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Author Topic: Uttarakhand now one Decade Old- दस साल का हुआ उत्तराखण्ड, आइये करें आंकलन  (Read 28273 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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कल बुधवार यानि 04 अप्रैल 2012 को जनगणना निदेशक ने उत्तराखंड के आंकड़े जारी किए। क्या ये आंकड़े सही हैं? क्या हमारे उत्तराखंड की पिछले एक दशक से बहुत बदल गयी तस्वीर ?

कृपया इन आंकड़ों को पढ़ने के पश्चात अपनी-अपनी राय जरुर दें।

आईये एक नजर डालते हैं अमर उजाला में प्रकाशित इस रिपोर्ट पर।


उत्तराखंड में रहन-सहन सुधरा

पिछले एक दशक में बहुत बदल गई है राज्य की तस्वीर

पिछले दस सालों मे उत्तराखंड ने राज्य गठन को लेकर हुए आंदोलन की परिकल्पना को साकार भले ही न किया हो पर उसकेनजदीक पहुंचने की कोशिश जरूर की है। अपना राज्य होने के प्रति कुल ही सही पर न्याय करता राज्य बहुत हद तक दिख रहा है। अपेक्षाएं अधिक होने के कारण राज्य में आलोचना के सुर तीखे हैं पर जनगणना 2011 के आंकड़े इस बात की गवाही दे रहा है कि राज्य विकास की ओर बढ़रहा है। बुधवार को जनगणना निदेशक ने आंकड़े जारी किए।
प्रदेश में मकानों की स्थिति, स्वामित्व, आधुनिक उपकरणों के उपयोग आदि में खासा इजाफा हुआ है। एलपीजी का उपयोग बढ़ा है और ईंधन के लकड़ी पर निर्भरता कम हुई है। कच्चे मकानों की संख्या में कमी और कंक्रीट, सीमेंट, ईंट का उपयोग कर बनाए गए मकानों की संख्या में इजाफा इस बात का गवाह है कि प्रदेश के नागरिको को विकास का फल मिला है। पानी, बिजली, शौचालय, स्नानाघर, किचन आदि के उपयोग के स्तर में वृद्धि हुई है। वाहन, मोबाईल आदि के उपयोग का भी इजाफा हुआ है। गंदे पानी की निकासी की सुविधा का उपयोग करने वाले परिवारों का प्रतिशत बढ़ा है।

दस साल में बदली तस्वीर

मकान
उत्तराखंड में मकानों की संख्या में 31.8 प्रतिशत का इजाफा।

वाहन
दुपहिया वाहन 12 प्रतिशत घरों से बढ़कर 23 प्रतिशत।
2001 में 42329 घरों में कार-जीप थे। 2011 में संख्या बढ़कर 1,24,006 घर हो गई।

बिजली
बिजली का रोशनी के लिए उपयोग करने वालों में 19 प्रतिशत का इजाफा। मिट्टी के तेल का उपयोग कम।

पानी
नल व हैंडपंप का का पानी उपयोग करने वाले बढ़े।

58%घरों में पीने के पानी की उपलब्धता।
66%घर रहने के लिए बेहतर,
30%रहने लायक भर
04%जीर्ण शीर्ण

मोबाइल
दस साल पहले करीब 10 प्रतिशत घरों में मोबाइल और बेसिक फोन थे। 2011 में इनका प्रतिशत बढ़कर 847 हो गया। बेसिक फोन तेजी से घटे।

बैंकिंग
बैंकिंग सेवा
59 प्रतिशत से बढ़कर 80 प्रतिशत।

कम्प्यूटर, लैपटॉप
63,032घरों में कम्प्यूटर, लैपटाप का उपयोग इंटरनेट के साथ होता है।
155,326घरों में बिना इंटरनेट के कम्प्यूटर लैपटॉप का उपयोग होता है।

रसोई गैस
एक दशक में एलपीजी का उपयोग करने वाले 33 प्रतिशत से बढ़कर 48 प्रतिशत घर हुए। लकड़ी का उपयोग घटा है।

शौचालय
2001 में 45 प्रतिशत की तुलना में 2011 में 65 प्रतिशत घरों में शौचालय। 60 प्रतिशत घरों में बाथरूम है।

बीमारू राज्यों की श्रेणी से बाहर निकलने की ओर बढ़ा उत्तराखंड
 
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और राजस्थान की तुलना में उत्तराखंड के कई मानक बेहतर है। विशेष सहायता के लिए इन राज्यों को इनके पिछड़ेपन के कारण एक श्रेणी मे रखा गया था। मसलन उत्तराखंड में 87, उत्तर प्रदेश में 36, बिहार में 16, झारखंड में 45, मध्य प्रदेश में 67, छत्तीसगढ़ में 75, उड़ीसा मे 43 प्रतिशत घरों में रोशनी के लिए बिजली का उपयोग होता है। नल का पानी उत्तराखंड में 68 प्रतिशत घरों में उपयोग में लाया जाता है। इन राज्यों में सबसे बेहतर स्थिति राजस्थान की है और वहां भी 40 प्रतिशत घरों में नल का पानी उपयोग में लाया जाता है।

पड़ोसी राज्यों से बहुत पीछे नहीं
 
हिमाचल और उत्तर प्रदेश की तुलना में भी राज्य बहुत पीछे नही है। कई मामलों में उत्तराखंड ने लीड ली है। उत्तराखंड में 12 प्रतिशत लोग किराए के घरों में रहते हैं तो हिमाचल में इनका प्रतिशत दस है। एलपीजी का उपयोग उत्तराखंड में 44 प्रतिशत घरोें में होता है तो हिमाचल मे 38 प्रतिशत घरों में। उत्तराखंड में 80 प्रतिशत, यूपी में 72 प्रतिशत और हिमाचल में 89 प्रतिशत लोग बैैंकिंग सेवाओं का उपयोग करते हैं।

स्रोत : अमर उजाला
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I don't believe on this Report prepared by Amar Ujala. The ground realities are quite different there. This is a manipulated report.

कल बुधवार यानि 04 अप्रैल 2012 को जनगणना निदेशक ने उत्तराखंड के आंकड़े जारी किए। क्या ये आंकड़े सही हैं? क्या हमारे उत्तराखंड की पिछले एक दशक से बहुत बदल गयी तस्वीर ?

कृपया इन आंकड़ों को पढ़ने के पश्चात अपनी-अपनी राय जरुर दें।

आईये एक नजर डालते हैं अमर उजाला में प्रकाशित इस रिपोर्ट पर।


उत्तराखंड में रहन-सहन सुधरा

पिछले एक दशक में बहुत बदल गई है राज्य की तस्वीर

पिछले दस सालों मे उत्तराखंड ने राज्य गठन को लेकर हुए आंदोलन की परिकल्पना को साकार भले ही न किया हो पर उसकेनजदीक पहुंचने की कोशिश जरूर की है। अपना राज्य होने के प्रति कुल ही सही पर न्याय करता राज्य बहुत हद तक दिख रहा है। अपेक्षाएं अधिक होने के कारण राज्य में आलोचना के सुर तीखे हैं पर जनगणना 2011 के आंकड़े इस बात की गवाही दे रहा है कि राज्य विकास की ओर बढ़रहा है। बुधवार को जनगणना निदेशक ने आंकड़े जारी किए।
प्रदेश में मकानों की स्थिति, स्वामित्व, आधुनिक उपकरणों के उपयोग आदि में खासा इजाफा हुआ है। एलपीजी का उपयोग बढ़ा है और ईंधन के लकड़ी पर निर्भरता कम हुई है। कच्चे मकानों की संख्या में कमी और कंक्रीट, सीमेंट, ईंट का उपयोग कर बनाए गए मकानों की संख्या में इजाफा इस बात का गवाह है कि प्रदेश के नागरिको को विकास का फल मिला है। पानी, बिजली, शौचालय, स्नानाघर, किचन आदि के उपयोग के स्तर में वृद्धि हुई है। वाहन, मोबाईल आदि के उपयोग का भी इजाफा हुआ है। गंदे पानी की निकासी की सुविधा का उपयोग करने वाले परिवारों का प्रतिशत बढ़ा है।

दस साल में बदली तस्वीर

मकान
उत्तराखंड में मकानों की संख्या में 31.8 प्रतिशत का इजाफा।

वाहन
दुपहिया वाहन 12 प्रतिशत घरों से बढ़कर 23 प्रतिशत।
2001 में 42329 घरों में कार-जीप थे। 2011 में संख्या बढ़कर 1,24,006 घर हो गई।

बिजली
बिजली का रोशनी के लिए उपयोग करने वालों में 19 प्रतिशत का इजाफा। मिट्टी के तेल का उपयोग कम।

पानी
नल व हैंडपंप का का पानी उपयोग करने वाले बढ़े।

58%घरों में पीने के पानी की उपलब्धता।
66%घर रहने के लिए बेहतर,
30%रहने लायक भर
04%जीर्ण शीर्ण

मोबाइल
दस साल पहले करीब 10 प्रतिशत घरों में मोबाइल और बेसिक फोन थे। 2011 में इनका प्रतिशत बढ़कर 847 हो गया। बेसिक फोन तेजी से घटे।

बैंकिंग
बैंकिंग सेवा
59 प्रतिशत से बढ़कर 80 प्रतिशत।

कम्प्यूटर, लैपटॉप
63,032घरों में कम्प्यूटर, लैपटाप का उपयोग इंटरनेट के साथ होता है।
155,326घरों में बिना इंटरनेट के कम्प्यूटर लैपटॉप का उपयोग होता है।

रसोई गैस
एक दशक में एलपीजी का उपयोग करने वाले 33 प्रतिशत से बढ़कर 48 प्रतिशत घर हुए। लकड़ी का उपयोग घटा है।

शौचालय
2001 में 45 प्रतिशत की तुलना में 2011 में 65 प्रतिशत घरों में शौचालय। 60 प्रतिशत घरों में बाथरूम है।

बीमारू राज्यों की श्रेणी से बाहर निकलने की ओर बढ़ा उत्तराखंड
 
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और राजस्थान की तुलना में उत्तराखंड के कई मानक बेहतर है। विशेष सहायता के लिए इन राज्यों को इनके पिछड़ेपन के कारण एक श्रेणी मे रखा गया था। मसलन उत्तराखंड में 87, उत्तर प्रदेश में 36, बिहार में 16, झारखंड में 45, मध्य प्रदेश में 67, छत्तीसगढ़ में 75, उड़ीसा मे 43 प्रतिशत घरों में रोशनी के लिए बिजली का उपयोग होता है। नल का पानी उत्तराखंड में 68 प्रतिशत घरों में उपयोग में लाया जाता है। इन राज्यों में सबसे बेहतर स्थिति राजस्थान की है और वहां भी 40 प्रतिशत घरों में नल का पानी उपयोग में लाया जाता है।

पड़ोसी राज्यों से बहुत पीछे नहीं
 
हिमाचल और उत्तर प्रदेश की तुलना में भी राज्य बहुत पीछे नही है। कई मामलों में उत्तराखंड ने लीड ली है। उत्तराखंड में 12 प्रतिशत लोग किराए के घरों में रहते हैं तो हिमाचल में इनका प्रतिशत दस है। एलपीजी का उपयोग उत्तराखंड में 44 प्रतिशत घरोें में होता है तो हिमाचल मे 38 प्रतिशत घरों में। उत्तराखंड में 80 प्रतिशत, यूपी में 72 प्रतिशत और हिमाचल में 89 प्रतिशत लोग बैैंकिंग सेवाओं का उपयोग करते हैं।

स्रोत : अमर उजाला
 

 

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