Author Topic: How To Change Tough Agriculture Methodology - पहाडो की कठिन खेती  (Read 72305 times)

हलिया

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 717
  • Karma: +12/-0
कोदा (मडुवा) अब खाया जायेगा चाव से:

गरीबों का अनाज कोदा (मडुवा) अब अपने नये अवतार में शीघ्र ही आने वाला है जिसे आम लोग बड़े चाव से खायेंगे।  रानीचौरा (गो. ब. पं कॄ. बि.बि.) के पर्वतीय परिसर के कॄषि बिद्वानों ने कोदे की पीआरएम-७०१ नामक किस्म तैयार करने में सफ़लता प्राप्त की है।  यह नयी किस्म पौस्टिक तो होगी ही रंग में भी गेहूं की तरह ही होगी। 

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
अरे वाह!! ये तो एक विशेष उपलब्धि है..
कोदा (मडुवा) अब खाया जायेगा चाव से:

गरीबों का अनाज कोदा (मडुवा) अब अपने नये अवतार में शीघ्र ही आने वाला है जिसे आम लोग बड़े चाव से खायेंगे।  रानीचौरा (गो. ब. पं कॄ. बि.बि.) के पर्वतीय परिसर के कॄषि बिद्वानों ने कोदे की पीआरएम-७०१ नामक किस्म तैयार करने में सफ़लता प्राप्त की है।  यह नयी किस्म पौस्टिक तो होगी ही रंग में भी गेहूं की तरह ही होगी। 

हलिया

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 717
  • Karma: +12/-0
कोदा (मडुवा) अब खाया जायेगा चाव से:

बिभाग के अध्यक्ष प्रो० एम. दत्ता के अनुसार इस बीज को किसानों के लिये अगले साल उपलब्ध करा दिया जायेगा।  इस बीज को अफ़्रीका और पर्वतीय बीज के मेल से बनाया गया है।  इसकी पैदावार सामन्य कोदे के पैदावार से दुगुना के लगभग होगी। जहां सामन्य कोदा एक देक्टेयर में १२ से १४ कुंतल पैदावार देता है वहीं यह क्रास बीज २५ से ३० कुंतल पैदावार देगा।

Risky Pathak

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,502
  • Karma: +51/-0
Jai Ho Raaju Daa.. Achi Khabar Sunaayi Hai...

कोदा (मडुवा) अब खाया जायेगा चाव से:

गरीबों का अनाज कोदा (मडुवा) अब अपने नये अवतार में शीघ्र ही आने वाला है जिसे आम लोग बड़े चाव से खायेंगे।  रानीचौरा (गो. ब. पं कॄ. बि.बि.) के पर्वतीय परिसर के कॄषि बिद्वानों ने कोदे की पीआरएम-७०१ नामक किस्म तैयार करने में सफ़लता प्राप्त की है।  यह नयी किस्म पौस्टिक तो होगी ही रंग में भी गेहूं की तरह ही होगी। 

हलिया

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 717
  • Karma: +12/-0
कोदा (मडुवा) अब खाया जायेगा चाव से:


भले ही उत्तराखण्ड का आम आदमी अबोध बस नाक-मुंह बनाता हो, कोदा है बड़े काम की चीज।  रक्त चाप में यह बहुत लाभकारी है। इसमें दूध के समान ही पौष्टिकता है।  गावों में दो रुपया किलो के भाव बिकने वाले कोदा में कार्बोहाइड्रेट ७२.५५ प्रतिशत, प्रोटीन ७.१५ प्रतिशत, फ़ाईबर ३.७६ प्रतिशत, फ़ास्फ़ोरस २.२० प्रतिशत, बसा १.३५ प्रतिशत तथा खनिज २.३५ प्रतिशत और बड़ी मात्रा में बिटामिन ए, अमीनो अम्ल एवं ३४२ के लगभग कैलोरी ऊर्जा प्रति सौ ग्राम पायी जाती है।

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
लोहाघाट(चम्पावत)। कृषि विज्ञान केन्द्र सुई लोहाघाट में महिला काश्तकारों के लिए जीविकोपार्जन हेतु बे-मौसमी सब्जी उत्पादन की नवीनतम तकनीकी विषय पर आयोजित कार्यशाला का समापन हो गया है। कार्यशाला में ग्रामीण अंचलों से पहुंची दो दर्जन से अधिक महिलाओं ने हिस्सा लिया।

बे-मौसमी सब्जी उत्पादन के वैज्ञानिक तरीकों की जानकारी देते हुए मुख्य प्रशिक्षक केवीके के सब्जी वैज्ञानिक डा. एके सिंह ने कहा कि पर्वतीय अंचलों की विषम भौगोलिक परिस्थिति के अनुकूल काश्तकार साग सब्जी उत्पादन के लिए नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करे तो उनको उनकी मेहनत का उचित लाभ मिलेगा। उन्होंने पानी की कमी के बावजूद टपक सिंचाई विधि से पौधों को सींचने, पालीटनल में पौध उगाने, पालीहाउस में सब्जियों की खेती करने की तकनीकी जानकारी प्रदान की। डा. सिंह ने वर्षा के पानी को एकत्रित कर उसका उपयोग सिंचाई में करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि पर्वतीय भूभाग में अधिकांश जमीन बंजर छोड़ दी जाती है। बंजर व खाली भूमि में कद्दू वर्गीय सब्जियों को पैदा किया जाय तो इससे काश्तकारों की तकदीर बदल सकती है। इस मौके पर काश्तकारों को परिक्षेत्र का भ्रमण कराकर विभिन्न तकनीकों को दिखाया गया। महिलाएं स्वचालित तश्तरियों में पौध उत्पादन को देखकर काफी प्रभावित हुई।

Risky Pathak

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,502
  • Karma: +51/-0
Humaare Gaanv ke asspass ke gaanvo me ye taknik start ho chuki hai....

Dasouli, Pithoragarh.... Govt has provided  "Poly House" for every house owner in his field. "Polly House" is a Tent Like structure having walls of Plastic(either PVC or Polyethene). People can grow Unseasonal Vegetables there. "Poly House" is free of cost. So its a major step in development of agriculture. Now most people will not have to wait for right season to grow specific type of Vegetables/fruits..


Aasha Hai Ye Taknik Pure Uttrakhand me Jald se Jald Faile
लोहाघाट(चम्पावत)। कृषि विज्ञान केन्द्र सुई लोहाघाट में महिला काश्तकारों के लिए जीविकोपार्जन हेतु बे-मौसमी सब्जी उत्पादन की नवीनतम तकनीकी विषय पर आयोजित कार्यशाला का समापन हो गया है। कार्यशाला में ग्रामीण अंचलों से पहुंची दो दर्जन से अधिक महिलाओं ने हिस्सा लिया।

बे-मौसमी सब्जी उत्पादन के वैज्ञानिक तरीकों की जानकारी देते हुए मुख्य प्रशिक्षक केवीके के सब्जी वैज्ञानिक डा. एके सिंह ने कहा कि पर्वतीय अंचलों की विषम भौगोलिक परिस्थिति के अनुकूल काश्तकार साग सब्जी उत्पादन के लिए नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग करे तो उनको उनकी मेहनत का उचित लाभ मिलेगा। उन्होंने पानी की कमी के बावजूद टपक सिंचाई विधि से पौधों को सींचने, पालीटनल में पौध उगाने, पालीहाउस में सब्जियों की खेती करने की तकनीकी जानकारी प्रदान की। डा. सिंह ने वर्षा के पानी को एकत्रित कर उसका उपयोग सिंचाई में करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि पर्वतीय भूभाग में अधिकांश जमीन बंजर छोड़ दी जाती है। बंजर व खाली भूमि में कद्दू वर्गीय सब्जियों को पैदा किया जाय तो इससे काश्तकारों की तकदीर बदल सकती है। इस मौके पर काश्तकारों को परिक्षेत्र का भ्रमण कराकर विभिन्न तकनीकों को दिखाया गया। महिलाएं स्वचालित तश्तरियों में पौध उत्पादन को देखकर काफी प्रभावित हुई।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Madua is now coming back in form. People earlier used to neglect it but today it has become difficult to be available in pahad.

Knowing the medical benefit of this grain, people are now buying it and there is some product are also coming in market. 

कोदा (मडुवा) अब खाया जायेगा चाव से:

गरीबों का अनाज कोदा (मडुवा) अब अपने नये अवतार में शीघ्र ही आने वाला है जिसे आम लोग बड़े चाव से खायेंगे।  रानीचौरा (गो. ब. पं कॄ. बि.बि.) के पर्वतीय परिसर के कॄषि बिद्वानों ने कोदे की पीआरएम-७०१ नामक किस्म तैयार करने में सफ़लता प्राप्त की है।  यह नयी किस्म पौस्टिक तो होगी ही रंग में भी गेहूं की तरह ही होगी। 

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1

देहरादून, अरविंद शेखर। सब्जियों का राजा कहा जाने वाला आलू एक दिन पहाड़ को बर्बाद कर के रख देगा। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हो रही आलू की खेती आने वाले समय में पहाड़ के पर्यावरण और समाज के सामने संकट खड़ा कर देगी। आलू की खेती मिट्टी को भुरभुरा तो बना ही रही है साथ ही बारिश होने पर यह मिट्टी आसानी से बह जाती है। आलू और अन्य नगदी फसलों की वजह से पर्वतीय क्षेत्रों की परंपरागत फसलों का अस्तित्व भी संकट में है।

ये निष्कर्ष हैं हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय पौड़ी परिसर की उर्मिला राणा, गोविंद बल्लभ पंत इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एन्वायरमेंट ऐंड डेवलपमेंट श्रीनगर [गढ़वाल] के आरके मैखुरी और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के केजी सक्सेना के एक संयुक्त शोध के।

उत्तराखंड के पर्वतीय गांवों में आज भी कृषि लोगों का मुख्य व्यवसाय है। खेती का सीधा संबंध आज भी वनों और पशुपालन से है। पहाड़ की ज्यादातर खेती वर्षा पर निर्भर है। कुछ निचले इलाकों में ही सिंचाई की सुविधा है। आम तौर पर पहाड़ में गर्मी और जाड़े में खरीफ और रबी की फसलों के वक्त मिश्रित खेती होती है, जिससे जमीन की उपजाऊ क्षमता बनी रहती है। पारंपरिक फसलें मिंट्टी को भी खेत में बनाए रखती हैं। शोध के मुताबिक बिना सिंचाई की सुविधा के 20 डिग्री ढलान वाले क्षेत्रों में पारंपरिक फसलों को नगदी फसलों ने विस्थापित कर दिया है। नगदी फसलों के कुल क्षेत्रफल के 80 से 100 प्रतिशत क्षेत्र को आलू की फसल हड़प कर गई है। पिछले चार-पांच दशकों में पहाड़ में आलू, चौलाई या मरसा, कुटू या फाफर और सरसों जैसी फसलें ज्यादा उगाई जाने लगी हैं। आलू की खेती के लिए मिंट्टी को भुरभुरा रखना होता है और खेत की बार बार गुड़ाई करनी होती है, जिससे मिंट्टी का क्षरण बढ़ रहा है। आलू की मिंट्टी को जकड़े रहने की क्षमता भी कम है। इतना ही नहीं सालभर के समय पर आलू या नगदी फसलों के काबिज रहने से फसलों की विविधता भी खत्म हो रही है। आलू और सोयाबीन ने पहाड़ी भंट की दाल और रयांस आदि को लगभग विलुप्त कर दिया है। सरसों ने राई और लैया या लाई को खेतों से लगभग बाहर का रास्ता दिखा दिया है। आलू के साथ कोई अन्य फसल भी नहीं उगाई जाती। स्थानीय लोगों की खाने की आदतों में भी बदलाव आ रहा है। शोध के मुताबिक खेती में यही प्रवृत्ति जारी रही तो एक दिन हिमालय को पर्यावरण संकट का सामना करना पड़ेगा।




 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22