छठी एवं 12वीं सदियों के बीच ही एक वंश शक्तिशाली बना और कत्यूरियों ने संपूर्ण कुमाऊं पर शासन किया। फिर भी उनका प्रभाव छोटे क्षेत्र तक ही सीमित रहा, जब वर्ष 1191 से 1223 के बीच, पश्चिमी नेपाल के माल्लाओं ने कुमाऊं पर आक्रमण किया।
12वीं सदी में चंदों का प्रभुत्व बढ़ा और उन्होंने वर्ष 1790 तक कुमाऊं पर शासन किया। उन्होंने कई प्रमुखों को निवेश कर लिया तथा पड़ोसी राज्यों के साथ अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए उनसे युद्ध किया।
उस अवधि में इस वंश में केवल एक बार रूकावट आयी, जब गढ़वाल के पंवार राजा, प्रद्युम्न शाह भी कुमाऊं के राजा बने, जिन्हें प्रद्युम्न चंद कहा गया। अंतिम चंद शासक, महीन्द्र सिंह चंद हुआ, जिसने राजबंगा (चंपावत) से शासन किया। वर्ष 1790 में गोरखों ने, जिन्हें गोरखियाणा कहते हैं, कुमाऊं पर कब्जा कर लिया और चंदों का अंत हो गया।
दमनकारी गोरखों के शासन काल का अंत वर्ष 1815 में हुआ, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें हराकर, कुमाऊं पर प्रभुत्व कायम कर लिया। अंग्रेजी शासन के अंत में स्थानीय कार्यदल एवं प्रेस ने बेगार प्रथा एवं लोगों के जन-अधिकार के विरूद्ध जनचेतना जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
इन आंदोलनों का भारतीय स्वाधीनता संघर्ष में विलय हो गया - जो आजादी वर्ष 1947 में प्राप्त हुआ। तब कुमाऊं उत्तर प्रदेश का भाग हो गया तथा बाद में वर्ष 2000 में नये राज्य उत्तराखंड का भाग बना।