आदरणीय मेहर जी,
जागर के बारे में इतनी जानकारी देने के बारे में बहुत बहुत शुक्रिया.
हम लोग भी अभी गाँव में बैसी (२० बार जागर) लगा कर आये हैं. ४ जून से १७ जून २००८ तक. हमारे ग्राम देवता श्री ग्वेल जी हैं. हमारे बडे़ देवता श्री नरंकार हैं जो कि शिवजी के निराकार रूप हैं उन्हें मामू महादेव भी कहते है क्योंकि उनकी बहिन कालिंगा के पुत्र ग्वेल देवता हैं और ग्वेल नाचते समय जय मामू का उदघोष करते है. हमारे परिवार के द्वारा श्री नरंकार देवता का एक मन्दिर गाँव में बनवाया गया है और उसकी स्थापना अभी की गई तथा नरंकार एवं ग्वेल जी के नव अवतार हमारे परिवार के लोगों पर गढा़ये गये. हमारे ताउ जी के बेटे श्री इन्दर दा पर नरंकार और मेरे छोटे भाई जय बिष्ट पर ग्वेल और नरसिंह जी का नव-अवतार हुआ इसीलिये ये बैसी दी गई. इसमें १९ बार घर के अन्दर की हुड़के वाली जागर लगी और बाकी ३ दिन बाहर धुनी के सामने वाली ढोल दमुवे और रणसिहं वाली जात्रा लगी. देवताओं को रामगंगा में स्नान करवाने के लिये सोमनाथेश्वर (शिवालय, मासी, अल्मोडा़) भी ले जाया गया. यह एक अद्वितीय अनुभव था. हमने इसकी रिकार्डिंग भी की है. मैं कोशिश करूंगा उसे अप्लोड करने की.
इस मन्दिर के निर्माण के पीछे भी एक कहानी है.
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यह कहानी है
गाँव- आदिग्राम कन्हौणियाँ,
पट्टी- तल्ला गेवाड़,
पोस्ट आफ़िस- मासी,
तहसील - चौखुटिया (गनाई),
जिल्ला - अल्मोड़ा
की.
आज से ४-५ पीढी़ पहले हमारे परदादा के समय वे लोग ४ भाई थे. ३ भाई यों के तो वारिस थे पर एक भाई के कोई बेटा न था केवल शादी शुदा बेटियाँ थीं. उस समय ऐसा ही जमाना था, खेती ही आय का ज़रिया थी. उस भाई की मॄत्यु के बाद बाकी भाइयों ने उसकी विधवा को, जिसका नाम "धरती देवी" था, जमीन के लालच में बहुत सताया. बिचारी क्या करती? उस जमाने में कानून का सहारा लेना उस दूर दराज के गाँव में सोच से परे था. औरतों की दशा सोचनीय थी. उसपर बेचारी अकेली वॄद्धा धरती देवी... जब अत्याचार असहनीय हो गया... गला गला औसान आ गया तो उसे घ्रर छोड़्ना पड़ा. उसके घर में बड़े देवता नरंकार का मन्दिर भी था. आखिर वह देवता के आगे रोई... बोली .."आज मेरे पर यह अत्याचार हो रहा है और तू देवता बैठा देख रहा है..." यह कह कर वह अपने उस घर को आग लगा कर अपनी किसी बेटी के घर चली गई. वहीं उसकी बाद में मॄत्यु हो गई. इधर से किसी ने उसका पीपल-पानी (तेरहवीं आदि क्रिया कर्म) नहीं किया. उसकी आत्मा भटकती रही. इन ३ भाइयों ने उसकी जमीन हथिया ली. गाँव में नरंकार देवता का कोई मन्दिर न रहा और उनकी पूजा भी न के बराबर रह गई.
इधर उसकी धात देवता को लग गई थी. देवता ने उसकी ज़मीन हथियाने वाले ३ भाइयौं को सताना शुरू कर दिया. वे तो बाद में मर खप गए पर देवता का कोप जारी रहा. वह घर/मन्दिर जिसे धरती देवी जला गई थी मिट्टी में मिल गया था. धरती देवी को भी लोग भूल गये. केवल एक आम के पेड़ जो उन्होने लगाया था के द्वारा ही लोग उन्हें कभी -२ याद करते थे. मैंने भी बचपन में इस पेड़ को देखा था और इसके आम खाए थे. उस मकान के पत्थर आदि उन लोगों ने अपने घर बनाने में प्रयोग कर लिये और वह खेत जिसमें वह मकान था बेच दिया. कालांतर में उस खेत की खुदाई के वक्त वहां देवता के त्रिशूल, दीपक, चिम्टे आदि निकले तो गाँव के बुजुर्गों ने २-४ पत्थर लगा कर एक छोटा सा थान बना कर वे वहाँ स्थापित हुए मान लिये और वहीं पूजा करने लगे. मुख्य पूजा ग्वेल देवता की ही होती रही.
यहाँ यह बता देना उचित होगा कि हमारी मान्यता के अनुसार नरंकार देवता सबसे बडे़ देवता शिव का निराकार रूप हैं और उनके बाद हीत, हणुवाँ, ग्वेल तथा लाखुडा़ को उन्होंने अलग अलग कार्य तथा इलाके दिये हैं. ये ही चारों देवता नरंकार के कार्य निष्पादित करते हैं. जागर आदि में भी नरंकार देवता केवल आसन लगा कर ध्यानमग्न हो जाते हैं तथा सभी बातें, विचार, फ़ैसले आदि ये चारों में से जो भी उस समय अवतरित रहता है वही देवता करता है. हमारे गाँव की चौकी नरंकार ने ग्वेल देवता को सौप रखी है. इसलिए हमारे गाँव में मुख्य पूजा ग्वेल की होती थी.
अब आइए मुख्य कहानी पर आ जायें. पीढ़ियाँ गुजरती गईं. उन ३ भाइयों की सन्तानों के आज बढ़ कर ५ परिवार हो गये. देवता का कोप भी बढ़ता गया. हमारी पीढि़ में आकर इस समस्या का कारण गण्तुआ से पता किया गया तो पूरी कहानी पता चली. समस्या के समधान के लिये उस वॄद्धा (धरती देवी ... अब हम उन्हें धरती आमाँ कहते हैं) की अत्मा को अवतरित कराया गया जो कि हमरे एक चाचा के शरीर में अवतरित हुई. पहले तो वह खूब रोई.. फ़िर काफ़ी क्रोधित हुई पर अन्त में काफ़ी मिन्नतें करके उनका हन्क पूजा/धोया गया ( ह्न्क पूजा भी एक महत्वपूर्ण विचार का मुद्दा है.. इसमें किसी के ह्न्क/गुस्से/अहंकार को लगी ठेस को पूजा द्वारा धोया जाता है, यह भी केवल देवभूमि कि विशेष देन है... अन्यत्र शायद कहीं ऐसा नहीं देखा गया). धरती आमाँ के गहने आदि की भरपाई के लिये चान्दी के छोटे-२ गहने, उनकी धोती, दराती आदि बनवाई गई तथा उनका एक मन्दिर/थान घर के अन्दर बनवाया गया.
इन सबके साथ नरंकार देवता, ग्वेल देवता, हीत आदि को भी जागर में नचाया गया. उस समय नरंकार की तरफ़ से हीत तथा ग्वेल ने फ़ैसला किय कि अब क्योंकि नरंकार देवता का मन्दिर हमारे परिवार की पूर्वज धरती आमाँ के द्वारा नष्ट हुआ था सो हमारे ५ परिवार ही उसका निर्माण करेंगे. और उसके बाद पूरे गाँव वाले मिलकर बैसी देंगे और नरंकार की नये मन्दिर में स्थापना करेंगे और नरंकार गाँव के किसी व्यक्ती पर अवतार लेंगे.
ऐसा ही हुआ भी. मन्दिर बना, बैसी हुई, नरंकार के नव-अवतार हमारे गाँव के तत्कालीन प्रधान श्री गुसाईं सिंह पर अवतरित हुए. नरंकार देवता ने कहा कि "क्योंकि आज मेरा इस गाँव में दुबारा प्रादुर्भाव केवल उस भुतणि (धरती आमाँ की आत्मा ) के कारण हुआ है सो आज से यह भी मेरे साथ रहेगी, इसका मन्दिर भी मेरे मन्दिर के साथ रहेगा. गाँव मे जब भी मेरी और ग्वेल की पूजा कोई करेगा तो इसकी भी पूजा उसे करनी पडे़गी."
सो धरती आमाँ का मन्दिर नरंकार के मन्दिर के साथ ही बना दिया गया. और देवता के बताये अनुसार ही सब कार्य होने लगे. यह बात आज से २० साल पहले की यानि सन १९८८ के अन्त की (सर्दियों) की है
उस वक्त मन्दिर निर्माण में कुछ कमी रह गई जिसके कारण उस मन्दिर में पत्थरों में दरार पड़ गई. बाद में गाँव में पोलिटिक्श के चलते गाँव के लोगों ने वहाँ से अलग एक दूसरे मन्दिर का निर्माण कराया और वहाँ नरंकार और धरती आमाँ का मन्दिर स्थापित किया. पर इसके लिये धरती आमाँ को नचाकर उनकी अनुमति नहीं ली गई. इससे वे कुपित हो गई. पिछ्ले वर्ष जागरी लगाई गई तो उन्होंने कहा कि गाँव वाले मुझे और मामू महादेव (नरंकार) को दूसरी जगह ले गये हैं पर यह हमें मान्य नहीं है. तुम पाँचों परिवार मिलकर दुबारा उस २० वर्ष पुराने टूटे मन्दिर का पुनर्निर्माण करो. इस दौरान उनके और नरंकार के डंगरिये के बीच कुछ कटु वाद विवाद भी हुआ. इसपर धरती आमाँ ने कहा कि ये नरंकार का डंगरिया अब सच्चाई पर नहीं रहा, इस पर इस पर नरंकार नहीं नाच रहे हैं. उन्होंने लल्कारा कि मैं अपनी शक्ती दिखाती हूं, अगर तुम सच्चे हो तो मुझे रोक लो यह कह कर उन्होंने हाथ हिलाया तो वहाँ उपस्थित कई लोग नाचने लगे, चिल्लाने लगे और अजीब अजीब सी आवाजें निकालने लगे. मैं भी नाचने लगा. हालाँकि मेरे उपर पहले कभी कोई अवतार नही आया था. यह एक अजीब अनुभव था. मैं अपने वश में नहीं था. बडा़ डरावना माहौल हो गया था. धरती आमाँ ने नरंकार के डंगरिया से कहा कि अगर तू सच्चा नरंकार नाच रहा है तो इन सब नाचने वालों को रोक कर दिखा. इसपर वे (नरंकार के डंगरिया) वहाँ से नाराज हो कर चले गये. फिर धरती आमाँ ने सभी नाचने वालों को शाँत होने की आग्या दी तो सभी शाँत हो गई. सभी को धरती आमाँ की शक्ती पर विश्वास हो गया था.धरती आमा ने कहा कि अब मैं तुम्हारे ५ परिवारों में ही सभी देवताओं का अवतरण करवा दूँगी तुम मुझ पर विश्वाश करके मन्दिर का पुनर्निर्माण करवाकर बैसी दो. हमने वैसा ही किया और २ वर्ष का समय माँगा. १ वर्ष में ही मन्दिर का निर्माण कार्य धरती आमाँ एवं देवताओं की कृपा से पूर्ण हुआ और ४ जून २००८ से १७ जून २००८ तक सुबह एवं शाम दोनों समय कि जागर के द्वारा बैसी पूरी हुई. जैसा कि पहिले बता चुका हुँ कि हमारे ताउ जी के बेटे श्री इन्दर दा पर नरंकार और मेरे छोटे भाई जय बिष्ट पर ग्वेल और नरसिंह जी का नव-अवतार हुआ. धरती आमाँ ने अपने खेत और अपने मन्दिर की मिट्टी हमें दी जो कि इस बात का द्योतक थी कि अब मैने अपनी जमीन तुम लोगों को अपनी मर्जी से सौप दी है. उन्होंने और स्भी देवताओं ने खुश हो कर हम सभी को आशीर्वाद दिया.
इस दौरान कई अनुभव हुए जो बयान नही किये जा सकते सिर्फ़ महसूस किये जा सकते है.
अब अगले वर्ष दुबारा १ दिन की जात्रा लगा कर बाजा खोला जायेगा.
जय ग्वेल देवता.
जय मामू महादेव
जय धरती आमाँ की.
वीरेन्द्र सिंह बिष्ट