पतंजलि योग सूत्र : गढ़वाळि अनुवाद , साधना पाद भाग - 10
पद 46 संख्या से 50 तक
अनुवाद शास्त्री - भीष्म कुकरेती
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-
स्थिरसुखमासन् I 46 I
स्थिर अर जैमा सुख से बैठे जये जावो वी 'आसन ' च।
प्रयत्नशैथिल्यानन्तसमापत्तिभ्याम्। 47 ।
उक्त आसन प्रयत्न की शीतलता से अर अनंत (परमात्मा ) म मन लगाण से सिद्ध हूंद।
ततो द्वन्दानभिघात। 48 ।
वे आसन सिद्ध हूण से सर्दी, घाम /गर्मी , भूक -तीस ,हर्ष , विषाद जन द्वंदों आघात नि लगद।
तस्मिन् सति श्वास-प्रश्वासयोर्गति विच्छेद: प्रणायाम्। 49 ।
वे आसन की सिद्धि हूण पर श्वास , प्रश्वास की गति रुक जाण इ 'प्रणायाम ' च ।
बाह्याभ्यंतरस्तम्भवृत्तिर्देशकालसंख्याभि। 50 ।
बाह्य, आभ्यांतर , और स्तम्भ, वृतिवाला प्राणायाम , देश , काल , और संख्या से दिख्युं लम्बो अर हळको हूंद।
अनुवाद सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती
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