Author Topic: Kashi Of Uttarakhand: Uttarkashi - उत्तराखण्ड की काशी: उत्तरकाशी  (Read 36453 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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Prataap nagar to uttarkashi road



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Rajen

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bhagirathi nadi uttarkashi


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वरुणावत के पत्थर दे रहे घोटालों की गवाही


उत्तरकाशी। वरुणावत से हुई पत्थरों की बरसात से उजड़ी शिवनगरी को संवारने को एक अरब 39 करोड़ खर्च हुए, लेकिन हालात आज भी बेहतर नहीं हैं। वरुणावत ट्रीटमेंट में प्रारंभ से ही धांधली की बातें उठती रही, लेकिन लोकायुक्तव हाईकोर्ट के फैसले के बाद वरुणावत के घोटाले एक बार फिर चर्चाओं में हैं।

सितंबर 2003 में वरुणावत से पत्थरों की बरसात शुरू हुई और पर्वत की तलहटी में बसे होटल व आवासीय भवन ध्वस्त हो गए। इस आपदा से बिखरी उत्तरकाशी को पुन: बसाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने 2 अरब 50 करोड़ का पैकेज वरुणावत ट्रीटमेंट के लिए दिया था। ट्रीटमेंट का जिम्मा संभाले श्रींग कंस्ट्रक्शन कंपनी को एक साल के भीतर कार्य पूरा करना था, लेकिन इसने पांच साल लगाए।

पांच साल में सरकार ने इस कंपनी को एक अरब 39 करोड़ दस लाख 72 हजार रुपये खर्च किए। प्रभावित लोगों ने प्रारंभ से कंस्ट्रक्शन कंपनी के कार्यो पर सवाल उठाए, बावजूद सरकार ने दूसरी कंपनी को कार्य नहीं सौंपा। इस पर स्थानीय भाजपा नेता बुद्धि सिंह पंवार ने लोकायुक्त में शिकायत दर्ज की। इस पर लोकायुक्त ने एक करोड़ 63 लाख की वसूली के आदेश भी दिए हैं।

 इसके साथ ही फिर से भूस्खलन न हो इसके लिए वन विभाग को दो करोड़ रुपये दिए। विभाग ने दो करोड़ के बीज रोपे, लेकिन आज तक वहां पौधे नहीं उगे हैं। विभाग के अधिकारियों का तर्क है, कि पशुओं ने पौधे खाकर नष्ट कर दिए। वहीं तांबाखाणी से ज्ञानसू सुरंग निर्माण पर 6 करोड़ 66 लाख 60 हजार रुपये खर्च किए, लेकिन कंकरीट का कार्य आज तक नहीं हो सका है।

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शिवनगरी से शुरू हुआ गायत्री परिवार का सफर

उत्तरकाशी। वैदिक काल से ही गायत्री मंत्र की विशेष प्रतिष्ठा रही है। भारतीय धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन की परंपराओं में इस मंत्र को खासा फलदायक माना गया है।

मानवमात्र के परमात्मा से साक्षात्कार का भी यह साधन माना जाता है। यूं तो यह मंत्र प्राचीन काल से ही भारतीय समाज का अभिन्न अंग रहा है, लेकिन आधुनिक युग में इस मंत्र को प्रतिष्ठित करने के पीछे गायत्री परिवार शांतिकुंज का भी अहम योगदान है। शांतिकुंज की समस्त गविविधियां हरिद्वार से संचालित होती हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि आज दुनिया भर में करोड़ों लोगों को गायत्री मंत्र से जोड़ने में जुटे इस परिवार का सफर शिवनगरी उत्तरकाशी से ही शुरू हुआ था।

अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज का उत्तरकाशी से गहरा संबंध है। परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा ने 51 साल पूर्व यहां परशुराम मंदिर व मुक्ति शिला में तपस्या की थी और यहीं उन्हें मां गायत्री का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। दुबली-पतली काया वाले पं. शर्मा यहां आराधना में लीन रहते थे, मंदिर में स्थित पौराणिक मूर्ति के समक्ष वह घंटों ध्यानमग्न रहते थे। इसी मंदिर में चार वेदों का पहला भाष्य लिखकर उन्होंने खूब ख्याति अर्जित की।

 हिमालय यात्रा पर आधारित अपनी पुस्तक 'सुनसान के सहचर' में श्रीराम शर्मा आचार्य ने अपनी तपस्या के बारे में विस्तृत वर्णन किया है। यहां से आचार्य हरिद्वार गए और फिर शुरू हुआ गायत्री परिवार शांतिकुंज की अनवरत यात्रा, जो आज भी आम जन को गायत्री मंत्र से जोड़ अध्यात्म का संरक्षण कर रहा है।

मंदिर के वयोवृद्ध पुजारी लाखीराम नौटियाल बताते हैं कि आचार्य ने परशुराम मंदिर के साथ ही मुक्ति शिला और गंगा के तटों पर गायत्री के पुनश्चरण पूर्ण किए। 24 पुनश्चरण के बाद उन्हें गायत्री का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

 हरिद्वार में शांतिकुंज बनने से उम्मीद जगी थी कि उत्तरकाशी में भी आचार्य की स्मृति में संस्थान की इकाई स्थापित की जाएगी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है। हालांकि, गायत्री परिवार उत्तरकाशी इकाई की ओर से यहां प्रति सप्ताह दीपयज्ञ किया जाता है, जिनमें शांतिकुंज हरिद्वार के वरिष्ठ कार्यकर्ता भी शिरकत करते हैं।

गायत्री परिजन गरीब तबके की कन्याओं के नि:शुल्क विवाह संस्कार का भी आयोजन करते हैं। प्रतिवर्ष 20- 25 जोड़े शांतिकुंज भेजे जाते हैं। जड़भरत घाट पर गायत्री संस्कार केन्द्र में मुंडन, जनेऊ, अन्नप्राशन, समेत अन्य संस्कार पूरे कराए जाते हैं। अब तक पांच हजार से अधिक यज्ञ व अनुष्ठान गायत्री परिवार उत्तरकाशी में संपन्न कर चुका है।

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कुटेती देवी मंदिर  उत्तरकाशी

उत्तरकाशी से 1.5 किलोमीटर दूर
भागीरथी के दूसरे किनारे कुटेती देवी कोट ग्राम खाई की प्रमुख देवी हैं। किंवदन्ती के अनुसार कुटेती देवी दुर्गा का अवतार हैं। यह मंदिर कोटा महाराज की पुत्री एवं दामाद द्वारा उसी जगह बनवाया गया, जहां उन्हें स्वर्णीय पहचान के तीन पत्थर मिले; जैसा कि स्वप्न में देवी ने उन्हें बताया था।



 

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