From pkathaitji@yahoo.co.in
प्रिय दिदो भूलो नमस्कार,
वक़्त नि हम लोगो मा क्या कन बिस्तर लगया छन घरों मा पर सेना कु वक़्त नि चा, खान्ड़ो थे रोटी पड़ी छान पैर भर पेट घुल्नो थे वक़्त नि, वक़्त मिलन कख बती चा भाइयो हम लोगो थे पैसा कमान से फुर्सत ही नि चा, त अपड़ी इ सस्कृति / बोली बचोना का खातिर वक़्त कख बटी मिलालू,
वक़्त निकला भयों नितर एअक दिन इनो आलो की गड्वाली बोली सझना को भी वक़्त नि रालो, अपना ऊं बांजा पुगड़ो थे देखि आवा, गों गोला हेरी आवा अपना रिश्तेदारओ थे मिलना जावा, साल मा एअक चकर कम सी कम अपनों गों को लगवा अपनी बोली भाषा संस्कृति थे गला लगावा, अपनों का दगडी अनपी बोली मा बात करा यही मेरो आप सब सी अनुरोध चा की अपनी पछान न हर्चावा.
आपको भाई
प्रवीण कथेत