Uttarakhand > Development Issues - उत्तराखण्ड के विकास से संबंधित मुद्दे !

Khadia Mines In Uttarakhand - खडिया के खान

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Mahar JI,

I agree with your views on “ the local people not working mines” But there is possibility of setting up some small industries which may include Khadia Grinding etc. I have seen one such small factor being set up in Kapkot area of Bageshwar. One Lease Holder had tried to set-up a grinding factory but work of this company has gone into fire due to some personal legal case of the Lease Holder. We have sufficient electricity in UK and many more hydro projects are coming-up. If the Govt  or Pvt firms think over this possibilities, I am sure a lot of job opportunities will arise there.



--- Quote from: Pankaj/पंकज सिंह महर on July 07, 2008, 03:23:16 PM ---मेहता जी,
        मेरा गांव भी खड़िया बाहुल्य क्षेत्र में पड़ता है, खडि़या खनन का वास्तविक रुप मैंने देखा है। पहली बात कि इसमें ज्यादा रोजगार की संभावनायें नहीं हैं, क्योंकि यह कार्य सिर्फ खड़िया खोदकर पैकिंग तक ही सीमित है।  हां यह हो सकता है कि खड़िया आधारित उद्योग यहां पर लगें। मेरे कस्बे देवलथल में लगभग ५० ट्रक खड़िया का रोज दोहन होता है। दोहन शब्द का इस्तेमाल मैंने इसलिये किया कि खड़िया खनन का पट्टा बड़े उद्योगपतियों के हाथ में है, आम आदमी को कुछ भी नहीं मिल पाता। आम काश्तकार जिसके खेतों से खड़िया निकाली जा रही है, उसकी स्थिति आज भी वही है लेकिन जो लीजधारक हैं, वे कहां के कहां पहुंच गये, मैंने खुद देखा है।
      इसका एक दुःखद पहलू यह भी है कि स्थानीय लोग इस क्षेत्र में मजदूरी नहीं करना चाहते और सारा काम नेपाली या थारु श्रमिक ही करते हैं, मतलब मुद्रा विदेश जा रही है। दूसरा पहलू यह है कि हमारे यहां अब सामान्य कार्य के लिये मजदूर नहीं मिल पाता, क्योंकि २५० रु ८ घंटे में कमाने वाला ७० रु० में मजदूरी क्यों करेगा।...........

--- End quote ---

पंकज सिंह महर:
खडिया आधारित उद्योग वहीं पर लगने चाहिये जहां से उसका खनन हो रहा है, यह भी सच्चाई है कि बड़े उत्पादक उद्योग नहीं लग सकते जैसे A ग्रेड की खडिया का प्रयोग दवाईयों में होता है, तो दवा के उद्योग तो सिर्फ एक कच्चे माल के लिये नहीं लग सकते, लेकिन जो दूसरे सौंदर्य प्रसाधन के उत्पाद हैं, उनपर आधारित उद्योग तो लग ही सकते हैं, क्योंकि उनमें खूशबू और कुछ केमिकल के अलावा शत-प्रतिशत खडि़या ही होती है। लेकिन हर चीज को सरकार पर डाल देना भी ठीक नहीं है, मेरा मत है कि स्थानीय लोगों को अपनी चीज का महत्व समझते हुये स्वयं पहल करनी चाहिये। सरकार से वह मदद ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त खडिया से जो मूर्तियां बनती हैं, उनमें और संगमरमर की मूर्तियों में विभेद कर पाना भी आसान नहीं होता, केवल वजन का ही अंतर होता है। लेकिन लोग सोये हैं और पंजाब के बनिया इनकी खड़िया निकाल कर ले जा रहे हैं हल्द्वानी।  सामाजिक चेतना बहुत जरुरी है, हमारी चीज की कीमत हमें खुद समझनी चाहिये।
     कई बार मैंने स्थानीय युवाओं से कहा कि तुम लोग भर्ती की लाइन में लग-लग के थकने की बजाय अपने आस-पास नजरें डालो, सरकार की स्वरोजगार की कई योजनायें हैं, उनका लाभ लेकर छोटा-मोटा व्यवसाय शुरु करो, लेकिन.........???

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Mahar Ji,

Khaida Mine work was never stopped there and it will continue in further as people are already having lease for even 40 yrs or so. As far as the law order and other problems are concerned, it is the responsibility of state govt to ensure peace in these areas.



--- Quote from: Pankaj/पंकज सिंह महर on July 07, 2008, 03:33:19 PM ---खडिया खनन का एक भयानक रुप भी हमारे सामने आया, जो उत्तराखण्ड के किसी भी क्षेत्र के लिये ठीक नहीं है। वह रुप अनियंत्रित खनन के रुप में हमारे सामने आया। यह ठीक है कि इस खनिज को निकालना ही चाहिये, यदि यह जमीन में रहेगा तो स्लिप जोन बनने का खतरा बना रहता है, लेकिन इसे तकनीक और मानकों के साथ ही निकालना चाहिये, जब कि दूरस्थ क्षेत्रों में इसे अनदेखा कर दिया जाता है, जिससे शत प्रतिशत भू-स्खलन की समस्या आ रही है। होना यह चाहिये कि जिस स्थान से इसका खनन हो, वहां पर बाद में मिट्टी भरान कर देना चाहिये और पेड़ आदि लगा देने चाहिये, लेकिन ऎसा आमतौर पर होता नहीं है और बरसात के बाद भू-स्खलन होता ही है।
        एक और दुःखद पहलू कि इससे दूरस्थ इलाकों में माफियावाद पनप रहा है, दबंगई के बल पर लोग जबरन गरीब और निराश्रित लोगों की जमीन से खनन करवा रहे हैं। लोगों को शराब पिलवाकर जमीन का एग्रीमेंट करवा लिया जाता है और जब तक उसका नशा उतरता है, तब तक उसका खेत .......स्वाहा। इससे लोगों में झगड़े भी बढे है, आप लोग सभी जानते हैं कि पहाड़ों में सीढीदार खेत होते हैं,,,, नीचे के खेत वाले ने बिना दीवाल दिये खड़िया का खड्डा खोदा, नुकसान तो ऊपर वाले का भी होता है, ऊपर वाले का खेत गिर गया, नीचे खेत वाला कहता है, मैने तेरा खेत थोड़े ही खोदा है, मैंने तो अपना खेत खोदा...जो करना है कर ले। क्या करें

--- End quote ---

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Mahar Ji,

I fully agree with your views that some small industries related to this product can be set-up there provided Industrialist show interest and some concession may be given to my state Govt. Secondly, some Social work should be made compulsory to the Lease Holder in that area for the Villagers.

Pahad uzad raha hai lekin pahadi iske bare mae chintit nahi .  Some public awareness  is must there.



--- Quote from: Pankaj/पंकज सिंह महर on July 07, 2008, 03:43:41 PM ---खडिया आधारित उद्योग वहीं पर लगने चाहिये जहां से उसका खनन हो रहा है, यह भी सच्चाई है कि बड़े उत्पादक उद्योग नहीं लग सकते जैसे A ग्रेड की खडिया का प्रयोग दवाईयों में होता है, तो दवा के उद्योग तो सिर्फ एक कच्चे माल के लिये नहीं लग सकते, लेकिन जो दूसरे सौंदर्य प्रसाधन के उत्पाद हैं, उनपर आधारित उद्योग तो लग ही सकते हैं, क्योंकि उनमें खूशबू और कुछ केमिकल के अलावा शत-प्रतिशत खडि़या ही होती है। लेकिन हर चीज को सरकार पर डाल देना भी ठीक नहीं है, मेरा मत है कि स्थानीय लोगों को अपनी चीज का महत्व समझते हुये स्वयं पहल करनी चाहिये। सरकार से वह मदद ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त खडिया से जो मूर्तियां बनती हैं, उनमें और संगमरमर की मूर्तियों में विभेद कर पाना भी आसान नहीं होता, केवल वजन का ही अंतर होता है। लेकिन लोग सोये हैं और पंजाब के बनिया इनकी खड़िया निकाल कर ले जा रहे हैं हल्द्वानी।  सामाजिक चेतना बहुत जरुरी है, हमारी चीज की कीमत हमें खुद समझनी चाहिये।
     कई बार मैंने स्थानीय युवाओं से कहा कि तुम लोग भर्ती की लाइन में लग-लग के थकने की बजाय अपने आस-पास नजरें डालो, सरकार की स्वरोजगार की कई योजनायें हैं, उनका लाभ लेकर छोटा-मोटा व्यवसाय शुरु करो, लेकिन.........???

--- End quote ---

पंकज सिंह महर:
बहरहाल! मुद्दा यह है कि क्या खड़िया खनन एक उद्योग बन सकता है।

बिल्कुल बन सकता है, स्थानीय बेरोजगारों के लिये इस पर आधारित उद्योग बनाये जा सकते हैं। सौंदर्य प्रसाधन के जितने भी उत्पाद हैं, वे सब खड़िया से ही बनते हैं, इसकी मूर्तिया बन सकती है, चाक (स्कूल में प्रयुक्त होने वाली) का उद्योग लगाया जा सकता है। मेडीसिनल खड़िया के प्रसंस्करण का उद्योग लगाया जा सकता है। क्योंकि जब हमारे खेत से खडिया हजारों कि०मी० दूर मुंबई और दिल्ली में उत्पाद बना सकती है तो यहां क्यों नहीं बना सकती?
         लेकिन आज तक का अनुभव रहा है कि खड़िया का भी आम आदमी की तरह मात्र शोषण ही हुआ है, उसके दाम हल्द्वानी में मात्र पिसने के बाद ४००-५०० रु० क्विंटल हो जाता है, जब कि काश्तकार इसे ८०-९० रु० क्विंटल बेचता है। खड़िया एक ऎसा खनिज है जो स्थानीय लोगों की नियति को बदल सकता है, लेकिन यह तभी संभव है जब स्थानीय लोग इसकी पहल करें और मांग करें तथा सरकार और शासन-प्रशासन दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुये सार्थक पहल करें।

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