मात्र भाषा से ही इन्शान की संसकिरती और ब्व्हार का परिचय होता है, हमारी भाषा ही हमारी पहचान है, आज का उत्तराखंडी उत्तराखंड के बहार के अलावा उत्तराखंड में स्वयं के घर में स्वयम को असहाय महसूश कर रहा है, क्योंकि उनको अपनी मात्र भाषा अपने घर में भी पराई लग रही है, क्योंकि उनका बचा जब प्राइमरी स्कूल से घर आता है तो वह पूरे वाक्य को आधा अपनी भाषा में बोलता है तो आधा दूसरी भाषा में, इस प्रकार की भाषा पर कभी उसके माँ उसका मजाक तक उड़ा देती हैं, तथा नाराज होने पर हंसते हुए पुचकारती भी है, किंतु उस बचे की मानसिकता उस समय कैसी रही होगी जब उसके बोलने पर उसका मजाक उडाया गया, उसके इस प्रकार की भाषा में बतियाने में उसकी कहाँ गलती है जो उसका मजाक उडाया गया, उसने तो वही कहा जो उसने सीखा, अपनी माँ के साथ रहा तो मात्र भासा सीखी, स्कूल में मास्टर जी ने दूसरी भाषा सिखाई, वास्ताबिक रूप में क्या यह स्थिति उन नोइनिहलों की दुधी के विकाश में सहायक सिद्ध होगी, जिनको कैन भी पूर्णता नहीं मिल प् रही है, और परोतोशिक के रूप में उन्हें हैसी का पात्र बनना पड़ रहा है, प्रश्न उठता है, की क्या उस बालक का बोद्धिक विकाश इच्छानुसार हो पाएगा!