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Ramman is a cultural festival celebrated in garhwal region of Uttarakhand. This festival is related great epics of Hindus Ramanaya'.
[justify]चमोली। प्रत्येक साल बैसाखी पर चमोली के पैनखंडा में विश्व धरोहर रम्माण का शुभ मुहुर्त निकाला जाता है। इस वर्ष यह कार्य अगले माह की १४ तारीख को किया जाएगा। पैनखंडा के ग्रामीणों ने रम्माण को विश्व धरोहर बनाने में अहम भूमिका निभाई है। फिर भी रम्माण के कलाकारों के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं। इस विश्व धरोहर को संजोकर रखने के लिए अगली पीढ़ी की भागीदारी बहुत जरूरी है। जो अब धीरे-धीरे कम हो रही है। उत्तराखण्ड ने सदियों से अपनी लोक संस्कूति, लोक कलाओं और लोकगाथाओं को संजोकर रखा है। विश्व प्रसिद्ध नंदा राजजात हो या फिर देवीधुरा का बग्वाल नृत्य सभी यहां की लोक संस्कूति की झलक दिखलाते हैं। चमोली के पैनखंडा को यूनेस्को को विश्व धरोहर बनने में रम्माण ने लोक संस्कूति की अनूठी छटा पेश की है।
उत्तराखण्ड में रामायण-महाभारत की सैेकड़ों विधाएं मौजूद हैं जिनमें से कई विधाएं विलुप्त होने की कगार पर है मगर कई लोगों के अथक प्रयासों एवं दृढ़ निश्चय ने इनके संरक्षण और विकास के लिए अभूतपूर्व काम किया है और उत्तराखण्ड को पूरे विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान दिलाई है, चाहे वह विश्व की सबसे लंबी पैदल यात्रा नंदा राजजात यात्रा हो या फिर चंपावत के देवीधुरा में प्रसिद्ध बग्वाल युद्ध में पत्थरों का भीषण संग्राम या गुप्तकाशी के जाख देवता के पश्वा का जलते मेगारो में घंटों तक हैरतअंगेज कर देना वाला नृत्य। पीढ़ी दर पीढ़ी यही चीजें श्रद्धालुओं को यहां की लोक संस्कूति से रू-ब-रू कराती हैं। साथ ही वर्षों पुरानी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने का प्रयास भी करते हैं। ऐसी ही एक लोक संस्कृतिक है रम्माण।
माना जाता है कि रम्माण का इतिहास ५०० वर्षों से भी पुराना है। जब यहां हिन्दू धर्म का प्रभाव समाप्ति की ओर था तो आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म और सांस्कूतिक एकता के लिए पूरे देश में चार मठों की स्थापना की।
About Ramman
ज्योतिर्मठ (जोशीमठ )के आस-पास के इलाकों में हिन्दू धर्म के प्रति लोगों को पुनःजागृत करने के लिए अपने शिष्यों को हिन्दू देवी-देवताओं के मुखौटे पहनाकर रामायण महाभारत के कुछ अंशों को मुखौटा नृत्य के माध्यम से गांवों में प्रदर्शित किया गया, ताकि लोग हिंदू धर्म को पुनः अपना सकें। शंकराचार्य के शिष्यों ने कई सालों तक मुखौटे पहनकर इन गांवों में नृत्यों का आयोजन किया। ये मुखौटा नृत्य बाद में यहां के समाज का अभिन्न अंग बनकर रह गया और आज यह विश्व धरोहर बन चुका है। गांवों में रम्माण का आयोजन प्रतिवर्ष बैसाख माह में किया जाता है। पखवाड़े तक चलने वाली मुखौटा शैली एवं भल्ला परंपरा की यह लोक संस्कूति आज शोध का विषय बन गई है। पांच सौ वर्ष से चली आ रही इस सांस्कूतिक विरासत में राम लक्ष्मण सीता हनुमान के पात्रों द्वारा नृत्य २ौली में रामकथा की प्रस्तुति की जाती है जिसमें १८ मुखौटे १८ ताल १२ ढोल १२ दमाऊं आठ भंकोरे प्रयोग में लाये जाते हैं।
इसके अलावा राम जन्म वन गमन स्वर्ण मृग वध सीता हरण लंका दहन का मंचन ढोलों की थापों पर किया जाता है। बीच-बीच में पौराणिक पात्रों द्वारा दर्शकों का मनोरंजन किया जाता है जिसमें कुरू जोगी बव्यां-बव्यांण और माल के विशेष चरित्र होते हैं। जो दर्शकों को खूब हंसाते हुए लोट-पोट कर देते हैं। साथ ही जंगली जीवों के आक्रमण का मनमोहक चित्रण म्योर- मुरैण नृत्य नाटिका के माध्यम से भी होता है।
२००७ तक रम्माण सिर्फ पैनखंडा तक ही सीमित था लेकिन गांव के ही डॉ कुशल सिंह भंडारी की मेहनत का नतीजा था कि आज रम्माण को यह मुकाम हासिल है। कुशल भंडारी ने रम्माण को लिपिबद्ध कर इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया। उसके बाद इसे गढ़वाल विवि लोक कला निष्पादन केंद्र की सहायता से वर्ष २००८ में दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र तक पहुंचाया। इस संस्थान को रम्माण की विशेषता इतनी पसंद आयी कि कला केंद्र की पूरी टीम सलूड-डूंग्रा पहुंची और वे लोग इस आयोजन से इतने अभिभूत हुए कि ४० लोगों की एक टीम को दिल्ली बुलाया गया। इस टीम ने दिल्ली में भी अपनी शानदार प्रस्तुतियां दीं। बाद में इसे भारत सरकार ने यूनेस्को भेज दिया। दो अक्टूबर २००९ को यूनेस्को ने पैनखंडा में रम्माण को विश्व धरोहर घोषित किया।
इसी साल आईसीएस के दो सदस्यीय दल में शामिल जापानी मूल के होसिनो हिरोसी तथा यूमिको ने ग्रामवासियों को प्रमाणपत्र सौंपे तो गांव वालों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इसके अलावा केन्द्रीय गढ़वाल विश्वद्यिालय के प्रोफेसर डीआर पुरोहित निदेशक लोक कला निष्पादन केन्द्र का भी रम्माण को विश्व धरोहर बनाने में अहम योगदान रहा। रम्माण संस्कूति के लोकगायक धूम सिंह बचन सिंह भंडारी एवं ढोल वादक पूरण दास गरीब दास पुष्करलाल हुकमदास इस अनमोल धरोहर को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं। हर वर्ष आयोजित होने वाला रम्माण का शुभ मुहूर्त १४ अप्रैल को बैसाखी पर निकाला जाता है। रम्माण मेला कभी ११ दिन तो कभी १३ दिन तक भी मनाया जाता है। अगले माह इसका विशाल आयोजन होगा, जिसकी तैयारी अभी से शुरू हो गई है। (Source - The sunday post)
M S Mehta