Author Topic: Kapil Muni Ashram, Uttarakashi-कपिल मुनि आश्रम गुन्दीयाट उत्तरकाशी  (Read 6193 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are sharing here information about Kapil Muni Ashram / Temple situated in Gundiyat village of Uttarkashi.


प्रसिद्ध कपिल मुनि आश्रम / मंदिर जनपद उत्तरकाशी के गुन्दीयाट गाव, पट्टीरामासेराय एव तहसील पुरोला के अंतर्गत स्थित है! कमलेश्वर (रामासेराई पट्टी) मंदिर के पाद ताल पर इस मंदिर की स्थित है!  यह स्थान यमुना की सहायक कमल (कपिल) नदी के तट पर पुरला के निकट अवस्थित है! इस क्षेत्र के आराध्य देव कपिल मुनि है! राजा सगर के साथ हज़ार पूरा कपिलमुनि के कोपभाजन हुए थे था जीने उधार हेतु गंगा का इस लोक में पदार्पण हुवा था! सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल भगवन विष्णु के अवतार माने गए है! (Source - Kedarnath Book Written By Hema Uniyal) 


एम् एस मेहता


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कपिल मुनि

युधिष्ठिर ने लोमश ऋषि से पूछा, "हे मुनिवर! राजा भगीरथ गंगा को किस प्रकार पृथ्वी पर ले आये? कृपया इस प्रसंग को भी सुनायें।" लोमश ऋषि ने कहा, "धर्मराज! इक्ष्वाकु वंश में सगर नामक एक बहुत ही प्रतापी राजा हुये। उनके वैदर्भी और शैव्या नामक दो रानियाँ थीं। राजा सगर ने कैलाश पर्वत पर दोनों रानियों के साथ जाकर शंकर भगवान की घोर आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उनसे कहा कि हे राजन्! तुमने पुत्र प्राप्ति की कामना से मेरी आराधना की है। अतएव मैं वरदान देता हूँ कि तुम्हारी एक रानी के साठ हजार पुत्र होंगे किन्तु दूसरी रानी से तुम्हारा वंश चलाने वाला एक ही सन्तान होगा। इतना कहकर शंकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गये। "समय बीतने पर शैव्या ने असमंज नामक एक अत्यन्त रूपवान पुत्र को जन्म दिया और वैदर्भी के गर्भ से एक तुम्बी उत्पन्न हुई जिसे फोड़ने पर साठ हजार पुत्र निकले। कालचक्र बीतता गया और असमंज का अंशुमान नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। असमंज अत्यन्त दुष्ट प्रकृति का था इसलिये राजा सगर ने उसे अपने देश से निष्कासित कर दिया। फिर एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करने की दीक्षा ली। अश्वमेघ यज्ञ का श्यामकर्ण घोड़ा छोड़ दिया गया और उसके पीछे-पीछे राजा सगर के साठ हजार पुत्र अपनी विशाल सेना के साथ चलने लगे। सगर के इस अश्वमेघ यज्ञ से भयभीत होकर देवराज इन्द्र ने अवसर पाकर उस घोड़े को चुरा लिया और उसे ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। उस समय कपिल मुनि ध्यान में लीन थे अतः उन्हें इस बात का पता ही न चला। इधर सगर के साठ हजार पुत्रों ने घोड़े को पृथ्वी के हरेक स्थान पर ढूँढा किन्तु उसका पता न लग सका। वे घोड़े को खोजते हुये पृथ्वी को खोद कर पाताल लोक तक पहुँच गये जहाँ अपने आश्रम में कपिल मुनि तपस्या कर रहे थे और वहीं पर वह घोड़ा बँधा हुआ था। सगर के पुत्रों ने यह समझ कर कि घोड़े को कपिल मुनि ही चुरा लाये हैं, कपिल मुनि को कटुवचन सुनाना आरम्भ कर दिया। अपने निरादर से कुपित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को अपने क्रोधाग्नि से भस्म कर दिया। "जब सगर को नारद मुनि के द्वारा अपने साठ हजार पुत्रों के भस्म हो जाने का समाचार मिला तो वे अपने पौत्र अंशुमान को बुलाकर बोले कि बेटा! तुम्हारे साठ हजार दादाओं को मेरे कारण कपिल मुनि की क्रोधाग्नि में भस्म हो जाना पड़ा। अब तुम कपिल मुनि के आश्रम में जाकर उनसे क्षमाप्रार्थना करके उस घोड़े को ले आओ। अंशुमान अपने दादाओं के बनाये हुये रास्ते से चलकर कपिल मुनि के आश्रम में जा पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने अपनी प्रार्थना एवं मृदु व्यवहार से कपिल मुनि को प्रसन्न कर लिया। कपिल मुनि ने प्रसन्न होकर उन्हें वर माँगने के लिये कहा। अंशुमान बोले कि मुने! कृपा करके हमारा अश्व लौटा दें और हमारे दादाओं के उद्धार का कोई उपाय बतायें। कपिल मुनि ने घोड़ा लौटाते हुये कहा कि वत्स! जब तुम्हारे दादाओं का उद्धार केवल गंगा के जल से तर्पण करने पर ही हो सकता है। "अंशुमान ने यज्ञ का अश्व लाकर सगर का अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण करा दिया। यज्ञ पूर्ण होने पर राजा सगर अंशुमान को राज्य सौंप कर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिये उत्तराखंड चले गये इस प्रकार तपस्या करते-करते उनका स्वर्गवास हो गया। अंशुमान के पुत्र का नाम दिलीप था। दिलीप के बड़े होने पर अंशुमान भी दिलीप को राज्य सौंप कर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिये उत्तराखंड चले गये किन्तु वे भी गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में सफल न हो सके। दिलीप के पुत्र का नाम भगीरथ था। भगीरथ के बड़े होने पर दिलीप ने भी अपने पूर्वजों का अनुगमन किया किन्तु गंगा को लाने में उन्हें भी असफलता ही हाथ आई।

"अन्ततः भगीरथ की तपस्या से गंगा प्रसन्न हुईं और उनसे वरदान माँगने के लिया कहा। भगीरथ ने हाथ जोड़कर कहा कि माता! मेरे साठ हजार पुरखों के उद्धार हेतु आप पृथ्वी पर अवतरित होने की कृपा करें। इस पर गंगा ने कहा वत्स! मैं तुम्हारी बात मानकर पृथ्वी पर अवश्य आउँगी, किन्तु मेरे वेग को शंकर भगवान के अतिरिक्त और कोई सहन नहीं कर सकता। इसलिये तुम पहले शंकर भगवान को प्रसन्न करो। यह सुन कर भगीरथ ने शंकर भगवान की घोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी हिमालय के शिखर पर गंगा के वेग को रोकने के लिये खड़े हो गये। गंगा जी स्वर्ग से सीधे शिव जी की जटाओं पर जा गिरीं। इसके बाद भगीरथ गंगा जी को अपने पीछे-पीछे अपने पूर्वजों के अस्थियों तक ले आये जिससे उनका उद्धार हो गया। भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार करके गंगा जी सागर में जा गिरीं और अगस्त्य मुनि द्वारा सोखे हुये समुद्र में फिर से जल भर गया।"

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 भागवत पुराण में बाईस अवतारों की चर्चा है! जिसके अंतर्गत :
 
 १) पुरुष
 २) बराह
 ३) नारद
 ४) नर और नारायण
 ५) कपिल
 ६) ऋषभ
 ७)  पर्थु
 ८)  मत्स्य
 ९)  कुर्म
 १०)  धन्वन्तरी
 ११)  नरसिह
 १२)  वामन
 १३) परशुराम
 १४) वेद व्यास
 १५)  राम
 १६)  बलराम
 १७)  दत्तात्रेय
 १८)  यज्ञ
 १९)  कृष्ण
 २०) और भावी अवतारा के रूप में बुध और कल्कि है 
 

TKapil Muni Temple Photo-Source meriyatra.com

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कपिल मुनि मंदिर यामुन शैली का kaasht देवालय है!  मंदिर के mukhy गर्व्गढ़ में कपिल मुनि नाम से वर्णित प्रतिमा प्रतिशित है jiske विषय में gyan hota है kye yah रों gaav के uppar tipari namak स्थान से प्राप्त हुयी thee! मुनि के sannikat kotlayee अर्थार्त खुंडासूरी  देव (kshetri devta) प्रतिमा है जो विषय पर्यंत garbh में hi rahtee है, maatra kshran maah है ! गते से २० गते और पट्टियों में bhraman हेतु चली जाती है! श्रवण मॉस के २० गते से २६ गते तक is मंदिर में था निकट के गावो में मेले आयोजित किये जाते है!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि सूर्यवंशी राजा सागर ने अश्‍वमेध यज्ञ कराने का फैसला किया। इसमें इनका घोड़ा जहां-जहां गया उनके 60,000 बेटों ने उन जगहों को अपने आधिपत्‍य में लेता गया। इससे देवताओं के राजा इंद्र चिंतित हो गए। ऐसे में उन्‍होंने इस घोड़े को पकड़कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सागर के बेटों ने मुनिवर का अनादर करते हुए घोड़े को छुड़ा ले गए। इससे कपिल मुनि को काफी दुख पहुंचा। उन्‍होंने राजा सागर के सभी बेटों को शाप दे दिया जिससे वे राख में तब्‍दील हो गए। राजा सागर के क्षमा याचना करने पर कपिल मुनि द्रवित हो गए और उन्‍होंने राजा सागर को कहा कि अगर स्‍वर्ग में प्रवाहित होने वाली नदी पृथ्‍वी पर आ जाए और उसके पावन जल का स्‍पर्श इस राख से हो जाए तो उनका पुत्र जीवित हो जाएगा। लेकिन राजा सागर गंगा को जमीन पर लाने में असफल रहे। बाद में राजा सागर के पुत्र भागीरथ ने गंगा को स्‍वर्ग से पृथ्‍वी पर लाने में सफलता प्राप्‍त की। गंगा के तेज प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए भागीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया। फलत: भगवान शिव ने गंगा को अपने जटा में लेकर उसके प्रवाह को नियंत्रित किया। इसके उपरांत गंगा जल के स्‍पर्श से राजा सागर के पुत्र जीवित हुए।

ऐसा माना जाता है कि 18वीं शदी में गोरखा कैप्‍टन अमर सिंह थापा ने आदि शंकराचार्य के सम्‍मान में गंगोत्री मंदिर का निर्माण किया था। यह मंदिर भागीरथी नदी के बाएं किनारे पर स्थित सफेद पत्‍थरों से निर्मित है। इसकी ऊंचाई लगभग 20 फीट है। मंदिर बनने के बाद राजा माधोसिंह ने 1935 में इस मंदिर का पुनरुद्धार किया। फलस्‍वरूप मंदिर की बनावट में राजस्‍थानी शैली की झलक मिल जाती है। मंदिर के समीप 'भागीरथ शिला' है जिसपर बैठकर उन्‍होंने गंगा को पृथ्‍वी पर लाने के लिए कठोर तपस्‍या की थी। इस मंदिर में देवी गंगा के अलावा यमुना, भगवान शिव, देवी सरस्‍वती, अन्‍नपुर्णा और महादुर्गा की भी पूजा की जाती है।

हिंदू धर्म में गंगोत्री को मोक्षप्रदायनी माना गया है। यही वजह है कि हिंदू धर्म के लोग चंद्र पंचांग के अनुसार अपने पुर्वजों का श्राद्ध और पिण्‍ड दान करते हैं। मंदिर में प्रार्थना और पूजा आदि करने के बाद श्रद्धालु भगीरथी नदी के किनारे बने घाटों पर स्‍नान आदि के लिए जाते हैं। तीर्थयात्री भागीरथी नदी के पवित्र जल को अपने साथ घर ले जाते हैं। इस जल को पवित्र माना जाता है तथा शुभ कार्यों में इसका प्रयोग किया जाता है। गंगोत्री से लिया गया गंगा जल केदारनाथ और रामेश्‍वरम के मंदिरों में भी अर्पित की जाती है।

मंदिर का समय: सुबह 6.15 से 2 बजे दोपहर तक और अपराह्न 3 से 9.30 तक (गर्मियों में)। सुबह 6.45 से 2 बजे दोपहर तक और अपराह्न 3 से 7 बजे तक (सर्दियों में)।

मंदिर अक्षय तृतीया (मई) को खुलती है और यामा द्वितीया को बंद होती है। मंदिर की गतिविधि तड़के चार बजे से शुरू हो जाती है। सबसे पहले 'उठन' (जागना) और 'श्रृंगार' की विधि होती है जो आम लोगों के लिए खुला नहीं होता है। सुबह 6 बजे की मंगल आरती भी बंद दरवाजे में की जाती है। 9 बजे मंदिर के पट को 'राजभोग' के लिए 10 मिनट तक बंद रखा जाता है। सायं 6.30 बजे श्रृंगार हेतु पट को 10 मिनट के लिए एक बार फिर बंद कर दिया जाता है। इसके उपरांत शाम 8 बजे राजभोग के लिए मंदिर के द्वार को 5 मिनट तक बंद रखा जाता है। ऐसे तो संध्‍या आरती शाम को 7.45 बजे होती है लेकिन सर्दियों में 7 बजे ही आरती करा दी जाती है। तीर्थयात्रियों के लिए राजभोग, जो मीठे चावल से बना होता है, उपलब्‍ध रहता है (उपयुक्‍त शुल्‍क अदा करने के बाद)।

तीर्थयात्री प्राय: गनगनानी के रास्‍ते गंगोत्री जाते हैं। यह वही मार्ग है जिसपर पराशर मुनि का आश्रम था जहां वे गर्म पानी के सोते में स्‍नान करते थे। गंगा के पृथ्‍वी आगमन पर (गंगा सप्‍तमी) वैसाख(अप्रैल) में विशेष श्रृंगार का आयोजन किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जिस दिन भगवान शिव ने भागिरथी नदी को भागीरथ को प्र‍स्‍तुत किया था उस दिन को (ज्‍येष्‍ठ, मई) गंगा दशहरा पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा जन्‍माष्‍टमि, विजयादशमी और दिपावली को भी गंगोत्री में विशेष रूप से मनाया जाता है।

(source http://wmda.mobi/com)

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Kapil Muni's Ashram Temple ,Gundiyat Gaon





From Mori one has to come down to Purola and then take a route to Gundiyat Gaon through an enchanting valley. A distance is about 10 kilometres from Purola.
Ten kilometres north west of Purola lies a village called Gundiyat. Situated 4500 feet above sea level, in a green valley where potato is the main crop, this is a typical Garhwali village, featuring black slate roofs and small windows on all the houses. Walk a little way, through the narrow 'one person' lane from the bus stop, and you'll find yourself in what was once the sage Kapil Muni's Ashram. It was here that the sage meditated to please the Lord Shiva and obtain a boon. To mark the spot where Shiva appeared, there now stands the Shivling called Kapileshwar Mahadev.
5 kms away, in a village called Rama, you'll find the ancient temple of Lord Rama.
http://uttarkashi.nic.in/

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मेला

श्रावन माह २० गते से २६ गते तक इस मंदिर में तथा निकट के गावो में मेले आयोजित होते है!  खंडासूरी  जो निकट के ४,५ गावो का का मुख्य देवता है! खंडासूरी देव का मंदिर जैबण  (जिला उत्तरकाशी) में है जो पट्टी गडूगाड़, मोरी बलाक के अंतर्गत है!

 

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