौका समुदाय के गौरव का विषय है और इन्हे सफलता व प्रेरणा के लिये पढ़ने के लिये संरक्षित करने की आवश्यकता है।
इसमें आश्चर्य नहीं कि समारोह स्थल पर इन पुस्तको को खरीदने की भीड़ लग गई। दीपा अग्रवाल की सारी पुस्तके बिक गई और लोग यह जानने को आतुर थे कि वे कहां मिलेंगी । भवान सिंह जी के आठ हजार रुपयों से अधिक की बिक्री हुई जो मल्ला जोहार समिति, मुन्स्यारी के कापीराईट अधिकार में है। हाट परिस्यूट ने भी अच्छी बिक्री की।

योजनानुसार दूसरा पुस्तक विमोचन मन्स्यारी मे जून, 2009 में होना तय है अतः इच्छुक व्यक्ति इन्हे वहां खरीद पायेंगे। जो इन्तजार नहीं करना चाहते वे हाट परिस्यूट को डा़. नारायण सिंह पांगती, दृश्टि या भोटिया पड़ाव तथा भवान सिंह जी के पुस्तक के लिये श्री गोविन्द सिंह पांगता, नानासेम ( मल्ला जोहार समिति, मुन्स्यारी) से प्राप्त कर सकते हैं। दीपा अग्रवाल की पुस्तक के लिये नजदीकी पुस्तकों की दुकान जहां Poppins Publishers ( Children’s wing of Penguin books international) की पुस्तकें मिलती हों से संम्पर्क करें।
समारोह का समापन आयोजको की तरफ से श्री गणेष सिंह मर्तोलिया, आई.पी.एस., कमान्डेन्ट पी.ए.सी., रूद्रपुर के धन्यवाद भाषण द्वारा हुवा।


Parashar Gaur

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From: Dr. Ashok <dr.barthwal@live.com>
Date: 2009/3/24
Subject: कनाड़ा मे भी पहाड़ की धूम
To: mumbai@younguttaranchal.com



Dear friens,

We appreciate the efforts of our Uttranchali Pravasees of Canada for keeping our Sanskrit & kala live. Good news our Parashar Gaur ji is return back home from long time hospitalization had injuries on head, shoulder & neck.. Now his health is improving.Gaur ji is a father of Garhwali/Uttaranchali cinema has made first Garhwali flim Jagwal. Gaurji is only one has given our Kala & Sanskrit globally recoginization. We have no words for his appreciation. Gaurji  please do share your valuable experiences and guide us time to time in  future also

 

Report on lokarpan samaroh of his  book “उकाल-उंदार” & other activities is for reference of all of us.

 

With warm regards,

 

Dr. Ashok (Mumbai)

   
कनाड़ा मे भी पहाड़ की धूम-

Posted: 19 Mar 2009 08:17 AM PDT


पाराशर गौड़ की पुस्तक “उकाल-उंदार” का लोकार्पण किया गया। “उकाल-उंदार” गढ़वाली की कविताओं और उनके हिन्दी अनुवाद का द्विभाषीय संकलन है; और इसी कारण से यह अनूठी पुस्तक है क्योंकि अभी तक भारत से बाहर प्रकाशित इस शैली की यह पहली पुस्तक है। पाराशर गौड़ ने हिन्दी राइटर्स गिल्ड को इस नये प्रयास की नींव डालने के लिए धन्यवाद और बधाई दी। उन्होंने कहा कि लोक भाषा को जिस तरह से विदेश में मान मिला है वैसा तो भारत में भी नहीं मिलता। इसके पश्चात उन्होंने अपनी पुस्तक में से चार कविताओं का पाठ किया। सुमन कुमार घई ने पुस्तक के विषय में बोलते हुए बताया कि इस पुस्तक के लेखन का काल १९६५ से १९७५ है। इस पुस्तक की अधिकतर कविताएँ उतरांचल की माँग के जनान्दोलन से उत्पन्न हुई हैं। कविताओं में आंचलिक आक्रोश, कुंठा और विवशता की अभिव्यक्ति है। पाराशर गौड़ का कवि के रूप में एक अपरिचित रूप है क्योंकि इस समय वह व्यंग्य-हास्य और कोमल भाव की कविताओं के लिए जाने जाते हैं। डॉ. शैलजा सक्सेना ने पुस्तक की चर्चा करते हुए कहा कि इन कविताओं में व्यक्त आक्रोश केवल उत्तरांचल का आक्रोश नहीं अपितु उस काल के हर युवा का आक्रोश है। राजनैतिक व्यवस्था, भ्रष्टाचार और लालफीताशाही से कुंठित समाज का आक्रोश है। उन्होंने पाराशर जी को धन्यवाद दिया कि हिन्दी कविता में आंचलिक शब्दों के प्रयोग से उन्होंने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है।
अगले चरण में जसबीर कालरवि ने अपनी लोकार्पित पुस्तक “रबाब” में से दो रचनाएँ सुनाईं और दो नई कविताएँ सुनाईं। कैनेडा के हिन्दी साहित्य जगत में जसबीर कालरवि का नाम नया है। उनकी कविताओं में एक नई ताज़गी है और क्योंकि वह मूलतः पंजाबी के कवि हैं; तो उनकी कविता में पंजाबी का रंग आ जाना स्वाभाविक ही है और इससे उनका लेखन हिन्दी साहित्य के जानकारों को सुखद विस्मय की अनुभूति देता है।
parashargaur@yahoo.com
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हेम पन्त

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"Diddi - My mother's Voice" is written by Ira Pande as a tribute to her mother, the Hindi writer Shivani. Shivani is author of more than 40 books, many of which were serialised in the literary magazine Dharmayug, Shivani had a fanatical following among her millions of readers. After her death in 2003, her daughter Ira translated a selection of her writings into English, with a commentary on her charismatic mother, and their proud and eccentric Brahmin family. She wrote the same commentary in Hindi, interspersing the original stories with personal insights. Set in the Kumaon hills in the lower Himalayas, her narrative brings fiction and memoir together into a compelling portrait of a changing society.

Devbhoomi,Uttarakhand

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grate bhaiyon uttarakhand paradharit in kitabon ke baare main jaan kari ke liye aap sabhi bhaiyon ka bahut bahut dhanywaad

Parashar Gaur

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गड्वाली किताबे व लेखक कब /किसने /लिखी
 
सम्बत /सन    किताबों नौ                 लेखक                           बिषय
 
९६             गड्वाली पवण              सल्किरम वैष्णव                गड्वाली मैण/अखण
१९५२          जैनंद गरुव गान           शान्ति प्रकाश                     गुण गान
१९५३           नौबत                   चक्क्र्धर बहुगुणा                 गीत/मंगल
१९६५           बुरांस                    गणेश शर्मा                      कविता
१९७३           दो नाटक                 अबोधबंधू बहुगुणा                 नाटक
१९७४           गड्वाली लोक न्रत्य          डा सिबानंद नौटियाल             गीत/ न्रत्य
१९७६            घोल                      अबोधबंधू बहुगुणा                पुराने गीत /मंगल
१९७६            गाद मेटी गंगा              अबोधबंधू बहुगुणा                 ड्वाली लेख
१९७७            फंची                       लोकेसा नवानी                    कविता
  "                   बटोई को रैबार               पूरनचंद पथिक                     कविता
१९७८             हिमाला को देश              दीनदयाल बन्दुनी                      "
  "                    अन्ज्वाल                    स्व  कनह्यालाल डन्ड्रियल               "
१९८०          `   धै                         ७ कबियो की रचना
                                   (    पराशर/नेत्र सिंह/ उनियाल                     "
                                                   कनह्यालाल डन्ड्रियल आदि  )     
"                      वीरबधू देवकी               भजनसिंह                               "
१९८१            शैलवाणी (१७५० से लेकर आज तक कबियो की रचना)                        कबिता
  "                   गारी                       दुर्गेश घिदियाल                       कहानी
१९८२          ` खिल्दा फूल -हंसदा पात        ललित केसवान                       कबिता
  "                   रमछोल                      चंदरसिंह राही                           "
१९८३             बुग्याल                       सरस्वती शर्मा                       मैगजीन
 "                     गुठ्यार                       रघुबिरसिंह अयाल                     कबिता
 "                      धुयाल                       अबोधबंधू बहुगुणा                       
 "                    जग्वाल                        पराशर गौड़             फ़िल्मी कहानी /पटकथा
 "                    जंगलमाँ -मंगल                 भवान सिंह अकेला                     कबिता
१९८४            कांठा माँ आन से पैली            देवेंदर जोशी                             "
 ''                    गद्गुन्जन                                                               "
१९८५           इल्मातुदादा                     जीवानंद खुगशाल                       "
 "                   गायत्री की बोई                   सुदामा प्रसाद प्रेमी                     कहानी
१९८६            हरी हिन्द्वान                    ललित केसवान        natak           
 "                    शेरू                           भीमराज कटैत                         पनयास
 
 नोट : छापने से पहले  संग्रहकर्ता से अनुमति लेनी आवश्यक है.  या नाम देना जरुरी है
                                                                                         संग्रहकर्ता   ; पराशर गौड़

 

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