Author Topic: Articles By Shri D.N. Barola - श्री डी एन बड़ोला जी के लेख  (Read 194581 times)

D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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लछिया कोठ्यारी के किस्से - 2(Lachhiya Kothar's stories-2)

लछिया कोठ्यारी के सातों लड़के गर्मी शुरू होते ही भाभर से पहाड़ को वापस आ रहे थे. टनकपुर के पास पहुँच कर उन्हें ख्याल आया कि  ईजा (माता) के लिए तो कुछ भी नहीं ले जा रहे हैं. उन्होंने विचार विमर्श किया. सबने महसूस किया कि ईजा को सबसे ज्यादा जरूरत एक घाघरी कि है.  अतः टनकपुर कि एक दूकान से घाघरी का कपड़ा ख़रीदा गया. अब प्रश्न था कि इसे सिला किसे जाय, क्योंकि टनकपुर का एक मात्र दर्जी अपने गाँव गया था. उन्होंने सुई धागा ख़रीदा और घाघरी सिलने लगे. नया प्रश्न था कि ईजा कि कमर कि नाप क्या होगी. एक ने कहा कि सामने वाले बांज के पेड़ की गोलाई के बराबर कमर होनी चाहिए. काफी सोच विचार के बाद एक पेड़ की गोलाई के  बराबर की नाप उन्हें ठीक लगी. फिर क्या था सातों भाई उस पेड़ मैं घाघरी सिलने के काम मैं जुट गए. घाघरी  तैयार हो गई. सब भाई खुश थे कि ईजा खुश हो जायेगी.  परन्तु घाघरी को घर ले जाने मैं विकट समस्या आ गई. क्योंकि घाघरी तो पेड़ मैं सिली गई थी. उसे कैसे उतारा जाय. यह सोच कर सातों भाई उदास  हो गए. घाघरी पेड़ मैं ही  छोड़  घर वापस पहुंचे और ईजा को घाघरी का किस्सा सुनाया. ईजा खुश हुई, आखिर परदेश मैं भी उसके बच्चों  को भी उसका कितना ख्याल था. (D.N.Barola)      

D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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म्यर ठेकुआ ठीकम ठीक
Myar Thekua theekam theek


एक गाँव मैं ठेकुआ नामक व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ रहता था. वह छोटे कद का था. लोग उसकी बीबी को ठेकुए की औरत कह कर चिडाया करते थे. ठेकुआ की पत्नी को यह ठीक नहीं लगता था. परेशान होकर एक दिन वह गाँव छोड़ कर दुसरे गाँव चली गई. उसने उस गाँव मैं एक स्त्री को झाड़ की झोपड़ी मैं रहते देखा. उसने उसका नाम पूछा. उसने अपना नाम लक्ष्मी बताया, कुछ दूर जाकर उसे एक भिखारी मिला. उसने उसका नाम पूछा. उसने बताया की वह  धनपति है. कुछ और आगे बड़ने पर कुछ लोगों को मृत व्यक्ति की अर्थी ले जाते देखा. उसने पूछा की यह कौन मरा. उसे बताया गया की अमर सिंह मर गया है.

यह सब देखकर ठेकुआ की पत्नी वापस गाँव लौट आई. लोगों ने उससे पूछा के तू तो गाँव छोड़ कर चली  गई थी, फिर वापस क्यों आई. उसने उत्तर दिया.

लक्ष्मी रूनै झाड़ झोपडी, धनपति मागनोँ भीख.
अमर सिंह बेचारौ मर गयो, म्यर ठेकुआ ठीकम ठीक.

और इसके बाद पति पत्नी आराम से अपना जीवन यापन करने लगे (D.N.Barola)    

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is really interesting.. Great.

I have also heard saying this in village area but the fact behind this was not known to me.

Thank u sir..

म्यर ठेकुआ ठीकम ठीक

एक गाँव मैं ठेकुआ नामक व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ रहता था. वह छोटे कद का था. लोग उसकी बीबी को ठेकुए की औरत कह कर चिडाया करते थे. ठेकुआ की पत्नी को यह ठीक नहीं लगता था. परेशान होकर एक दिन वह गाँव छोड़ कर दुसरे गाँव चली गई. उसने उस गाँव मैं एक स्त्री को झाड़ की झोपड़ी मैं रहते देखा. उसने उसका नाम पूछा. उसने अपना नाम लक्ष्मी बताया, कुछ दूर जाकर उसे एक भिखारी मिला. उसने उसका नाम पूछा. उसने बताया की वह  धनपति है. कुछ और आगे बड़ने पर कुछ लोगों को मृत व्यक्ति की अर्थी ले जाते देखा. उसने पूछा की यह कौन मरा. उसे बताया गया की अमर सिंह मर गया है.

यह सब देखकर ठेकुआ की पत्नी वापस गाँव लौट आई. लोगों ने उससे पूछा के तू तो गाँव छोड़ कर चली  गई थी, फिर वापस क्यों आई. उसने उत्तर दिया.

लक्ष्मी रूनै झाड़ झोपडी, धनपति मागनोँ भीख.
अमर सिंह बेचारौ मर गयो, म्यर ठेकुआ ठीकम ठीक.

और इसके बाद पति पत्नी आराम से अपना जीवन यापन करने लगे (D.N.Barola)    

Devbhoomi,Uttarakhand

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म्यर ठेकुआ ठीकम ठीक

एक गाँव मैं ठेकुआ नामक व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ रहता था. वह छोटे कद का था. लोग उसकी बीबी को ठेकुए की औरत कह कर चिडाया करते थे. ठेकुआ की पत्नी को यह ठीक नहीं लगता था. परेशान होकर एक दिन वह गाँव छोड़ कर दुसरे गाँव चली गई. उसने उस गाँव मैं एक स्त्री को झाड़ की झोपड़ी मैं रहते देखा. उसने उसका नाम पूछा. उसने अपना नाम लक्ष्मी बताया, कुछ दूर जाकर उसे एक भिखारी मिला. उसने उसका नाम पूछा. उसने बताया की वह  धनपति है. कुछ और आगे बड़ने पर कुछ लोगों को मृत व्यक्ति की अर्थी ले जाते देखा. उसने पूछा की यह कौन मरा. उसे बताया गया की अमर सिंह मर गया है.

यह सब देखकर ठेकुआ की पत्नी वापस गाँव लौट आई. लोगों ने उससे पूछा के तू तो गाँव छोड़ कर चली  गई थी, फिर वापस क्यों आई. उसने उत्तर दिया.

लक्ष्मी रूनै झाड़ झोपडी, धनपति मागनोँ भीख.
अमर सिंह बेचारौ मर गयो, म्यर ठेकुआ ठीकम ठीक.

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WHA WHA BAROLAJI, GRATE KYA BAAT HAI,YE UTTARAKHANDI PAHAADI APKO SALAAM KARTE HAI

D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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Hisalu – Hisalu ki jaat badi risalu हिसालू की जात बड़ी रिसालू

Hisau or Hisalu (Rubus ellipticus Linn) grows in the hills in the forests in abundance. It grows in a bush or shrub. It ripens in April/May normally in yellowish colour. Children relish it very much. If taken in small quantity, it is good for digestion. It’s quite juicy forest fruit. While going to School or College, you may find boys and girls picking up Hisalu and eating the same with great taste in the company of their friends. It grows at a height of 4 to 7,000 feet. One should not drink water after eating Hisalu; otherwise he may suffer from loose motions.  Hisalu is a potential source of nectar to the bee hives. 100 gram of Hisalu has 53.77mg. Vitamin C; 24.33 mg. Iron and 473 mg. Calcium. It is good source of Vitamin A and C. It is specially important for women aged 35 years or more, who suffer from the deficiency of Calcium and Iron.


Hisalu


About Hisalu, Poet Gumani says:

हिसालू की जात बड़ी रिसालू , जां जां जाछै उधेडी खाछै.
य बात कोई गटो नी माननोँ , दुद्यालेकी लात सौनी परण छ

अर्थात हिसालू की जात बड़ी गुस्से वाली होती है. कारण कि इसमें कांटे ही काटें होते हैं. जरा सी चूक हुई की वह हाथ या कपडों को उधेड़ देती है. परन्तु लोग इसका बुरा नहीं मानते क्योंकि  हिसालू अति स्वादिस्ट होता है
कवि गुमानी इसको स्पष्ट करते हुए कहते हैं की लोग हिसालू को इसके बावजूद खाने मैं मस्त   रहते हैं, उसी प्रकार जिस   प्रकार दुधारू गाय   की लात को   भी लोग सहर्ष सहते हैं.






The bush of Hisalu can be found anywhere. While going to the forlorn areas you may find Hisalu shrubs. If you find the bush of Hisalu, you are tempted to pick up Hisalu because it is so tasty. (D.N.Barola)  

D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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अक्कड़ बक्कड़ बोम्बे बौ, अस्सी नब्बे पूरे सौ...............
Akkar Bakkar Bombay Bo, assi nabbe pure sau...................

बचपन के दिन भी निराले होते हैं. हम लोग बचपन मैं राम चरित्र मानस  के राम सलाका प्रश्नोतरी की तरह प्रश्न किया करते थे. इस प्रश्न वाले खेल को लड़कियां ज्यादा खेला करती थी. खेलने वाले बच्चे अपने हाथ को उलटा जमीन मैं रखते थे. एक बच्चा निम्न तुकबंदी की कविता बोला करता था.

अक्कड़ बक्कड़ बोम्बे बौ, अस्सी नब्बे पूरे सौ.
सौ मैं लगा तागा, चोर निकल कर    भागा.

वह प्रत्येक हाथ को छू कर आगे बढता था. जिसके हाथ मैं अंतिम शब्द 'भा गा' आता था, वही चोर माना जाता था. यानि वह हार जाता था. फिर हारे हुवे बच्चे को चोर मानते हुवे चोर को ढ़ूढ़ने    के लिए लुक्का छुप्पी का खेल शुरू होता था.
कुछ लोग इसे खड़े हो कर भी खेलते थे.

कुछ लोग निम्न प्रकार की तुकबंदी कविता कहते थे.

मिलता मिलता साथी, जो न मिले चोर

कभी कभी अन्ताक्षरी प्रारंभ करने के लिए भी इस तुकबंदी का प्रयोग किया जाता था.(D.N.Barola)

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  यार बिरालू दा, बात कूंछै उस , खान्हूं कूंछै कंद मूल , हगण हूँ हग्छै मुस (Yaar biralu da, baat kuchhai us, khanhu kuchha kand mool, hagan hoon hagchhe mus)

एक जंगल मैं एक बिरालू (बिल्ला) रहता था. एक दिन वह पानी की तलाश मैं भटक रहा था. उसे एक घड़ा दिखाई दिया.उसने अपनी गर्दन घड़े मैं डाली और अपनी प्यास बुझाई, परन्तु जब वह गर्दन बाहर निकालने लगा तो गर्दन घड़े मैं अटक गई. उसने बहुत कोशिश की परन्तु गर्दन बाहर नहीं निकली. इधर उधर भटकते भटकते वह एक पत्थर की शिला से टकराया. घड़ा फूट गया और ऊपर की गोलाई उसके गले मैं अटक गई. उसने बहुत कोशिश की परन्तु वह रिंग नहीं निकाल पाया.



बिरालू बूड़ा हो चुका था. शिकार करने मैं अशक्त हो चुका था. उसे एक तरकीब सूझी. उसने चूहों की एक सभा बुलाई और चूहों को बतलाया कि अब उसने शिकार करना छोड़ दिया है और अब वह कंद मूल फलों से ही अपना गुजारा करेगा. उसने घड़े के रिंग को दिखाकर  कहा की उसने राम नामी रिंग अपने गले मैं डाल ली है.   और अब उससे डरने की जरूरत नहीं है.
 


      चूहे बिल्ले की बातों से संतुष्ट  हो गए. उसने चूहों से कहा की अब अंतिम समय मैं वह  सबको हरिद्वार ले जाना चाहता है  उसने बहुत पाप किये हैं. हरिद्वार मैं उनका भी तारण हो जाएगा तुम भी हरिद्वार गंगा जी मैं नहा आओगे. चूहे राजी हो गए. हरिद्वार पहुँच कर उन्होंने जंगल मैं एक टेन्ट लगाया टेन्ट मैं उसने कहा की मैं अन्दर की तरफ सोता हूँ. तुम लोग टेन्ट के दरवाजे की तरफ सो जाओ. चूहों ने कहा  कि जंगल मैं शेर बाघ भालू आदि आ सकते हैं. अतः आप बाहर  की तरफ सो जाओ.  बिरालू तो ऐसा ही चाहता था. बिरालू ने कहा ठीक है. उसने हर रोज बड़े आराम से एक चूहा खाना शुरू कर दिया. चूहे परेशान थे कि हर रोज एक चूहा कहाँ जा रहा है. बिल्ले ने तो अपनी रामनामी चादर दिखा कर कहा कि उसने तो बहुत समय से शिकार करना ही  छोड़ दिया है.
  
     चूहों ने आपसी मंत्रणा की. वह बुद्धिमान शियार के पास गए और उन्होने शियार को सब बात बताई. चतुर शियर ने कहा की तुम लोग बिल्ले के पखाने  को जांचो, सब मामला साफ़ हो जायेगा. सुबह जब बिरालू पखाना करने बैठा तो चूहों ने देखा की उसके पखाने मैं चूहों के बाल दिखाई दिए.

एक चूहे ने बिल्ली से कहा

यार बिरालू दा, बात कूंछै उस ,
खान्हूं कूंछै कंद मूल ,
हगण हूँ हग्छै मुस

दुसरे चूहे ने कहा.

खांद खेती कंद मूल, हगत खेरी मुसा
गला तेरा कठुल मठुल, क्वीड़ा तेरा उषा

उस दिन से चूहों ने बिरालु का साथ छोड़ दिया.(D.N.Barola)    

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सात फेरे या सात का फेर (Saat Fere ya saat kaa fer)

सूर्य के सात रथ, प्रकाश के सात रंग, सुर मैं सात सुर, सा, रे, गा, मा, पा, धा, नी यानी षड़ज, ऋषभ, गंधार, मध्यम, पंचम, धैवत तथा निषाद; सात लोक  - भु, भुव:,स्व; मह:, जन, तप और सत्य.  सात पाताल - अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल.     सात द्वीप,  सात समुंद्र; सात पदार्थ - गोरोचन, चन्दन, स्वर्ण, शंख, मृदंग, दर्पण और मणि;  सात क्रियाएँ - शोच, मुखसुद्धि,स्नान, ध्यान, भोजन, भजन, तथा निद्रा.  सात जनों - ईश्वर माता, पिता, गुरु, सूर्य, अग्नि, तथा अतिथि का सम्मान के साथ-साथ विकारों - ईर्ष्या, क्रो़ध, मोह, द्वेष, लोभ, घ्रणा कुविचार; सात प्रकार के स्नान - मंत्र स्नान, भौम स्नान, अग्नि स्नान, वापव्य स्नान, दिव्य स्नान, करुणा स्नान और मानसिक स्नान;  सात फेरे, सात वचन. सात फेरे लेकर वर वधु कामना करते हैं कि हमें हमेशा सात ऋषियों - मरीची, अंगिरा, अत्री, पुलह, केतु, पौलस्त्य और वशिस्ठ इनका आशीर्वाद मिलता रहे

दुनिया की २१ धरोहरों मैं सात अजूबों का सरताज ताज महल को  शीर्ष स्थान मैं पाकर दुनिया मैं भारतवासियों का सर गर्व से ऊँचा हुवा है  दिनांक ७-७-७ को दुनियोँ के इतिहास मैं हमेशा याद रखा जाएगा  वैसे भी भारतीय कलेंडर के मुताबिक ७ तारीख को सप्तमी तिथि थी  तथा सप्ताह का सातवां दिन शनिवार था सात के अंक की महत्ता है कि  सात हवन सामग्री अग्निदेव को समर्पित कर अग्नि के सात फेरे लेकर , सात बचनों की प्रतिज्ञा कर युगल जोड़ी सात जन्मों के लिए पति-पत्नी  के रूप मैं एक हो जाती है  सात सितारे, सप्तरिशी, सात महासमुद्र, सात महाद्वीप, सात आसमान, सात महापर्वत, सात पवित्र  नदियाँ, सूर्य भगवान के सात अस्व, सात महाग्रंथ, सात प्रहार, सात दिन का सप्ताह, ज्योतिष के सात ग्रह, सतरंगी इन्द्रधनुष, सात सुर, सात रंग, सात पुश्त, सात की महत्ता एवं गरिमा को प्रदर्शित करते हैं. वैसे सात का फेर भी होता है  लकी सेवन सात का अंक भारतावंशियोँ   के लिए शौभाग्यशाली रहा, इसमें संदेह  नहीं  (D.N.Barola)

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आठ पट्ट सोल च्यां, चार यों छी चार कां
(Aath paa sol chyan, char you chee char kan)


एक गाँव मैं एक दंपत्ति रहते थे. आदमी हाड़ तोड़ मेहनत कर खूब कमाई करता था. उसकी पत्नी बहानेबाज थी तथा हमेशा बीमार रहती थी. उसने उसका इलाज डॉक्टर, वैद्य, हकीम सबसे ही  कराया.       उसने जागर भी लगाई. परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ. उसकी बिमारी का पता ही  नहीं चला.  उसका एक दोस्त था. उसने सलाह दी कि वह बाहर जाने का बहाना बना कर  देखे कि उसकी पत्नी उसके अनुपस्थिति मैं क्या करती है.  उसने अपनी बीबी से कहा कि वह बाहर जा रहा है और उसके लिए दवा भी लाएगा. वह छत मैं जा कर छुप गया और छत मैं  धुन्वरा (चिमनी   जहाँ से धुंवा ऊपर को जाता है) मैं से नीचे को देखने लगा. धुंवे के कारण उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया. परन्तु उसने छोइया बनाने की खुसबू सूंघी. उसने सुना की छोइया एक बार तवे पर डाला और एक बार पलटा. इस प्रकार कुल सोलह बार अल्टा पलटी हुई. उसने हिसाब लगा लिया कि कुल आठ छोइया बने हैं. वह घर मैं वापस आगया. उसने देखा कि उसकी पत्नी तो भली चंगी बैठी है और ठाठ से  छोइया  (आटा गुड़  का मिश्रण कर उसे गूँथ कर पतला घोल बना कर रोटी   की तरह बनाया जाता है) खा रही है. पत्नी ने चार छोइया छुपा  लिए थे और पति को केवल चार ही  छोइया  दिखाए . पति  ने  कहा कि उसे सिद्धि प्राप्त हो गई है. वह जागर  लगाएगा. उसने बताया कि उसके आंग (शरीर) मैं देवता आता है  उसने जागर   लगाई और नाचना  शुरू किया. नाचते नाचते उसने कहा कि तू बिलकुल बीमार नहीं है. तू नखरे लगाती है  तथा कहा.
आठ पट्ट सोल च्यां, चार यों छी चार कां
बीबी कि चोरी पकड़ी गई. यह भी पता चल गया कि उसकी पत्नी को कोई बिमारी नहीं है. औरत भी शर्मिन्दा  हुई और उसने बहाने बनाना छोड़ दिया.(D.N.Barola)

D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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नकल करने के लिए भी अक्ल चाहिए. (You definitely need brain to copy others)

एक आदमी की तीन लड़कियां थी. जब वह विवाह योग्य हो गईं तो उनके पिता को उनके विवाह की चिंता हुई.  बहुत खोज बीन के बाद उसने अपनी बड़ी लड़की का विवाह एक बाघ से करा दिया और वह सुख से रहने लगी. कुछ समय बाद उसने अपनी दूसरी लड़की का विवाह भालू से करा दिया तथा  तीसरी लड़की के लिए योग्य वर की तलाश प्रारंभ कर दी. उसने तीसरी लड़की का विवाह गरुड़ से करा दिया.

कुछ समय बाद उस आदमी की पत्नी ने कहा - सुन्रते हो जी अपनी लड़कियों का हाल समाचार जानने के लिए लड़कियों के ससुराल क्यों नहीं जाते. आदमी ने कहा - भागवान तुम ठीक कहती हो. मैं कल ही उनके हाल समाचार जानने के लिए उनके घर जाता हूँ. वह सबसे  पहले सबसे बड़ी लडकी के ससुराल गया. उसके  आगमन पर बाघ बहुत प्रसन्न हुआ.

बाघ ने अपने  स्वसुर की खूब खातिरदारी  की. शाम को बाघ ने अपने स्वसुर से कहा  चलिए एक बकरी का शिकार कर के लाते हैं फिर उसका मीट चाव से खायेंगे. वह शिकार करने चल दिए. उसने अपने स्वसुर  से कहा कि सामने वाले मकान से मैं एक बकरी बाहर  को फैकुंगा, आप उसे घसीट कर कुछ दूर सिसूड़े  के भूड़ मैं डाल देना. बाघ ने बकरी का शिकार किया और स्वसुर जी कि तरफ बकरी को फैंक दिया. बाघ अपने स्वसुर के साथ बकरी को घर ले आया और सबने  ठाठ से बकरी का शिकार पका कर खाया.
घर लौट कर आदमी ने अपने घरवाली को बताया कि बाघ ने उसकी बड़ी खातिरदारी की. उसे हलवा, पूरी और बकरी का शिकार भी  खिलाया.

उसने अपनी पत्नी से कहा की हम भी ऐसा ही  करते हैं. वह अपनी पत्नी को लेकर एक मकान के पास गया. वहां मकान मैं बकरी व घोड़े बंधे हुवे थे. इत्तफाक से वह घोड़े वाले गोठ मैं चला गया और बाघ की ही तरह एक घोड़े को बाहर  फैंकने लगा. परन्तु घोड़े ने अपनी लातों से उसकी खूब मरमत कर डाली और वह वहां से अपनी मरमत करा व हाथ पैर तुड़वा कर वह  घर वापस लौटा.



कुछ दिन बाद उसे दूसरी लड़की की याद आई. वह भालू के घर गया. भालू ने उसकी खातिर करने की सोची. उसने अपनी पत्नी से कहा की वह कड़ाई गरम करे. जब कड़ाई गरम हो गई, तो भालू उसमे बैठ गया. भालू के कड़ाई मैं बैठने से उसकी  चर्बी गलने लगी. जब काफी चर्बी गल गई तो वह कड़ाई से उठ गया. औरत ने चर्बी से घी तेल बनाया और लजीज पकवान अपने पिता को परोसे. ख़ुशी ख़ुशी व अपने घर वापस लौटा और उसने अपनी पत्नी को बताया की उसकी दूसरी लड़की भी ससुराल मैं प्रसन्न है.
उसने अपनी पत्नी से कहा की वह भी भालू की तरफ अपनी चर्बी पिघलाएगा और वह दोनों मिलकर पकवान खाएँगे. पत्नी ने एक कड़ाई को गरम किया. आदमी उसमे बैठ गया. बैठते ही  उसने चिल्लाना शुरू कर दिया. औरत ने बड़ी मुस्किल से उसे कड़ाई से बाहर निकाला. उसके भेल अच्छी तरह सिक गए थे. कई दिन के इलाज के बाद जब वह ठीक हुआ तो उसे अपनी छोटी लड़की की याद  आ गई.



वह गरुड़ के घर गया. गरुड़ ने स्वसुर से कहा की वह उन्हें दुनिया की सैर कराएगा. आदमी गरुड़ के एक पंख मैं बैठ गया. गरुड़ ने उसे दुनिया की सैर कराई तथा खूब खातिर की.

घर लौट कर उसने अपनी पत्नी को सारी बात बताई. उसने कहा चलो मैं  तुम्हें भी दुनिया की सैर कराता हूँ. वह दो सूपे लाया उसने दोनों बाहोँ पर सुपे बाँध दिए. दोनों पति  पत्नी  एक पहाड़ी के उपर गए. उसने पत्नी से सूप मैं बैठ जाने को कहा. पत्नी सूप मैं बैठ गई. उसने  पहाड़ी से एक छलाँग लगाईं . होना क्या था. दोनों पहाड़ी  से नीचे गिर पड़े. उनको काफी चोट आई. दोनों किसी तरह घर वापस आये और दोनों ने तौबा  की की  वह अब किसी की नकल   नहीं करेंगे.(D.N.Barola)

 

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