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Voting closed: August 06, 2013, 12:06:19 PM

Author Topic: Uttarakhand now one Decade Old- दस साल का हुआ उत्तराखण्ड, आइये करें आंकलन  (Read 28310 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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जनता वहीं, नेता व अफसरों की मौज :
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हल्द्वानी: धारी के ब्लाक प्रमुख कृपाल सिंह मेहरा ने कहा है कि राज्य स्थापना दिवस पर सरकार भले ही विकास के ढिढोरे पीट रही हो, लेकिन पहाड़ की दुर्दशा इन दावों की हकीकत बयां कर रही है। पलायन रोकने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई है। ब्लाकों में सरकार ने विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन के निर्देश दिए हैं लेकिन इन कार्यक्रमों का बहिष्कार किया जाएगा। सही मायने में विकास केवल नेता व अफसरों की हुआ है। आमजन को कहीं कोई लाभ नहीं मिला है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6890430.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घोषनाए तो बहुत की गयी है स्थापना दिवस पर!

धरातल पर इनके सच होने का इन्तेजार - निश्चित रूप से यह एक अच्छा कदम होगा
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 10 साल पूरे होने पर उत्तराखंड में घोषणाओं की बारिश

 मंगलवार को उत्तराखंड के गठन के 10 साल पूरे हुए  और इस मौके पर राज्य सरकार ने घोषणाओं की झड़ी लगा दी। राज्यवासियों को प्रदेश के जन्म दिन का तोहफा देते हुए इस मौके पर आयोजित एक खास कार्यक्रम में मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि 83,700 रोजगारों का सृजन किया जाएगा, स्नातक शिक्षा मुफ्त दी जाएगी और गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) वाले परिवारों को 2 और 3 रुपये प्रति किलो के भाव पर गेहूं और चावल दिया जाएगा।
निशंक ने कहा कि कुल नई नौकरियों में से अगले एक साल में 33,700 नौकरियां सरकारी क्षेत्र में और 50,000 नौकरियां निजी क्षेत्र में सृजित की जाएंगी। निशंक ने बताया कि सरकार तृतीय श्रेणी की 12,000 खाली पदों को भरा जाएगा और साथ ही पुलिस विभाग में 4,000 लोगों की भर्ती की जाएगी। इसके अलावा राज्य में 4,000 शिक्षकों की भी नियुक्ति होगी। साथ ही प्रदेश के विभिन्न आईटीआई में 490 इंस्ट्रक्टरों की भी भर्ती होगी। निशंक ने राज्य के सभी 670 न्याय पंचायतों में ग्राम सचिवालय स्थापित करने की घोषणा की। इन सभी सचिवालयों में 10 कर्मचारियों की भर्ती होगी। इससे 6,700 नए रोजगारों का सृजन होगा। राज्य सरकार ने सरकारी क्षेत्र में काम कर रहे 6,000 दिहाड़ी मजदूरों को भी नियमित करने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री ने बीपीएल परिवारों को राहत देने वाली भी कई घोषणाएं की हैं। अब इन परिवारोंको 2 रुपये किलो गेहूं और 3 रुपये किलो चावल मिल पाएगा। इन परिवारों को हर महीने 20 किलो गेहूं और 15 किलो चावल दिया जाएगा। इस घोषणा से राज्य के 16 से 17 फीसदी लोगों को फायदा होगा। गरीबी रेखो से ऊपर के परिवारों को गेहूं और चावल प्रति किलो क्रमश: 2.60 रुपये और 2.45 रुपये प्रति किलो की छूट पर दिया जाएगा। इसके अलावा सरकार बीपीएल परिवार की लड़कियों की शादी के लिए 10,000 रुपये की आर्थिक मदद देगी। निशंक ने गरीब बच्चों के लिए आशीर्वाद योजना शुरू करने की भी घोषणा की। निशंक ने कहा कि औद्योगिक घरानों की मदद से सरकार 1,000 बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए भेजेगी। सरकार ने इस काम के लिए हिंदुजा समूह के साथ समझौता भी कर लिया है। आने वाले दिनों में ऐसे कुछ और समझौते किए जाएंगे।

   
http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=40761

पंकज सिंह महर

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State policies anti-people: UKD
Our Correspondent

Pitthoragarh, November 9
“It is a sort of betrayal with people of the state that the people who had opposed the creation of the state captured power after the creation of Uttarakhand,” said Kashi Singh Airy, senior Uttarakhand Kranti Dal (UKD) leader and leader of the Separate State Movement since 1979. He was reacting on the 10th anniversary of the state.

Interestingly, Airy, who blamed the Congress and BJP governments, is part of the BJP government as his party shares power with the ruling party in the state.

“When we felt that the development model of Uttar Pradesh was not working in the hilly region due to its separate geographical realities, we, the students of that time, started the movement to separate the hilly region of UP under the leadership of Dr DD Pant, world-known physicist, in 1979,” remembered Airy.

Spelling out the vision of the state, Airy said it was from nowhere a political one. “The movement was to uplift the hills economically socially and culturally and the progress of small states like Himachal and Haryana were the model,” said Airy.

He said the people of Uttarakhand were betrayed as the power in the state was captured by mainstream centrist parties. “Their leaders are being called or being sent in the state by their respective high commands as the Viceroys or Governors were treated during the British era,” said Airy.

Expressing deep dissatisfaction over the direction of the state during the past 10 years, Airy said during this period the respective governments could not even gave a clear direction to the state. “Sometimes they boost of making the state as power state and than shift to make it herbal one or the tourist state. They keep changing their priorities as they have no clear vision,” said Airy.

According to the UKD leader, the movement for separate state was run keeping the interest of common hill folks in mind, but policies after creation of the state went against the interest of those very people. “The policies based on main natural resources of the state, forests, water and lands are against the interest of local people of the state,” he said.

But comparing to two other states created simultaneously, he said Uttarakhand was better placed than Jharkhand and Chhattisgarh. “But we have potential to get ahead of others like Himachal and Jammu and Kashmir but that is yet to be happened,” said Airy.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मंजू जी,

कविता के द्वारा आपने अपने विचार यहाँ व्यक्त किये जो की एक वास्तविकता दर्शाता है उत्तराक्खंड राज्य के विकास का!

क्या कोई अपने जनम दिन पर आसू बहाता है, हाँ वह है उत्तराखंड के लोग - क्यों दस साल में भी विकास विकास के लिए तडफते लोग आंखिर किस बात के लिए ख़ुशी मानेंगे!


साल दस उत्तराखंड की स्थापना के

खुशी का अवसर आया रे
उत्तराखंड आया रे,
पूरे हुए साल दस उत्तराखंड की स्थापना को,
उल्लास सभी में छाया रे।
लेकिन क्या यह खुशी मनाने का अवसर है !
नहीं, बिल्कुल नहीं,
यह तो बिल्कुल वही बात हुई कि
सरदार भगतसिंह के शब्दों में-
गोरे अंग्रेज़ भारत से चले जाएंगे,
और काले अंग्रेज़ भारत में आ जाएंगे,
क्या हमारी देवभूमि के कोने-कोने के लोगों की,
आकाक्षाएं पूरी हो पाई हैं ?
क्या मनीओर्डर पर चलनेवाली व्यवस्था में कुछ अंतर आया है?
यदि है इसका उत्तर "हां", तब तो यह खुशी ठीक है,
नहीं तो उत्तराखंड की स्थापना पर इतराने, इठलाने,
या प्रसन्नता व्यक्त करने की ज़रूरत नहीं है,
अभी तो समय है- मेहनत करके,
उत्तराखंड आंदोलन में शहीद हुए,
आंदोलनकारियों के सपनों को पूरा करने का,
वह सपना जो उन्होंने देखा था।

Dr. Manju Tiwari
D.Lit

हेम पन्त

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उत्तराखण्ड राज्य के दस साल पूरे होने पर भी पहाड़ी क्षेत्र को जिस तरह नजरंदाज किया जा रहा है.. उस बारे में बी मोहन नेगी जी का यह कविता चित्र बहुत कुछ बयान कर देता है... 



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अति सुंदर -२.

कोई दो राय नहीं इस बात पर!  पहाड़ के अपने होते हो राजधानी गैरसैंन होती, उन्होंने देहरादून अपना बना लिया गैरसैंन को किनारा कर दिया है!

पहाड़ का विकास ना होना, पहाड़ के नेताओ के कुर्सी के लिए जो लडाई रही उसका यही नतीजा है!

उत्तराखंड राज्य बनाया पहाड़ी लोगो ने और १० साल में आबाद तो नहीं हो सका पर बर्वाद भी किया पहाडियों ने!  नित्यानानद को छोड़ कर सारे मुख्यमंत्री तो पहाड़ के ही रहे!

उत्तराखण्ड राज्य के दस साल पूरे होने पर भी पहाड़ी क्षेत्र को जिस तरह नजरंदाज किया जा रहा है.. उस बारे में बी मोहन नेगी जी का यह कविता चित्र बहुत कुछ बयान कर देता है... 




Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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बहुत सुन्दर कार्टून बनाया है मोहन नेगी जी ने.

उत्तराखण्ड राज्य के दस साल पूरे होने पर भी पहाड़ी क्षेत्र को जिस तरह नजरंदाज किया जा रहा है.. उस बारे में बी मोहन नेगी जी का यह कविता चित्र बहुत कुछ बयान कर देता है... 




एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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from   Piyush Suyal <piyushsuyal@gmail.com>
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to   PauriGarhwal@yahoogroups.com,
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date   Tue, Nov 9, 2010 at 11:24 AM
subject   (e-U)® Re: [PGGroup] 10 Yrs of Uttarakhand - यानी एक दसक का उत्तराखंड!
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pyare mitro,

उत्तराखंड Bane Aaj 10 saal pure ho gaye hey.... 

development aur improvement ke point of view se jyadatar sadasya ka negative response hey...

I agree ki jitni jaroorat hey utna development nahi hua... fir bhi Development & Improvement Hua hey aur yeh hua hey is baat ko hum andekha nahi kar sakte...

rojgaar jitna chahiye nahi hua lekin bada hey... crime control mein bhi kaafi improvement hey...

lekin in sab ke aalwa mein sirf ek baat kahunga ki hum sab yeh sawal kisse puch rahe hey ?
kisse

rojgaar bada ya nahi ?
development hua ya nahi ?
kitna hua kya hua ?

vagerah vagerah....

humara yeh sawal aakhir hey kisse ?

aapne aap se ?
ya fir
goverment se ?

agar gvorment se hey to suchna ke adhkar ke aadhar per hum jankaari prapt kar sakte hey...

lekin mera manna hey ki yeh sawal hume aapne aap se puchna chahiye...

humne kya kiya in 10 saal mein ?
humara kya yogdaan hey in 10 saalo mein ?
aur hum kya kya kar sakte the in 10 saal mein ?

abhi bhi kuch nahi bigda aage 10 saal mein hum kya kar sakte hey ? yeh plan karne ka vakt hey...

hume pehle to clear karna hoga ki hum yeh QUIZ Competition aapne aapse karenge ya fir Goverment se ?

agar goverment se to fir NEWZ Channel mein bharti ho jao aur daily update dete raho...

agar aapne aap se yeh QUIZ khelni hey to baat karte hey....

Hume Apne personal efforts daalne honge tab jaakar hum haqdaar hey yeh question karne ke...

DELHI mein rehkar PALAYAN ki baat karna galat hey...

mera sirf ek hi maksad hey ki hum sirf QUESTION ANSWER ke madhyam se ek ACTIVE INTERNET USER banne ke alawa real Life mein ek ACTIVE WORKER bane aur UTTARAKHAND ke VIKAS mein aapna NIJI YOGDAAN de...

meri baat ko anyatha na lete huye kripya mere vakyo ka tatparya samjhe...

UTTARAKHAND DIWAS ke awasar per mein yahi kehna chahunga ki hume agle 10 saal ka target set karna cahiye aur is TARGET mein agar mein kuch sahyog kar saka to yeh mera saubhagya hoga...

I will try to keep in touch & u people can catch me on piyushsuyal@gmail.com

Thanks & Rgds
Piyush Suyal


 
2010/11/9 M S Mehta <msmehta@merapahad.com>

     


    10 Yrs of Uttarakhand - यानी एक दसक का उत्तराखंड!

    दोस्तों,

    तो आज उत्तराखंड हुवा पूरे दस साल यानी एक दसक का उत्तराखंड! हार्दिक शुभकामनाये आप सब को इस अवसर पर और नमन उन शहीदों को जिन्होंने राज्य निर्माण में अपनी प्राणों की आहुति दी!

    सवाल आज भी वही, समस्याए आज भी जिनके लिए राज्य का निर्माण किया गया था! क्या यह १० साल का उत्तराखंड अभी एक बच्चे के तरह चलने लायक हुवा! मुझे लगता नही  फिर भी आपकी राय आमंत्रित है!  रिपोर्ट देखिये

    http://www.merapahadforum.com/development-issues-of-uttarakhand/uttarakhand-now-one-decade-old/

    We solicit your views.

    Regards,


    एम् एस मेहता

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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10 yrs Uttarakahnd Report Published on Tahlka by Manoj Rawat
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उ्राखंड नौ नवंबर को दस साल का हो जाएगा. दस साल की उम्र ककसी

राज्य का भकवष्य तय करने के कलए काफी नहीं होती, पर ‘पूत के पांव पालने में ही
कदख जाते हैं’ वाली कहावत के कहसाब से देखा जाए तो उस भकवष्य का अंदाजा
लगाने के कलए इतना समय काफी होता है.
ये दस साल कैसे रहे यह जानने से पहले यह जानना जरूरी होगा कक अलग राज्य
की जरुरत पड़ी तयों थी. दरअसल, तब उत्तर प्रदेश का कहथसा रहे यहां के लोगों के
मन में एक कसक थी कक काश उनकी भी एक कवधानसभा होती जो यहां की कवकशष्ट‍
भौगोकलक पकरकथथकतयों आाैर जरुरतों के अनुसार कानून और कवधान बनाती और
उनके पारदकशर्ता से कियान्वयन पर नजर रखती. लोगों को तब उत्तर प्रदेश में यह भी
कशकायत थी कक योजनाओं का कियान्वयन करने वाले कमर्चारी भी यहां के नहीं
हैं, इसकलए उनका यहां से लगाव ही नहीं है. उन सबसे ऊपर योजनाओं के कलए तब
दृकष्ट‍ (कवजन) ही नहीं थी. कजस राज में ये सब तत्व गायब थे तो उससे ‘कवकास कायोों
के कियान्वयन और लोककहत के कलए समपर्ण’ की आशा ही नहीं की जा सकती
थी. आंदोलन का तात्काकलक कारण बना कपछड़े वगोों को 27 प्रकतशत आरक्षण जो
उस समय पहाड़ी कजलों में 4 प्रकतशत भी नहीं थे. इन सभी कारणों से पहाड़ी कजलों
के लोगों ने अलग राज्य की जरूरत महसूस की. जोरदार पृथक राज्य आंदोलन और
बकलदानों के बाद उत्तराखंड राज्य कमला.
अब लोगों के पास अपना कवधानमंडल था. नेता यहीं के थे और प्रशासकों पर
उनकी अच्छी पकड़ होने की आशा थी. लोगों को लगा कक उनकी कवधानसभा राज्य
की जरूरतों के अनुसार कानून बनाएगी. मंकिमंडल व‍ारा महत्वपूणर् नीकतयां बनेंगी,
उनके कहसाब से शासन कनयम बनाएगा और आकखर में संबकं धत कवभाग कवधाकयका
व‍ारा जनभावनाओं केअनुरूप बनी इन नीकतयों, कनयमों का कियान्वयन करेंग.े

पर सपने आंखों में ही रह गए. इन 10 साल में राज्य के महत्वपूणर् कवभागों की
नीकतयां ही नहीं बन पाई हैं. इस दौरान न तो कशक्षा नीकत बनी, न थवाथथ्य नीकत बनी
और न ही राज्य की जल नीकत है. राज्य का पंचायत ऐतट अभी तक नहीं आया तो
डीपीसी के गठन न होने से राज्य के तीन कजलों को हर साल केंद्र से कमलने वाले 50
करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है. यहां राज चलाने वालों को कवकास करने के कलए
अपना कनयोजन तंि कवककसत करने की पूरी आजादी थी, पर इसे कवककसत करने की
समझ और इच्छाशकतत होती तो कुछ होता.
दरअसल, कहने को सब कुछ अपना होने के बावजूद दृकष्ट‍ (कवजन) अब भी उधार
ली हुई थी. इन 10 सालों में हुए कामों और कनणर्यों को देखें तो यही समझ में आता
है कक अंग्रेजों से लेकर संयतत प्रांत व उत्तर प्रदेश वाला दृकष्ट‍कोण अभी भी नहीं बदला

है. वांकछत दृकष्ट‍ न होने से हम इस पवर्तीय राज्य की आवकयकताओं और भावनाओं
के अनुरूप न तो कवधान बना सके और न ही उनका कियान्वयन तंि खड़ा कर सके.
इसकलए यह कहा जा सकता है कक राज्य बनने का मूलभूत मकसद पूरा नहीं हो सका.
हर आंदोलन और भाषण में उत्तराखंड के जल, जंगल और जमीन की बात होती
है. बात भी सच थी. जब तक राज्य में उपलसध प्राकृकतक संसाधनों के अनुरूप हम
अपने मानव संसाधन का भला नहीं कर पाएंगे तब तक राज्य में आकथर्क कवकास व
खुशहाली का आना असंभव है. पानी उत्तराखंड का सबसे प्रमुख संसाधन है, परंतु
राज्य में सबसे अकधक जल धारण करने वाले सीमांत कजले चमोली में कुल कृकष
भूकम की छह प्रकतशत भूकम ही कसंकचत भूकम है. कुमाऊं के पहाड़ी कजले चंपावत की
भी केवल चार प्रकतशत भूकम कसंकचत है. आज भी पूरे राज्य में कसंकचत कृकष भूकम का
औसत केवल 14 प्रकतशत है. राज्य में उपलसध जल संसाधनों का प्रयोग करके राज्य
को ‘ऊजार् प्रदेश’ बनाने के सपने भी शुरुआती सालों से ही खूब कदखाए गए. राज्य
की सारी नकदयां कनजी कंपकनयों को दी जाती रहीं. सरकारों ने कंपकनयों के साथ ‘लोक
सहभाकगता’ को जोड़ने की कोकशश ही नहीं की. इसकलए आज हर नदी पर आंदोलन

हो रहे हैं. पकरयोजनाओं के कारण घर-घर कववाद खड़े हो उठे हैं. कनजी कंपकनयां कजर्
लेकर जल कवयुत पकरयोजनाएं बना रही हैं और सरकारी सकससकडयों का भरपूर सुख
ले रही हैं जबकक राज्य का आम आदमी उनका मुह ताक रहा है. कहने को तो ऊजार्

नीकत के अनुसार पांच मेगावाट तक की पकरयोजनाओं को थथानीय कनवासी बना
सकते हैं, पर सरकार ने न तो इनके कलए थथानीय लोगों को मागर्दशर्न कदया, न ही
प्रोत्साहन. उकचत प्रोत्साहन ही तो अपने राज्य में यहां के लोगों को चाकहए था. ककसी
भी सरकार ने थथानीय समुदाय को इन पकरयोजनाओं से कमलने वाले लाभांश में
भागीदार नहीं बनाया. ककसी ने भी थथानीय लोगों की कहथसेदारी की बात नहीं की.
यह अकधकार तो राज्य के लोगों को ही होना था कक वे तय कर सकें कक उनके पानी
से घराट (पनचतकी) चलें या कबजली बने. पानी कोे राज्य का बड़ा संसाधन तब
माना जाता जब उसका उपयोग थथानीय लोग लाभकारी कामों के कलए कर पाते.
यही हाल जंगलों के भी हैं. वन कनगम या अन्य माध्यमों से जंगल तो
कट ही रहे हैं पर इन लककड़यों को बेचने वाले वन कनगम के ये कडपो पहाड़ के छोटे
कथबों में नहीं हैं. पूरे पहाड़ में आरा मशीन पर प्रकतबंध लगा है. पहाड़ से कटकर आई
महंगी लकड़ी रायवाला, हल्व‍ानी और काठगोदाम में आकर कचरने के बाद बरेली
तथा सहारनपुर में महंगा फनीर्चर बनकर देश भर में जाती है, पर पहाड़ों में कनम्न
कोकट की यूकके लप्टस की लकड़ी के पॉकलश करे फनीर्चर पहुंच रहे हैं. दुकनया को
सुख देने वाले जंगल पहाड़ के कलए वैधाकनक रूप से परेशानी का कारण हो गए हैं.
जल, जंगल के बाद जमीन के कलए
भी राज्य बनने के बाद कुछ नहीं हुआ.
लोगों को लगा कक अब
पहाड़ अभी भी पुराने भू-कानूनों के
उनकी किधानसभा राज्य अकभशापों को झेल रहा है. एक राज्य
की जरूरतों के अनुसार में दो भू-कानून हैं. इन पेचीदे कानूनों
के कारण राज्य में पयार्प्त‍ भूकम होने के
कानून बनाएगी
बाद भी आपदा पीकड़तों को आवंकटत
करने तक के कलए भूकम उपलसध नहीं
है. अकनवायर् चकबंदी अभी तक नहीं हो पाई है. तराई में थारू, बोतसा जनजाकत की
जमीनें कानूनों के बावजूद बड़े ककसानों और माकफयाओं ने हकथया कलए हैं. हकरव‍ार
से लेकर रामनगर तक पूरी तराई में वन भूकमयों में बसे ‘खत्तों’ को आज तक राजथव
गांवों में तसदील नहीं ककया जा सका है.
मुख्यमंिी कहते हैं कक राज्य कशक्षा का हब बन गया है, पर राज्य के दूरथथ पहाड़ी
कजलों के गांवों के थकूल अध्यापककवहीन हैं. वहां के कथबों के बच्चे सरकारी थकूलों
में जाते ही नहीं हैं. उच्च कशक्षा का हाल तो और बुरा है. राज्य में कुकरमुत्ते की भांकत

खुले व्यावसाकयक कशक्षण संथथान अकभभावकों को लूटने के अलावा कुछ भी काम
नहीं कर रहे. लाखों रु चुकाकर इन संथथानों से कनकले इंजीकनयर और व्यावसाकयक
कशक्षा प्राप्त‍ युवक-युवकतयां अच्छी नौकरी और वेतन पाने में असफल साकबत होते
हैं. कशक्षा के खराब थतर के कारण राज्य के बेरोजगार प्रकतयोगी परीक्षाओं में सफल
नहीं होते हैं. उत्तराखंड राज्य लोक सेवा आयोग के पकरणामों की सूची में राज्य के
कनवासी मुकककल से कमलते हैं. कभी इसी बेरोजगारी और बाहरी लोेगों व‍ारा राज्य में
उपलसध रोजगारों को हड़पने की आशंका से ही राज्य आंदोलन शुरू हुआ था.
इस तरह देखें तो राज्य के दस साल की यािा को कतई आशाजनक नहीं
कहा जा सकता. इन दस साल में सरकारों और उसके तंि को चलाने वालों पर आम
आदमी का भरोसा कम होता गया है. राज्य में एक ‘कवकशष्ट‍ शासक वगर्’ पैदा हो गया
है जो अब आम जन की इन नाराजकगयों के कलए संवदनहीनता की सीमा को पार

कर ‘जनता की कौन परवाह करता है’ या ‘जनता तो कहती रहती है’ की बेशमीर् तक
l
पहुंच चुका है. यह बेशमीर् जारी रही तो राज्य को ले डूबगी.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Manoj Rawat took Interview of Mr Nishank


नित्यािंद स्वामी, भगत निंह कोश्यारी, िारायण दत्तनतवारी और भुवि चंद्र खंडड़ी के बाद डॉ रमेश

पोखररयाल ‘रिशंक’ राज्य के पांचवें मुख्यमंत्री हैं.नपछले 10 िालों में ‘राज्य की दशा और नदशा’ परउन्होंिे मनोज रावत िे बात की

अलग राज्य बनने के बाद दस वषोों का तया
अनुभव है?

मैं सोचता हूं कि इन वषोों िो राज्य िे सुखद और
आशाओं से भरे समय िे रूप में देखा जा सिता है.

राज्य की माली हालत कैसी है?

कजस कदन हमारा राज्य बना उस कदन राज्य िी कविास
दर 2.9 प्रकतशत थी; कपछले वषर् हमारे राज्य िी कविास
दर 9.31 प्रकतशत रही. इस साल योजना आयोग ने
उत्तराखंड िो जीएसडीपी में देश िा नंबर एि प्रदेश
घोकषत किया है. राज्य कनमार्ण िे समय हमारे राज्य िे
लोगों िी प्रकतवषर् औसत आय 14300 रुपए थी. आज
यह 42000 रुपए प्रकतवषर् है. देश िे इकतहास में िेवल
और िेवल उत्तराखंड ही ऐसा राज्य है कजसने इतनी
बड़ी छलांग लगाई है. िर राजस्व पहले 165 िरोड़
रुपए आता था अब तीन हजार िरोड़ रुपए आता है.

नौकरशाही तक पहुंच तो बहुत सुलभ हो गईहै, लेककन तया प्रभावी भी हुई है?

हाल िी भीषण आपदा ने कसध‍ किया कि यहां प्रभावी
नौिरशाही है. हमने 35 हजार लोगों िी जान बचाई.

प्रशासकनक सुधारों पर कुछ हुआ ? पंतकमेटी की करपोटट का तया हुआ?

मैं सोचता हूं कि पंत िमेटी तो दूसरे उद‍ेश्य िे कलए थी
लेकिन प्रशासकनि सुधार िाफी हुआ है. गुजाइश

हमेशा बनी रहती है. नवोकदत राज्य में हमें इसे और
सशतत बनाना है.

कवभागों के पुनगर्ठन का तया हुआ? पहले
एक ही काम को तीन कवभाग करते थे, अभी
भी वही हो रहा है.

हमने िाफी िुछ ठीि किया है. हम यकद पुनगर्ठन नहीं िई ि्षेत्रों में हम बहुत आगे बढे़ हैं. जब मैं पवर्तीय असली आंिड़े देखें तो कपछले पांच साल में हमने
िरते तो उत्तर प्रदेश में कजतने कनदेशालय थे, उतने यहां कविास मंत्री था तो एि-आध िरोड़ िा फूल उगता पलायन िो रोिा है. हमारे नौजवान जो बाहर जाते
भी होते. जैस-जैसे आवश्यिता होगी, पुनगर्ठन िरेंग.े था. आज डेढ़ सौ िरोड़ िी फूलों िी खेती

थे, अब वे यहां मटर, टमाटर, सब्जी बो रहे
भूकम सुधार का तया हुआ? अभी पहाड़ी क्षेत्र होती है. हमारे मटर और टमाटर िे सैिड़ों
हैं. हमने हजारों लोगों िो रोजगार कदया.
वषर् 1893 के बेनाप कानून की मार झेल रहा ट्रि कदल्ली ति जा रहे हैं. जहां िृकष
यकद ये राज्य नहीं बनता तो इन सब लोगों
है. 10 साल में भूकमयों को वन भूकम के रूप में उत्पादन नहीं है वहां उयोग िे ि्षेत्र में आगे बढ़े हैं.
िो बाहर ही जाना था. यकद औयोकगि ि्षेत्र नहीं
दजर् करने वाला पीएल पुकनया का
सेवा क्षेत्र कोे आगे बढ़ाने के कलए राज्य में
बढ़ता तो कजतने हजारों-हजार लोग यहां नौिरी में लगे
शासनादेश भी नहीं सुधारा गया है.
तया प्रयास हुए?
हैं वे सब बाहर जाते.
नहीं, वह एेतट मेरे संज्ान में है. हमने कनणर्य कलया है हम आईटी िे ि्षेत्र में तेजी से िाम िर रहे हैं. बीच में पंचायत एेतट अभी तक नहीं बन पाया है.
कि पीएल पुकनया व‍ारा 1997 में जारी शासनादेश पर मंदी िे िारण थोड़ी िमी आई थी. आशा है कि हम नहीं, राज्य िा पंचायत एेतट तो बना है .
कजला कनयोजन सकमकत का गठन अभी तक
भारत सरिार से बात िरनी पड़ेगी. हमने पहले भी इन सेतटरांे में 50 हजार लोगों िो रोजगार देंग.े
आप हमेशा पहाड़ के पानी और जवानी को नहीं हुआ है.
भारत सरिार िो इस कवषय में कचट्ठी कलखी थी.

' हमारी 108 ने दुननया के
सारे नरकाडड तोड़े हैं '

कृकष क्षेत्र कसकुड़ रहा है. कृकष कवकास की दर रोकने की बात करते हैं, लेककन कपछले पांच
साल में पलायन और बढ़ा है.
ऋणात्मक हो रही है. तयों ?

प्रश्नोत्तर

 

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