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Bhitauli Tradition - भिटौली: उत्तराखण्ड की एक विशिष्ट परंपरा

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हेम पन्त:
यह जानकारी हमारे बडे भाई श्री पंकज महर जी ने भेजी है.. उनके यहां इन्टरनेट में कुछ दिक्कत है..

चैत्र महीने की ५ गते तक विवाहित महिला को स्वयं तथा किसी और के द्वारा उसके सामने महीने का नाम लेना भी वर्जित होता है।
उत्तराखण्ड की हर महिला भिटौली का इंतजार करती है और इसे पूरे गांव में बांटा जाता है, यह त्यौहार हमारे सामाजिक सदभाव का भी प्रतीक है। इस माह का महिलाओं के लिये कितना महत्व है, हमारे लोकगीतों के सहज ही जाना जा सकता है...।

"ना बासा घुघुती चैत की, याद आ जैछे मैके मैत की..."

हेम पन्त:
आज से कुछ दशक पहले जब यातायात व संचार के माध्यम इतने नहीं थे उस समय की महिलाओं के लिये यह परंपरा बहुत महत्वपूर्ण थी. जब साल में एक बार मायके से उनके लिये पारंपरिक पकवानों की पोटली के साथ ही उपहार के तौर पर कपडे आदि आते थे.

हेम पन्त:
भिटौली आने पर घर में त्यौहार का माहौल हो जाता है. घर में बनने वाले पकवानों को गांव-पडोस में बांटा जाता है. इस तरह यह रिवाज सामाजिक सद्भाव को भी बढ़ावा देता है.
चैत्र मास के दौरान पहाडो में सामान्यतः खेतीबारी के कामो से फुरसत रहती है... यह रिवाज अपने नाते-रिश्तेदारो से मिलने जुलने का और उनके हाल-चाल जानने का एक माध्यम बन जाता है...

shailikajoshi:
Thanks For This Great Topic And Elling the Story of Bhitauli.
Mai Bachpan se janti hu K Bhitauli ka Mahina Hota hai.Is Mahine Bhai Bahan ko Bhitauli dene Jata hai.

Bt Iski story hai mujhe nhi maloom tha.
Thanks Again for Story

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

I think yah gana isi par banaya gaya hai.

Ni basu Ghughuti Chait Ki,
Meeke Narayani Lagi Maite ki....


--- Quote from: H. Pant on April 03, 2008, 01:11:00 PM ---भिटौली आने पर घर में त्यौहार का माहौल हो जाता है. घर में बनने वाले पकवानों को गांव-पडोस में बांटा जाता है. इस तरह यह रिवाज सामाजिक सद्भाव को भी बढ़ावा देता है.
चैत्र मास के दौरान पहाडो में सामान्यतः खेतीबारी के कामो से फुरसत रहती है... यह रिवाज अपने नाते-रिश्तेदारो से मिलने जुलने का और उनके हाल-चाल जानने का एक माध्यम बन जाता है...

--- End quote ---

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