शिवनगरी से शुरू हुआ गायत्री परिवार का सफर
उत्तरकाशी। वैदिक काल से ही गायत्री मंत्र की विशेष प्रतिष्ठा रही है। भारतीय धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन की परंपराओं में इस मंत्र को खासा फलदायक माना गया है।
मानवमात्र के परमात्मा से साक्षात्कार का भी यह साधन माना जाता है। यूं तो यह मंत्र प्राचीन काल से ही भारतीय समाज का अभिन्न अंग रहा है, लेकिन आधुनिक युग में इस मंत्र को प्रतिष्ठित करने के पीछे गायत्री परिवार शांतिकुंज का भी अहम योगदान है। शांतिकुंज की समस्त गविविधियां हरिद्वार से संचालित होती हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि आज दुनिया भर में करोड़ों लोगों को गायत्री मंत्र से जोड़ने में जुटे इस परिवार का सफर शिवनगरी उत्तरकाशी से ही शुरू हुआ था।
अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज का उत्तरकाशी से गहरा संबंध है। परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा ने 51 साल पूर्व यहां परशुराम मंदिर व मुक्ति शिला में तपस्या की थी और यहीं उन्हें मां गायत्री का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। दुबली-पतली काया वाले पं. शर्मा यहां आराधना में लीन रहते थे, मंदिर में स्थित पौराणिक मूर्ति के समक्ष वह घंटों ध्यानमग्न रहते थे। इसी मंदिर में चार वेदों का पहला भाष्य लिखकर उन्होंने खूब ख्याति अर्जित की।
हिमालय यात्रा पर आधारित अपनी पुस्तक 'सुनसान के सहचर' में श्रीराम शर्मा आचार्य ने अपनी तपस्या के बारे में विस्तृत वर्णन किया है। यहां से आचार्य हरिद्वार गए और फिर शुरू हुआ गायत्री परिवार शांतिकुंज की अनवरत यात्रा, जो आज भी आम जन को गायत्री मंत्र से जोड़ अध्यात्म का संरक्षण कर रहा है।
मंदिर के वयोवृद्ध पुजारी लाखीराम नौटियाल बताते हैं कि आचार्य ने परशुराम मंदिर के साथ ही मुक्ति शिला और गंगा के तटों पर गायत्री के पुनश्चरण पूर्ण किए। 24 पुनश्चरण के बाद उन्हें गायत्री का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
हरिद्वार में शांतिकुंज बनने से उम्मीद जगी थी कि उत्तरकाशी में भी आचार्य की स्मृति में संस्थान की इकाई स्थापित की जाएगी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है। हालांकि, गायत्री परिवार उत्तरकाशी इकाई की ओर से यहां प्रति सप्ताह दीपयज्ञ किया जाता है, जिनमें शांतिकुंज हरिद्वार के वरिष्ठ कार्यकर्ता भी शिरकत करते हैं।
गायत्री परिजन गरीब तबके की कन्याओं के नि:शुल्क विवाह संस्कार का भी आयोजन करते हैं। प्रतिवर्ष 20- 25 जोड़े शांतिकुंज भेजे जाते हैं। जड़भरत घाट पर गायत्री संस्कार केन्द्र में मुंडन, जनेऊ, अन्नप्राशन, समेत अन्य संस्कार पूरे कराए जाते हैं। अब तक पांच हजार से अधिक यज्ञ व अनुष्ठान गायत्री परिवार उत्तरकाशी में संपन्न कर चुका है।