सिंह या घृत-संक्रान्ति
सिंह संक्रान्ति को ओलगिया भी कहते हैं। पहले चंद-राज्य के समय अपनी कारीगरी तथा दस्ताकारी की चीजों को दिखाकर शिल्पज्ञ लोग इस दिन पुरस्कार पाते थे, तथा अन्य लोग भी फल-फूल, साग-भाजी, दही-दुग्ध, मिष्ठान तथा नाना प्रकार की उत्तमोत्तम चीज राज-दरबार में ले जाते थे, तथा मान्य पुरुषों की भेंट में भी ले जाते थे। यह ओलग की प्रथा कहलाती थी। जिस प्रकार बड़े दिन को अँग्रेजों को डाली देने की प्रथा है, वही प्रथा यह भी थी। अब भी यह त्यौहार थोड़-बहुत मनाया जाता है। इसीलिए यह संक्रान्ति ओलगिया भी कहलाती है। इसे धृत या ध्यू संक्रान्ति कहते हैं। इस दिन (बेड़िया) रोटियों के साथ खूब घी खाने का भी रिवाज है। यह भी स्थानीय त्यौहार है।