.......उक्त धतिया नगाड़े को राजा दीपचंद ने जागेश्वर मंदिर में चढ़ाया था। इसे वृद्ध जागेश्वर के धती ढुंग से बजाया जाता था, इस स्थान से रीठागाड़ी, गंगोलीहाट, चौकोड़ी और बेरीनाग तक साफ दिखाई देता है, उस समय गंगोलीहाट में मणकोटी राजाओं का राज था। किवदंतियों के अनुसार जब यह नगाड़ा बजता था तो गंगोल में गर्भवती महिलाओं के गर्भ गिर जाते थे और जब भी यह बजता तो मणकोटी राजा के राज्य में कुछ न कुछ अनिष्ट हो जाता था।
इस नगाड़े के सहायक वाद्य के रुप में दो बिजयसार के ढोल, दो तांबे के दमुवे, दो तुरही, दो नागफणी, दो रणसिंग, दो भोंकर और दो कंसेरी बजाई जाती थी। इसे बजाने से पहले इसकी पूजा विधिवत पंडित द्वारा कराई जाती थी।