Author Topic: Famous Pahadi Used To Forget - प्रतिष्ठित उत्तराखंडी अक्सर भूल जाते है पहाड़  (Read 12340 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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Bilkul sahi kaha Mehta ji ab Sapna Awasthi (Upreti) ji ko hi le lijiye unke man main kitni khataas hai ki Uttarakhand ne kabhi unhe apna nahi samjha.

उत्तराखंड ने उन्हें अपना समझा है तभी उनका नाम उत्तराखंडी संबधित वेबसाइट पर आ रहा है लेकिन क्या सपना अवस्थी ने अप्निआप को उत्तराखंडी माना है की वो उत्तराखंडी है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मैं इन बातो को बिलकुल सहमत हूँ!

यह कविता बिलकुल सटीक बैठती है आज के परिवेश में ! प्रवासी लोगो को जरुर पढना चाहिए और चिंतन करना चाहिए इस विषय पर!


इसी मसले पर एक अभिव्यक्ति यह भी है.. कविता है - अवतार एनगिल जी की.. कविता का चित्रण किया है बी. मोहन नेगी जी ने



Devbhoomi,Uttarakhand

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देवभूमि का प्रमाणपत्र दिल्ली में
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राज्य स्थापना दिवस के मौके पर 9 नवंबर को उत्तराखंड से बाहर निवास कर रहे राज्यवासियों को राज्य सरकार की ओर से तोहफा मिलेगा। लोगों को अब अहम प्रमाणपत्र बनाने को अपने गृह जनपद आने की जरूरत नहीं होगी। इसके लिए राजधानी दिल्ली स्थित मुख्य स्थानिक आयुक्त कार्यालय उत्तराखंड में आवेदन करना होगा। प्रमाणपत्र सरकार द्वारा तय की गई अवधि में यहीं से प्राप्त किया जा सकेगा। हालांकि प्रमाणपत्र संबंधित जिले में ही तैयार होगा जिला प्रशासन की ओर से ही जारी किया जाएगा।


Source dainik jagran
वर्तमान में काफी संख्या में सूबे के लोग देश में विभिन्न स्थानों पर निवास कर रहे हैं। जब उन्हें अपने जिले से जारी किए जाने वाले प्रमाणपत्रों की जरूरत होती है तो इसके लिए गृह जनपद आना पड़ता है। अक्सर यह देखा गया है कि जिलों में सरकारी मशीनरी की लचर व्यवस्था से कई दिनों तक संबंधित कार्यालय के चक्कर काटने के बावजूद प्रमाणपत्र नहीं बन पाता। ऐसे में बिना वजह के समय के साथ उन्हें आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। अब सरकार ने ऐसे लोगों को राहत दिलाने की तैयारी की है।

 योजना के तहत प्रमाणपत्रों को बनाने की व्यवस्था ऑनलाइन किया जा रहा है। जरूरतमंद को दिल्ली स्थित मुख्य स्थानिक आयुक्त कार्यालय में आवेदन करना होगा। प्रमाणपत्र के लिए आवेदनकर्ता के जरूरी दस्तावेज वहां से कंप्यूटर के जरिए लोड कर जिलों में भेजे जाएंगे। वहां सरकार द्वारा तय की गई अवधि में इसे बनाया जाएगा।

 जिला प्रशासन इसे आयुक्त कार्यालय भेजेगा। वहीं से इसे प्राप्त किया जा सकेगा। योजना को लेकर एनआइसी उत्तराखंड ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है। राज्य स्थापना दिवस की ग्यारहवीं वर्षगांठ के मौके पर आगामी 9 नवंबर से यह व्यवस्था दिल्ली में शुरू की जा रही है। भविष्य में देश के दूसरे अन्य शहरों से शुरू करने का प्रस्ताव है।

Vkay

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Dear Friend
It is a tragedy for hills. I would like to add that even a little elevation  makes them wary of their home land, barring a few lovers of their native land. But now the trend was on down side and more people were making efforts to associate themselves with soil. 
Regards
Vkay

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dear Friend
It is a tragedy for hills. I would like to add that even a little elevation  makes them wary of their home land, barring a few lovers of their native land. But now the trend was on down side and more people were making efforts to associate themselves with soil. 
Regards
Vkay

Hello Vkay

First of all, we welcome you in merapahad community .

Thanks for sharing your views on the subject. It is really unfortunate that people from Uttarakhand who have established themselves in various fields generally want to get rid of pahad & pahadi. I have not understood the reason behind this.

Uttarahkandi needs to be united and they should extend their helping hand towards development of State and Community.

 

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