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 क्या क्षेत्रवाद उत्तराखंड के विकास मे अवरोध है ?

Yes
33 (91.7%)
No
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Can't Say
1 (2.8%)
Not At all
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Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: Is Regionalism Hurdle? - क्या क्षेत्रवाद उत्तराखंड के विकास मे अवरोध है?  (Read 22072 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दोस्तो,

इस सच्चाई  को हमे स्वीकार करना होगा ! वर्षो से उत्तराखंड के दो हिस्सों मे कुछ अन्दोरूनी विवाद और असमान्ताये देखी गयी.. यह विवाद है कुमोँन एव गडवाल का hai.

In Delhi, i have seen it amongst many groups of Uttarakhand and same at UK. However, in new generation this trend is at lower side. Once Dr Muruli Mohanar Joshi had expressed his views on this issue during his visit to UK last year.


इस समस्या को नयी पीड़ी समाप्त करना होगा..

क्या आप उक्त बात से सहमत है.. ? आएये  चर्चा करे  

एम् एस मेहता

पंकज सिंह महर

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मेहता जी,
         यह विवाद आम लोगों में नही है, सिर्फ स्वार्थी और अलगाववादी राजनेताओं ने अपनी नेतागिरी चमकाने के लिये यह नया विवाद खड़ा किया है। पृथक उत्तराखण्ड की लड़ाई अपना घर-बार छोड कर लडने वाले जीवित और शहीदों की आत्मायें इससे बहुत दुःखी हैं।
      गढ़वाल और कुमाऊं के बीच में कहीं कोई विवाद न तो इतिहास में रहा न वर्तमान में लोगो के बीच में है। दोनो जगहो पर शादी-ब्याह पहले भी होते थे और आज भी होते हैं, जो लोग इस तरह की बातें करते हैं, मेरी दृष्टि में वह किसी मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं और ऎसे लोगों की और ऎसी मानसिकता की हमें कोई जरुरत नहीं है।
      मंडल अलग होने से लोगों को ऎसा करने का मौका मिल जाता है, मेरा सुझव है कि चमोली, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और अल्मोडा को मिलाकर एक म्ण्डल बना दिया जाना चाहिये, इसी प्रकार से और जनपदों को भी पृथक मंडलों में मिला दिया जाना चाहिये, ताकि ऎसे स्वार्थी और अलगाववादी राजनेताओं को कोई मौका न मिल सके।
      हम एक थे, एक हैं और एक ही रहेंगे, क्योंकि तोड़ने वाले तो हमें क्षेत्र क्या, जाति और धर्म, नान ठाकुर-ठुल ठाकुर, नान धौती-ठौल धौती के माध्यम से भी तोड़्ने का प्रयास करते रहे हैं और वह बाज भी नही आयेंगे, करते रहेंगे। तो हमें ऎसे लोगों को इसका मुंह्तोड़ जबाब देना होगा।

   जय उत्तराखण्ड!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahar Ji.

Somewhere politicin instigate people in order to get the vote. There is little a bit cultural gaps also exists which has to be bridged by the new generation, if we have to make the development of Uttarakhand. Such minor diffrences will have to be sinked.

 

मेहता जी,
         यह विवाद आम लोगों में नही है, सिर्फ स्वार्थी और अलगाववादी राजनेताओं ने अपनी नेतागिरी चमकाने के लिये यह नया विवाद खड़ा किया है। पृथक उत्तराखण्ड की लड़ाई अपना घर-बार छोड कर लडने वाले जीवित और शहीदों की आत्मायें इससे बहुत दुःखी हैं।
      गढ़वाल और कुमाऊं के बीच में कहीं कोई विवाद न तो इतिहास में रहा न वर्तमान में लोगो के बीच में है। दोनो जगहो पर शादी-ब्याह पहले भी होते थे और आज भी होते हैं, जो लोग इस तरह की बातें करते हैं, मेरी दृष्टि में वह किसी मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं और ऎसे लोगों की और ऎसी मानसिकता की हमें कोई जरुरत नहीं है।
      मंडल अलग होने से लोगों को ऎसा करने का मौका मिल जाता है, मेरा सुझव है कि चमोली, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और अल्मोडा को मिलाकर एक म्ण्डल बना दिया जाना चाहिये, इसी प्रकार से और जनपदों को भी पृथक मंडलों में मिला दिया जाना चाहिये, ताकि ऎसे स्वार्थी और अलगाववादी राजनेताओं को कोई मौका न मिल सके।
      हम एक थे, एक हैं और एक ही रहेंगे, क्योंकि तोड़ने वाले तो हमें क्षेत्र क्या, जाति और धर्म, नान ठाकुर-ठुल ठाकुर, नान धौती-ठौल धौती के माध्यम से भी तोड़्ने का प्रयास करते रहे हैं और वह बाज भी नही आयेंगे, करते रहेंगे। तो हमें ऎसे लोगों को इसका मुंह्तोड़ जबाब देना होगा।

   जय उत्तराखण्ड!


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Recently, we had met with Anil Bisht, Famous Singer & Director of Uttarkahandi Moveis / Albums. He was also of the view and he assured us that through the songs and he would to remove this and woud make cultural bridge.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Friends,

you would like to share your views on this crucial subject.

पंकज सिंह महर

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कुमाऊं और गढ़वाल के बीच में खाई पैदा करने के लिये "खतड़वा" को बहुत प्रचारित किया जाता है कि गढ़्वाल के सेनापति खतड़ सिंह को कुमाऊं के सेनापति गैड सिंह ने हराया था, जिस कारण यह मनाया जाता है, और यह सत्य से परे है, जहां तक मैने उत्तराखण्ड का इतिहास पढा है, कहीं भी इन सेनापतियों का कोई वर्णन नहीं है। कहीं भी इस युद्ध का प्रमाणिक इतिहास नहीं है।
       तथ्य यह भी है कि यदि यह घटना सत्य होती या इसका कहीं कोई अस्तित्व होता तो "एटकिंसन का गजेटियर" जो उत्तराखण्ड का सबसे प्रमाणिक दस्तावेज है और माना जाता है, उसमें इसका उल्लेख जरुर होता। क्योंकि एटकिंसन ने गांव-गांव जाकर जानकारी इकटठा करके ही इसे लिखा था तथा हर क्षेत्र की हर छोटी-बड़ी, ऐतिहासिक, पौराणिक बातों का उल्लेख किया था। यदि इसमें कोई सच्चाई होती तो इसे एटकिंसन ने अपने गजेटियर में स्थान क्यों नहीं दिया,. यह भी शोचनीय है।
     इस बात को बढ़ा-चढा कर लोगों को बरगलाने वालों से मेरा एक प्रश्न है कि किसी भी युद्ध को यदि जीता जाता है तो इतिहास में दर्ज होता है कि फलां राजा द्वारा लड़ाई जीती गई, सेनापतियों का तो नाम शायद ही आता है, तो यहां पर सेनापतियों का महिमामंडन कैसे हो गया, जब कि हमारे उत्तराखण्ड के ही राजाओं का महिमामंडन नहीं है..कहीं।

पंकज सिंह महर

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कुमाऊं और गढ़वाल के बीच में खाई पैदा करने के लिये "खतड़वा" को बहुत प्रचारित किया जाता है कि गढ़्वाल के सेनापति खतड़ सिंह को कुमाऊं के सेनापति गैड सिंह ने हराया था, जिस कारण यह मनाया जाता है, और यह सत्य से परे है, जहां तक मैने उत्तराखण्ड का इतिहास पढा है, कहीं भी इन सेनापतियों का कोई वर्णन नहीं है। कहीं भी इस युद्ध का प्रमाणिक इतिहास नहीं है।

उक्त के बारे में एक कवि श्री वंशीधर पाठक "जिग्यासु" जी ने लिखा है-

अमरकोश पढ़ी, इतिहास पन्ना पलटीं, खतड़सिंग न मिली, गैड़ नि मिल।
कथ्यार पुछिन, पुछ्यार पुछिन, गणत करै, जागर लगै,
बैसि भैट्य़ुं, रमौल सुणों, भारत सुणों, खतड़सिंग नि मिल, गैड़ नि मिल,
स्याल्दे-बिखौती गयूं, देविधुरै बग्वाल गयूं, जागसर गयूं, बागसर गयूं,
अल्मोड़े की नन्दादेवी गयूं, खतड़सिंग नि मिल, गैड़ नि मिल।

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Aur aaj ke jamaane main to yeh lagbhag khatam hi ho chuka hai. Main aapko bataun logon ke man main khaali bhrantian faili hai kuch din pahle main apne kuch Garhwali mitron ke saath Kumaun tour pai gaya unko yeh lagta tha ki humesha jo Mukhyamantri hue hai UP ke jaise ND Tewari ji, Govind Ballabh Pant ji woh Kumauni the to Kumaun main bahut jyda vikaas hua hoga. Woh mujhse yeh kah bhi rahe the lekin jab unhone Kumaun dekha to unki samajh main aa gaya ki Pahad har taraf 1 jaisa hi hai.

कुमाऊं और गढ़वाल के बीच में खाई पैदा करने के लिये "खतड़वा" को बहुत प्रचारित किया जाता है कि गढ़्वाल के सेनापति खतड़ सिंह को कुमाऊं के सेनापति गैड सिंह ने हराया था, जिस कारण यह मनाया जाता है, और यह सत्य से परे है, जहां तक मैने उत्तराखण्ड का इतिहास पढा है, कहीं भी इन सेनापतियों का कोई वर्णन नहीं है। कहीं भी इस युद्ध का प्रमाणिक इतिहास नहीं है।

पंकज सिंह महर

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Aur aaj ke jamaane main to yeh lagbhag khatam hi ho chuka hai. Main aapko bataun logon ke man main khaali bhrantian faili hai kuch din pahle main apne kuch Garhwali mitron ke saath Kumaun tour pai gaya unko yeh lagta tha ki humesha jo Mukhyamantri hue hai UP ke jaise ND Tewari ji, Govind Ballabh Pant ji woh Kumauni the to Kumaun main bahut jyda vikaas hua hoga. Woh mujhse yeh kah bhi rahe the lekin jab unhone Kumaun dekha to unki samajh main aa gaya ki Pahad har taraf 1 jaisa hi hai.

हां ददा, पहाड़ सब जगह एक जैसा है, चाहे आराकोट हो, चाहे अस्कोट हो, मोरी हो या मुनस्यारी, धरासू हो या धारचूला, पौड़ी हो या पिथौरागढ़, नैनीताल हो या नैनीडांडा, अल्मोड़ा हो या अगस्तयमुनि, सभी जगह एक ही स्थिति है, एक ही दर्द है...............कब होगा विकास?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sir Ji,

So far i have observed. This is still in our society. I have suffered it also. But for sake of development of UK. We should not have any place for regionalisam.

Our culture is same and language is almost same. Based on thse factors, we should never try to divide uk.

Aur aaj ke jamaane main to yeh lagbhag khatam hi ho chuka hai. Main aapko bataun logon ke man main khaali bhrantian faili hai kuch din pahle main apne kuch Garhwali mitron ke saath Kumaun tour pai gaya unko yeh lagta tha ki humesha jo Mukhyamantri hue hai UP ke jaise ND Tewari ji, Govind Ballabh Pant ji woh Kumauni the to Kumaun main bahut jyda vikaas hua hoga. Woh mujhse yeh kah bhi rahe the lekin jab unhone Kumaun dekha to unki samajh main aa gaya ki Pahad har taraf 1 jaisa hi hai.

कुमाऊं और गढ़वाल के बीच में खाई पैदा करने के लिये "खतड़वा" को बहुत प्रचारित किया जाता है कि गढ़्वाल के सेनापति खतड़ सिंह को कुमाऊं के सेनापति गैड सिंह ने हराया था, जिस कारण यह मनाया जाता है, और यह सत्य से परे है, जहां तक मैने उत्तराखण्ड का इतिहास पढा है, कहीं भी इन सेनापतियों का कोई वर्णन नहीं है। कहीं भी इस युद्ध का प्रमाणिक इतिहास नहीं है।

 

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