सौ करोड़ से ज्यादा का है घोटाला!
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जल विद्युत निगम के पूर्व चेयरमैन योगेंद्र प्रसाद के विरुद्ध विजिलेंस का शिकंजा कसता जा रहा है। विजिलेंस सूत्रों की मानें तो मनेरी भाली-2 परियोजना का घोटाला महज 25 करोड़ नहीं बल्कि सौ करोड़ से ऊपर का है। विजिलेंस इसकी अलग से पड़ताल कर रही है। श्रींग कंस्ट्रक्शन मामले के अलावा योगेंद्र प्रसाद पर दर्ज तीन अन्य घोटालों में भी विजिलेंस जल्द से जल्द चार्जशीट की तैयारी कर रही है। उनकी गिरफ्तारी के भी प्रयास तेज हो गए हैं।
जुलाई 2010 में शासन द्वारा जांच सौंपे जाने के बाद विजिलेंस ने सितंबर में योगेंद्र प्रसाद के विरुद्ध करोड़ों के घोटाले में चार अलग-अलग मुकदमे दर्ज किए। अक्टूबर में विजिलेंस ने योगेंद्र की आलीशान कोठी पर छापा मारा था। मनेरी भाली-2 घोटाले में शुक्रवार को विजिलेंस ने चार्जशीट दाखिल कर योगेंद्र प्रसाद की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। विजिलेंस सूत्रों की मानें तो यह घोटाला सौ करोड़ रुपये से ऊपर का है। हालांकि, अभी यह जिक्र चार्जशीट में नहीं है, बल्कि इसकी अलग से जांच की जा रही है।
पीओपी का भुगतान श्रींग ने किया
एसपी विजिलेंस बीके जुयाल ने बताया कि योगेंद्र प्रसाद की आलीशान कोठी में पीओपी (प्लास्टर ऑफ पेरिस) का काम भी श्रींग कंपनी द्वारा कराया गया। काम के बाद ऋषिकेश के ठेकेदार को श्रींग कंपनी की तरफ से एक लाख 40 हजार रुपये का भुगतान किया गया। इस बात का जिक्र भी चार्जशीट में किया गया है।
45 गवाहों में 30 अति महत्वपूर्ण
श्रींग मामले में दाखिल चार्जशीट में विजिलेंस ने 45 लोगों को सरकारी गवाह बनाया है। इनमें 30 लोग यूजेवीएनएल व इरीगेशन के अफसर व कर्मचारी हैं। यह सभी 30 गवाह अति महत्वपूर्ण कैटेगरी में हैं। उन्हें कोई नुकसान न पहुंचा सके, ऐसे में विजिलेंस पहले ही सभी के मजिस्ट्रेटी बयान दर्ज करवा चुकी है।
पूरा फाइनेंसियल सिस्टम तोड़ डाला
विजिलेंस सूत्रों के मुताबिक, घोटालों को अंजाम देने के लिए योगेंद्र प्रसाद द्वारा जल विद्युत निगम का पूरा फाइनेंसियल सिस्टम तोड़ डाला गया। पहले सिंचाई विभाग ही निर्माण कार्यो को देखकर भुगतान के लिए अनुमोदित करता था, लेकिन योगेंद्र प्रसाद ने इसे बदल डाला। वर्ष 2007 में शासन स्तर पर हुई एक बैठक में योगेंद्र ने उन्हें भुगतान की जिम्मेदारी सौंपे जाने की पैरवी की। उन्होंने मनेरी भाली-2 के लिए लिया गया 1100 करोड़ का ऋण का प्रतिदिन का ब्याज 30 लाख बचाने की स्कीम भी बताई और मनेरी भाली-2 प्रोजेक्ट मई-07 तक पूरा करने का दावा किया। जबकि सिंचाई विभाग इसे फरवरी-08 तक पूरा करने की संस्तुति कर चुका था। ऐसे में योगेंद्र अपने प्लान में कामयाब रहे और उन्हें जिम्मेदारी मिल गई। इसके बाद यूजेवीएनएल में कब और किस काम के लिए भुगतान किए जाते रहे, इसका पता निचले अफसरों को नहीं लगा। वे सिर्फ योगेंद्र के कहने पर भुगतान करते रहे। यूजेवीएनएल अफसरों को तो यह तक पता नहीं था कि बिल किस काम के लिए भुगतान हो रहे हैं।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7182526.html