श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल)। जड़ी बूटी के कृषिकरण को बढ़ावा देने के लिए स्वयं सहायता समूहों को सहभागी बनाया जा रहा है। इसके लिए हेनब गढ़वाल विवि के हैप्रिक संस्थान के वैज्ञानिक जड़ी बूटी कृषिकरण के लिए आवश्यक तकनीकी जानकारियां ग्रामीणों को उपलब्ध करा रहे हैं।
उत्तरांचल पर्वतीय आजीविका संवर्द्धन (उपासक) संस्थान, स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से देवाल, नारायणबगड़, घाट, दसोली विकासखंड क्षेत्रों के गांवों में कुटकी, कूट, अतीश, आर्चा, फर्ण आदि जड़ी बूटियों के कृषिकरण को विस्तार दे रहा है। उपासक संस्थान ने इस कार्य में लगभग 500 स्वयं सहायता समूहों को जोड़ा है। हैप्रिक संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डा. विजयकांत पुरोहित ने बताया कि जड़ी बूटियों के कृषिकरण को नेशनल मेडिसिन प्लांट बोर्ड नई दिल्ली वित्तीय सहायता प्रदान करता है। उच्च शिखरीय क्षेत्रों और वनों के संरक्षण के साथ ही पहाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों की आय में बढ़ोत्तरी करने के लिए औषधीय पादपों की खेती एक सशक्त विकल्प है। हैप्रिक संस्थान के वैज्ञानिकों ने जटामासी, कुटकी, अतीश, आर्चा, चोरू, कालाजीरा, कूट, डोलू, वन ककड़ी सहित अन्य कई महत्वपूर्ण जड़ी बूटियों के कृषिकरण की तकनीक विकसित की है। संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. एएन पुरोहित और संस्थान निदेशक प्रो. एआर नौटियाल, वैज्ञानिक प्रो. एमसी नौटियाल, डा. पी प्रसाद, डा. वीपी नौटियाल, डा. विनय नौटियाल के दिशा निर्देशन में कृषिकरण बढ़ाने की इस योजना पर कार्य हो रहा है। उपासक संस्थान की जिला चमोली प्रबंधक विनीता नेगी ने बताया कि हैप्रिक संस्थान श्रीनगर के सहयोग से देवाल विकासखंड के वांड, कुलिंग, वाक मुंदोली आदि गांवों में स्वयं समूहों की सहायता से जड़ी बूटियों के कृषिकरण की योजना को क्रियान्वित किया जा रहा है जिसके अच्छे परिणाम भी मिल रहे हैं।