Author Topic: Binsar Mahadev Temple, Soni Ranikhet-बिनसर महादेव, सोनी रानीखेत  (Read 17457 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

One Binsar Mahadev is situated near Soni in Ranikhet area. Though there is also famous shiv temple 'Binsar Mahadev' which is in garhwal region. We are today sharing information about Binsar Mahadev Temple which is situated in Ranikhet area. I have personally visited this temple many times. This temple is surrounded by pine & other trees and situated in very peaceful place.



How to reach -

यात्र
 
 अल्मोडा जिले में दो बिनसर हैं। एक बिनसर तो यह रानीखेत के पास है और दूसरा अल्मोडा से करीब 35 किलोमीटर उत्तर में बिनसर सेंचुरी के नाम से जाना जाता है। बिनसर सेंचुरी बहुत ही प्रसिद्ध जगह है। जबकि रानीखेत से बीस किलोमीटर दूर वाला बिनसर महादेव कम प्रसिद्ध है। 

 रानीखेत से रामनगर जाने वाली रोड पर करीब 16-17 किलोमीटर के बाद सोनी गांव स्थित है। यह वही रामनगर है- जिम कार्बेट वाला। चाहे तो सीधा रामनगर से भी सोनी पहुंचा जा सकता है। सोनी से एक-डेढ किलोमीटर रामनगर की ओर चलने पर एक यू-टर्न के आकार में पुल है। पुल की जड में एक तिराहा है। बस, यही वो जगह है जहां हम रानीखेत-रामनगर रोड को छोड देते हैं। तीसरी सडक पकडते हैं और चलते जाते हैं। एक किलोमीटर के बाद सोनी इको पार्क आता है जिसका आजकल ताला बन्द था। यह पार्क एक बेहतरीन पिकनिक स्पॉट है। पार्क को एक साइड में छोडते हुए सीधे चलते जायें तो आधे किलोमीटर के बाद फिर एक तिराहा आता है। उल्टे हाथ की तरफ मुड जाओ और जरा सा चलने पर स्वर्गाश्रम बिनसर महादेव का मेन गेट नजर आ जाता है।

 जब हम कौसानी से रानीखेत जा रहे थे तो रानीखेत से आठ-दस किलोमीटर पहले चीड का साफ-सुथरा जंगल शुरू हो जाता है। इस जीव ने जंगल तो बहुत देखे हैं लेकिन ऐसा जंगल कभी नहीं देखा था सिवाय फिल्मों के। जब रानीखेत चार किलोमीटर रह गया और अल्मोडा से आने वाली सडक भी इसमें मिल गई और चेक-पोस्ट से दो-दो रुपये प्रति ‘टूरिस्ट’ पर्ची भी कट गई तो मन में आया कि यहीं उतर जाओ। चार किलोमीटर पैदल जायेंगे। लेकिन जब देखा कि सामने सडक पर दूर-दूर तक अपने पूर्वजों का कब्जा है तो पैदल का इरादा त्याग दिया। यह कमी पूरी हुई बिनसर जाकर।

 
M S Mehta


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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         Binsar Mahadev Shiva's temple located near Sauni some 20kms from Ranikhet towards Ramnagar Road. It was the special day this day otherwise perfect peace could be observed amidst the large pinus trees in and around the temple
Photo by - Hinashu Dutt


 



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बिनसर उत्तरांचल में अल्मोड़ा से लगभग ३४ किलोमीटर दूर है। यह समुद्र तल से लगभग २४१२ मीटर की उंचाई पर बसा है। लगभग ११वीं से १८वीं शताब्दी तक ये चांद राजाओं की राजधानी रहा था। अब इसे वन्य जीव अभयारण्य बना दिया गया है। बिनसर झांडी ढार नाम की पहाडी पर है। यहां की पहाड़ियां झांदी धार के रूप में जानी जाती हैं। बिनसर गढ़वाली बोली का एक शब्द है -जिसका अर्थ नव प्रभात है।[1] यहां से अल्मोड़ा शहर का उत्कृष्ट दृश्य, कुमाऊं की पहाडियां और ग्रेटर हिमालय भी दिखाई देते हैं। घने देवदार के जंगलों से निकलते हुए शिखर की ओर रास्ता जाता है, जहां से हिमालय पर्वत श्रृंखला का अकाट्य दृश्‍य और चारों ओर की घाटी देखी जा सकती है। बिनसर से हिमालय की केदारनाथ, चौखंबा, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदाकोट और पंचोली चोटियों की ३०० किलोमीटर लंबी शृंखला दिखाई देती है, जो अपने आप मे अद्भुत है, और ये बिनसर का सबसे बडा आकर्षण भी हैं।

वन्य जीव अभयारण्य

बिनसर वन्य जीव अभ्यारण्य में तेंदुआ पाया जाता है। इसके अलावा हिरण और चीतल तो आसानी से दिखाई दे जाते हैं। यहां २०० से भी ज्यादा तरह के पंक्षी पाये जाते हैं। इनमें मोनाल सबसे प्रसिद्ध है ये उत्तराखंड का राज्य पक्षी भी है किन्तु अब ये बहुत ही कम दिखाई देता है। अभयारण्य में एक वन्य जीव संग्रहालय भी स्थित है।

बिन्सर महादेव

रानीखेत से १९ किमी. की दूरी पर बिन्सर महादेव मंदिर समुद्र तल से २४८० मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस क्षेत्र का प्रमुख मंदिर है। मंदिर चारों तरफ से घने देवदार के वनों से घिरा हुआ है।[2] मंदिर के गर्भगृह में गणोश, हरगौरी और महेशमर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है। महेशमर्दिनी की प्रतिमा पर मुद्रित नागरीलिपि मंदिर का संबंध नौवीं शताब्दी से जोड़ती है। इस मंदिर को राजा पीथू ने अपने पिता बिन्दू की याद में बनवाया था। इसीलिए मंदिर को बिन्देश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां हर साल जून के महीने में बैकुंड चतुर्दिशी के अवसर पर मेला लगता है। मेले में महिलाएं पूरी रात अपने हाथ में दिए लेकर सन्तान प्राप्ति के लिए आराधना करती हैं। गढवाल जनपद के प्रसिद्ध शिवालयों श्रीनगर में कमलेश्वर तथा थलीसैण में बिन्सर शिवालय में बैकुंठ चतुर्दशी के पर्व पर अधिकाधिक संख्या में श्रृद्धालु दर्शन हेतु आते हैं तथा इस पर्व को आराधना व मनोकामना पूर्ति का मुख्य पर्व मानते हैं।

बिनसर मंदिर

पौड़ी मुख्यालय से ११८ किलोमीटर दूर थैलीसैंण मार्ग पर ८००० फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यहॉ का प्रसिद्ध बिनसर मन्दिर देवदास के सघन वृक्षो से आच्छादित ९००० फीट पर दूधातोली के ऑचल में विद्यमान है। जनश्रुति के अनुसार कभी इस वन में पाण्डवों ने वास किया था। पाण्डव एक वर्ष के अज्ञातवास में इस वन में आये थे और उन्होंने मात्र एक रात्रि में ही इस मन्दिर का निर्माण किया।[4]

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बिनसर महादेव यात्रा से होती है स्वर्गानुभूति

रानीखेत। रानीखेत से करीब 16 किमी दूर सोनी देवलीखेत स्थित बिनसर महादेव मंदिर क्षेत्र के लोगों का अपार श्रद्धा का केंद्र है। यह भगवान शिव और माता पार्वती की पावन स्थली मानी जाती है। प्राकृतिक रूप से भी यह स्थान बेहद खूबसूरत है। हर साल हजारों की संख्या में यहां श्रध्दालु पहुंचते हैं।
कुंज नदी के सुरम्य तट पर करीब साढ़े पांच हजार फीट की ऊंचाई पर बिनसर महादेव का भव्य मंदिर है। जनश्रुति के अनुसार पूर्व में निकटवर्ती सौनी गांव में मनिहार लोग रहते थे। उनमें से एक की दुधारु गाय रोजाना बिनसर क्षेत्र में घास चरने जाती थी। घर आने पर इस गाय का दूध निकला रहता था। एक दिन मनिहार गाय का पीछा करने चल दिया। उसने देखा कि जंगल में एक शिला के ऊपर खड़ी होकर गाय दूध छोड़ रही थी और शिला दूध पी रही थी। इससे गुस्साए मनिहार ने गाय को धक्का देकर कुल्हाड़ी के उल्टे हिस्से से शिला पर प्रहार कर दिया इससे शिला से रक्त की धार बहने लगी। उसी रात एक बाबा ने स्वप्न में आकर मनिहारों को गांव छोड़ने को कहा और वह गांव छोड़कर रामनगर चले गए।
जनश्रुति के अनुसार सौनी बिनसर के निकट किरोला गांव में एक 65 वर्षीय नि:संतानी वृद्ध थे। उन्हें सपने में एक साधु ने दर्शन देकर कहा कि कुंज नदी के तट की एक झाड़ी में शिवलिंग पड़ा है। उसे प्रतिष्ठित कर मंदिर का निर्माण करो। उस व्यक्ति ने आदेश पाकर मंदिर बनाया और उसे पुत्र प्राप्त हो गया। पूर्व में इस स्थान पर छोटा सा मंदिर स्थापित था। वर्ष 1959 में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा से जुड़े ब्रह्मलीन नागा बाबा मोहन गिरि के नेतृत्व में इस स्थान पर भव्य मंदिर का जीर्णोद्घार शुरू हुआ। इस मंदिर में वर्ष 1970 से अखंड ज्योति जल रही है। मंदिर की व्यवस्थाएं देख रहे श्री 108 श्री महंत राम गिरि महराज ने बताया कि यहां श्री शंकर शरण गिरि संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना की गई है।


(Source Amar Ujala)

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अनादि देव भव्ययं सदाशिवमं सुरेश्वरम्सुवर्णपद्म लोचनं भवाब्धिभीति मोचनम्।कुजातटे सुशोभित विचित्र दारूकावनम्मृगेंद्रपीठ संस्थितं नमामिदेव बिन्सरम्।

 

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