Author Topic: Exclusive Photos of Tehri Dam, Uttarakhand-टिहरी गढ़वाल और डाम की कुछ तस्वीरें  (Read 211238 times)

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अब नहीं सुनाई देती बैलों के गले की घंटी

टिहरी और उत्तरकाशी। कभी इन गांवों में भोर की पहली किरण के साथ ही चहल पहल होती थी और बैलों के गले की घंटी से लोग जागते थे। अब इन गांवों में न तो पहले बैलों के गले की घंटी सुनाई पड़ती है और न ही पहले जैसी चहल पहल नजर आती है। इसकी वजह है जलविद्युत परियोजनाओं, आपदा व भवनों के निर्माण के कारण कृषि भूमि का लगातार घटना।

गंगा व यमुना की घाटी में बसे जनपद उत्तरकाशी में आलू, मटर, राजमा, धान, गेहूं और अन्य फसलों की अच्छी पैदावार होती है। एक जमाना था जब ग्रामीण बाजार से सिर्फ नमक खरीदते थे, आज लोग पूरी तरह से बाजार पर निर्भर हो गए हैं। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो कुल क्षेत्र 8,12,415 में से 7,21,661 हेक्टेयर वनों से घिरा हुआ है। 2349 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र है। वर्ष 2001 तक कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल 6316 हेक्टेयर था। कृषि भूमि में तमाम निर्माण कार्य होने से अब 2000 हेक्टेयर ही कृषि योग्य भूमि बची है।



कृषि योग्य भूमि घटने से किसान शहरों में मजदूरी करने को विवश हैं। ब्लाक भटवाड़ी के गांव सुक्की, भंगेली, सुनगर, कुज्जन, वारसू, पाला, क्यार्क, सालंग, भुक्की, हुर्री व भटवाड़ी के 4,042 काश्तकारों की जमीन लोहारीनाग-पाला और पाला-मनेरी जल विद्युत परियोजना निर्माण के लिए अधिग्रहीत की गई। इन गांवों की उपजाऊ जमीन बांध निर्माण में जाने के बाद अब काश्तकारों के सामने रोटी का संकट गहरा गया है। मनेरी भाली द्वितीय व प्रथम चरण में भी सैकड़ों गांव की जमीन चली गई।

रही सही कसर टिहरी जल विद्युत परियोजना ने पूरी कर दी। टिहरी डैम में ब्लाक चिन्यालीसौड़ के 80 से अधिक गांवों की जमीन जलमग्न हो गई। चिन्यालीसौड़ में 13, 622 हेक्टेयर जमीन के 7000 हेक्टेयर कृषि भूमि थी, अब यहां मात्र 167 हेक्टेयर भूमि पर ही खेती होती है।

 जनपद के ब्लाक भटवाड़ी, डुण्डा, चिन्यालीसौड़, नौगांव, पुरोला व मोरी में मटर, मूली, फ्रांसबीन, बंद गोभी, फूल गोभी, हल्दी, धनिया, लहसुन व अदरक के उत्पादन पर पिछले पांच में काफी कमी आई है। इसकी अहम वजह कृषि योग्य भूमि का कम होना है

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37 विस्थापितों को मिले कृषि भूखंड

नई टिहरी गढ़वाल। टिहरी बांध प्रभावित विस्थापित छह गांव के 48 पात्र विस्थापित व्यक्तियों में से 37 को आज बुधवार को लाटरी सिस्टम से कृषि भूखंड आवंटित किए गए।

टिहरी बांध के अधिकतम जलभराव क्षेत्र में 45 गांव विस्थापन की श्रेणी में आए थे। इन गांवों के विस्थापन के लिए जिलाधिकारी व पुनर्वास निदेशक सचिन कुर्वे ने जिला मुख्यालय में विस्थापितों के समक्ष ही लाटरी के माध्यम से कृषि भूखंड आवंटन प्रक्रिया शुरू की थी। पहले भूखंड आवंटन को लेकर सवाल उठते रहे, इसलिए इसमें पारदर्शिता अपनाने के लिए लाटरी प्रक्रिया मुख्यालय में शुरू की गई। बुधवार को बहुद्देशीय भवन द्वितीय चरण की लाटरी प्रक्रिया हुई।

जिलाधिकारी व पुनर्वास निदेशक सचिन कुर्वे ने बताया कि आवंटित कृषि भूखंडों के सुधारीकरण के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन गया गया। इसमें प्रभारी अधिकारी पुनर्वास, पुनर्वास स्थल से संबंधित अधिशासी अभियंता, उप राजस्व अधिकारी अनुरक्षण एवं नियोजन खंड ऋषिकेश तथा संबंधित ग्राम पंचायत का प्रधान या ग्रामवासियों के नामित प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है। जिलाधिकारी ने बताया कि जिन विस्थापितों ने पूर्व में नगद प्रतिकर लिया है वह प्रतिकर की धनराशि जमा करने बाद ही आवंटित भूखंड का कब्जा दिया जाएगा।

 इससे पूर्व 5 सितम्बर को 90 विस्थापित पात्र व्यक्तियों में से 78 को भूखंड आवंटित किए गए। अवशेष पात्र व्यक्तियों को शीघ्र ही सूचित कर लाटरी के माध्यम से भूखंड आवंटित किए जाएंगे। जिलाधिकारी ने कहा कि पुनर्वास का कार्य लगभग पूरा हो गया है।

 इस अवसर पर उन्होंने बांध प्रभावित नकोट ग्रामवासियों की मांग पर पुनर्वास विभाग को दिन में दो बार नाव संचालन के निर्देश दिए। इस अवसर पर अधिशासी अभियंता ग्रामीण पुनर्वास प्रवीण कुमार, जिलाधिकारी के वैयक्तिक सहायक वीरेन्द्र सिंह, पुनर्वास के जनसम्पर्क अधिकारी सीएम पांडेय सहित पुनर्वास विभाग के अधिकारी मौजूद थे।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5828918.html

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