आद्यशक्ति मां भुवनेश्वरी देवी प्यार की शक्ति सृष्टि व माया की रानी है, वह उगते सूरज की लाल किरणों की तरह है, उसके मुकुट के रूप में चाँद और तीन नेत्र है. इनके हाथों में अंकुश, पाश, वर और अभय है. भुवनेश्वरी देवी का मंदिर मणिकूट पर्वत की एक पहाड़ी पर बना है व इसका महत् तांत्रिक महत्व है।
प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ मां भुवनेश्वरी देवी मंदिर वर्तमान में योग अध्यात्म व तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। उत्तराखण्ड का मुख्य द्वार कहे जाने वाले ऋषिकेश से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चन्द्रकूट पर्वत के शिखर मां भगवती का यह सिद्ध शक्तिपीठ है।
आदि शक्ति भुवनेश्वरी भगवान शिव की समस्त लीला विलास की सहचरी हैं। मां का स्वरूप सौम्य एवं अंग कांति अरूण हैं। भक्तों को अभय एवं सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वभाविक गुण है। इस महाविद्या की आराधना से जहां साधक के अंदर सूर्य के समान तेज और ऊर्जा प्रकट होने लगती है, वहां वह संसार का सम्राट भी बन सकता है। इसको अभिमंत्रित करने से लक्ष्मी वर्षा होती है और संसार के सभी शक्ति स्वरूप महाबली उसका चरणस्पर्श करते हैं।
मां भुवनेश्वरी भगवती देवी के मस्तक पर द्वितीया का चंद्रमा शोभायमान है। तीनों लोकों की प्रजा का भरण-पोषण करने वाली वरदा यानी वर देने की मुद्रा अंकुश पाश और अभय मुद्रा धारण करने वाली भुवनेश्वरी तुंगकुचा यानी अपने तेज एवं विकास पूर्ण यौवन और तीन नेत्रों से युक्त हैं।
देवी अपने तेज से देदीप्यमान हो रही हैं। प्रलयकाल में जो भुवन जल मग्न हो गए थे, वे आज देवी की कृपा से विकासशील हो रहे हैं।ह्वल्लेखा विद्या और अन्नपूर्णा स्वरूपा मां भुवनेश्वरी की साधना से शक्ति, बल, सामथ्र्य, लक्ष्मी, संपदा, वैभव और उत्तम विद्याएं-भक्ति,ज्ञान तथा वैराग्य की प्राप्ति होती है