Author Topic: Dung gas plant in Uttarakhand, उत्तराखंड के गांवों में गोबर गैस प्लांट  (Read 13240 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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गोबर गैस संयंत्र लगाने का आह्वान


गोपेश्वर। चिपको आंदोलन की मातृ संस्था दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल, पान हिमालयन ग्रासरूट डवलपमेंट फाउंडेशन तथा आईयूसीएन की ओर से आयोजित कार्यशाला में संस्था द्वारा बनाए गए गोबर गैस संयंत्र का उद्घाटन किया गया। इस मौके पर क्षेत्र के दर्जनों गांवों से आए ग्रामीणों को गोबर गैस संयंत्र के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।


 आह्वान किया गया कि घरेलू गैस को बचाने के लिए गोबर गैस संयंत्र लगाया जाए। जिला मुख्यालय से सटे देवलधार में आयोजित कार्यशाला का शुभारंभ सीएमओ डा. एके सिंह ने किया। कहा कि गोबर गैस पर्यावरण की दृष्टि से भी फायदेमंद है।


 पर्यावरण कार्यकर्ता चक्रधर तिवारी ने भी विचार रखे। इस मौके पर रमेश दानी, देवलधार की प्रधान सुमन नेगी, मुरारी लाल, डीएस नेगी, राम सिंह गड़िया, बीएस नेगी, मनोज करायत, विजय आदि शामिल थे।


Amarujala

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बायोगैस संयंत्र लगाने को मिलेगी सब्सिडी
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गोपेश्वर : जिला विकास अधिकारी संदीप वर्मा ने बताया कि राष्ट्रीय बायो गैस योजना के तहत जनपद में कई लो बायो गैस संयंत्र लगा रहे हैं। लोगों को रसोई गैस के साथ-साथ बिजली की परेशानी से भी छुटकारा मिल रहा है।

यहां जारी विज्ञप्ति में जिला विकास अधिकारी ने योजना की जानकारी देते हुए बताया कि राष्ट्रीय बायो गैस योजना के तहत केंद्र सरकार की ओर से संयंत्र लगाने के लिए दस हजार रुपये की सब्सिडी दी जाती है। परंतु शर्त यह है कि लाभार्थी को अपने खर्च पर पूरा संयंत्र लगाना होगा।

 उसके बाद ही सब्सिडी दी जाएगी। उन्होंने बताया कि पशुपालन करने वाले व्यक्ति बायोगैस संयंत्र लगाकर अपने परिवार के लिए ईधन व बिजली उत्पन्न कर सकते हैं।

Source daini jagran

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 उत्तराखंड  की जनता को अब गैस के सिलेंडरों को भूल जाना होगा और वायो गैस के प्लांट को अब सरकार को बढ़ावा देना होगा


सरकार ने गैस के दाम कुछ ऐसे बढ़ाए कि लोगों को गैस की आंच अब खटकने लगी है। कुछ तो ऐसे हैं जो अब गैस की आंच को भुला, फिर से चूल्हे की आंच पर भोजन पकाने की तैयारी में है। अब नंदप्रयाग के तेफना गांव के लोगों को ही लीजिए। यहां के लोग गैस कीमत की वृद्धि के कारण अब फिर से चूल्हे का दामन थाम रहे हैं। ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से निर्णय लिया कि सभी आयोजनों में लकड़ी से रसोई जलाई जाएगी। यही नहीं गांव का हर परिवार घर में फिर से चूल्हे पर ही भोजन पकाएगा। लगभग 500 की आबादी वाले विकासखंड कर्णप्रयाग का तेफना गांव बदलते जमाने के साथ लकड़ी के परंपरागत चूल्हों से हटकर गैस की हाईटेक रसोई तक पहुंच गए थे।

एकाएक गैस की बढ़ी कीमतों ने इन्हें फलैश बैक में जाने को मजबूर कर दिया। ग्रामीणों ने अतिरिक्त बोझ से निपटने के लिए बैठक कर फिर से परंपरागत लकड़ी जलाकर रसोई को चलाने का निर्णय लिया है। गांव के आसपास चीड़ का जंगल है। एक दशक से संपन्न लोग लकड़ी की रसोई का प्रयोग नहीं कर रहे थे। गांव के गरीब लोगों के घर पर ही लकड़ी का चूल्हा जलता था।


 अब ग्रामीणों ने निर्णय लिया है कि शादी हो या अन्य समारोह, सभी में लकड़ी के चूल्हे जलाए जाएंगे। अगर कोई इस निर्णय की अवहेलना करता है तो उस पर मामूली अर्थदंड भी लगाया जाएगा। जिन लोगों के पास जंगल जाने का समय नहीं, उन्हें जरूरतमंद ग्रामीण जंगल से लाकर लकड़ी बेचेंगे। इससे एक ओर घर बैठे रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे, वहीं गांव की एक सामूहिक परंपरा का भी निर्वहन होगा।
 jagran

 

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