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hum kyun nahi sikhate apne bacchon ka pahari

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Author Topic: Why Do We Hesitate in Speaking our Language? अपनी भाषा बोलने में क्यों शरमाते हम  (Read 59833 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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From pkathaitji@yahoo.co.in

प्रिय दिदो भूलो नमस्कार,

वक़्त नि हम लोगो मा क्या कन  बिस्तर लगया छन घरों मा पर सेना कु वक़्त नि चा, खान्ड़ो थे रोटी पड़ी छान पैर भर पेट घुल्नो थे वक़्त नि, वक़्त मिलन कख बती चा भाइयो हम लोगो थे पैसा कमान  से फुर्सत ही नि चा, त अपड़ी इ सस्कृति / बोली  बचोना का खातिर वक़्त कख बटी मिलालू,

वक़्त निकला भयों नितर एअक दिन इनो आलो की गड्वाली बोली सझना को भी वक़्त नि रालो, अपना ऊं बांजा पुगड़ो थे देखि आवा, गों गोला हेरी आवा अपना रिश्तेदारओ थे मिलना जावा, साल मा एअक चकर कम सी कम अपनों गों को लगवा अपनी बोली भाषा संस्कृति थे गला लगावा,  अपनों का दगडी अनपी बोली मा बात करा यही मेरो आप सब सी अनुरोध चा की अपनी पछान न हर्चावा.

आपको भाई
प्रवीण कथेत

Devbhoomi,Uttarakhand

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प्रिय  बन्धुवों
 
मेरु  अपणु   अनुभव  च  की   जब भी  हम अपणा  कै  पर्वतीय भै   दगडी  गढ़वाली   मा बोल्दा बच्यान्दा
  ता अक्सर जवाब मिल्दो  की 
  "हमारे को गढ़वाली   नही आती  है  पर समझ जरूर जाते हैं" 
मी जब पूछदों  कि किले नि औंदी तो उतर मिलदा   कि ..........
 
एक तो पहाड़ से सम्पर्क नही रहा  और   दूसरा  ये कि  घर मे  भी ज्यादा बोलते नही  ....
 
जब  पूछी कि .......तुमारू घोर कख च  त जवाब मिली  कि  पहाड़ों में ही कहीं है  मालूम नही   कभी गया ही  नही
 
बचपन मे से ही हम लोग   गाँव छोड़ आ गए थे र  फ़िर नही गए
मिन बोली त  किले नि  छाँ  सिखणा .. त उत्तर मिली कि....
 
 "शर्म  आती है बोलने मे   अगर कहीं गलती होगई तो लोग हंसेंगे...
मिन समझाय  कि   अगर क्वी हैन्सलो   त  एक  ही दोँ    त  हैंसालो  ....भाई  ....बार बार  थोडी हैंसालो
 
हैसण  द्या वे तैं   भाई 
कै का  हैसण  से क्वी नुक्सान नि होन्दू ...
 

....  ईं दुनिया माँ शायद ही  एनु क्वी  आदिम   होलु जो अपनी बोली भाषा नि  जन्दु  हो 
 
हम दूसरा भाषा बोली नि जनदा या बात समझ माँ ऐगी लेकिन अपनी बोली नि जनदा
यो  बात जम्मा  नी   जमणि च   ...
हमारी बोली ही  ता हमारी ताकत च हमारी संस्कृती च  हमारी मान और मर्यादा भी ...
 
 हमारा    पूर्वज    .....आस्मान बीटी देखना ह्वाला     और सोचना होला की....  नि बचदी बोली हमारी   आब  कई भी हालात माँ ....
ये !!!!!! "  कानी छोड़ी   हमारा  नौनु  ना अपनी प्यारी बोली त...आज का नौना    जवाब क्या   देला ...और  उदासी कि सोच मा  जरूर होला   हम थें अपनी भाषा बोली कु इस्तेमाल फोरेन  जोर शोर से  शुरू करी देणु चैन्दा....थोडी सी दिक्कत शुरू .  शुरू  म जरूर महसूस  होली  ...
पर.... फ़िर धीरे धीरे   एंडू  (अंदाज )  एई ही जालो
 
 हमारि     बोली म   मिठास बहुत च   और  गोपनीयता भी      और    मर्म छून वलि   बोली च  हमारी
 
 हमारा माँगल,    हमारा गीत ... हमारी जागार   हमारा  राम लीला   और हमारा  संवाद   सिनेमा का 
हमारी  बोली कु विनास होणु च  अस्तित्वा    खोणी च   और  अंग्रेजी और हिंदी   लेणी  च   बोली  कु स्थान

जब   बोली कु लोप हवे जालू  ता   हमारी अस्तित्वा  और  पछ्याण भी  लुप्त ह्वेई  जाली

ता  अभी भी समय च की  हम  आज बीटी और अभी बीटी  अप्नी  टूटी फूटी  बोली   माँ  बेहिचक बोल्णु शुरू करौ    और जू भी जब भी  मौका होलू   क्वी  अपणु उत्तरांचली मिल लू ता वे   दिगड़   वार्तालाप अप्नी ही बोली माँ करला   चाहे वू कुमओनी  हो   या गढ़वाली     या फिर पिथोरागार्ही    या फिर तेहरी की

 उत्तरांचली  बोलियों माँ मामूली फर्क च  सब माँ छ   छे  छू लगन्दा जावो बस

माँ जगदम्बा  माँ सरसवती  और बद्री विशाल से  प्रार्थना च की वू  हमारी रक्षा   करीं  और   हम तै सदबुदी दीं  की हम अप्नी बोली कु निरंतर उपयोग करां और  और  अप्नी बोली तैं  यथा योग्य सम्मान दिलां



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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During my recent visit to my native, i interacted with many people in my mother tongue but they were hesitant to speak me in the same language.


Devbhoomi,Uttarakhand

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म्यारा  पर्वतीय नौनिहालों 
 
ये  भूलौ. 
 
तुम  जब भी अपना आपस माँ वार्तालाप  करदां  ता  अप्नि भाषा कु प्रयोग करा .रे   ...हमारी बोली कु लोप होन्दा जाणु च
 
ये  नौनो ...
 
क्वी  भी "जाती" अपनी बोली का  भरोसा  ही  जिन्दा रै  सकदी ....
  मनिख्यों की पछ्याण बिना बोली का नि होंदी   
और अप्नि पछ्याण का वास्ता "बोली" कु जिंदु रेणु ज़रूरी च
 
जै की  बोली भाषा माँ जतना भी मिठास ह्वेली वेकी बोली का लोगु की उतना ही इज्ज़त ह्वेली

 हमारू  यु प्रयास दिन भर रेणु  चैयंदु  की हम वार्तालाप अपनी सीधी सरल बोली माँ  करां..
 गड्वोली  बोली  वला गड्वोली  माँ बोलीं

और कुमाओं वाला कुमोनी   माँ बोलीं

प्थोरागढ़  वला  अपनी बोली  माँ
और जौंस्यारी अपनी   बोली माँ  ही बोलीं

बोली क्वी    भी हो  समझी  सब्बी जन्दना
 
अरे भाई .....गड्वली अर्र कुमैयाँ बोली ता लोगो की समझ माँ आसानी से  एई  जांदी  यु द्वि बोली माँ  मामूली फर्क च..
थोड़ा सी दिक्कत शुरू शुर माँ महसूस जरूर  होली लेकिन एक द्वि वार्तालाप करन से वू भी जरूर हल्कू महसूस होलू  हमारी बोली  मा  सोम्य,गोपनीयता,मिठास  और विचार प्रकट   कर्णा   की सरलता भी च मेरु विश्वास च..
ता भूलों और नौनियालो आज बीटी ...
ना... ना... ना  आज बीटी . ना
..यु भलु काम ता.अभी बीटी ...शुरू कैर  दीन   चयंद
 
 

 एक दौं..जरा  अपनी बोली बोला  ता  सही...

फ़िर   देखो  कतना मिठास महसूस होंदी 

और कत्गा अछू लगदु 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मी जाखी बातो दगे बिलकुल सहमत छियू.

अगर हामी लोगो कै आपुन भाषा जिन्द रखन छो तो यो प्रयास जारी रखन होल!


म्यारा  पर्वतीय नौनिहालों 
 
ये  भूलौ. 
 
तुम  जब भी अपना आपस माँ वार्तालाप  करदां  ता  अप्नि भाषा कु प्रयोग करा .रे   ...हमारी बोली कु लोप होन्दा जाणु च
 
ये  नौनो ...
 
क्वी  भी "जाती" अपनी बोली का  भरोसा  ही  जिन्दा रै  सकदी ....
  मनिख्यों की पछ्याण बिना बोली का नि होंदी   
और अप्नि पछ्याण का वास्ता "बोली" कु जिंदु रेणु ज़रूरी च
 
जै की  बोली भाषा माँ जतना भी मिठास ह्वेली वेकी बोली का लोगु की उतना ही इज्ज़त ह्वेली

 हमारू  यु प्रयास दिन भर रेणु  चैयंदु  की हम वार्तालाप अपनी सीधी सरल बोली माँ  करां..
 गड्वोली  बोली  वला गड्वोली  माँ बोलीं

और कुमाओं वाला कुमोनी   माँ बोलीं

प्थोरागढ़  वला  अपनी बोली  माँ
और जौंस्यारी अपनी   बोली माँ  ही बोलीं

बोली क्वी    भी हो  समझी  सब्बी जन्दना
 
अरे भाई .....गड्वली अर्र कुमैयाँ बोली ता लोगो की समझ माँ आसानी से  एई  जांदी  यु द्वि बोली माँ  मामूली फर्क च..
थोड़ा सी दिक्कत शुरू शुर माँ महसूस जरूर  होली लेकिन एक द्वि वार्तालाप करन से वू भी जरूर हल्कू महसूस होलू  हमारी बोली  मा  सोम्य,गोपनीयता,मिठास  और विचार प्रकट   कर्णा   की सरलता भी च मेरु विश्वास च..
ता भूलों और नौनियालो आज बीटी ...
ना... ना... ना  आज बीटी . ना
..यु भलु काम ता.अभी बीटी ...शुरू कैर  दीन   चयंद
 
 

 एक दौं..जरा  अपनी बोली बोला  ता  सही...

फ़िर   देखो  कतना मिठास महसूस होंदी 

और कत्गा अछू लगदु 


Devbhoomi,Uttarakhand

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दोस्तों,मेरा  सन्देश खासकर उन लोगों के लिए है जो  अपना  घर गाँव  छोड़कर बाहर चले  गए हैं  और जो अपने को  उत्तराखंड से  भी जोड़कर  कर  रखना चाहते हैं   और  महसूस   करते हैं की वो सही माईने में उत्तराखंडी हैं ..

पहाड़ों   में रहने वाले  लोग  तो  अपनी बोली बोलते ही हैं    ये समस्या  तो  सिर्फ  उन लोगों की है जो  मैदानी इलाकों में  चले गए हैं या फिर विदेशोंमे जा बसे हैं ...अपनी बोली को अब्ब  फिर से अपनाने  में क्या हर्ज़ है

 ऐसे लोग  जो  अपनी  बोली   नहीं बोलेंगे   वो    आने वाले समय  में  अपनी  बोली  से  न जुडने के कारन  अलग थलग  पड़ जायेंगे 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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It is really sad to see that even in local function of local fair in hill areas itself, people hesitate to speak in our regional language from the stage.

This is somewhere impacting in our new generation to learn the language.


म्यार मनाण छो की, हम लोगो कै संस्कर्तिक कार्यकार्मो क मंच बाटी ले पहाड़ी भाषा में बात करण छे? ''

उधघोषक हिंदी में बात के ले सबसे पहिली झिझक हूछ! हामी लोगो कै यो एरिया में के ध्यान दींण क जरुरत छो !

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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जखी जी
मैं आपकी बात से सहमत नही हूं अपनी भाषा बोलने में सबसे ज्यादा झिझक पहाड़ के रहने वाले वो लोग करते हैं जो बोलना जानते हुये भी नही बोलना चाहते क्योंकि वो इसे अनपढ़ों की बोली समझते हैं, और अपने आप को पढ़ा लिखा समझते हैं।  पता नही क्यों भारत में सभी की यह मानसिकता बन गयी है कि गांव वाला पिछ्ड़ा है और शहर वाला एडवांस है।  इस कारण सभी शहरों में रहना चाहते है जहां न कोई संस्कृति है ना भाषा बस एक दौड़ है एक दूसरे को नीचा दिखाने की।  जो दूसरी जगह बस गये हैं उनमें भी वह लोग ज्यादा जिम्मेदार हैं जिन्होने अपने बच्चों को नही सिखाया। नयी पीढ़ी वाले सीखना चाहते है हैं पर वह सीखें किससे? उनके मां-बाप तो मौडर्न बनने के चक्कर में खुद नही बोलना चाहते।  मेरे घर में खुद हम लोग कुमाऊनी में बात नही करते हमने भी अपनी बोली अन्य लोगों को सुनकर और बड़े-बूढ़ों से बातचीत करते हुये ही सीखी है।
दोस्तों,मेरा  सन्देश खासकर उन लोगों के लिए है जो  अपना  घर गाँव  छोड़कर बाहर चले  गए हैं  और जो अपने को  उत्तराखंड से  भी जोड़कर  कर  रखना चाहते हैं   और  महसूस   करते हैं की वो सही माईने में उत्तराखंडी हैं ..

पहाड़ों   में रहने वाले  लोग  तो  अपनी बोली बोलते ही हैं    ये समस्या  तो  सिर्फ  उन लोगों की है जो  मैदानी इलाकों में  चले गए हैं या फिर विदेशोंमे जा बसे हैं ...अपनी बोली को अब्ब  फिर से अपनाने  में क्या हर्ज़ है

 ऐसे लोग  जो  अपनी  बोली   नहीं बोलेंगे   वो    आने वाले समय  में  अपनी  बोली  से  न जुडने के कारन  अलग थलग  पड़ जायेंगे 


अपनी भाषा/बोली को संजोहने की जिम्मेदारी अब 'प्रवासी उत्तराखंडी' पर ज्यादा आ पडी है क्यौकी पहाड़ों में अब देशी (हिन्दी) ज्यादा बोली जारही है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bahut Sahi kaha sir aapne,

Jaise ki ham pahle se kahte aa rahe hai, ki sabse pahle iski shuruwaat Ghar se honee Chahiye..

Apun-2 nantino ke ghar me jarur hai jarur apun boli ma baat karo sab.


अपनी भाषा/बोली को संजोहने की जिम्मेदारी अब 'प्रवासी उत्तराखंडी' पर ज्यादा आ पडी है क्यौकी पहाड़ों में अब देशी (हिन्दी) ज्यादा बोली जारही है.

 

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