देशभक्ति से लबालब एक पहाड़ी लोकगीत
(प्रस्तुती भीषम कुकरेती,)
मैं छौं देश को सिपै
बेडु पाकी बार , बेडु पाकी बार
मेरा दिल की प्यारी गणेशि जा प्यारी घार
तेल की कढाई तेल की कढाई
जा प्यारी ड़्यार सिपैणि, मि जान्दु लड़ाई
ज्युड़ी मारी फंदा गणेशी , ज्युड़ी मारी फंदा
जा प्यारी ड़्यार सिपैणि टु छै आशाबंद
धार मा की तूण सिपैजी धार मा की तूण
जन शोभा तुमारी सिपैजी , उन मेरी निहूण
साट्यु की झड़ाई सिपैणि , साट्यु की झड़ाई
किले भूलि मेरी सिपैणि मि छौं देस कु सिपाही
तौली छ खाली सिपैजी , तौली छ खाली
भूलि गे छौ मि मेरा सिपै जी , जावा खुश खुशहाली
धोळी जाली रोळी सिपैजी धोळी जाली रोळी
जीतिक ऐनी सिपैजी , या खयां छाती पर गोळी
बूणि जालो जाळ सिपैजी बूणि जालो जाळ
नाक ऊँची कर दियां सिपैजी , दे द्यूं छै छौं जैमाळ
पैरी जालो ताज सिपैजी , पैरी जालो ताज
सुहाग की भेंट सिपैणि देश कु पेश करदू आज
ढुंगा ढोळी गारी सिपैणि ,ढुंगा ढोळी गारी
त्वे जनी ह्वेन सिपैणि सबि देश की बेटी ब्वारी
आभार ; श्री मदन डुकलण चिट्ठी पत्री