Author Topic: How To Stop Migration From Uttarakhand? - उत्तराखंड से विस्थापन कैसे रोके?  (Read 56871 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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this ma y be one one of the cause..

गरीबी उन्मूलन में काफी पीछे उत्तराखंडAug 22, 12:45 am

देहरादून। योजना आयोग उपाध्यक्ष एमएस आहलुवालिया ने मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी को भेजे पत्र में विकास कायरें में राज्य की प्रगति का आइना दिखाने का प्रयास किया है। गरीबी उन्मूलन जैसे मामलों में राज्य राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे छूट गया है तो साक्षरता क्षेत्र में प्रगति देश को दिशा दे रही है।

उपाध्यक्ष ने अपने पत्र में कहा है कि उत्तराखंड की आर्थिक प्रगति की दर 9.1 प्रतिशत है, इसके बावजूद चिंता की बात यह है कि राज्य में अभी भी 31.8 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। यह राष्ट्रीय औसत 21.8 से काफी अधिक है। कृषि क्षेत्र भी चिंता का विषय है। आयोग ने बीज उत्पादन और जैविक कृषि के मामले में सराहना की तो पर्वतीय क्षेत्रों में निम्न उत्पादकता को सबसे अधिक चिंता की बात बताया है। आयोग ने पूछा है कि क्या उत्तराखंड में पंजाब की तरह मिट्टी जांच की सुविधाएं हैं। जंगलों से जड़ी बूटी एकत्र करने के बजाय इसकी खेती को प्रोत्साहन का सुझाव दिया है। उत्तराखंड में नदियों एवं झीलों की अधिकता के चलते मत्स्य पालन को प्रोत्साहन की बात भी पत्र में की गई है। कनेडियन इंटरनेशलन डेवलेपमेंट एजेंसी की तर्ज पर उत्तराखंड में झीलों के विकास के लिए एजेंसी का गठन करने का सुझाव दिया गया है तो पर्यटन क्षेत्र में उत्तराखंड के कार्यो को आयोग ने सराहा है।

चिकित्सा के क्षेत्र में मोबाइल सुविधाओं का विकास करने, कुछ विशेष तरह के परीक्षणों की सुविधा जुटाने के लिए पीपीपी मोड में सहयोग लेने, चिकित्सकों के 33.09 प्रतिशत और विशेषज्ञ चिकित्सकों के 56.44 प्रतिशत रिक्त पद भरने को वेतन एवं इंसेंटिव बढ़ाने और पीपीपी मोड में नर्सिग कालेज खोलने का सुझाव भी है। राज्य मे बिजली लाइन लास 2008-09 में घटाकर 24 प्रतिशत तक लाने के लक्ष्य को निर्धारित समय पर प्राप्त कर लेने के लिए समुचित प्रयास करने को कहा गया है। जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण में पारिस्थितिकी का भी ध्यान रखने का सुझाव दिया गया है। जल विद्युत परियोजनाओं में क्षेत्रीय लोगों की सहभागिता की जरूरत बताई गई है और इंद्रावती परियोजना की तरह प्रत्येक परियोजना के जलागम क्षेत्र का विकास करने को कहा गया है। आयोग ने निरक्षरता मिटाने के लिए राज्य के प्रयासों की सराहना की गई है। राज्य में साक्षरता दर 71.6 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय साक्षरता दर 64.8 प्रतिशत से उच्च है। इसके लिए पीपीपी मोड में राज्य द्वारा प्रारंभ किए गए 'पहल' कार्यक्रम को सराहा गया है। आईटी के क्षेत्र में ब्लाक स्तर पर कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के प्रयास करने का सुझाव दिया गया है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Source: http://www.swatantraawaz.com/uttarakhand.htm
ढहते मकान और जंग लगे ताले

हेम पंत

उत्तराखंड में ढहते मकान और जंग लगे ताले। जी हां! सदियों से पहाड़ की यही कहानी और यही सच्चाई भी है। ये कहानी है-पलायन की। अपने विकास और खूबसूरत दुनियां को देखने की चाहत के ये विभिन्न अनचाहे रूप हैं। एक मकान केवल इसलिए खंडहर में बदला क्योंकि उसे संवारने के लिए घर में पैसा नहीं था और एक मकान में ताले पर इसलिए जंग लगा है कि वहां से अपनी प्रगति की इच्छा लिए पलायन हो चुका है। इनमें कोई इसलिए अपने पुश्तैनी घर नहीं लौटे क्योंकि वे बहुत आगे निकल चुके हैं और सब कुछ तो यहां खंडहरों में बदल चुका है। इनमें कई तालों और खंडहरों का संबंध तो राष्ट्राध्यक्ष, राजनयिकों, सेनापति, नौकरशाहों, लेखकों, राजनीतिज्ञों, वैज्ञानिकों, शिक्षकों और लोक कलाकारों का इतिहास बयान करता है जब‌कि अधिसंख्य खंडहर उत्तराखंड की गरीबी-भुखमरी, बेरोजगारी-लाचारी और प्राकृतिक आपदाओं की कहानी कहते हैं।
पलायन और पहाड़ का सम्बन्ध कोई नया नही है। स‌दियों से लोग देश के विभन्न भागों से बूर शासकों के दमन से बचने अथवा तीर्थयात्रा के उद्देश्‍य से पहाड़ों की तरफ आये, और यहीं के होकर रह गये। इनमें मुख्यतः द‌क्षिण भारत और महाराष्ट्र के ब्राह्मण तथा राजस्‍थान के ठाकुर थे ‌‌जिन्‍होने तत्कालीन राजाओं ने योग्यतानुसार उ‌चित सम्मान ‌दिया और अपनी राज व्यवस्‍था का महत्‍वपूर्ण अंग बनाया।
वतर्मान समय में पलायन का यह प्रवाह उल्टा हो गया है। जनसंख्या बढ़ने से प्राकृ‌तिक संसाधनों पर बढते बोझ, कमरतोड मेहनत के बावजूद नाममात्र की फसल का उत्पादन तथा कुटीर उद्योगों की जजर्र ‌‌‌स्‍थि‌ति के कारण युवाओं को पहाड़ों से बाहर ‌निकलने को मजबूर होना पड़ा। उन्‍नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में पहाड़ों में अंग्रेजों के आने के बाद इस क्षेत्र के युवाओं का सैन्य सेवाओं के ‌लिए पहाड़ से बाहर निकलना प्रारम्भ हुआ। पहाड़ों का ज‌टिल जीवन, क‌ठिन भौगो‌लिक परिस्‍थितयों में रहने का अभ्यास, मजबूत कद-काठी, सीधे सरल, ईमानदार व शौर्यवीर पहाड़ी पुरुष अपनी कायर्कुशलता व अदम्य साहस के कारण देश-‌विदेश में युद्धक्षेत्र में अपना लोहा मनवाने लगे।
‌बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में शिक्षा के प्र‌ति जागरुकता के फलस्‍वरूप युवाओं का उच्च शिक्षा के ‌लिए मैदानी क्षेत्रों की तरफ आना प्रारम्भ हुआ। यही समय था जब पहाड़ से बाहर सैन्य सेवाओं के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी रोजगार करने लगे. कई लोगों ने सा‌हित्‍य, कला व राजनी‌ति में अच्छा नाम कमाया। स्‍वतन्त्रता के बाद पहाड़ों में धीरे-धीरे कुछ ‌विकास हुआ। शहरों-कस्‍बों में धीरे-धीरे उच्च शिक्षा के केन्द्र ‌विक‌सित हुए। ग्रामीण, इलाकों में शिक्षा के प्र‌ति लोगों का रूझान बढने लगा। ‌पिछले कुछ सालों में तकनीकी शिक्षा शिक्षण के भी कुछ संस्‍थान खुले। उद्योगो की शून्यता तथा सरकारी नौकिरयों की घटती संख्या के कारण वतर्मान समय में भी पहाड़ में शिक्षत युवाओं के पास मैदानों की तरफ आने के अलावा कोई ‌विकल्प नही है।
पहाड़ के गांवों से होने वाले पलायन का एक पहलू और है। वह है कम सुगम गांवों तथा कस्‍बों से बड़े शहरों अथवा पहाड़ों की तलहटी पर बसे हल्द्वानी, कोटद्वार, देहरादनू, रुद्रपुर तथा ह‌रिद्वार जैसे शहरों को होता बेतहाशा पलायन। मैदानी इलाकों में रहकर रोजगार करने वाले लोग सेवा‌निवृत्‍ति के बाद भी अपने गांवों में दुबारा वापस जाने से ज्यादा ‌किसी शहर में ही रहना ज्यादा पसन्द करते हैं।‌स्‍थि‌ति ‌जितनी गम्भीर बाहर से ‌दिखती है असल में उससे कहीं अधिक ‌चिंताजनक है। जो गांव शहरों से 4-5 ‌किलोमीटर या अधिक दूरी पर हैं उनमें से अधिकांश खाली होने की कगार पर हैं। सांकल तथा कुण्डों पर पडे हुए ताले जंग खा रहे हैं और अपने ‌बा‌‌‌‌शिन्‍दों के इन्तजार में खण्डहर बनते जा रहे दजर्नों घरों वाले सैकडों मकान, पहाड़ के हर इलाके में हैं। द्वार-‌किवाड, चाख और आंगन के पटाल जजर्र हो चुके हैं। काली पाथरों (स्‍लेटों) से बनी पाख (छत) धराशायी हो चुकी हैं।
उत्तराखण्ड राज्य ‌निमार्ण के बाद बनी ‌किसी भी सरकार ने इस गम्भीर समस्‍या के समाधान के ‌लिये ईमानदार पहल नहीं की। अ‌पितु मैदानी इलाकों को तेजी से ‌विकिसत करने की सरकारी नी‌‌ति से असन्तु‌लित ‌विकास की स्‍थि‌ति पैदा हो गयी है। ‌जिससे पहाड़ से मैदान की तरफ होने वाले पलायन को बढावा ही ‌मिलेगा। क्या उत्तराखण्ड की सरकार पहाड़ों के पारंपिरक उद्योगों के पुनरुत्थान के ‌लिए भी प्रयास करेगी? पयर्टन उद्योग तथा गैरसरकारी संस्‍थानों के द्वारा सरकार पहाड़ों के ‌विकास के ‌लिए योजनाएं चला रही है, उससे पहाडी लोगों को कम मैदान के पूंजीपितयों को ही ज्यादा लाभ ‌मिल रहा है।
राष्‍ट्रीय स्‍तर पर ‌जिस "ब्रैन ड्रैन" को रोकने के ‌लिए सरकार हाथ पांव मार रही है, जरूरत है ‌कि उत्तराखण्ड की सरकार भी देश और ‌विदेशों में काम कर रहे ‌‌प्रतिभावान लोगों को उत्तराखण्ड के ‌विकास से जोडने की पहल करे. ले‌किन हम लोग जो वातानुकू‌लित कमरों में बैठ कर लैपटॉप-कम्प्यूटर में इंटरनेट पर ये लेख पढ़ रहे हैं, क्या पहाड़ वापस जाने की सोच सकते हैं? या ‌‌‌‌केवल सरकार को कोस कर और इस मुद्दे पर बयानबाजी करके ही इस समस्‍या का पुख्ता समाधान ‌मिल जायेगा?


BY...












Read Hem da's article on Migration issue.

http://www.swatantraawaz.com/uttarakhand.htm

Manoj Joshi <mjoshi8@yahoo.com>     
  domainkeys has verified the mail as legitimate
  To: hempantt@gmail.com , hempantt@yahoo.co.in 
  Cc: KG <kumaoni-garhwali@yahoogroups.com> , KU <kumaon@yahoogroups.com> , YU
  Subject: Re: Kumaon: Kumaoni Community Portal A Write-up on Migration
  Language Mail   Full Headers 
 Dear Hem Pant,
 
I must thank you for this good article.
 
I am an NRI based in UAE.
 
It was only last week, I made a short trip to Almora/ Ranikhet/ Nainital. This visit to Kumaon was possible after a decade.
 
Hem, you have correctly described the migration problems. I was also shocked to see the state of our ancestoral home in Someshwar. It is in ruins. There is hardly anyone to take care of the same.
 
Thanks again for your good write-up.
 
Keep it up.
 
Regards,
 
Manoj Joshi   

 
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Another idea could be, if the well-being Uttarakhandi invest in respective village area. Be it in terms of Hotel, Resort and other type of business, some kinds of job opportunities will arise there which may help in mitigating the migration.

lpsemwal

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We have a lot of resources for creating employements for youth but these all needed to be plan, manged and organised according to the needs of local and demand from markets.
We at Shri jagdamba samiti promoting apple growers producer companies at Nogaon Uttarkashi and Tyuni-Chausal Dehradun. The members of community welcome to visit these centers through contact at SJS Apple project, 1 Vinod market, dehradun road rishikesh.
So far Govt. support is concerned the department of women empowerment and child development trying to stop all the funding to us from central Govt. and other donors because secretary and subordinates in the department asking for bribes despite the order of Hon'ble high court to 'Set aside" impugnrd orders passed by the department against us.
Here I would like to say in mountains Govt. (more specifically the officers) want to make hurdeles for every development agency.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Semwal Ji,

We really appreiate your efforts towards generating employment in pahad. However, the other side of the story is really very-2 sad. 

Anyway in every such such kinds of people exist who try to hampers the job of others.

We have a lot of resources for creating employements for youth but these all needed to be plan, manged and organised according to the needs of local and demand from markets.
We at Shri jagdamba samiti promoting apple growers producer companies at Nogaon Uttarkashi and Tyuni-Chausal Dehradun. The members of community welcome to visit these centers through contact at SJS Apple project, 1 Vinod market, dehradun road rishikesh.
So far Govt. support is concerned the department of women empowerment and child development trying to stop all the funding to us from central Govt. and other donors because secretary and subordinates in the department asking for bribes despite the order of Hon'ble high court to 'Set aside" impugnrd orders passed by the department against us.
Here I would like to say in mountains Govt. (more specifically the officers) want to make hurdeles for every development agency.

हेम पन्त

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Sir thank you for your valuable words..
You efforts r really admirable... hope govt. employees and politicians will understand the importance of your efforts, we need more such projects to stop migration frm hills.

We have a lot of resources for creating employements for youth but these all needed to be plan, manged and organised according to the needs of local and demand from markets.
We at Shri jagdamba samiti promoting apple growers producer companies at Nogaon Uttarkashi and Tyuni-Chausal Dehradun. The members of community welcome to visit these centers through contact at SJS Apple project, 1 Vinod market, dehradun road rishikesh.
So far Govt. support is concerned the department of women empowerment and child development trying to stop all the funding to us from central Govt. and other donors because secretary and subordinates in the department asking for bribes despite the order of Hon'ble high court to 'Set aside" impugnrd orders passed by the department against us.
Here I would like to say in mountains Govt. (more specifically the officers) want to make hurdeles for every development agency.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जहाँ तक कि सरकार कि बात करे ! इससे कुछ नही होने वाला ! आखिर इन ८ सालो तक उत्तराखंड मे एसा कोई चमत्कारिक विकास नही हुवा जिससे लोगो का विस्थापन रुक जाय !

कुछ प्रतिष्ठत पाहाडी लोगो है जिनका बहुत से शहरो मे अच्छा व्यवसाय है अगर ये लोग अपने अपने क्षेत्रो मे अगर छोटा -२ कुछ व्यवसाय लगाये तो वहां पर लोगो को इससे रोज़गार मिलेगा और जो कि विस्थापन को रोकने मे सहायक हो सकता है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं थम रहा पलायनJan 12, 12:34 pm

रुद्रप्रयाग। जिले के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। खंडहर में तब्दील होते पौराणिक काष्ठ कला से निर्मित अधिकाश आशियाने पलायन की दास्तां बयां कर रहे हैं। इसका जीता जागता उदाहरण है तल्लानागपुर क्षेत्र का गरसारी गांव।

जनपद रुद्रप्रयाग के अन्तर्गत गरसारी गांव कभी अपना विशिष्ट स्थान रखता था। सिंचित खेती व केला उत्पादन में इस गांव की अलग पहचान थी। अस्सी के दशक में यहां हुए भारी भूस्खलन ने इस गांव का नक्शा ही बदल दिया। हालांकि इस भूस्खलन से गांव में कोई जनहानि तो नहीं हुई थी, पर यहां की उपजाऊ सिंचित भूमि नष्ट हो गई। भू कटाव के कारण यहां के लोगों का पलायन शुरू हो गया। देखते ही देखते वर्तमान में करीब तीस से चालीस परिवारों का यह गांव महज छह-आठ परिवारों तक सिमट गया है। बेहतर एवं उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं व यातायात सुविधा से नहीं जुड़े होने से यहां से लगातार पलायन होता जा रहा है। गरसारी निवासी कुसुम पुरोहित का कहना है कि भूस्खलन ने गांव की तस्वीर बदल दी है। दैवीय आपदा से ग्रामीणों की सिंचित भूमि नष्ट होने व यातायात, शिक्षा के साथ ही स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव होने से लोग बेहतर जीवन जीने के लिए अन्य क्षेत्रों में पलायन करने को मजबूर है। क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता उमेद सिंह बुटोला कहते है कि इस गांव में हो रहे पलायन का मुख्य कारण बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक आपदा से ग्रामीणों को हुई क्षति का सरकार ने कोई मुआवजा नहीं दिया। ऐसे में आजीविका की तलाश में पलायन जरूरी हो गया। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा की पृथक राज्य गठन के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों से लगातार पलायन जारी है। रोजगार की आस में लोग शहरी क्षेत्रों के लिए पलायन को मजबूर है। और गांव में महज बुजर्गो के आशियाने मात्र रह गए है।


हेम पन्त

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Khanduri agrees with Raj on migration
« Reply #58 on: January 20, 2009, 10:20:39 AM »
Mumbai: Raj Thackeray’s philosophy that the trend of migration needed to be reversed received support on Monday from an unexpected quarter with Uttarakhand CM B C Khanduri agreeing with him and saying that it was essential to develop rural areas to achieve this.
 
Khanduri’s comments came in response to questions from reporters about the violence against migrants in Maharashtra last year by local political groups such as the MNS. But he refused to be drawn into a discussion about the violent methods of Thackeray or the political future of the MNS and added that there could be no restrictions on the movement of people within the country.

“It is necessary to reverse the process,” Khanduri said referring to migration, adding that it was necessary to have a policy to develop villages for the purpose. “This trend is not proper,” he said, adding that it also bode ill for the health of the country. “Providing facilities and employment opportunities in rural areas would help buck the trend.” Khanduri rued that post-independence, the focus had been on the development of cities and not villages.

umeshbani

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स्वरोजगार ,छोटे उद्योग , रोजगार परक शिक्षा , फायदे जनक खेती और उसकी सही पहचान जेसे मसरूम ......

 

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