Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 724858 times)

Bhishma Kukreti

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उन्नीसवीं सदी अंत की  हिंदी (स्व धन सिंह बर्त्वाल बद्रीनाथ प्रार्थना प्रसिद्ध ) I अन्वेषण कर्ताओं हेतु बहुत उद्येश्पूर्ण सूचना (लिपि व व्याकरण )
आभार --महेंद्र बर्त्वाल

Bhishma Kukreti

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सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामानंद खंडूड़ी कृत  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका भाग -2

 गढ़वाली का उन्नीसवीं सदी  अंत /   बीसवीं सदी पूर्व  भाग में गढ़वाली - 5
  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका साहित्य - 5
प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती

आभार - आशीष खंडूड़ी

 ---- 2 -------------
घटायेदेणोसो  अहर्गणहोये  मलमास  (स्याही मिटी है )  घटायेदेणो  वारमि  लजावत सहीसमझणोएक  कमा ( स्याही मिटी  ) हीनयायुक्त कर देणो  अववादमिलोण  का वास्ता अ हर्गण मा  अयुू  तेगुणादेणोयुक्त करणो ७ सेतपू करेणी  जोशेषरवू (स्याही मिटी )    वृ मंगल १  बुध २ गुरु ३  शुक्र ४ शनि ५ रवि ६ येकिकर  शेतेग्रहला। .. (स्याही मिट )  म्  अबखंडखादि  अहर्गणकीभाषाबोलदान II पहिले  ४०१६ पृअकचक्र   तेगुणा   ... ३१२२८६ तो मा जोडदेणोतेदिनकोग्रहलाधचि  ?? अहर्गण मी  जोडणु  सोखंडखादिअहर्गणहोये  त खंडखादि अहर्गणसे ग्रहलाघ  वीं   अहर्गण ???? णाकीरीती वतलाना  चक्रसहित मिल द   खंडखादि

इति सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामानंद खंडूड़ी कृत  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका


Bhishma Kukreti

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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद   ,  साधना पाद    भाग - 7

अनुवाद शास्त्री  -  भीष्म कुकरेती
s = आधा अ
-
जातिदेशकाच्छिन्ना: सार्व भौमा महाव्रतम ।    2 .  31  । 
मथ्याक यम जाति, देश, काल अर  समौ  की सीमा से रहित  सार्वभौम हूण पर 'महाव्रत ' ह्वे जांद। 
शौचसंतोषतप:  स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि  नियम:  ।  2.  32  । 
शौच (पवित्रता ) , संतोष , तप , स्वाध्याय, अर ईश्वरै  शरणागति  यी पांच नियम छन। 
वितर्कबाघने प्रतिपक्षभावनम्।  33 ।   
जब वितर्क (यम नियमों व विरोधी भाव ) यम नियमों म बाधा उतपन्न ह्वावो तो ऊंको  विरोधी भावों चनितं करण  चयेंद।
वितर्का  हिंसादया: कृतकरितानुमोदिता  लोभक्रोधमोहपूर्वका
मृदुमध्याधिमात्रा  दुःखाज्ञानानन्तफला  आईटीआई प्रतिपक्ष भावनम्।  34 ।   
यम नियमों विरोधी  हिंसा अदि भाव 'वितर्क' ( अनिश्चित ज्ञान )   बुले जांदन।  यी तीन प्रकारै  हूंदन - १- अपर कर्यां  , २ -दुसरों करायां  ३ -दुसरों क्रयों को समर्थन।  यूंक कारण लोभ , मोह अर  रोष छन।   यी  लघु /छुट , मध्यम अर  अधिमात्रा  प्रकारौ हूंदन।  यी  दुःख   अर  अज्ञान रूप  का  अनंत फल दीण  वाळ छन।     इन विचार  करण इ प्रतिपक्ष की भावना च।
अहिंसाप्रतिष्ठायां  तत्स ंनिधौ  वैरत्याग्य।  2 , 35 I
अहिंसा की दृढ स्तिथि ह्वे  जाण  पर वै योगी  का न्याड़ -ध्वार का सब प्राणी वैर त्याग दीन्दन I
अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष पतंजलि योग सूत्र अनुवाद  अग्वाड़ी खंडोंम


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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद   ,  साधना पाद     भाग - 8
अनुवाद शास्त्री  -  भीष्म कुकरेती


s = आधा अ
-
सत्य प्रतिष्ठायां  क्रियाफलाs s श्रयत्वम् II 36
'सत्य' की दृढ स्तिथि हूण पर तै योगी म कार्य फल का आश्रय  भाव ऐ  जांद अर  वो जु  बि बुल्दो   वु   ह्वे जांद। 
अस्तेयप्रतिष्ठायां  सर्वरत्नोपस्थानम् II  37
'चोरी क अभाव ' की दृढ़ स्तिथि ह्वे जाण  पर वे योगी तैं  सब रत्न मिल जांदन
ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां  वीर्यलाभ:  II  38
'ब्रह्मचर्य ' की दृढ़  स्तिथि हूण पर सामर्थ्य लाभ हूंद।
अपरिग्रहस्थैर्ये  जन्मकथान्ता संबोध: । ।   39
'अपरिग्रह' स्तिथि हूण पर पूर्वजन्म  कन  ह्वे  को ज्ञान ह्वे  जांद।
शौचत्स्वांगजुगुप्सा परैर संसर्ग।  ।   40
पवित्रता को पालन से वैराग्य अर  दूसरों से संसर्ग नि करणो  इच्छा जागृत ह्वे  जांद। 

अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष पतंजलि योग सूत्र अनुवाद  अग्वाड़ी  खंडोंम


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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद   , 
साधना पाद     भाग - 9
 पद संख्या 41 से   45  तक
अनुवाद शास्त्री  -  भीष्म कुकरेती

s = आधा अ
-
सत्व शुद्धिसौमनस्यैकाग्रयेयिन्द्रियज्यात्म  दर्शन योग्यत्वानि  च। 41  । 
यांक अतिरिक्त , शौच से अतःकरण की शुद्धि , मन म प्रसन्नता , चित्त की एकाग्रता , इन्द्रियूँ  वशम हूण , अर आत्म दर्शन हेतु योग्यता बि  हूंद। 
संतोषादनुत्तम सुःखलाभम।  42 ।   
संतोष से उत्तमोत्तम सुख मिलद।
कायेंद्रियसिद्धिरशुद्धिक्षयात्तपस: ।  43 । 
तप से अशुद्धि नाश हूण  से शरीर अर  इन्द्रियुं  सिद्धि हूंद (वशम आण ) I
स्वाध्यायादिष्टदेवतासम्प्रयोग: ।  44 । 
'स्वाध्याय' से इष्ट दिवता का दर्शन हूंदन।
समाधिसिद्धरीश्वरप्रणिधानात्।  45 ।
अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष पतंजलि योग सूत्र अनुवाद  अग्वाड़ी  खंडोंम


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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद   ,  साधना पाद     भाग - 10

  पद  46 संख्या  से   50  तक
अनुवाद शास्त्री  -  भीष्म कुकरेती

s = आधा अ
-
स्थिरसुखमासन् I 46 I
स्थिर अर जैमा सुख से बैठे जये जावो वी 'आसन ' च। 
प्रयत्नशैथिल्यानन्तसमापत्तिभ्याम्।  47 ।     
उक्त आसन प्रयत्न की शीतलता से अर अनंत  (परमात्मा ) म मन लगाण  से सिद्ध हूंद।
ततो द्वन्दानभिघात। 48 । 
वे आसन सिद्ध हूण से सर्दी, घाम /गर्मी , भूक -तीस ,हर्ष , विषाद जन द्वंदों  आघात नि  लगद। 
तस्मिन्  सति  श्वास-प्रश्वासयोर्गति  विच्छेद: प्रणायाम्। 49 ।
वे आसन की सिद्धि हूण पर श्वास , प्रश्वास की गति रुक  जाण  इ   'प्रणायाम '  च । 
बाह्याभ्यंतरस्तम्भवृत्तिर्देशकालसंख्याभि। 50 । 
बाह्य, आभ्यांतर , और स्तम्भ, वृतिवाला प्राणायाम , देश , काल , और संख्या से दिख्युं लम्बो  अर हळको  हूंद। 
अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष पतंजलि योग सूत्र अनुवाद  अग्वाड़ी  खंडोंम


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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद   ,  साधना पाद     भाग - 11

 51 पद संख्या से   55 तक
अनुवाद शास्त्री  - भीष्म कुकरेती


s = आधा अ
-
बाह्याभ्यन्तरबिषयाक्षेपी  चतुर्थ I  51 I
भैर अर  भितर  का बिषयों त्यागण  से अफि  हूण  वळ चौथो प्रकारौ प्रणायाम च। 
तत: क्षीयते प्रकाशावरणम् I  52 I
वांसे  (प्राणायामौ हभयास ) ज्ञानरूपी प्रकाश  तै ढकण वळ  अंध्यरौ खोळ  हीन  ह्वे जांद। 
धारणासु च योग्यता मनस:   I 53  I
प्राणायाम सिद्धि से  मनम धारणै  योग्यता ऐ जांद। 
स्वबिषयासम्प्रयोगे   चित्तस्यस्वरुपानुकार  इवेन्द्रियाणां प्रत्याहार: । 54  I .
जब इन्द्रियों कु शब्द आदि स्वबिषयों से संबंध नि रौंद  त ऊंको  चित्त स्वरूप म तल्लीन ह्वे जांद तो वीं स्वस्थ तै प्रत्याहार ' बुल्दन। 
तत: परमावश्यतेन्द्रियाणाम्। 55  । 
इनम प्रत्याहार से इन्दिर्यां पूरी बस म ह्वे  जांदन।   
इति   साधन पाद सम्पन
अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष पतंजलि योग सूत्र  गढवाली अनुवाद;  पतंजलि योग सूत्र  विभूति पाद     गढवाली अनुवाद    अग्वाड़ी  खंडोंम


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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद   ,  विभूति  पाद:    पद  संख्या 1  से  5   तक
अनुवाद शास्त्री  - भीष्म कुकरेती


s = आधा अ
-
देशवंधिश्चत्तस्य  धारणा।   1 
चित्तौ कै एक स्थानम नासिकाभाग, नाभि, हृदय कमल, भृकुटि , सूर्य, चंद्र ध्रुव , पर ठैराणौ कुण  धारणा बुल्दन।
तत्र प्रत्ययैकतानता  ध्यानम। 2
जख चित्त तै लगायो जाय वेम  निरंतर ध्यान वृत्ति  ही   'ध्यान 'च। 
तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधि।  3
चित्त जैको ध्यान करणो हो वैको  स्वरूप जब शून्य ह्वेका ध्येय मात्र ही चित्याणो  (प्रतीत ) हो तो वीं स्तिथि तैं 'समाधि' बुल्दन। 
त्रयमेकत्र संयम:।   4
जब धारणा , ध्यान अर समाधी तिनि  एक ही वस्तु म स्तिथ होवन तो येकुण 'संयम ' बुल्दन। 
तज्जयात्प्रज्ञालोक: I 5
वे संयम को स्वामी हूण /जितणो  से प्रज्ञा प्रकाश हूंद। 

 अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष पतंजलि योग सूत्र  गढवाली अनुवाद;  पतंजलि योग सूत्र   विभूति पाद  गढवाली अनुवाद    अग्वाड़ी  खंडोंम


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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद   ,  विभूति  पाद:    13    
 
विभूति पाद: पद  संख्या 6  से  10   तक
अनुवाद शास्त्री  -  भीष्म कुकरेती
s = आधा अ
-
तस्य भूमेषु विनियोग:। 6 । 
वैको (संयमक ) समाधि का अन्य भूमिम/आयाम म  क्रम से उपयोग कर्ण चयेंद। 
त्रयमन्तरंंगं  पूर्वेभ्य: । 7  ।   
यी तीन योग अंग  (धारणा , ध्यान व समाधि ) आंतरिक छन अर बकै पांच (यम नियम आदि )  बाह्य छन। 
तदपि बहिरंगनिर्बीजस्य।  8 ।   
वी बि (धारणा , ध्यान  असमाधि) निर्बीज सामधि का बहिरंग  साधन छन। 
ब्युत्थाननिरोधसंस्कारयोरभिभवप्रादुर्भावी  निरोधयक्षणचित्तान्वयौ  निरोधपरिणाम।  9 । 
व्युत्थान  अवस्था क संस्कारों दब जाण अर  निरोध अवस्था का संस्करों  प्रकट ह्वे जाण , निरोध काल म चित्तक द्वी संस्कारोंम व्याप्त हूण ' निरोध परिणाम ' च। 
तस्य प्रशांतवहिता संस्कारत्।  10 । 
वे से (निरोध परिणाम संस्कार  )    चित्त की गति प्रशांत ह्वे  जांद।

 
अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष पतंजलि योग सूत्र  गढवाली अनुवाद;  पतंजलि योग सूत्र   विभूति पाद  गढवाली अनुवाद    अग्वाड़ी  खंडोंम


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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद,     14     

  विभूति पाद: पद  संख्या   11 से  15   तक

अनुवाद  आचार्य  -  भीष्म कुकरेती


s = आधा अ
-
सर्वार्थतैकाग्र तयो: क्षयोदयौ  चित्तस्य समाधि।  विभूति पाद 11 । 
सब प्रकारौ विषयों चिंतन करणै प्रवृति क क्षय ह्वे जाण अर एक इ  ध्येय विषय का चिंतन  करण वळी  एकाग्र अवस्था क जनमण यु चित्त को '  समाधि परिणाम ' च। 
तत  पुनः शान्तोदितौ  तुल्यप्रत्ययौ चित्तस्यै काग्र्ता परिणाम: । वि पा   12 I
तब फिर शांत ार जनमण  वळी  द्वी वृति एक ह्वे जांदन।  तब या चित्त कु 'एकाग्रता परिणाम ' च। 
एतेन भूतेन्द्रियषु धर्म लक्षणावस्थापरिणामा  व्याख्याता। वि पा  13   । 
मथ्याक चित्तक परिणामों मध्य पांच भूतों म अर  इन्द्रियों  म हूण वळ  धर्म , लक्षण , अर  अवस्था परिणाम  बुले गेन। 
शांतादिताव्यपदेश्य धर्मानुपाती  धर्मी।  वि पा 14 । 
अतीत , वर्तमान व भविष्य म जु  धर्म  आधार रूप म व्याप्त रौंद  वो धर्मी च।
क्रमान्यत्वं   परिणामन्यत्वे  हेतु। वि पा 15  । 
परिणाम की भिन्नता ( वास्तव म ) क्रम की भिन्नता कारण से च। 
अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष पतंजलि योग सूत्र  गढवाली अनुवाद;  पतंजलि योग सूत्र   विभूति पाद  गढवाली अनुवाद    अग्वाड़ी  खंडोंम

 

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