दोस्तों जैसा कि हम सब जानते भी हैं और कुछ लोगों ने तो देखा भी होगा कि उत्तराखंड में कई ऐसे मेले हैं और त्यौहार हैं , जिनमें पशुओं कि बलि दी जाती है, तो आप लोगों के क्या विचार हैं इस बलि प्रथा के सम्बन्ध में,आप लोग अपने सुझाव देने कि महान किर्पा करें !
गढ़वाल भर में आयोजित होने वाले अधिकांश मेले विभिन्न ऐतिहासिक आख्यानों पर आधारित होते हैं। परंपरा के मुताबिक इन मेला आयोजनों के दौरान पशुओं की बलि देने का भी रिवाज रहा है। ऐसा ही एक मेला है बूंखाल मेला। प्रतिवर्ष इस मेले में सैकड़ों बकरों समेत नर भैंसों की जान शक्ति उपासना के नाम पर ले ली जाती है। हालांकि, मेले में बलि प्रथा रुकवाने को विभिन्न सामाजिक संगठन जागरूकता अभियान चलाते हैं।
इसके अलावा प्रशासन की ओर से भी बलि न होने देने पर जोर दिया जाता है, लेकिन बूंखाल में प्रशासन के तमाम दावे हवा हो जाते हैं। भक्त इस वर्ष दिसंबर में प्रस्तावित मेले में पशुबलि को अभी से तैयारियों में जुट गए हैं। ऐसे में यह सवाल उठने लगा है कि क्या इस बार प्रशासन बलि रुकवा पाएगा।
गढ़वाल में मेलों को अठवाड़े के नाम से भी जाना जाता है। गढ़वाल में बलि प्रथा की बात की जाए, तो साफ होता है कि यह अठवाड़े ही इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। हालांकि, अब अधिकांश मेलों में बलि प्रथा लगभग बंद हो चुकी है, लेकिन थलीसैंण तहसील क्षेत्र बुंखाल में यह क्रूर प्रथा आज भी कायम है।
पिछले वर्ष मेले में सामाजिक संगठनों व प्रशासन की लाख कोशिशों के बावजूद लगभग 90 नर भैसों व हजारों बकरों की बलि चढ़ाई गई थी। यह भी बता दें कि बूंखाल राज्य का सबसे बड़ी पशुबलि मेला है। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने पशुबलि को अवैध घोर्षित कर रखा है, लेकिन इसे रोकने के लिए अभी तक कोई कारगर कोशिश होती दिखाई नही दे रही है।
हालांकि, प्रशासन एवं सामाजिक संगठनों के समन्वित प्रयासों से कठूड़, कांडा, सवदरखाल, खोला, वरकोट, मुण्डेश्वर में बलिप्रथा पूर्णत: समाप्त हो चुकी है, लेकिन बूंखाल आज भी प्रशासन के लिए चुनौती बना हुआ है। जानकारी के मुताबिक इस वर्ष दिसंबर माह के पहले सप्ताह में मेले का आयोजन होना सुनिश्चित है। इसके लिए राठ क्षेत्र में तैयारियां जोरों पर हैं।
मेले में इस बार भी फिर सैकड़ों नर भैसों व हजारों बकरों की बलि चढ़ने की प्रबल संभावना है। इसे देखते हुए प्रशासन व सामाजिक संगठनों के हलकों में भी हरकत शुरू हो गई हैं। क्षेत्र में तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं कि कि क्या चंद दिनों में इस राठ क्षेत्र की जनता में जागृति आ पाएगी।
पशु कल्याण बोर्ड की कार्यकारी अध्यक्ष व बिजाल संस्था की अध्यक्ष सरिता नेगी कहती हैं कि जिस तरह कांडा मेले में पशुबलि रूकी, उसी तरह से बुंखाल मेले में बलि प्रथा पर अंकुश लगेगा। उन्होंने बताया कि क्षेत्र में अब तक जनजागरण अभियान के साथ ही लगभग आठ गांवों में समितियों का गठन भी किया गया है, जो बलि देने वालों को समझाएंगी।
दूसरी ओर, एसडीएम थलीसैंण एनएस नबियाल कहते हैं कि बूंखाल में बलि प्रथा पर बलपूर्वक रोक नहीं लगाई जा सकती। उन्होंने बताया कि प्रशासन की ओर से जनजागरण को विशेष प्रयास किए जाएंगे।